चांदनी चौक, दिल्ली

कांग्रेस जहां महाघोटालों, महंगाई और सत्ताविरोधी लहर से जूझ रही है तो वहीं आप के उम्मीदवार केजरीवाल के मैदान छोड़ने से परेशान हंै. उधर, नरेंद्र मोदी के नाम वाली हवा इस क्षेत्र में बहती नहीं दिख रही है. ऐसे में यहां के नतीजे लोगों के लिए चौंकाने वाले हो सकते हैं. आम आदमी पार्टी की स्थिति चांदनी चौक में कुछ खास अच्छी नहीं है. महज 49 दिनों में दिल्ली की सत्ता का त्याग करने का पार्टी का फैसला अब उसके लिए नकारात्मक असर वाला साबित होता दिख रहा है.

फिर भी इस इलाके में लड़ाई दिलचस्प है. किसी एक उम्मीदवार को बहुत बढ़त मिल रही हो ऐसा दिखता नहीं है. 2008 में परिसीमन के बाद इस संसदीय सीट में 10 विधानसभा सीटें शामिल कर दी गई थीं. चांदनी चौक संसदीय क्षेत्र में 14 लाख के करीब वोटर हैं. यह संसदीय सीट दिल्ली की सातों लोकसभा सीटों मंे क्षेत्रफल और वोटरों की संख्या, दोनों लिहाज से सबसे छोटी है. चांदनी चौक से अब तक चुने गए 14 सांसदों में नौ कांग्रेसी रहे हैं. बीते एक दशक से कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल यहां से सांसद हैं. उनसे पहले पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष जेपी अग्रवाल 1984, 1989 और 1996 में इसी सीट से सांसद बने. भाजपा नेता विजय गोयल भी यहां से लगातार दो बार जीत चुके हैं. चांदनी चौक क्षेत्र में व्यापारी वर्ग की संख्या काफी है. इस सीट पर 30 से 35 प्रतिशत व्यापारी वर्ग का कब्जा है. 2008 के परिसीमन से पहले इस सीट पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में होते थे. ऐसा माना जाता था कि इसी वजह से कांग्रेस के प्रत्याशी भारी अंतर से जीत दर्ज कराते रहे हैं. परिसीमन के बाद जो बदलाव इस सीट पर हुए हैं उसके बाद ऐसा माना जा रहा है कि कांग्रेस प्रत्याशी कपिल सिब्बल के लिए मुश्किलें बढ़ गई हैं. बीते विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने इलाके की 10 में से चार विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी. कांग्रेस के हाथ दो सीटें आई थीं जबकि भाजपा ने तीन सीटें अपनी झोली में डाली थीं.

जीत-हार की इन बातों से इतर सबसे दिलचस्प बात यह है कि पुरानी दिल्ली की इस महत्वपूर्ण सीट पर लोकसभा का यह चुनाव स्थानीय मुद्दों जैसे सीवर लाइन, साफ-सफाई और पार्किंग पर लड़ा जा रहा है. तो जो भी इन मुद्दों पर ज्यादा लोगों को खुद से जोड़ पाएगा उसकी जीत की संभावना बढ़ जाएगी.

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