यों तो थार के चप्पे-चप्पे पर प्रेमकथाएं बिखरी पड़ी हैं लेकिन ढोला-मारू की प्रेमकथा सबसे लोकप्रिय है. यहां हर तीज-त्योहार पर गाए जाने वाले लोकगीतों से लेकर लोकचित्रों और लोकनाटकों में ढोला-मारू को आदर्श दंपति का दर्जा मिला हुआ है. कथा में पूंगल देश का राजा अपने यहां अकाल पड़ने पर नरवर राज्य आता है. यहां वह अपनी बेटी मारू का विवाह नरवर के राजकुमार ढोला से करता है. उस समय ढोला की उम्र तीन और मारू की डेढ़ साल होती है. सुकाल आने पर पूंगल का राजा परिवार सहित अपने महल लौट जाता है. कई साल बीत जाते हैं.