नतीजों का राष्ट्रीय असर क्या होगा?

 

बंगाल के नतीजे राष्ट्रीय राजनीति पर व्यापक असर डाल सकते हैं। ‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक, बंगाल की हार से भाजपा के भीतर जबरदस्त हलचल है। आरएसएस भी इन नतीजों से बेहद निराश है। मोदी-शाह की जोड़ी ने जिस तरह हाल के वर्षों में भाजपा और सरकार को अपने मुताबिक चलाया है, उससे पार्टी के भीतर असहमति के स्वर मज़बूत हो सकते हैं। भाजपा के एक वर्ग में यह तक कहा जाता है कि कहने को जगत प्रकाश नड्डा भाजपा के अध्यक्ष हैं, लेकिन असली ता़कत अभी भी दिग्गज अमित शाह के ही पास है। राज्यों में भाजपा के लगातार चुनाव हारने से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता को लेकर भी सवाल उठ सकते हैं। अपनी मज़बूती के दिनों में इंदिरा गाँधी 70 और 80 के दशक में केंद्र ही नहीं, राज्यों में भी कांग्रेस को अपनी लोकप्रियता के बूते लगातार जिताती रही थीं। मोदी के मामले में यह नहीं कहा जा सकता; क्योंकि उनके व्यापक चुनाव प्रचार के बावजूद भाजपा ने हाल के महीनों में कई राज्य खोये हैं या भाजपा को बहुमत के लाले पड़े हैं।

राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ से इसकी शुरुआत हुई थी, जहाँ कांग्रेस ने उसे सन् 2018 के आ़िखर में हरा दिया था। भाजपा में एक ऐसा मज़बूत दल है, जो पिछले कुछ महीनों से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को मोदी के विकल्प के रूप में अप्रत्यक्ष रूप से पेश कर रहा है। आरएसएस भी योगी पर मोहित रहा है। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी तो आरएसएस के सबसे ज़्यादा पसंदीदा लोगों में हैं। ता़कतवर गृह मंत्री की छवि बनाने वाले अमित शाह को भी दो साल से पार्टी का एक वर्ग मोदी का विकल्प बता रहा है। सोशल मीडिया में इस तरह के सन्देश भरे रहते हैं। अब सवाल यह है कि क्या मोदी के नेतृत्व को लेकर भाजपा के बीच चुनौती उभर सकती है? इसका जवाब हाँ और न दोनों में दिया जा सकता है। भाजपा के नेताओं में सत्ता का जैसा मोह हाल के वर्षों में दिखा है, उससे उनमें यदि यह भावना पनपती है कि मोदी अब उन्हें चुनाव नहीं जिता सकते, तो उनका मोदी से मोह भंग हो सकता है। यहाँ एक बड़ा तथ्य यह भी है कि जब देश में अप्रैल के दूसरे पखवाड़े में कोरोना वायरस की भीषणता सामने आयी और लोगों को ऑक्सीजन तथा बिस्तरों (बेड्स) के लाले पड़ गये, तब तक बंगाल के तीन चरणों को छोडक़र बा़की सभी राज्यों में मतदान हो चुका था। लिहा केंद्र सरकार की इस नाकामी का असर उन राज्यों में नहीं पड़ा है। हाल के हालात के बाद देश का एक बड़ा तब़का मोदी सरकार के ख़िला़फ हुआ दिख रहा है। ज़ाहिर है इसका असर आने वाले महीनों में दिखेगा। भाजपा को यह बड़े पैमाने पर नु़कसान कर सकता है। यह इकलौता ऐसा मुद्दा है, जिसमें पिछले चार साल में मोदी सरकार, उसके समर्थक और समर्थक मीडिया व सोशल मीडिया सरकार को आलोचना से बचा नहीं पाये हैं। मोदी के कट्टर समर्थक भी केंद्र सरकार की ऑक्सीजन और बिस्तरों को उपलब्ध करवाने में नाकामी पर प्रधानमंत्री से नाराज़ दिख रहे हैं और खुलकर उनके ख़िला़फ बोल रहे हैं; जो कि बड़ी बात है। कांग्रेस में यही स्थिति आज है। कांग्रेस अध्यक्ष के लिए एक-दो महीने में चुनाव होने हैं। एक भी राज्य नहीं जीत पाने के कारण कांग्रेस के भीतर जी-23 गुट सक्रिय हो सकता है। ऐसा नहीं है कि असम और केरल में कांग्रेस का स़फाया ही हो गया है। हार के बावजूद उसे या उसके गठबन्धन को बंगाल को छोडक़र अन्य जगह अच्छी सीटें मिली हैं। बंगाल में कारण अलग रहे हैं। क्योंकि वहाँ वाम-कांग्रेस वोट भाजपा को हारने के लिए ममता के साथ जुड़ गया। निश्चित ही यह अस्थायी स्थिति है और अगले लोकसभा चुनाव में विधानसभा जैसे नतीजे नहीं रहेंगे।

कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने ममता बनर्जी को जीत की बधाई देते हुए कहा- ‘भाजपा को हराने के लिए ममता बनर्जी और बंगाल की जनता को बधाई।’ यह माना जाता है कि कांग्रेस ने भाजपा को रोकने के लिए एक रणनीति के तहत सघन प्रचार नहीं किया। राहुल जैसा नेता सि़र्फ एक बार बंगाल गया। हालाँकि दोनों दलों को ज़मीन पर मज़बूत होने के लिए काम तो करना ही होगा। देखना होगा कि कांग्रेस के भीतर अब क्या स्थिति बनती है? अभी तक तो यही सम्भावना है कि राहुल गाँधी अध्यक्ष बनेंगे। यदि विरोध का दायरा बड़ा हुआ, तो कांग्रेस प्रियंका गाँधी को आगे कर सकती है। इसकी का़फी सम्भावना है। लेकिन असली नज़र नाराज़ नेताओं के रु़ख पर रहेगी। यह नेता पिछले कुछ समय से नेतृत्व को लेकर सवाल उठा रहे हैं और चाहते हैं कि तत्काल पूर्ण अवधि का अध्यक्ष बनाया जाए। निश्चित ही कांग्रेस को भविष्य में ख़ुद को ज़मीन पर मज़बूत करना है, तो उसे एक नेता के साथ जनता के सामने आना होगा। साथ ही संगठन की पूरी ओवरहॉलिंग करनी होगी। तेज़-तर्रार नेताओं को राज्यों में कमान सौंपनी होगी और केंद्रीय स्तर पर भी ज़मीन से जुड़े नेताओं को नेतृत्व के साथ एक टीम के रूप में जोडऩा होगा। बंगाल के नतीजों के बाद ग़ैर-भाजपा दल अब ममता बनर्जी के पीछे दिख रहे हैं।

मैं इस ऐतिहासिक जीत के लिए लोगों को धन्यवाद देती हूँ। बंगाल की जनता ने भाजपा को हराकर देश को तोह़फा दिया है। सरकार सँभालते ही मैं कोरोना वायरस के ख़िला़फ तत्काल जंग की शुरुआत कर दूँगी। कोरोना की वजह से शपथ ग्रहण समारोह बेहद सामान्य होगा। भाजपा चुनाव हार गयी है; वो गन्दी राजनीति करते हैं।’’

– ममता बनर्जी, टीएमसी नेता एवं मुख्यमंत्री, बंगाल  

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजों का असर उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव और 2024 में होने वाले आम चुनाव पर भी पड़ेगा। देश के लोग केंद्रीय नेतृत्व में बदलाव चाहते हैं।

– यशवंत सिन्हा टीएमसी उपाध्यक्ष, पूर्व केंद्रीय मंत्री