दर्शन देते देवता…

मनीषा यादव
मनीषा यादव
मनीषा यादव

हर्षित, मुदित नाच रही है देह, थिरक, फुदक रहा मन. वाणी गई कहीं खो, नैन गए फैल, पलकें हुई निर्निमेष. कैसे… कैसे बखान करें देवता के रूप का ! कैसे बखान करें उसकी लीलाओं का! सुधबुध खो गई है हमारी. कैसे आज देवता ने ली हम जैसो की सुध! कैसे देवता प्रकट हुए आज हमारे दर!

न कोई यज्ञ. न कोई तप. न कोई अनुष्ठान. न कोई आह्वान. न कोई करुण क्रंदन. न कोई याचना. न कोई विनती. फिर कैसे देवता हुए प्रकट!

मात्र दर्शन ही नहीं, बहुत कुछ दे रहे हैं देवता. दर्शन के साथ मुस्कुराहट, मुस्कुराहट के साथ अपनी उर की गर्माहट, उर की गर्माहट के साथ अपने करकमल की कोमल छुवन, करकमलों की कोमल छुवन के अतिरिक्त करकमलों का हार, करकमलों का हार ही नहीं अपने वचनों की लंबी माला, वचनों की लंबी माला ही नहीं, हमारे सभी कष्ट हरने का ठोस आश्वासन. वाकई बहुत कुछ दे रहे हैं. अरे वे दे कहां रहे, वे तो लुटा रहे हैं. इतना कुछ लुटाने के बाद भी और बहुत कुछ लुटाने की चाह रखते हैं. वे बहुत कुछ लुटाने के बाद भी कितने धनवान दिख रहे हैं.

आज ऐसा लग रहा है कि वे केवल एक को नहीं, सबको वर देने के मूड में है. और केवल एक वर ही क्यों! वे थोक में वर देने के मूड हैं. आज… आज वे किसी को निराश नहीं कर रहे. हाथ मिलाओे तो हाथ मिलाएंगे. गले लगाओ तो गले लगेंगे. सिर झुकाओ तो नत हो जाएंगे. पैर छुओ तो आशीर्वाद देंगे. भेंट करोगे तो भेंट देंगे. जो मांगो वह मिलेगा. ओहो, कितना विशाल नरम ह्नदय लेकर प्रकट हुए हैं, देवता!

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