लखीमपुर में उन्मादी सत्ता के पहियों तले रौंद डाला लोकतंत्र
लखीमपुर खीरी के गाँव तिकुनिया में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री के आरोपी और पहले भी कई विवादों में घिरे बेटे द्वारा कार के पहियों के नीचे किसानों को कुचल डालने की घटना ने पूरे देश को झकझोरकर रख दिया है। कोई सोच भी नहीं सकता कि सत्ता के नशे में चूर एक नेता का बेटा यह दुस्साहस कर सकता है। इस घटना में चार किसानों, एक पत्रकार और तीन अन्य लोगों के ख़ून के छीटों ने भारतीय राजनीति के चेहरे को और बदसूरत बना दिया है। वैचारिक विरोध में इतना नीचे गिर जाना दुष्टता की पराकाष्ठा तो है ही, भारतीय लोकतंत्र और साम्प्रदायिक सौहार्द के लिए भी यह बहुत अशुभ संकेत है। आन्दोलनरत किसानों पर यह ज़ुल्म राजनीति पर दूरगामी असर डालेगा। लखीमपुर खीरी की पूरी घटना और उससे पड़ रहे प्रभावों को लेकर बता रहे हैं विशेष संवाददाता राकेश रॉकी :-
भाजपा के न चाहने के बावजूद लखीमपुर खीरी के तिकुनिया में किसानों की बर्बर हत्या एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया है। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री के आरोपी बेटे की करतूत ने भाजपा और उत्तर प्रदेश सरकार को न केवल रक्षात्मक कर दिया है, दोनों की एक ख़राब छवि भी देश के सामने पेश की है। आन्दोलन कर रहे किसानों को कार के नीचे कुचल देने की इस घटना ने कई गम्भीर सवाल खड़ा किये हैं कि देश किस दिशा की तरफ़ बढ़ रहा है? देश में अपनी आवाज़ उठाने की क्या क़ीमत हो सकती है?
विडम्बना यह है कि राज्य सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार और भाजपा ने इस घटना पर लम्बे समय तक न केवल चुप्पी साधे रखी, बल्कि आरोपियों को बचाने की कोशिश भी की। ऊपर से तुर्रा यह कि इस घटना को सिख बनाम हिन्दू बनाने की साज़िश रची जा रही है। और यह आरोप किसी और ने नहीं ख़ुद भाजपा के सांसद वरुण गाँधी ने लगाया है। यह इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है; क्योंकि आरोप ख़ुद भाजपा पर लग रहे हैं। संकेत यह भी मिल रहे हैं कि तिकुनिया की यह घटना अभी तक कुछ ही प्रदेशों तक सीमित किसान आन्दोलन को देशव्यापी आन्दोलन बना सकती है।
किसानों को कार के नीचे कुचल देने की घटना जब हुई और इसका आरोप मोदी मंत्रिमंडल में गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा उर्फ़ मोनू पर लगा, तो भाजपा से लेकर मंत्री पिता तक सभी ने आशीष को बेक़सूर ठहराने की हरसम्भव कोशिश की। अजय ने तो यह तक कहा कि उनका बेटा घटना के समय वहाँ था ही नहीं और उनके पास इसके पुख़्ता प्रमाण हैं। बाद में जो वीडियो सामने आये, उनसे आरोपी के मंत्री पिता के झूठ की कलई खुल गयी। बाद में अपराध शाखा (क्राइम ब्रांच) के सामने आरोपी आशीष अपने पिता के दावों को सच साबित करने वाला कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर सका।
किसानों, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के जबरदस्त दबाव के बाद आशीष मिश्रा पर एफआईआर तो दर्ज कर दी गयी और उसे मुख्य आरोपी भी बना दिया गया; लेकिन उसे गिरफ़्तार करने में योगी सरकार की पुलिस को 7 दिन का लम्बा वक़्त लग गया। यही नहीं उत्तर प्रदेश सरकार की गठित जाँच टीम तक घटना के 75 घंटे बाद तिकुनिया पहुँची। इससे साफ़ अंदाज़ा लग जाता है कि प्रदेश की भाजपा सरकार की इस मामले को कितना हल्के में ले रही थी।
जिस आशीष मिश्रा पर किसानों को कार के नीचे बेरहमी से कुचल देने का आरोप है, वह आने वाले विधानसभा चुनाव में क्षेत्र में भाजपा टिकट का प्रबल दावेदार है। अब इस मामले को वहाँ जातिवादी रंग देने की भी भरपूर कोशिश हो रही है। भाजपा पर आरोप लग रहा है कि इस मामले को हिन्दू बनाम सिख बताकर राजनीतिक रोटियाँ सेकने की कोशिश हो रही है। लेकिन उसकी यह कोशिश सफल होती नहीं दिख रही। लोगों की ज़िन्दगियों को इस तरह सत्ता के ग़ुरूर में बेरहमी से कुचल देने की घटना ने जनता को झिंझोड़ कर रख दिया है।
किसानों में ग़ुस्सा
इस घटना ने उत्तर प्रदेश और देश के अन्य राज्यों में किसानों के बड़े समूह को नाराज़ कर दिया है। यह किसान अपने आन्दोलन को देशव्यापी रूप देने की तैयारी कर रहे हैं। शहीद किसानों की अन्तिम अरदास में देश के हरेक हिस्से से किसान पहुँचे, जिससे यह साबित होता है कि उनमें ग़ुस्सा है और वे केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ लामबंद हो रहे हैं। विपक्ष, ख़ासकर कांग्रेस ने जिस तरह किसानों का समर्थन किया है, उससे भाजपा के लिए दिक़्क़तें बढ़ सकती हैं। इस राजनीतिक नुक़सान से बचने के लिए किसानों का भाजपा का सोशल मीडिया प्रचार तंत्र देश विरोधी, ख़ालिस्तानी और न जाने क्या-क्या कह रहा है।
बहुत-से जानकार भाजपा की इस कोशिश को बहुत ख़तरनाक और विभाजनकारी मानते हैं। उनका कहना है कि मुसलमानों के साथ-साथ अन्य ग़ैर-हिन्दू समुदायों, ख़ासकर किसानों के बहाने सिखों को बदनाम करना शुरू कर दिया गया है; जो देश के लिए ख़तरनाक साबित हो सकता है। लखीमपुर में किसानों को कुचलने और बाद में इसे सिख बनाम हिन्दू रंग देने की कोशिश से यह साबित हो जाता है।
इससे पहले किसान आन्दोलन को भी ख़ालिस्तानी आन्दोलन साबित करने की भाजपा समर्थक सोशल मीडिया में पिछले एक साल में ख़ूब कोशिश हुई है। भाजपा के वरिष्ठ नेता तक सार्वजनिक बयानों में ऐसा कहते रहे हैं। यह अलग बात है कि जनता ने इसे स्वीकार नहीं किया।
‘तहलका’ से फोन पर बातचीत में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दीपेंद्र हुड्डा ने कहा- ‘किसानों पर यह ज़ुल्म जलियांवाला बाग़ की याद दिलाता है। वो तो फिर भी अंग्रेज थे, अब तो अपने ही ज़ुल्म ढाने में लगे हैं। भाजपा जनता के सामने बेनक़ाब हो चुकी है। उसके दिन पूरे हो चुके हैं। उत्तर प्रदेश में भाजपा के केंद्रीय मंत्री के बेटे ने जिस तरह किसानों को निर्दयता से कार के नीचे कुचल डाला, वो इस पार्टी के नेताओं की मानसिकता को दर्शाता है। जनता इसका जबाव देगी। उत्तर प्रदेश में भाजपा बुरी तरह चुनाव हारेगी।‘
हालाँकि भाजपा नेता और हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम धूमल ने कहा- ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने किसानों के कल्याण के लिए अनेक योजनाएँ लागू की हैं। इसका असर यह हुआ है कि उत्पादन बढ़ा है। हाल के वर्षों में उनके खातों सीधे करोड़ों रुपये जमा किये गये हैं, ताकि उन्हें आर्थिक संबल मिल सके। कांग्रेस और विपक्ष लोगों को झूठ परोसने की नाकाम कोशिश रहे हैं। किसान मोदी सरकार में बहुत सुरक्षित हैं।‘
झूठ और सच!
‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक, अभी तक की जाँच में यह सामने आया है कि मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा यह साबित करने में नाकाम रहा है कि किसानों को कार से कुचलने जाने की घटना के समय वह घटनास्थल पर नहीं था। उसके पास एक कार्यक्रम का जो वीडियो है, जिसे वह प्रमाण के रूप में दिखा रहा है, वह घटना के डेढ़ घंटे पहले का है। लेकिन उसके ख़िलाफ़ जो वीडियो हैं, उनमें साफ़तौर पर दिख रहा है कि शान्ति से लौट रहे किसानों पर पीछे से थार जीप सहित तीन वाहन उन्हें कुचल कर तेज़ी से निकल जाते हैं। इसका वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। इसके अलावा एक और वीडियो वायरल हुआ, जिसमें आशीष अपनी गाड़ी से निकलकर भागता हुआ नज़र आ रहा है।
यही वजह रही कि उसके मंत्री पिता अजय मिश्रा द्वारा उसे बचाने की पूरी कोशिश के बावजूद इसी आधार पर आशीष की ग़िरफ़्तारी हुई है। दबाव बनाने के इरादे से अजय मिश्रा अपराध शाखा के दफ़्तर ख़ुद बेटे के साथ समर्थकों की एक बड़ी फ़ौज भी साथ लेकर गये। यह फ़ौज उनके बेटे के समर्थन में नारे लगा रही थी। लखीमपुर खीरी में भड़की हिंसा में 8 लोगों की मौत हो गयी थी, जिनमें चार किसान लवप्रीत सिंह, नछत्तर सिंह, दलजीत सिंह और गुरविंदर सिंह और एक पत्रकार शामिल हैं। बाक़ी तीन लोगों की मौत कैसे हुई? इसे लेकर परस्पर विरोधी बातें सामने आयी हैं। पत्रकार रमन कश्यप के परिजन कई बार आरोप लगा चुके हैं कि उनके बेटे की मौत कार से कुचलकर हुई है। बाक़ी लोगों को किसने मारा? यह गहन जाँच का विषय है। भाजपा के लोगों का आरोप है कि उन्हें किसानों ने मारा, जबकि उनके पास इसे सही साबित करने के लिए कोई प्रमाण नहीं है। उधर कुछ किसान यह आरोप लगा चुके हैं कि इन लोगों की हत्या भाजपा के ही लोगों ने की। हालाँकि इसके भी पुख़्ता प्रमाण सामने नहीं आये हैं।
घटना के अगले दिन देश भर में और ख़ासकर उत्तर प्रदेश में जबरदस्त बवाल मच गया। शुरुआत सीतापुर से हुई, जहाँ देर रात कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी लखीमपुर जाने के लिए तैयार थीं। ख़बर लगते ही पुलिस ने तड़के साढ़े 4 बजे प्रियंका गाँधी को हिरासत में ले लिया। प्रियंका को हिरासत में लेने की ख़बर जैसी ही मीडिया में आयी, देश भर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गये। प्रियंका का वह वीडियो पल भर में वायरल हो गया, जिसमें वह उस कमरे में झाड़ू लगाती दिख रही थीं, जिसमें उन्हें हिरासत में लेने के बाद रखा गया था। प्रियंका की सक्रियता को देखते हुए सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी लखीमपुर खीरी जाने का ऐलान कर दिया; लेकिन पुलिस ने उन्हें लखनऊ में ही घर पर ही गिरफ़्तार (हाउस अरेस्ट) कर लिया। बाद में अखिलेश धरने पर बैठ गये। इसके बाद उनके आवास के बाहर सपा कार्यकर्ता पहुँच गये। इसके बाद पुलिस ने अखिलेश यादव को भी हिरासत में ले लिया।
पूरे प्रदेश में विपक्ष के विरोध-प्रदर्शन के बीच लखीमपुर में किसानों और प्रशासन के बीच बातचीत के बाद सरकार की किसानों से सहमति बन गयी। इसमें संयुक्त किसान मोर्चा के नेता राकेश टिकैत ने बड़ी भूमिका अदा की। योगी सरकार में मृतकों के परिजनों को 45-45 लाख रुपये मुआवज़ा, घायलों को 10-10 लाख मुआवज़ा, मृतक आश्रितों को सरकारी नौकरी, आठ दिन में आरोपियों की ग़िरफ़्तारी, सेवानिवृत्त न्यायाधीश के नेतृत्व में मामले की जाँच की माँग स्वीकार करने का ऐलान कर दिया।
इस सारे घटनाक्रम में कांग्रेस नेता राहुल गाँधी भी काफ़ी सक्रिय रहे। उन्होंने गाँव में पीडि़तों के परिजनों से मुलाक़ात की। पहले तो उत्तर प्रदेश सरकार ने उनके लखीमपुर जाने पर ही रोक लगा दी। फिर जब इजाज़त दी, तो उनके लखनऊ पहुँचने पर शर्त लगा दी कि उन्हें सरकारी एस्कॉर्ट में ही जाना होगा। राहुल गाँधी ने इस पर अपने साथ उपस्थित पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के साथ लखनऊ हवाई अड्डे पर ही धरना दिया। इसके बाद दबाव में आये उत्तर प्रदेश प्रशासन को उन्हें उनके ही वाहन में आगे जाने की इजाज़त देने के लिए मजबूर होना पड़ा।
उत्तर प्रदेश में अगले साल ही विधानसभा के चुनाव हैं। जानकारों के मुताबिक, लखीमपुर की घटना ने भाजपा को पीछे लाकर (बैकफुट पर लाकर) खड़ा कर दिया है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश का एक बड़ा इलाक़ा किसानों के प्रभाव वाला है। इस घटना से साफ़तौर पर यह सन्देश गया है कि भाजपा किसानों के ख़िलाफ़ है। इस घटना से निश्चित ही प्रदेश की राजनीतिक स्थिति पर असर पड़ा है। राष्ट्रीय लोक दल (रालोद), जो वोटों के लिए किसानों पर ज़्यादा निर्भर करती है; इसके बाद अपने भाव बढ़ते देख रही है। हो सकता है कि लखीमपुर घटना के बाद जिस तरह कांग्रेस की राजनीति में बड़ा उछाल आया है, समाजवादी पार्टी (सपा) के अखिलेश यादव रालोद को ज़्यादा सीटें देने पर मजबूर हों।
रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी फ़िलहाल पत्ते नहीं खोल रहे। शायद वह कांग्रेस के उभार पर नज़र रखे हुए हैं। उनका चयन सपा या कांग्रेस में से कोई भी हो सकता है। अखिलेश यादव ज़रूर रालोद के प्रति दिलचस्पी दिखा रहे हैं। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ख़ामोश बैठी है। मायावती इक्का-दुक्का बयान के अलावा कुछ कर नहीं रहीं। जयंत चौधरी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपने खोये हुए जनाधार को पाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने दादा चौधरी चरण सिंह की जन्मस्थली हापुड़ नूरपुर से जन आशीर्वाद यात्रा शुरू की है। अखिलेश के साथ गठबन्धन पर जयंत कह चुके हैं कि गठबन्धन की बातें 2022 में देखी जाएँगी।
इसमें कोई दो-राय नहीं कि प्रियंका की सक्रियता ने सारा खेल बदला है। बहुत-से राजनीतिक जानकार मानते हैं कि अगले चुनाव में कांग्रेस डार्क हार्स (छुपी रुस्तम) साबित हो सकती है। कांग्रेस की नज़र पूरी तरह पश्चिमी उत्तर प्रदेश पर है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा का अपना पक्का यादव मतदाता बहुत ज़्यादा नहीं हैं। मुस्लिम मतदाता पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पिछले तीन चुनाव से जाट से अलग हो चुके थे। लेकिन मुज़फ़्फ़रनगर में हुई किसान महापंचायत के बाद उनके साथ-साथ आने की बहुत सम्भावनाएँ बनी हैं। इस स्थिति में मुस्लिमों का रूख़ बहुत ज़्यादा महत्त्वपूर्ण हो गया है। कांग्रेस इसे हासिल करना चाहती है। हालाँकि इस बार यह माना जा रहा है कि जाट मतदाता भाजपा के विरोध में जिस पार्टी के साथ जाएँगे, मुस्लिम भी वहीं जा सकते हैं। पंचायत चुनाव में इस तरह का रूख़ दिखा था।
इसमें कोई शक नहीं कि कांग्रेस लखीमपुर के बाद अग्रणी भूमिका में सियासी खेल खेल रही है। उसे मज़बूत सहयोगी की ज़रूरत है। कांग्रेस नेता अब खुलकर गठबन्धन की बात करने लगे हैं। अखिलेश मना कर चुके हैं। लेकिन यदि सन् 2009 को याद करें, तो लोकसभा चुनाव में सपा उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को 15 सीटें दे रही थी; लिहाज़ा गठबन्धन नहीं हुआ। तब कांग्रेस ने रालोद के साथ चुनाव लड़ा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से लेकर तराई पट्टी की बहुमत सीटें दोनों ने जीत ली थीं। कांग्रेस सपा के बराबर 22 सीटें तब जीती थी। इस बार चूँकि इन इलाकों के किसान नाराज़ हैं; लिहाज़ा यह प्रयोग दोहराया जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। रालोद के जयंत चौधरी जानते हैं कि सपा उन्हें उतनी सीटें नहीं दे सकती, जितनी कांग्रेस दे सकती है।
मंत्री के प्रति नरम रूख़
‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक, भाजपा का शीर्ष नेतृत्व लखीमपुर खीरी की घटना से भाजपा का नेतृत्व बहुत नाराज़ है। पता चला है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मसले पर गृह मंत्री अमित शाह से बात की थी। यह अलग बात है कि मोदी की तरफ़ से इस घटना की निंदा वाला कोई बयान नहीं आया। यहाँ तक कि वह घटना के दिनों में लखनऊ गये, तब भी इस मसले पर इस मसले पर उनकी भी कोई टिप्पणी नहीं आयी। कांग्रेस नेता प्रियंका गाँधी ने इस मसले पर मोदी को घेरा भी। उन्होंने कहा कि मोदी को शहीद किसानों के पास आने का वक़्त नहीं, न उनके लिए उनके मन में कोई संवेदना है। भाजपा के कुछ बड़े नेताओं ने इस घटना पर भले चुप्पी साध रखी हो, पार्टी में एक केंद्रीय मंत्री के बेटे की इस करतूत से बेचैनी है। इन नेताओं का मानना है कि एफआईआर के बावजूद आरोपी मंत्री बेटे की ग़िरफ़्तारी न होने से जनता में पार्टी के ख़िलाफ़ सन्देश गया है कि वह आरोपी को बचाना चाहती है। अब बहुत ज़्यादा सम्भावना है कि केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा को मंत्रिमंडल से निकाल बाहर किया जाएगा। हालाँकि भाजपा का जो नुक़सान होना था, वह हो चुका है।