डर, आशंकाओं और असुविधाओं में महामारी की मुसीबत

इधर खाई, उधर कुआँ; किधर जाएँ? करें भी क्या? कुछ इसी तरह के सवाल हर देशवासी आज या तो केंद्र सरकार से पूछना चाहता है या अपने राज्य की सरकार से! पर जवाब कोई देने को तैयार नहीं। कोरोना वायरस की महामारी में सारे दावों की या कहें सबकी डींगों की पोल खुल गयी है। लोग बेमौत मर रहे हैं। डॉक्टर मजबूर हैं। चिकित्सा के पेशे से जुड़े कुछ लालची लोग मौत के सौदागर बने हुए हैं।

अस्पतालों से श्मशान तक फैले इन सौदागरों ने बता दिया है- यथा राजा, तथा चमचे। मतलब तो राजा ने पहले ही समझा दिया- ‘आपदा को अवसर में बदलिए।’ सो कुछ लालचियों ने कर दिखाया। लोग रो-चिल्ला रहे हैं। क्या करें? दूसरा चारा नहीं है। नेताओं, अफसरों, डॉक्टरों के आगे गिड़गिड़ाकर थकने के बाद, अपनों को बचाने की सभी उम्मीदों पर पानी फिरने के बाद, ईश्वर से मिन्नतें-प्रार्थना करने पर भी जब कोई अपना दुनिया से चला जाता है, तो रोने-बिलखने के अलावा कोई चारा भी तो नहीं बचता। यह दर्द आम आदमी का है; जो इस संकट की घड़ी में सिवाय हाथ-पैर पीटने के कुछ नहीं कर पा रहा है और न ही भाग्य के अलावा किसी पर भरोसा कर सक रहा है। पिछले साल कोरोना वायरस का संक्रमण जब फैला और लॉकडाउन लगा, तो निम्न और मध्यम वर्ग पर इसका असर सबसे ज़्यादा देखा गया। लेकिन उस समय भी चार सांसद, कई विधायक और कई नामचीन हस्तियों ने दम तोड़ा; जिनमें अधिकतर कोरोना से ग्रसित हुए थे। कोरोना वायरस की इस दूसरी लहर से इस साल भी आम लोगों की तरह ही शासन-प्रशासन में बैठे लोग भी इसकी चपेट में आ रहे हैं।

इस साल दिल्ली कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री अशोक कुमार वालिया की अपोलो हॉस्पिटल में कोरोना संक्रमण के चलते मौत हो गयी, वहीं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पूर्व सांसद और झारखण्ड के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ भी नहीं बच सके। इसके अलावा अकेले उत्तर प्रदेश में भाजपा के चार विधायकों- बरेली के नवाबगंज क्षेत्र से भाजपा विधायक केसर सिंह गंगवार, पूर्व कैबिनेट मंत्री और पीलीभीत शहर विधानसभा क्षेत्र से पाँच बार विधायक रहे हाजी रियाज़  अहमद, औरैया सदर से विधायक रमेश चंद्र दिवाकर और लखनऊ मध्य से विधायक सुरेश कुमार श्रीवास्तव की मौत हो चुकी है। वहीं पिछली बार कोरोना वायरस की पहली लहर में भाजपा के दो मंत्री चेतन चौहान और वरुण रानी अकाल मौत के शिकार हुए थे। हाल यह है कि प्रदेश की 17वीं विधानसभा में अब तक एक दरजन विधायकों की मौत हो चुकी है। इसके अलावा भाजपा के उज्जैन मंडल अध्यक्ष जीतेंद्र शीरे की मौत हो गयी। उनके परिजनों ने ऑक्सीजन न मिलने की वजह बताते हुए भाजपा पर ग़ुस्सा निकाला। यहाँ तक कि केंद्रीय मंत्री वी.के. सिंह को भी अपने भाई के लिए अस्पताल में बिस्तर पाने के लिए ग़ाज़ियाबाद के  ज़िलाधिकारी को ट्वीट करना पड़ा। इतना ही नहीं, उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िले के बैरिया क्षेत्र से भाजपा विधायक सुरेंद्र सिंह ने अपनी ही योगी सरकार पर कोरोना प्रबन्धन में बदइंतज़ामी का आरोप लगाते हुए कहा है कि नौकरशाही के ज़रिये मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कोरोना वायरस पर नियंत्रण का प्रयोग असफल रहा है। वहीं स्थानीय भाजपा विधायक अरविंद गिरि को पत्र लिखकर लखीमपुर खीरी के ज़िलाधिकारी से ऑक्सीजन मुहैया कराने की गुहार लगानी पड़ी। वहीं उत्तर प्रदेश में 135 शिक्षकों, शिक्षा मित्रों और अन्वेषकों (इंवेस्टिगेटर्स) की पंचायत चुनाव में ड्यूटी के दौरान कोरोना वायरस संक्रमण से मौत हो गयी, जिसके लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने योगी सरकार की जमकर फटकार लगायी है।
इधर, बिहार में तीन आईएएस अधिकारियों- अरुण कुमार (मुख्य सचिव, बिहार), पंचायती राज विभाग के निदेशक विजय रंजन और स्वास्थ्य विभाग के अपर सचिव रहे रवि शंकर चौधरी की कोरोना संक्रमण के चलते जान चली गयी। बिहार में प्रतिनियुक्ति पर आये इंडियन पोस्ट ऐंड टेलीग्राफ सेवा के अधिकारी और उद्योग विभाग में निदेशक पंकज कुमार सिंह का भी निधन कोरोना वायरस के चलते हो गया। ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन (एआईबीओए) के संयुक्त सचिव डी.एन. त्रिवेदी ने बैंककर्मियों में ते ज़्ाी से फैलते कोरोना वायरस के संक्रमण पर चिन्ता जतायी है। उन्होंने कहा कि देश भर में तक़रीबन 300 बैंककर्मी कोरोना संक्रमण के चपेट में हैं और ़करीब 25 बैंककर्मियों की इससे मौत हो चुकी है।

पिछले साल पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, कांग्रेस के दिग्गज नेता मोतीलाल वोरा, अहमद पटेल और तरुण गोगोई, केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान, गायक एसपी बालासुब्रमण्यम, प्रसिद्ध शायर डॉ. राहत इंदौरी, बंगाली अभिनेता सौमित्र चटर्जी कोरोना वायरस से चल बसे, तो इस साल नदीम-श्रवण की जोड़ी में से श्रवण राठौर, शास्त्रीय गायक राजन मिश्रा, कवि कुँवर बेचैन नहीं रहे। सवाल यह है कि जब उनका यह हाल है, जिन्हें बेहतर सुविधाएँ मुहैया होती हैं, तो आम लोगों का क्या हाल होगा? वैसे तो श्मशानों में लगी शवों की लम्बी कतारें अनाप-शनाप हो रही मौतों की कहानी बयाँ कर रही हैं। लेकिन फिर भी सोयी सरकारों और प्रशासन को जगाने के लिए आँकड़ों पर चर्चा करनी ज़रूरी है। लेकिन सही आँकड़ों कहाँ से आएँ? क्योंकि आँकड़ों को छिपाना सरकारों की पुरानी ़िफतरत है। फिर भी सरकारी आँकड़ों की मानें, तो अब तक देश भर में सवा दो लाख से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। लेकिन कुछ जानकारों का कहना है कि आँकड़े छिपाये जा रहे हैं और देश में अब तक 8-10 लाख लोगों की मौत हो चुकी है।

हर तरफ़ कोहराम है

कोरोना वायरस की इस दूसरी लहर से पूरे देश में कोहराम मचा हुआ है। काफी कोशिशों के बावजूद दिन-ब-दिन कोरोना वायरस के मामले बढ़ते जा रहे हैं। लोगों में इस क़दर भय व्याप्त है कि वे कोरोना वायरस की चपेट में आये अपनों और इससे मरने वाले परिजनों के शव तक को हाथ लगाने से कतरा रहे हैं। देश में 1 मई को पहली बार रिकॉर्ड 4,01,993 नये कोरोना वायरस से संक्रमित मरीज़ो मिले। भारत से पहले सिर्फ अमेरिका में ही एक दिन में चार लाख से अधिक कोरोना संक्रमण के मामले सामने आये थे। इसके साथ ही देश में 1 मई को कुल संक्रमितों की संख्या दो करोड़ के पास 1,91,64,969 से ऊपर पहुँच गयी। मरी ज़्ाों की तादाद की रिपोर्ट स्वास्थ्य मंत्रालय ने ख़ुद जारी की थी। एक अनुमान के मुताबिक, देश में हर रोज़ साढ़े तीन से चार हज़ार लोग कोरोना से मर रहे हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट की मानें, तो 1 मई तक कोरोना से 2,11,853 लोग मर चुके थे। एक अनुमान के मुताबिक, एक मिनट में दो मरीज़ो की मौत कोरोना वायरस से हो रही है। पहले हर चार मिनट में एक मरीज़ की मौत इससे हो रही थी। यह हाल तब है, जब पूरे देश में महामारी का उतना प्रकोप नहीं, जितना कि दिल्ली, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, झारखण्ड, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात में है। इन राज्यों में लोगों की यादा मौतें हो रही हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय और चिकित्सकों ने कोरोना वायरस के संक्रमण से बढ़ती मृत्यु दर पर चिन्ता जतायी है। लेकिन केवल चिन्ता से कोई फायदा नहीं। देश भर में कोरोना मरीज़ो की संख्या लगातार बढऩे के चलते सर्वाधिक प्रभावित राज्यों में बेड, वेंटिलेटर, रेमडेसिवीर और ऑक्सीजन की क़िल्लत जारी है। वहीं श्मशान घाटों पर शवों के अन्तिम संस्कार के लिए 24-24 घंटे से अधिक इंतज़ार करना पड़ रहा है। कई जगह तो श्मशान घाटों पर जगह न पार्कों और दूसरी ख़ाली जगहों में शवों का अन्तिम संस्कार किया जा रहा है। ऑक्सीजन को लेकर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की स्वायत्त संस्था सेंट्रल मेडिकल सर्विसेज सोसायटी ने 21 अक्टूबर, 2020 को ही कहा था कि 150 में प्रेशर स्विंग सोखने वाले ऑक्सीजन संयंत्रों की स्थापना के लिए बोली लगाने वालों के लिए ऑनलाइन निविदा मँगायी गयी थीं (बाद में इसे 162 तक ले जाते हुए 12 संयंत्र जोड़े गये।)। लेकिन जब समय पर काम नहीं हुआ, तो क्या मतलब?

कालाबाज़ारी
क्या हम मुसीबत में फँसे अपने लोगों की खाल खींचने वाले कसाई हैं? अगर नहीं, तो फिर क्यों अपने ही लोगों को महामारी में ठगने में लगे हैं? देखने में आ रहा है कि चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े कई निर्दयी लोग इलाज, दवाओं, टीकों और ऑक्सीजन के एवज़ में ठगी में लगे हुए हैं। कोरोना-टीकों के अलावा रेमडेसिवीर इंजेक्शन व ऑक्सीजन की कालाबा ज़्ाारी का खेल जमकर हो रहा है। यहाँ तक ख़बरें आ रही हैं कि कुछ डॉक्टर और चिकित्सा सेवा से जुड़े लोग टेरामाइसिन का घोल बनाकर रेमडेसिवीर कहकर मरीज़ो को ठोंक रहे हैं और वह भी कई-कई ह ज़्ाार रुपये में! कहाँ मर गयी हमारी मानवता? क्या हमें इस अवैध धन को ऊपर ले जाना है? या हम नहीं मरेंगे? शव देने, श्मशान में शवों के अन्तिम संस्कार तक के लिए महाठगी का खेल भी ख़ूब चल रहा है। श्मशान में शवों के अन्तिम संस्कार के लिए 2,000 से लेकर 30,000 रुपये तक लेना कौन-सा सही काम है? लकडिय़ाँ गैस से भी महँगी कर दी गयी हैं। श्मशानों को प्राइवेट हाथों में बेचने की बात हो रही है! धिक्कार है ऐसी व्यवस्था पर और आपदा में अवसर ढूँढने वाले लोगों पर। क्या हम वहीं देशवासी हैं, जो दूसरों के लिए हमेशा इंसानियत की मिसाल बने हैं?
सलाम ऐसे सेवादारों को एक तरफ जहाँ कई निर्दयी लोग आपदा को अवसर बनाकर भुनाने में लगे हैं; तो वहीं ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है, जो अपनी जान ख़तरे में डालकर नि:स्वार्थ भाव से इंसानियत का धर्म निभाते हुए मरी ज़्ाों की सेवा और मृतकों का अन्तिम संस्कार करने में लगे हैं। अगर ऐसे सभी लोगों का ज़िक्र किया जाए, तो एक पुस्तिका तैयार हो सकती है। मोटे तौर पर यह बात सामने आयी है कि सिख और मुस्लिम समुदाय के लोग इस संकट-काल में बड़े स्तर पर मानव सेवा कर रहे हैं। सिख और मुस्लिम युवा ऑक्सीजन उपलब्ध कराने से लेकर मरी ज़्ाों और मृतकों के लिए फरिश्ते बने हुए हैं। कई हिन्दू युवा उनके साथ इस नेक काम में लगे हुए हैं और कई लोग इस पुनीत कार्य को देखकर नफरत फैलाने वालों का साथ छोडक़र इंसानियत के रास्ते पर चलने के लिए आगे आ रहे हैं। विदित हो कि यह रमज़ान का पाक महीना चल रहा है; लेकिन फिर भी रोज़ो तक तोडक़र मुस्लिम युवा कोरोना पीडि़तों की सहायता में आगे आ रहे हैं और प्लाज्मा, रक्त दान के अलावा मृतकों का सनातन रीति-रिवाज़ से अन्तिम संस्कार कर रहे हैं। अगर इस देश को इस महामारी से बचाना है, तो हम सबको धर्म की भाँग पीना छोडक़र एक-दूसरे के साथ काँधे-से-काँधा मिलाकर पीडि़तों का सहयोग करना होगा।

क्यों बढ़ रहा लोगों में डर?
लोगों के दिमाग़ में कोरोना का एक ऐसा डर बैठा हुआ है कि वे इसे लेकर आतंकित हैं। केंद्र और राज्य सरकारों को इस मामले को हौवा नहीं बनाना चाहिए। क्योंकि भय से आदमी मरने से पहले ही मर जाता है; जिसका कोई इलाज नहीं होता। लॉकडाउन लगाना अपनी जगह ठीक हो सकता है। लेकिन भय फैलाना एक क़िस्म का अपराध है; जो चाहे कोई आम नागरिक करे या सरकार, सभी दण्ड के भागीदार होने चाहिए। ‘तहलका’ का मानना है कि लोगों को इस समय बचाव के लिए सरकार की ओर से जारी दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए ़खुद को शान्त रखना चाहिए और घबराना नहीं चाहिए। यदि किसी में कोरोना के लक्षण हैं, तो वह इसकी जाँच कराये। कोरोना होने पर घर में एकांतवास (कोरंटीन) करे, चिकित्सकों के अनुसार दवाएँ ले। यदि किसी की हालत बहुत ़खराब है, तो ही अस्पताल का रुख़ करे।

प्रोटोकॉल की दुहाई

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस समय कई प्रदेशों के मुख्यंत्रियों से कोरोना वायरस के संकट से निपटने के लिए बैठक कर रहे थे, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस बैठक को सार्वजनिक करते हुए देश के लोगों के हित में काम करने और दिल्ली को ऑक्सीजन उपलब्ध कराने की बात जैसे ही कही, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रोटोकॉल की दुहाई देने लगे। ‘तहलका’ का सवाल यह है कि क्या जनहित की बात करते समय जनता के समक्ष किसी बैठक की बातचीत को रखना या पहुँचाना प्रोटोकॉल तोडऩा है? हमारे ख़याल से प्रोटोकॉल के सही मायने क्या हैं? इस पर प्रधानमंत्री को विचार करना चाहिए। एक सवाल यह भी है कि जब 2 जनवरी, 2016 को पठानकोट वायुसेना अड्डे पर आतंकी हमला हुआ था और उसके बाद ख़ुद प्रधानमंत्री ने आईएसआई (पाकिस्तानी ख़ूफिया एजेंसी) के पाँच सदस्यों को हमले वाली जगह का दौरा कराया, तो क्या प्रोटोकॉल नहीं टूटा था? हैरत की बात तो यह है कि इस घटना से एक हफ्ते पहले ही मोदी ने पाकिस्तान का आकस्मिक दौरा कर तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवा ज़्ा शरीफ से मुलाकात की थी। यह सब क्या था? ऑक्सीजन पर बात करें, तो सवाल यह उठता है कि एक तरफ केंद्र सरकार कह रही है कि ऑक्सीजन की कमी नहीं है, और दूसरी तरफ दूसरे देशों से मदद भी ले रही है। वहीं यह सवाल भी उठता है कि अगर देश के पास भरपूर ऑक्सीजन है, तो दिल्ली सरकार को दूसरे देशों से ऑक्सीजन क्यों ख़रीदनी पड़ी? देश की राजधानी नयी दिल्ली समेत तमाम राज्यों में संक्रमण से जूझ रहे मरीज़ो के लिए क़रीब दो हफ्ते तक ऑक्सीजन भारी क़िल्लत होने के बावजूद लगता है सरकार के कान में जूँ नहीं रेंगी। कई उच्च न्यायालयों और यहाँ तक कि सर्वोच्च न्यायालय की फटकार का असर भी सरकार पर शायद नहीं पड़ा। कोरोना की पहली लहर के 14 महीने बीत जाने के बावजूद इससे लडऩे के लिए जान बचाने में अहम ऑक्सीजन की आपूर्ति करना भी सरकार के बस का नहीं हो सका। हालाँकि इसे दुर्भाग्य कहें या कुछ और कि इसी दौरान कई देशों की ऑक्सीजन निर्यात की गयी।

बेशर्मी की हद पार
सवाल यह है कि क्या प्रदेश में भरपूर ऑक्सीजन होने का दावा करने वाले प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ से विधायक नहीं कह पा रहे हैं कि वह अस्पतालों में उचित व्यवस्था कराएँ। सच तो यह है कि लखनऊ में अस्पताल को टीन की चादर से ढकवाने, मौत का आँकड़ा छिपाने और लोगों की रक्षा आश्वासन देने वाली योगी सरकार की नाकामी छिपाये नहीं छिप रही। कई बार तो लगता है कि प्रदेश में मौतों का खेल चल रहा है। कितने ही लोग अस्पतालों पर अंग निकालने का कथित आरोप लगा रहे हैं। कितने ही लोग अस्पताल जाने से कतरा रहे हैं और यहाँ तक कह रहे हैं कि अस्पताल में जाना मतलब जान गँवाना। आख़िर यह अविश्वास क्यों? इसकी एक वजह ‘तहलका’ ने यह तलाशी कि हाल ही में एक वीडियो में एक भाजपा सांसद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और दूसरे कई विधायकों-नेताओं की मौ ज़्ाूदगी में लोगों से यह कहते दिखे- ‘सोचिए, यहाँ आपकी मृत्यु होगी तो डायरेक्ट स्वर्ग में जाओगे। यहाँ जब आप जलाये जाओगे। कितना आनन्द आयेगा यहाँ जलने में। अत्याधुनिक है एकदम और इलेक्ट्रिक वाला है। तो इठाई-मिठाई न लगी, डायरेक्ट जल जइवो। हर-हर महादेव स्वर्ग जाओगे। लेकिन स्वर्ग वही जाएगा, जो सवेरे यहाँ पैखाना नहीं करेगा।’ दरअसल यह वीडियो पिछले महीने गोरखपुर में राप्ती नदी के तट पर बने गुरु गोरक्षनाथ घाट और श्रीराम घाट के लोकार्पण समारोह के दौरान गोरखपुर से भाजपा सांसद रवि किशन के भाषण का हिस्सा है, जो ‘तहलका’ के पास सुरक्षित है। हैरत की बात यह है कि रवि किशन के इस अशोभनीय और निंदनीय बयान पर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और दूसरे भाजपा नेता ठहाके लगाते दिखे। जनता के साथ ऐसी नीचता भरी हँसी-मज़ाक को आप क्या कहेंगे?

बेअसर वैक्सीन!
कोरोना-वैक्सीन (टीका) के लगने के बाद बहुत-से लोगों की शिकायतें रही हैं कि उनकी तबीअत बिगड़ी है। अब तक कई ऐसे मामले भी सामने आ चुके हैं, जिसमें टीका लगवा चुके लोग दोबारा कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं। हालाँकि चिकित्सकों ने कोरोना टीका लगवाने वालों के लिए दिशा-निर्देश जारी किये हैं, जिनमें सार्वजनिक स्थानों पर मास्क न हटाना अनिवार्य शर्त है। बता दें कि कुछ लोगों को यह भ्रम हो रखा था कि कोरोना टीका लगवाने के बाद कोरोना नहीं होगा। लेकिन यह महज़ एक अफवाह हो सकती है। इस साल के शुरू में ही सरकार की ओर से कहा जा रहा था कि कोरोना अभी गया नहीं है, इसलिए सावधानी बरतें। चिकित्सक और चिकित्सा विशेषज्ञों की मानें तो वैक्सीन बेअसर नहीं है। हाँ, इसे लगवाने के बाद भी सावधानी बरतने की ज़रूरत रहती है।

अंतर्राष्ट्रीय भीख?
कुछ लोग कोरोना वायरस के संकट से निपटने के लिए विदेशों से भारत को मिल रही मदद को अंतर्राष्ट्रीय भीख कह रहे हैं। ‘तहलका’ ऐसी अभद्र और अशोभनीय टिप्पणियों की निंदा करती है। भारत भी एक ऐसा ही संवेदनशील राष्ट्र है, जिसने कई मौक़ो पर दूसरे देशों की दिल खोलकर मदद की है। कई देशों को कोरोना टीके का मुफ्त निर्यात इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। ़खैर, इस समय इस संकट की घड़ी में भारत की मदद के लिए कई देश आगे आये हैं, जिनमें संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, सऊदी अरब, चीन, जापान सहित कई कुछ अन्य देश प्रमुख हैं।