चीन से खटास, भारत से दोस्ती!

अमेरिका के साथ बढ़ते रिश्तों में भारत को बरतनी चाहिए सावधानी इसमें कोई दो-राय नहीं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अमेरिकी सांसदों के ऑटोग्राफ लेने की तस्वीरें भारत में एक वर्ग को बहुत सुहाई होंगी। वे निश्चित ही इसे भारत की दुनिया में बढ़ रही ताक़त के रूप में देख रहे होंगे। ऐसा होना स्वाभाविक भी है, क्योंकि इसे लोकप्रियता से जोडक़र देखा जाता है। कुछ समय पहले मोदी की यात्रा के दौरान उनके घुटनों को हाथ लगाते पापुआ न्यू गिनी के प्रधानमंत्री जेम्स मरापे की तस्वीरों ने भी देश के काफ़ी लोगों के मन में गर्व का एहसास पैदा किया था। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा को उनके राष्ट्रपति जो बाइडेन से चियर्स करते की तस्वीरों, उनसे ऑटोग्राफ लेते अमेरिकी के डेमोक्रेट सांसदों और उनके साथ सेल्फी खिंचाने को उताबले अनिवासी भारतीयों की तस्वीरों से अलग हटकर इस दौरे की ज़मीनी उपलब्धियों, अमेरिकी की तरफ़ से भारत को अपने चीन विरोध के प्रतीक के रूप में खड़ा करने की कोशिशों और इससे होने वाले असर के रूप में देखा जाना चाहिए। साथ ही यह भी देखा जाना चाहिए कि डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति रहते उनकी प्रधानमंत्री मोदी से दोस्ती के समय भारत में मानवाधिकार का मुद्दा तल्ख़ी भरे अंदाज़ में उठाने वाले जो बाइडेन और उनकी डेमोक्रेटिक पार्टी सत्ता में होते हुए आख़िर अब क्यों भारत से दोस्ती को इतनी तरजीह देने लगे हैं? देखा जाए, तो भारत और अमेरिका के बीच सबसे चर्चित समझौता 2005 का परमाणु समझौता था, जब देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह थे। हालाँकि इस ऐतिहासिक परमाणु समझौते के बावजूद बाद के वर्षों में भारत और अमेरिका के बीच सम्बन्ध उस स्तर पर नहीं रहे। कारण यह भी था कि मनमोहन सिंह की सरकार एक गठबंधन सरकार थी। उसे समर्थन दे रहे वाम दलों का उस पर लगातार दबाव था कि वह परमाणु समझौते में आगे न बढ़े। इसका नतीजा यह हुआ कि तीन साल बाद भारत ने संसद में एक क़ानून पास किया, जो अमेरिका से रिएक्टरों की ख़रीद में बड़ी रुकावट बन गया। मनमोहन सिंह के अगले कार्यकाल (यूपीए-2) में तो दोनों देशों के रिश्तों में गर्मजोशी और प्रतिबद्धता में कमी दिखी, भले बराक ओबामा एक अर्थशास्त्री के रूप में मनमोहन सिंह के प्रशंसक रहे। भारत और अमेरिका के रिश्तों में नया रूप डोनाल्ड ट्रम्प के कार्यकाल में दिखा। प्रधानमंत्री मोदी ने कई बार कहा कि ट्रम्प से उनके रिश्ते राष्ट्र प्रमुखों से ज़्यादा मित्रों जैसे हैं। यह सच हो सकता है, क्योंकि एक मौक़े पर भारत में ही विपक्ष ने मोदी पर ट्रम्प की चुनाव कैंपेन का हिस्सा बनने का आरोप लगाया। विपक्ष के आरोपों के पीछे कारण ‘हाउडी मोदी’ और ‘नमस्ते ट्रम्प’ जैसे चकाचौंध भरे कार्यक्रम थे, जिनमें मोदी ट्रम्प के चुनाव की बातें करते दिखे। इससे यह सन्देश गया कि मोदी अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिकी भारतीयों को ट्रम्प का समर्थन करने को कह रहे हैं। दिलचस्प यह है कि ट्रम्प के काल में जो बाइडेन और कमला हैरिस लगातार भारत में मानवाधिकार का मुद्दा उठाते रहे। यही कारण रहा कि बाइडेन जब सत्ता में आये, तो उनके प्रशासन की भारत के साथ रिश्तों में गर्माहट की काफ़ी कमी रही। चीन से रिश्ते तल्ख़ अमेरिका की भारत से दोस्ती बढ़ाने की कोशिश क्या चीन से उसके तल्ख़ होते रिश्ते हैं? बहुत-से जानकार मानते हैं यह काफ़ी हद तक सही है। निश्चित ही प्रधानमंत्री मोदी का अमेरिका यात्रा में स्वागत हुआ। इसके बाद राष्ट्रपति बाइडन ने भी कहा कि अमेरिका और भारत के रिश्ते दुनिया के लिए सबसे ज़रूरी हैं। उन्होंने यहाँ तक कहा कि आबादी के लिहाज़ से दुनिया के सबसे बड़े देश भारत के साथ अमेरिका के रिश्ते अब तक के इतिहास में सबसे ज़्यादा मज़बूत हैं। बाइडेन की यह बातें निश्चित ही भारत-अमेरिका के बीच रिश्तों की अलग कहानी कहती हैं, क्योंकि इसी बाइडेन प्रशासन ने सत्ता में आने के दो साल तक भारत में अपना राजदूत तक नियुक्त नहीं किया था। ऐसे में बाइडेन का यह कहना कि दोनों देश एक दूसरे के क़रीब आये हैं, और रिश्ते गतिशील हुए हैं; महत्त्वपूर्ण है। रिश्तों में अचानक आयी इस गर्माहट के कई कारण हैं। सबसे बड़ा कारण अमेरिका के चीन से लगातार बिगड़ते रिश्ते हैं। अमेरिका की रणनीति को समझने वाले विषेशज्ञों का कहना है कि वह भारत को रिश्तों में संतुलन साधने के लिए साथ अपने जोड़ रहा है। इन रिश्तों को वह हिन्द प्रशांत क्षेत्र में ख़ुद को मज़बूत करने के लिए भी इस्तेमाल करना चाहता है। दिलचस्प यह भी है कि हाल के कुछ महीनों में चीन ने भारत की सीमा पर लगातार निर्माण कर भारत पर दबाव बनाने की कोशिश की है। उसकी नीयत को लेकर वैसे भी ढेरों सवाल उठते रहे हैं। कई जानकार इस बात से इनकार नहीं करते कि चीन भविष्य में भारत पर हमला करने की हद तक जा सकता है। भारत-अमेरिका के बीच इस रिश्तों के इस नये पड़ाव से चीन भी हरकत में दिखा। चीन के सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स ने न सिर्फ़ अमेरिका बल्कि भारत के ख़िलाफ़ भी ख़ूब ज़हर उगला। एक संपादकीय में तो ग्लोबल टाइम्स ने अमेरिका को धोखेबाज़ बताया और भारत को सलाह दी कि उसे अमेरिका से बचकर रहना चाहिए। ग्लोबल टाइम्स का मानना है कि अमेरिका अपने हितों के लिए भारत को इस्तेमाल कर रहा है।