दुस्साहस की हद

लखीमपुर में उन्मादी सत्ता के पहियों तले रौंद डाला लोकतंत्र

लखीमपुर खीरी के गाँव तिकुनिया में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री के आरोपी और पहले भी कई विवादों में घिरे बेटे द्वारा कार के पहियों के नीचे किसानों को कुचल डालने की घटना ने पूरे देश को झकझोरकर रख दिया है। कोई सोच भी नहीं सकता कि सत्ता के नशे में चूर एक नेता का बेटा यह दुस्साहस कर सकता है। इस घटना में चार किसानों, एक पत्रकार और तीन अन्य लोगों के ख़ून के छीटों ने भारतीय राजनीति के चेहरे को और बदसूरत बना दिया है। वैचारिक विरोध में इतना नीचे गिर जाना दुष्टता की पराकाष्ठा तो है ही, भारतीय लोकतंत्र और साम्प्रदायिक सौहार्द के लिए भी यह बहुत अशुभ संकेत है। आन्दोलनरत किसानों पर यह ज़ुल्म राजनीति पर दूरगामी असर डालेगा। लखीमपुर खीरी की पूरी घटना और उससे पड़ रहे प्रभावों को लेकर बता रहे हैं विशेष संवाददाता राकेश रॉकी :-

भाजपा के न चाहने के बावजूद लखीमपुर खीरी के तिकुनिया में किसानों की बर्बर हत्या एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया है। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री के आरोपी बेटे की करतूत ने भाजपा और उत्तर प्रदेश सरकार को न केवल रक्षात्मक कर दिया है, दोनों की एक ख़राब छवि भी देश के सामने पेश की है। आन्दोलन कर रहे किसानों को कार के नीचे कुचल देने की इस घटना ने कई गम्भीर सवाल खड़ा किये हैं कि देश किस दिशा की तरफ़ बढ़ रहा है? देश में अपनी आवाज़ उठाने की क्या क़ीमत हो सकती है?

विडम्बना यह है कि राज्य सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार और भाजपा ने इस घटना पर लम्बे समय तक न केवल चुप्पी साधे रखी, बल्कि आरोपियों को बचाने की कोशिश भी की। ऊपर से तुर्रा यह कि इस घटना को सिख बनाम हिन्दू बनाने की साज़िश रची जा रही है। और यह आरोप किसी और ने नहीं ख़ुद भाजपा के सांसद वरुण गाँधी ने लगाया है। यह इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है; क्योंकि आरोप ख़ुद भाजपा पर लग रहे हैं। संकेत यह भी मिल रहे हैं कि तिकुनिया की यह घटना अभी तक कुछ ही प्रदेशों तक सीमित किसान आन्दोलन को देशव्यापी आन्दोलन बना सकती है।

किसानों को कार के नीचे कुचल देने की घटना जब हुई और इसका आरोप मोदी मंत्रिमंडल में गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा उर्फ़ मोनू पर लगा, तो भाजपा से लेकर मंत्री पिता तक सभी ने आशीष को बेक़सूर ठहराने की हरसम्भव कोशिश की। अजय ने तो यह तक कहा कि उनका बेटा घटना के समय वहाँ था ही नहीं और उनके पास इसके पुख़्ता प्रमाण हैं। बाद में जो वीडियो सामने आये, उनसे आरोपी के मंत्री पिता के झूठ की कलई खुल गयी। बाद में अपराध शाखा (क्राइम ब्रांच) के सामने आरोपी आशीष अपने पिता के दावों को सच साबित करने वाला कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर सका।

किसानों, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के जबरदस्त दबाव के बाद आशीष मिश्रा पर एफआईआर तो दर्ज कर दी गयी और उसे मुख्य आरोपी भी बना दिया गया; लेकिन उसे गिरफ़्तार करने में योगी सरकार की पुलिस को 7 दिन का लम्बा वक़्त लग गया। यही नहीं उत्तर प्रदेश सरकार की गठित जाँच टीम तक घटना के 75 घंटे बाद तिकुनिया पहुँची। इससे साफ़ अंदाज़ा लग जाता है कि प्रदेश की भाजपा सरकार की इस मामले को कितना हल्के में ले रही थी।

जिस आशीष मिश्रा पर किसानों को कार के नीचे बेरहमी से कुचल देने का आरोप है, वह आने वाले विधानसभा चुनाव में क्षेत्र में भाजपा टिकट का प्रबल दावेदार है। अब इस मामले को वहाँ जातिवादी रंग देने की भी भरपूर कोशिश हो रही है। भाजपा पर आरोप लग रहा है कि इस मामले को हिन्दू बनाम सिख बताकर राजनीतिक रोटियाँ सेकने की कोशिश हो रही है। लेकिन उसकी यह कोशिश सफल होती नहीं दिख रही। लोगों की ज़िन्दगियों को इस तरह सत्ता के ग़ुरूर में बेरहमी से कुचल देने की घटना ने जनता को झिंझोड़ कर रख दिया है।

किसानों में ग़ुस्सा

इस घटना ने उत्तर प्रदेश और देश के अन्य राज्यों में किसानों के बड़े समूह को नाराज़ कर दिया है। यह किसान अपने आन्दोलन को देशव्यापी रूप देने की तैयारी कर रहे हैं। शहीद किसानों की अन्तिम अरदास में देश के हरेक हिस्से से किसान पहुँचे, जिससे यह साबित होता है कि उनमें ग़ुस्सा है और वे केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ लामबंद हो रहे हैं। विपक्ष, ख़ासकर कांग्रेस ने जिस तरह किसानों का समर्थन किया है, उससे भाजपा के लिए दिक़्क़तें बढ़ सकती हैं। इस राजनीतिक नुक़सान से बचने के लिए किसानों का भाजपा का सोशल मीडिया प्रचार तंत्र देश विरोधी, ख़ालिस्तानी और न जाने क्या-क्या कह रहा है।

बहुत-से जानकार भाजपा की इस कोशिश को बहुत ख़तरनाक और विभाजनकारी मानते हैं। उनका कहना है कि मुसलमानों के साथ-साथ अन्य ग़ैर-हिन्दू समुदायों, ख़ासकर किसानों के बहाने सिखों को बदनाम करना शुरू कर दिया गया है; जो देश के लिए ख़तरनाक साबित हो सकता है। लखीमपुर में किसानों को कुचलने और बाद में इसे सिख बनाम हिन्दू रंग देने की कोशिश से यह साबित हो जाता है।

इससे पहले किसान आन्दोलन को भी ख़ालिस्तानी आन्दोलन साबित करने की भाजपा समर्थक सोशल मीडिया में पिछले एक साल में ख़ूब कोशिश हुई है। भाजपा के वरिष्ठ नेता तक सार्वजनिक बयानों में ऐसा कहते रहे हैं। यह अलग बात है कि जनता ने इसे स्वीकार नहीं किया।

‘तहलका’ से फोन पर बातचीत में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दीपेंद्र हुड्डा ने कहा- ‘किसानों पर यह ज़ुल्म जलियांवाला बाग़ की याद दिलाता है। वो तो फिर भी अंग्रेज थे, अब तो अपने ही ज़ुल्म ढाने में लगे हैं। भाजपा जनता के सामने बेनक़ाब हो चुकी है। उसके दिन पूरे हो चुके हैं। उत्तर प्रदेश में भाजपा के केंद्रीय मंत्री के बेटे ने जिस तरह किसानों को निर्दयता से कार के नीचे कुचल डाला, वो इस पार्टी के नेताओं की मानसिकता को दर्शाता है। जनता इसका जबाव देगी। उत्तर प्रदेश में भाजपा बुरी तरह चुनाव हारेगी।‘

हालाँकि भाजपा नेता और हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम धूमल ने कहा- ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने किसानों के कल्याण के लिए अनेक योजनाएँ लागू की हैं। इसका असर यह हुआ है कि उत्पादन बढ़ा है। हाल के वर्षों में उनके खातों सीधे करोड़ों रुपये जमा किये गये हैं, ताकि उन्हें आर्थिक संबल मिल सके। कांग्रेस और विपक्ष लोगों को झूठ परोसने की नाकाम कोशिश रहे हैं। किसान मोदी सरकार में बहुत सुरक्षित हैं।‘

झूठ और सच!

 

‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक, अभी तक की जाँच में यह सामने आया है कि मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा यह साबित करने में नाकाम रहा है कि किसानों को कार से कुचलने जाने की घटना के समय वह घटनास्थल पर नहीं था। उसके पास एक कार्यक्रम का जो वीडियो है, जिसे वह प्रमाण के रूप में दिखा रहा है, वह घटना के डेढ़ घंटे पहले का है। लेकिन उसके ख़िलाफ़ जो वीडियो हैं, उनमें साफ़तौर पर दिख रहा है कि शान्ति से लौट रहे किसानों पर पीछे से थार जीप सहित तीन वाहन उन्हें कुचल कर तेज़ी से निकल जाते हैं। इसका वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। इसके अलावा एक और वीडियो वायरल हुआ, जिसमें आशीष अपनी गाड़ी से निकलकर भागता हुआ नज़र आ रहा है।

यही वजह रही कि उसके मंत्री पिता अजय मिश्रा द्वारा उसे बचाने की पूरी कोशिश के बावजूद इसी आधार पर आशीष की ग़िरफ़्तारी हुई है। दबाव बनाने के इरादे से अजय मिश्रा अपराध शाखा के दफ़्तर ख़ुद बेटे के साथ समर्थकों की एक बड़ी फ़ौज भी साथ लेकर गये। यह फ़ौज उनके बेटे के समर्थन में नारे लगा रही थी। लखीमपुर खीरी में भड़की हिंसा में 8 लोगों की मौत हो गयी थी, जिनमें चार किसान लवप्रीत सिंह, नछत्तर सिंह, दलजीत सिंह और गुरविंदर सिंह और एक पत्रकार शामिल हैं। बाक़ी तीन लोगों की मौत कैसे हुई? इसे लेकर परस्पर विरोधी बातें सामने आयी हैं। पत्रकार रमन कश्यप के परिजन कई बार आरोप लगा चुके हैं कि उनके बेटे की मौत कार से कुचलकर हुई है। बाक़ी लोगों को किसने मारा? यह गहन जाँच का विषय है। भाजपा के लोगों का आरोप है कि उन्हें किसानों ने मारा, जबकि उनके पास इसे सही साबित करने के लिए कोई प्रमाण नहीं है। उधर कुछ किसान यह आरोप लगा चुके हैं कि इन लोगों की हत्या भाजपा के ही लोगों ने की। हालाँकि इसके भी पुख़्ता प्रमाण सामने नहीं आये हैं।

घटना के अगले दिन देश भर में और ख़ासकर उत्तर प्रदेश में जबरदस्त बवाल मच गया। शुरुआत सीतापुर से हुई, जहाँ देर रात कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी लखीमपुर जाने के लिए तैयार थीं। ख़बर लगते ही पुलिस ने तड़के साढ़े 4 बजे प्रियंका गाँधी को हिरासत में ले लिया। प्रियंका को हिरासत में लेने की ख़बर जैसी ही मीडिया में आयी, देश भर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गये। प्रियंका का वह वीडियो पल भर में वायरल हो गया, जिसमें वह उस कमरे में झाड़ू लगाती दिख रही थीं, जिसमें उन्हें हिरासत में लेने के बाद रखा गया था। प्रियंका की सक्रियता को देखते हुए सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी लखीमपुर खीरी जाने का ऐलान कर दिया; लेकिन पुलिस ने उन्हें लखनऊ में ही घर पर ही गिरफ़्तार (हाउस अरेस्ट) कर लिया। बाद में अखिलेश धरने पर बैठ गये। इसके बाद उनके आवास के बाहर सपा कार्यकर्ता पहुँच गये। इसके बाद पुलिस ने अखिलेश यादव को भी हिरासत में ले लिया।

पूरे प्रदेश में विपक्ष के विरोध-प्रदर्शन के बीच लखीमपुर में किसानों और प्रशासन के बीच बातचीत के बाद सरकार की किसानों से सहमति बन गयी। इसमें संयुक्त किसान मोर्चा के नेता राकेश टिकैत ने बड़ी भूमिका अदा की। योगी सरकार में मृतकों के परिजनों को 45-45 लाख रुपये मुआवज़ा, घायलों को 10-10 लाख मुआवज़ा, मृतक आश्रितों को सरकारी नौकरी, आठ दिन में आरोपियों की ग़िरफ़्तारी, सेवानिवृत्त न्यायाधीश के नेतृत्व में मामले की जाँच की माँग स्वीकार करने का ऐलान कर दिया।

इस सारे घटनाक्रम में कांग्रेस नेता राहुल गाँधी भी काफ़ी सक्रिय रहे। उन्होंने गाँव में पीडि़तों के परिजनों से मुलाक़ात की। पहले तो उत्तर प्रदेश सरकार ने उनके लखीमपुर जाने पर ही रोक लगा दी। फिर जब इजाज़त दी, तो उनके लखनऊ पहुँचने पर शर्त लगा दी कि उन्हें सरकारी एस्कॉर्ट में ही जाना होगा। राहुल गाँधी ने इस पर अपने साथ उपस्थित पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के साथ लखनऊ हवाई अड्डे पर ही धरना दिया। इसके बाद दबाव में आये उत्तर प्रदेश प्रशासन को उन्हें उनके ही वाहन में आगे जाने की इजाज़त देने के लिए मजबूर होना पड़ा।

उत्तर प्रदेश में अगले साल ही विधानसभा के चुनाव हैं। जानकारों के मुताबिक, लखीमपुर की घटना ने भाजपा को पीछे लाकर (बैकफुट पर लाकर) खड़ा कर दिया है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश का एक बड़ा इलाक़ा किसानों के प्रभाव वाला है। इस घटना से साफ़तौर पर यह सन्देश गया है कि भाजपा किसानों के ख़िलाफ़ है। इस घटना से निश्चित ही प्रदेश की राजनीतिक स्थिति पर असर पड़ा है। राष्ट्रीय लोक दल (रालोद), जो वोटों के लिए किसानों पर ज़्यादा निर्भर करती है; इसके बाद अपने भाव बढ़ते देख रही है। हो सकता है कि लखीमपुर घटना के बाद जिस तरह कांग्रेस की राजनीति में बड़ा उछाल आया है, समाजवादी पार्टी (सपा) के अखिलेश यादव रालोद को ज़्यादा सीटें देने पर मजबूर हों।

रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी फ़िलहाल पत्ते नहीं खोल रहे। शायद वह कांग्रेस के उभार पर नज़र रखे हुए हैं। उनका चयन सपा या कांग्रेस में से कोई भी हो सकता है। अखिलेश यादव ज़रूर रालोद के प्रति दिलचस्पी दिखा रहे हैं। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ख़ामोश बैठी है। मायावती इक्का-दुक्का बयान के अलावा कुछ कर नहीं रहीं। जयंत चौधरी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपने खोये हुए जनाधार को पाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने दादा चौधरी चरण सिंह की जन्मस्थली हापुड़ नूरपुर से जन आशीर्वाद यात्रा शुरू की है। अखिलेश के साथ गठबन्धन पर जयंत कह चुके हैं कि गठबन्धन की बातें 2022 में देखी जाएँगी।

इसमें कोई दो-राय नहीं कि प्रियंका की सक्रियता ने सारा खेल बदला है। बहुत-से राजनीतिक जानकार मानते हैं कि अगले चुनाव में कांग्रेस डार्क हार्स (छुपी रुस्तम) साबित हो सकती है। कांग्रेस की नज़र पूरी तरह पश्चिमी उत्तर प्रदेश पर है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा का अपना पक्का यादव मतदाता बहुत ज़्यादा नहीं हैं। मुस्लिम मतदाता पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पिछले तीन चुनाव से जाट से अलग हो चुके थे। लेकिन मुज़फ़्फ़रनगर में हुई किसान महापंचायत के बाद उनके साथ-साथ आने की बहुत सम्भावनाएँ बनी हैं। इस स्थिति में मुस्लिमों का रूख़ बहुत ज़्यादा महत्त्वपूर्ण हो गया है। कांग्रेस इसे हासिल करना चाहती है। हालाँकि इस बार यह माना जा रहा है कि जाट मतदाता भाजपा के विरोध में जिस पार्टी के साथ जाएँगे, मुस्लिम भी वहीं जा सकते हैं। पंचायत चुनाव में इस तरह का रूख़ दिखा था।

इसमें कोई शक नहीं कि कांग्रेस लखीमपुर के बाद अग्रणी भूमिका में सियासी खेल खेल रही है। उसे मज़बूत सहयोगी की ज़रूरत है। कांग्रेस नेता अब खुलकर गठबन्धन की बात करने लगे हैं। अखिलेश मना कर चुके हैं। लेकिन यदि सन् 2009 को याद करें, तो लोकसभा चुनाव में सपा उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को 15 सीटें दे रही थी; लिहाज़ा गठबन्धन नहीं हुआ। तब कांग्रेस ने रालोद के साथ चुनाव लड़ा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से लेकर तराई पट्टी की बहुमत सीटें दोनों ने जीत ली थीं। कांग्रेस सपा के बराबर 22 सीटें तब जीती थी। इस बार चूँकि इन इलाकों के किसान नाराज़ हैं; लिहाज़ा यह प्रयोग दोहराया जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। रालोद के जयंत चौधरी जानते हैं कि सपा उन्हें उतनी सीटें नहीं दे सकती, जितनी कांग्रेस दे सकती है।

मंत्री के प्रति नरम रूख़

‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक, भाजपा का शीर्ष नेतृत्व लखीमपुर खीरी की घटना से भाजपा का नेतृत्व बहुत नाराज़ है। पता चला है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मसले पर गृह मंत्री अमित शाह से बात की थी। यह अलग बात है कि मोदी की तरफ़ से इस घटना की निंदा वाला कोई बयान नहीं आया। यहाँ तक कि वह घटना के दिनों में लखनऊ गये, तब भी इस मसले पर इस मसले पर उनकी भी कोई टिप्पणी नहीं आयी। कांग्रेस नेता प्रियंका गाँधी ने इस मसले पर मोदी को घेरा भी। उन्होंने कहा कि मोदी को शहीद किसानों के पास आने का वक़्त नहीं, न उनके लिए उनके मन में कोई संवेदना है। भाजपा के कुछ बड़े नेताओं ने इस घटना पर भले चुप्पी साध रखी हो, पार्टी में एक केंद्रीय मंत्री के बेटे की इस करतूत से बेचैनी है। इन नेताओं का मानना है कि एफआईआर के बावजूद आरोपी मंत्री बेटे की ग़िरफ़्तारी न होने से जनता में पार्टी के ख़िलाफ़ सन्देश गया है कि वह आरोपी को बचाना चाहती है। अब बहुत ज़्यादा सम्भावना है कि केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा को मंत्रिमंडल से निकाल बाहर किया जाएगा। हालाँकि भाजपा का जो नुक़सान होना था, वह हो चुका है।

 

सर्वोच्च न्यायालय ने फटकारा

लखीमपुर खीरी हत्याकांड पर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को जमकर फटकार लगायी। सर्वोच्च न्यायालय ने पूछा कि आरोप 302 (हत्या) का है, तो आप उससे वैसा ही वर्ताव करें, जैसे बाक़ी हत्या के मामलों में आरोपी के साथ किया जाता है। सर्वोच्च न्यायालय में 8 अक्टूबर को सुनवाई से पहले उत्तर प्रदेश पुलिस ने मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा को पूछताछ के लिए बुलाया था। पुलिस के सामने आरोपी के पेश होने पर सर्वोच्च न्यायालय ने दो-टूक कहा कि 302 के आरोप में ये नहीं होता कि ‘प्लीज आ जाएँ’। नोटिस किया गया है कि प्लीज आइए! प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमना ने कहा कि मौक़े पर चश्मदीद गवाह हैं। हमारा मत है कि जहाँ 302 का आरोप है, वह गम्भीर मामला है और आरोपी के साथ वैसा ही व्यवहार होना चाहिए जैसे बाक़ी मामलों में ऐसे आरोपी के साथ होता है। क्या बाक़ी मामलों में आरोपी को नोटिस जारी किया जाता है कि आप प्लीज आ जाइए? उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि एक आरोपी को समन (नोटिस) दिया गया है और कल बुलाया गया है। साल्वे ने कहा कि आरोप लगाया गया था कि गोली मारी गयी है; लेकिन गोली की बात पोस्टमॉर्टम में नहीं है। इस पर न्यायाधीश ने कहा कि क्या ये ग्राउंड है कि आरोपी को न पकड़ा जाए? साल्वे बोले कि नहीं मामला गम्भीर है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि गम्भीर मामला है। लेकिन मामले को वैसे नहीं देखा जा रहा है। हम समझते हैं कि इस तरह से कार्रवाई नहीं होनी चाहिए। कथनी और करनी में फ़र्क़ नज़र आ रहा है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि साधारण स्थिति में 302 यानी हत्या मामलों में पुलिस क्या करती है? वह आरोपी को गिरफ़्तार करती है। न्यायाधीश सूर्यकांत ने कहा कि आरोपी कोई भी हो, क़ानून को अपना काम करना चाहिए। साल्वे ने इस पर कहा कि जो भी कमी है, कल तक ठीक हो जाएगा। मुख्य न्यायाधीश ने उत्तर प्रदेश सरकार को अपने डीजीपी से यह सुनिश्चित करने के लिए भी कहा कि जब तक कोई अन्य संस्था इसे सँभालती है, तब तक मामले के सुबूत सुरक्षित रहें। अब 20 अक्टूबर को इस मामले की अगली सुनवाई के बाद ही कोई कार्रवाई होगी।

 

क्या भाजपा से नाराज़ हैं वरुण?

‘दु:ख भरे दिन बीते रे भइया, सुख भरे दिन आयो रे…’ प्रयागराज में लगे कांग्रेस नेताओं के इस पोस्टर में सोनिया गाँधी के साथ वरुण गाँधी की भी फोटो और उपरोक्त पंक्तियाँ लिखी दिखीं। वरुण वैसे कांग्रेस में जाने की ख़बरों को अफ़वाह बता रहे हैं; लेकिन उत्तर प्रदेश की राजनीति में इसकी चर्चा जबरदस्त है।

भाजपा से उनकी नाराज़गी कुछ समय से साफ़ दिख रही है। उनके कई ट्वीट, ख़ासकर लखीमपुर खीरी घटना के बाद उनकी टिप्पणियाँ भाजपा को असहज करने वाली हैं। भाजपा ने हाल में वरुण और उनकी माता मेनका गाँधी को राष्ट्रीय कार्यकारणी से बाहर कर दिया है। जानकारों के मुताबिक, वरुण प्रियंका गाँधी के क़रीब रहे हैं और उनसे प्रियंका की पारिवारिक बातें होती रहती हैं। हालाँकि उत्तर प्रदेश की राजनीति में क्या वरुण और प्रियंका साथ आएँगे? इस पर अभी कुछ कहना कठिन कठिन है। हालाँकि कांग्रेस के नेताओं ने प्रयागराज में उनके स्वागत के जो पोस्टर अचानक 12 अक्टूबर को लगाये, उससे चर्चाएँ तो शुरू हो ही गयी हैं। इसमें वरुण गाँधी के साथ-साथ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी और नीचे इरशाद उल्ला और बाबा अभय अवस्थी की तस्वीर लगी थी। उनके नाम के साथ वरिष्ठ कांग्रेस नेता लिखा गया था। वरुण पहले ही अपने ट्विटर बायो से ‘भाजपा’ हटा चुके हैं। वरुण बदले तेवर के साथ लखीमपुर की घटना में भाजपा सरकार को लगातार कटघरे में खड़ा करते रहे हैं। गन्ने का भाव 400 रुपये घोषित करने की माँग के अलावा किसानों के मुद्दे उठाने वाले वरुण ने 5 सितंबर की मुज़फ़्फ़रनगर महापंचायत को लेकर किसानों का समर्थन किया था।

लखीमपुर खीरी हिंसा को हिन्दू बनाम सिख की लड़ाई में बदलने की कोशिश की जा रही है। यह न केवल एक अनैतिक, बल्कि झूठा आख्यान है। उन घावों को फिर से कुरेदना ख़तरनाक है, जिसको ठीक होने में पूरी एक पीढ़ी लगी है। हमें राजनीतिक लाभ को राष्ट्रीय एकता से ऊपर नहीं रखना चाहिए। सामने आये वीडियो से बिल्कुल साफ़ है, हत्या के ज़रिये प्रदर्शनकारियों को चुप नहीं कराया जा सकता। निर्दोष किसानों के ख़ून का हिसाब होना चाहिए, जवाबदेही होनी चाहिए। उन्हें न्याय दिया जाना चाहिए, इससे पहले की हर किसान के दिमाग़ में यह बात बैठ जाए कि सत्ता अहंकारी और क्रूर है।

वरुण गाँधी

भाजपा सांसद

 

प्रियंका गाँधी के तेवर से उत्तर प्रदेश की राजनीति में हलचल

माथे पर तिलक और नवरात्रि के चौथे दिन की देवी प्रार्थना। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकसभा क्षेत्र वाराणसी में 10 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश की प्रभारी महासचिव प्रियंका गाँधी वाड्रा का यह रूप शुद्ध राजनीतिक था; लेकिन फिर भी भाजपा ने इससे बेचैनी महसूस की। उसने इसे प्रियंका का राजनीतिक पर्यटन बताया। हालाँकि उत्तर प्रदेश के कांग्रेस काडर में प्रियंका की इस सक्रियता से अद्भुत जोश है। प्रियंका गाँधी की इस सक्रियता और तेवर ने निश्चित ही उत्तर प्रदेश की राजनीति में खलबली मचा दी है। इसके बाद प्रियंका लखनऊ में कांग्रेस के देशव्यापी मौन व्रत कार्यक्रम में बैठीं और तिकुनिया में शहीद किसानों की अन्तिम अरदास में भी पहुँचीं।

अगले साल के विधानसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में प्रियंका गाँधी ने जिस तरह से मोर्चा सँभाला है, उसने प्रदेश की राजनीति को अचानक गरमा दिया है। राज्य में कांग्रेस का संगठन भले कमज़ोर हो, चुनाव से कुछ ही महीने पहले प्रियंका गाँधी ने एक सधी हुई रणनीति के तहत धावा बोलकर भाजपा और उसके विरोध वाले दलों सपा और बसपा को भी हैरान कर दिया है।

भीड़ वोट में बदलेगी या नहीं यह तो पता नहीं; लेकिन वाराणसी में प्रियंका की किसान न्याय रैली में जुटी बड़ी भीड़ बताती है कि उन्हें राज्य में गम्भीरता से लिया जा रहा है। इसे पहले प्रतिज्ञा यात्रा का नाम दिया गया था; लेकिन लखीमपुर खीरी में किसानों की हत्यायों से देश में उपजे ग़ुस्से के बाद इसे किसान न्याय यात्रा का नाम दे दिया गया। अब कम-से-कम जनता की प्रतिक्रिया से तो यही लगता है कि प्रियंका गाँधी चुनाव से पहले भाजपा से लेकर सपा, बसपा सब के लिए चुनौती बन सकती हैं।

बाराणसी की रैली में प्रियंका के हाव-भाव देखें, तो उन्होंने दादी इंदिरा गाँधी का अंदाज़ अपनाने की पूरी कोशिश की और इसमें सफल भी दिखीं। मुद्दों पर जिस तरह से ज़ोर देकर उन्होंने बात की, वह पूरा तरीक़ा इंदिरा गाँधी वाला था। जनता भी तालियाँ बजाकर उनका उत्साह बढ़ाती दिखी। भाजपा के लिए परेशान करने वाली बात यह है कि प्रियंका उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक अलग छवि गढऩे में सफल होती दिख रही हैं। उनके मुद्दे उठाने के तरीक़े के पीछे गम्भीरता झलक रही है और वे इस बार मैदान में मज़बूती से टिककर भाजपा और अन्य विरोधियों से टक्कर लेने के मूड में हैं।

बाराणसी में जब प्रियंका ने भाषण की शुरुआत में कहा कि आज नवरात्र का चौथा दिन है और वे व्रत कर रही हैं, तो ख़ूब ताली बजी। उत्तर प्रदेश के मिजाज़ को पकड़कर जब प्रियंका ने माँ की स्तुति ‘या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता…नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै’ की तो उपस्थित जनता ने इसका स्वागत किया। बाराणसी में जुटी बड़ी भीड़ देखकर प्रियंका भी गदगद दिखीं। कांग्रेस ने हाल में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को उत्तर प्रदेश में ज़िम्मा दिया है और वह प्रियंका गाँधी के साथ रहे। कांग्रेस के तमाम प्रमुख नेता प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू, आराधना मिश्रा मोना, दीपेंद्र हुड्डा, प्रमोद तिवारी, सलमान ख़ुर्शीद, पी.एल. पुनिया, राजेश मिश्रा, अजय राय, इमरान प्रतापगढ़ी, प्रदीप माथुर, विवेक बंसल, प्रदीप जैन, दीपक सिंह एमएलसी, सुप्रिया श्रीनेत, सोहेल अंसारी, जफ़र अली नक़वी और कई अन्य इस मौक़े पर उपस्थित रहे। ज़ाहिर है उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का काडर निराशा की धूल झाड़कर चुनाव के लिए सक्रिय हो रहा है। बघेल के अलावा पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को साथ रखकर प्रियंका ने बड़ा राजनीतिक सन्देश दिया। पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू अलग से लखीमपुर पहुँचे और घटना के प्रभावित सभी परिवारों से मिले। इसका भी बहुत बड़ा सन्देश गया।

भाषण में प्रियंका ने बहुत ही चतुराई से उत्तर प्रदेश के हर मुद्दे को छुआ। उन्होंने सोनभद्र में आदिवासियों की हत्या से लेकर, महँगाई, रोज़गार, लखीमपुर घटना और मुख्यमंत्री योगी की उन (प्रियंका गाँधी) पर झाड़ू लगाने को लेकर की विवादित टिप्पणी तक हर बिन्दु को राजनीतिक लहज़े में पकड़ा और योगी से लेकर प्रधानमंत्री मोदी तक पर हमला किया। कांग्रेस के पास राज्य में बहुत मज़बूत संगठन नहीं है। प्रियंका इस कमज़ोरी को बखूबी समझती हैं। वह माहौल बनाने पर फोकस कर रही हैं। उन्हें पता है कि संगठन भले कमज़ोर हो, प्रदेश में कांग्रेस का पुराना जनाधार है जिसे पुनर्जीवित माहौल बनाकर किया जा सकता है। सन् 2009 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में मिलीं 23 सीटें इसका प्रमाण हैं। सिर्फ़ 12 साल पहले यदि कांग्रेस कमोवेश इसी संगठन के बूते माहौल बनने पर 23 लोकसभा सीटें जीत सकती है, तो इससे साबित होता है कि कांग्रेस का पुराना जनाधार कभी भी पुनर्जीवित हो सकता है।

प्रियंका गाँधी ने वाराणसी की जनसभा में यह भी साफ़ कह दिया कि वह यहाँ टिकने के लिए आयी हैं और जब तक भाजपा को सत्ता से उखाड़ नहीं देतीं, यहीं रहेंगी। इससे कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश बढ़ा है। यह पहली बार हुआ कि प्रियंका गाँधी और बाद में राहुल गाँधी की ज़िद के आगे योगी सरकार को झुकना पड़ा और उन्हें पीडि़त परिवारों से मिलने की इजाज़त देनी पड़ी।

गाँधी ने जब किसानों के अलावा घटना में जान गँवाने वाले दूसरे लोगों (भाजपा ने जिन्हें अपना कार्यकर्ता बताया है) के परिजनों से भी मिलने की इच्छा जतायी, तो भाजपा के हाथ-पाँव फूल गये। आनन-फानन अधिकारियों के ज़रिये कहलवाया गया कि वह प्रियंका से नहीं मिलना चाहते। देखें, तो प्रियंका गाँधी उत्तर प्रदेश में महासचिव का ज़िम्मा मिलने के बाद से ही सक्रिय हैं। वह कमोवेश हरेक बड़ी घटना पर वहाँ लोगों के परिजनों से मिली हैं। इसके अलावा उन्होंने संगठन से जुड़े दौरे भी ख़ूब किये हैं।

अगले साल के पहले महीनों में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले प्रियंका गाँधी की इस सक्रियता ने उन्हें जबरदस्त मीडिया कवरेज दी है। लखीमपुर खीरी घटना के समय वह लगातार तीन दिन टीवी चैनलों पर छायी रहीं। प्रदेश में लोग भी उनकी चर्चा करते दिखे। इसके तुरन्त बाद उन्होंने वाराणसी में धावा बोलकर जाता दिया कि वह ख़ामोश नहीं बैठने वाली हैं। प्रियंका की सक्रियता का ही दबाव था कि मुख्यमंत्री योगी को अपने मंत्रियों को टीवी चैनलों में कांग्रेस के ख़िलाफ़ बोलने के लिए तैनात करना पड़ा; लेकिन इस सबके बावजूद प्रियंका हरेक पर भारी पड़ती दिखीं।

 

उत्तर प्रदेश के बड़े मामले और प्रियंका

 2019 में आदिवासियों की हत्या पर सोनभद्र गयीं।

 2020 में हाथरस रेप-हत्या की शिकार लड़की के परिवार से मिलीं।

 2020 और 2021 में आधा दर्ज़न बड़े मामलों में पीडि़तों से मिलीं।

 2021 में पसगंवा में उत्पीडऩ की शिकार महिला से मिलीं।

 2021 में लखीमपुर खीरी हत्याकांड पर जबरदस्त सक्रियता दिखायी और पीडि़त परिवारों से मिलीं।