ग्रामीण विकास से ही सशक्त होगा देश

डॉ. राम प्रताप सिंह पिछले कुछ वर्षों में ग्रामीण भारत के विभिन्न क्षेत्रों में तेज़ी से परिवर्तन देखने को मिले हैं। बुनियादी ढाँचे के विकास, कौशल विकास को बढ़ावा तथा ग्रामीण महिलाओं के सशक्तिकरण ने ग्रामीण विकास को मज़बूती प्रदान की है। महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (मनरेगा), प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण), दीनदयाल अंत्योदय योजना- राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना, राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम, सांसद आदर्श ग्राम योजना, श्यामा प्रसाद मुखर्जी रुर्बन मिशन, दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना, प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना जैसे कार्यक्रमों ने ग्रामीण विकास को नयी गति दी है। इन योजनाओं ने ग्रामीणों के जीवनस्तर में परिवर्तन लाया है। वंचित तबक़ों तक इन योजनाओं का लाभ पहुँचा है। केंद्र सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट 2022-23 के अनुसार, मनरेगा के तहत वित्तीय वर्ष 2022-23 में (31 दिसंबर, 2022 तक) 5.54 करोड़ ग्रामीण परिवारों को रोज़गार मुहैया कराया गया। इस योजना के द्वारा सृजित किये गये कुल श्रम दिवसों में महिलाओं की भागीदारी औसतन लगभग 56 फ़ीसदी रही है। ग्रामीण विकास की सबसे महत्त्वपूर्ण योजना मनरेगा के बारे में भारत समेत वैश्विक स्तर के कई रिपोर्ट ऐसा बताते हैं कि इस योजना ने ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले परिवारों को ग़रीबी से उबरने में मदद की है। आज बड़ी तादाद में ग्रामीण युवाओं का कौशल विकास किया जा रहा है, जो रोज़गार पाने से जुड़ा है। ग्रामीण भारत में रहने वाले युवाओं की आबादी अच्छी-ख़ासी है। ऐसे में उन्हें स्वरोज़गार के लिए प्रेरित करने की ज़रूरत है, ताकि वे अपने परिवार के साथ-साथ कुछ और परिवारों को भी रोज़गार दे सकें। हमें यह मानना होगा कि स्वरोज़गार ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ती बेरोज़गारी से बचने का एक महत्त्वपूर्ण विकल्प है। हालाँकि गाँवों में पहले की तुलना में शिक्षा का स्तर सुधरा है; लेकिन फिर भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा आज भी एक बड़ी चुनौती है। हमें इस पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है। अगर हम स्वास्थ्य सुविधाओं की बात करें, तो यह भी पहले की तुलना में बेहतर हुआ है। लेकिन हमें इसे अभी और बेहतर करने की आवश्यकता है। अभी भी अक्सर ऐसा देखने और सुनने को मिलता है कि ग्रामीण भारत में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में लोगों को ज़रूरत के वक़्त उन्हें दवाइयाँ नहीं मिलतीं, कई मेडिकल टेस्ट समय पर नहीं हो पाते, तो कभी-कभी डॉक्टर्स भी उपस्थित नहीं होते। ऐसे में ग्रामीण लोगों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है।