गुड़ खाकर गुलगुले से परहेज

आईपीएल में मैच फिक्सिंग और सट्टेबाजी के खुलासे के बाद से भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के अध्यक्ष और आईपीएल टीम- चेन्नई सुपर किंग्स के मालिक एन श्रीनिवासन मीडिया से बहुत नाराज हैं. उन्हें लगता है कि मैच फिक्सिंग मामले में ‘मीडिया ट्रायल’ हो रहा है. उनकी नाराजगी की वजह किसी से छिपी नहीं है. श्रीनिवासन के दामाद और चेन्नई सुपर किंग्स के प्रिंसिपल (सीईओ) रहे गुरुनाथ मयप्पन सट्टेबाजी और मैच फिक्सिंग रैकेट में शामिल होने के आरोपों में पुलिस के हत्थे चढ़ चुके हैं. जाहिर है कि श्रीनिवासन पर इस्तीफा देने और बीसीसीआई पर चेन्नई सुपर किंग्स का लाइसेंस खत्म करने का दबाव बढ़ता जा रहा है.

लेकिन श्रीनिवासन को लगता है कि यह मांग सिर्फ मीडिया से आ रही है. उन्होंने एलान कर दिया है कि मीडिया उन्हें इस्तीफा देने के लिए मजबूर नहीं कर सकता. लेकिन वे भूल रहे हैं कि यही मीडिया है जिसने आईपीएल को आईपीएल बनाया है. न्यूज चैनलों और अखबारों ने शुरू से आईपीएल को जिस तरह हाथों-हाथ लिया, उसे जितनी कवरेज दी और सबसे बढ़कर उसकी चमक के पीछे के अंधेरे को अनदेखा किया, उससे आइपीएल को एक विश्वसनीयता मिली. यह मीडिया ही था जिसने आईपीएल को भारत के अपने पहले सफल लीग की तरह प्रचारित और प्रतिष्ठित किया.

इसलिए आइपीएल को मिले ‘मीडिया हाइप’ का मजा ले चुके श्रीनिवासन अब ‘मीडिया ट्रायल’ की शिकायत किस मुंह से कर रहे हैं? मीठा-मीठा गप और कड़वा-कड़वा थू, यह कैसे चलेगा? यह सही है कि जब से श्रीसंथ सहित तीन खिलाड़ियों और विंदू दारा सिंह और मयप्पन की ‘स्पॉट फिक्सिंग’ और सट्टेबाजी के आरोपों में गिरफ्तारी हुई है, मीडिया ने ऐसे आसमान सिर पर उठा रखा है जैसे उसे आईपीएल की चमक के पीछे छिपी बजबजाहट के बारे में आज पता चला है. सवाल यह है कि आज जो चैनल या अखबार आईपीएल की चीरफाड़ में जुटे हुए हैं वे कल तक उस गलाजत से आंखें क्यों मूंदे हुए थे.

क्या चैनलों को यह पता नहीं था कि जैसे हर चमकती चीज सोना नहीं होती, आइपीएल भी शुरू से ही क्रिकेट से ज्यादा पैसे और ग्लैमर के कारण चमक रहा था? सच यह है कि मीडिया को यह सब मालूम था. लेकिन चैनल खुद भी इसी ‘चमक’ से अभिभूत थे. यहां तक कि अधिकांश चैनलों पर क्रिकेट के एक्सपर्ट वे पूर्व खिलाड़ी हैं जिन पर फिक्सिंग के आरोप लग चुके हैं. मजे की बात यह है कि वे अब खिलाड़ियों के लालच और उनमें नैतिकता की बढ़ती कमी पर ‘ज्ञान’ देते हैं. यही नहीं, आईपीएल में सट्टेबाजी की पोस्टमार्टम कर रहे चैनल या अखबार कल तक खुद मैच से पहले सट्टा बाजार में टीमों के भाव बताया करते थे.

इसे कहते हैं, गुड़ खाकर गुलगुले से परहेज. इसका सबूत यह है कि आईपीएल में फिक्सिंग के आरोपों में एन श्रीनिवासन का सिर मांग रहे अखबार या चैनल उस आईपीएल पर कोई सवाल नहीं उठा रहे हैं जिसे काले धन को सफेद करने के लिए ही खड़ा किया गया है. सट्टेबाजी और नतीजे में फिक्सिंग उसके मूल चरित्र में है. सवाल है कि अगर आईपीएल को खत्म कर दिया जाए तो क्रिकेट का क्या नुकसान होगा. लेकिन यह सवाल कोई चैनल या अखबार नहीं उठाएगा क्योंकि आईपीएल को टेलीविजन यानी मनोरंजन उद्योग के लिए ही बनाया गया है. उसमें बड़े टीवी समूहों (जिनमें न्यूज चैनल भी शामिल हैं) के हजारों करोड़ रुपये लगे हुए हैं और सभी को विज्ञापनों से भारी कमाई हो रही है.

जाहिर है कि चैनल बेवकूफ नहीं हैं कि अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारें. वे तो सिर्फ श्रीनिवासन का सिर दिखाकर दर्शकों को भरोसा दिलाना चाहते हैं कि आईपीएल में अब सब ठीक-ठाक है. वैसे ही जैसे ललित मोदी के बाद राजीव शुक्ल को आईपीएल कमिश्नर और श्रीनिवासन को बोर्ड अध्यक्ष बनाने के बाद हो गया था.