धर्मों का कोढ़
क्या यह सम्भव है कि लोगों के बीच के झगड़े रुक जाएँ? नहीं, यह तब तक शायद सम्भव नहीं, जब तक धर्मों में भरे आडम्बरों और कु-प्रथाओं को लोग ढोते रहेंगे। आजकल हर धर्म के अड्डे बने हुए हैं। ये अड्डे एक तरफ़ अपने-अपने ढंग से उपासना का केंद्र और आस्था का प्रतीक हैं, तो दूसरी तरफ़ लोगों को आपस में बाँटने और लड़ाने की वजह बन चुके हैं। क्योंकि इन अड्डों से ही षड्यंत्र रचे जाते हैं। इन अड्डों में धर्म के ठेकेदार बनकर बैठे कुछ पाखण्डी अपने फ़ायदे के लिए लोगों को भडक़ाकर उनमें झगड़ा कराने का काम करते हैं।
इसलिए अगर धर्मों को लेकर झगड़े कम करने हैं, तो लोगों को अपने-अपने उन धर्मों की जड़ों से जुडऩा होगा, जिन्हें वे मानते हैं। उन्हें अपने-अपने धर्मों में धार्मिकता के नाम पर घर कर चुके आडम्बरों और उनमें बसी कु-प्रथाओं, बुराइयों को निकालकर बाहर फेंकना होगा। और यह काम लोगों को उसी तरह करना होगा, जिस तरह किसी कोढ़ी को ठीक करने के लिए जबरन उसके सड़े-गले अंगों को काटकर फेंकना पड़ता है। हालाँकि जिस तरह कोई कोढ़ी अपने शरीर के सड़े-गले अंगों से परेशान भले ही रहे; लेकिन वह उन्हें काटकर नहीं फेंकना चाहता। ठीक उसी तरह धर्मों में जो कोढ़ ढो रहे हैं, वे भी इस कोढ़ को जानते हुए भी काटकर नहीं फेंकना चाहते। ऐसे दो तरह के लोग होते हैं। एक वे, जो इस आडम्बर और कु-प्रथा रूपी कोढ़ से लाभ कमा रहे हैं, और दूसरे वे जो इसे धर्म मानकर ढो रहे हैं।
जो लोग धर्मों में रचे-बसे कोढ़ को धार्मिकता बताकर लाभ कमा रहे हैं, वे तो क़तई यह नहीं चाहेंगे कि धर्मों से यह कोढ़ कभी ख़त्म हो। क्योंकि उनकी दुकानें बन्द हो जाएँगी। और उन्हें ऐसा करने पर यक़ीनन थोड़ी तकलीफ़ उन लोगों को होगी, जो धर्मों में कोढ़ बन चुके आडम्बरों को आस्था और विश्वास के रूप में देखते हैं। सम्भव है कि आँख बन्द करके इस कोढ़ को धर्म समझकर ढो रहे लोग भडक़ भी जाएँ, उपद्रव करें। लेकिन जब यह कोढ़ पूरी तरह ठीक हो जाएगा, तब उन्हें भी एहसास होगा कि यह ठीक ही हुआ। लेकिन यह आसान नहीं होगा। इसलिए धर्मों के कोढ़ को दूर करने के लिए हर धर्म के जागरूक लोगों एक निर्दयी दिखने वाले सर्जन डॉक्टर की तरह काम करना होगा, जो धर्मों में रच-बस चुकी हर बुराई को निकालकर बाहर कर सकें।