धर्मों में गन्दगी

गन्दगी एक ऐसी चीज़ है, जो सब कुछ घृणित, दूषित और बेकार कर देती है। अगर कोई चीज़ बाहर से गन्दी हो, तो दिख जाती है; लेकिन अन्दर से गन्दी हो, तो उसके बारे में जानना मुश्किल होता है। इंसान के बारे में भी यही बात सटीक बैठती है। बाहर से गन्दे इंसानों को तो पहचाना जा सकता है; लेकिन अन्दर से गन्दे लोगों का पता ही नहीं चलता कि वह कितना गन्दा है? इंसानों की इसी अन्दर की गन्दगी को धोने के लिए धर्मों की नींव रखी गयी। लेकिन अब धर्मों में भी इतनी गन्दगी भर चुकी है कि उस गन्दगी को धर्म का हिस्सा मानकर लोग उसी में ऐसे लोट रहे हैं, जैसे कोई गन्दा पशु कीचड़ में लोट रहा हो। यह गन्दगी स्वार्थ के कारण पैदा हुई है। दु:खद इंसान के अन्दर जब स्वार्थ हो, तो उन्हें यह गन्दगी भी मलाई लगती है। इस गन्दगी में न जाने कितने ही ढोंगी, पाखण्डी और ड्रामेबाज़ फँसे हैं। ये लोग इन धर्मों पर आस्था रखने वाले लोगों को बाहर के चोले से, चमक-दमक वाली लग्जरी लाइफ से, धार्मिक आडम्बरों से, धर्म के नाम पर डराकर और ख़ुद को पहुँचा हुआ सन्त या महात्मा या फ़क़ीर बताकर भ्रमित करते रहते हैं। इनकी सीधी-सीधी पहचान यह है कि ये लोग ख़ुद को समाज से विरक्त बताकर समाज के ही मोह में फँसे रहते हैं। अपने लिए जमकर पैसा कमाते हैं। आधुनिक तकनीक वाली चीज़ों का इस्तेमाल करते हैं और मौक़ा मिले तो काम-वासना के गन्दे कुएँ में भी उतर जाते हैं। वास्तव में यह लोगों की ग़लती है कि वे ऐसे लोगों को धर्मों से घसीटकर बाहर नहीं निकाल फेंकते। लोगों की अन्ध श्रद्धा ही इन पाखण्डी लोगों का सम्बल बना हुआ है। ऊपर से राजनीतिक जुगलबन्दी ने इन्हें भी बचा रखा है और राजनीति में बैठे पाखण्डियों के लिए भी। लोगों को हवा भी नहीं लगती कि ये लोग मिलकर ग़लत रीति-रिवाज़ों को भी धार्मिक साबित कर देते हैं। अपने कुकृत्यों को छिपाने के लिए ऐसे लोग धर्मों का सहारा इस तरह लेते हैं, जैसे कोई ग़लत आदमी अपने बचाव के लिए कुछ हथियारों का सहारा लेता है। धर्म ऐसे पाखण्डियों के लिए हथियार की तरह ही हैं, जो अनुयायियों को डराते हुए उन्हें सज़ा देने से बचाते रहते हैं। वैसे धर्म अफ़ीम की तरह भी होते हैं, जिन्हें जिसने भी चख लिया उसके अंतर्मन की आँखें तब तक नहीं खुलतीं, जब तक कि कोई सच्चा सन्त उनका मार्गदर्शन न करे। सौभाग्य से दुनिया में कई अच्छे सन्त पैदा हुए; लेकिन यह विडम्बना ही है कि पाखण्डियों के चक्कर में पड़े कमअक़्ल लोगों की आँखें फिर भी न खुलीं।