‘ नेताओं ने प्रशासन को पंगु बना दिया है’

एचएस फुल्का ।  58 । वकील। लुधियाना, पंजाब. फोटोः प्रभजोत धिल
एचएस फुल्का । 58 ।
वकील। लुधियाना, पंजाब. फोटोः प्रभजोत धिल

वकालत के पेशे के अलावा मैं पंजाब में सामाजिक क्षेत्र में सक्रिय रहा हूं. मैंने शिक्षा, नशाबंदी और खेती-किसानी से जुड़े मुद्दों पर काम किया है. पिछले एक साल के दौरान मैंने देखा कि सामाजिक सेवा में सक्रिय मुझे जैसे कई लोग राजनीति के अखाड़े में भी उतर गए. उन्होंने एक राजनीतिक पार्टी शुरू की और वे इस देश में एक आंदोलन लाने के लिए काम कर रहे हैं. दरअसल यह व्यवस्था इतनी भ्रष्ट हो गई थी कि ठीक सोच रखने वाला आदमी राजनीति में आने की सोच भी नहीं सकता था.  सोच भी ले तो वह इसमें घुस नहीं सकता था. लेकिन आप ने एक मंच बनाया. मुझे लगता है कि ये पेशेवर लोग, जिन्होंने अपने अपने क्षेत्रों में बहुत काम किया है, वह बदलाव लाने के लिए सबसे बेहतर लोग जिसकी आज देश को जरूरत है. मुझे लगता है कि पंजाब को इस तरह के आंदोलन की बहुत जरूरत है. राजनेताओं ने राज्य के प्रशासन को बिलकुल लाचार बना दिया है. उनकी मर्जी के बिना कुछ नहीं होता. नशे की समस्या ने राज्य का बुरा हाल कर दिया है. किसानों को बहुत नुकसान हो रहा है. कई इसके चलते आत्महत्या को मजबूर हैं. शिक्षा का स्तर भी खराब है.

मैं इन क्षेत्रों में पिछले कुछ सालों से काम कर रहा हूं. हमने एक सामुदायिक व्यवस्था बनाई है ताकि किसान कम कीमत पर अच्छी क्वालिटी का कच्चा माल खरीद सकें और उससे बने उत्पाद बेचकर फायदा कमा सकें. यह काम वे मिलकर करते हैं. इससे किसान अब दोगुना मुनाफा कमा रहे हैं. मैं इस मॉडल को पूरे राज्य में दोहराना चाहता हूं. मुझे यह भी लगता है कि हमें नशे की समस्या से सीधे टकराना होगा. इसके लिए कई स्तरों पर एक साथ काम करने की जरूरत है. समस्या के खिलाफ लोगों को जागरूक करना होगा. इसमें लक्षणों की शुरुआत में ही पहचान और पुनर्वास केंद्रों का बड़ा नेटवर्क बनाना शामिल है. इसके साथ ही हमें रोजगार प्रशिक्षण का भी बंदोबस्त करना होगा.

मैं मानता हूं कि कहीं न कहीं इस व्यवस्था में पहली बार काम करने के चलते इसे बदलने में कई दिक्कतें होंगी. पूरी व्यवस्था पहले से ही हमारे खिलाफ काम कर रही है. लेकिन हमें ऐसे लोग नहीं चाहिए जिनका अनुभव बस इस पारंपरिक व्यवस्था में ही काम करने का हो. हम यह व्यवस्था बदलना चाहते हैं. अगर हम इसी व्यवस्था के लोगों को लाते हैं तो वे इस व्यवस्था के हिसाब से ही काम करेंगे. ऐसे में काम बनने की बजाय बिगड़ेगा.

वकील होने के नाते मैं व्यवस्था पर दबाव बना सकता था, लेकिन कानूनी प्रक्रिया मुझे बांध देती थी. आपको अदालत जाना होता है, मामला लड़ना होता है और नतीजे का इंतजार करना होता है. यह एक लंबी प्रक्रिया है. एक प्रशासक के रूप में आप सीधे काम कर सकते हैं.

अवलोक लांगर से बातचीत पर आधारित