साप्ताहिक समाचार पत्रिका शुक्रवार की साहित्य वार्षिकी प्रकाशित हो चुकी है. साहित्य केंद्रित इस अंक में संस्मरण और यात्रा वृत्तांत जैसी उन विधाओं को प्रमुखता दी गई है जिन पर इन दिनों अधिक जोर है. राजेंद्र माथुर, धर्मवीर भारती, नामवर सिंह, केदारनाथ सिंह, विश्वनाथ त्रिपाठी, नरेश सक्सेना, अरविंद कुमार, निदा फाजली, अखिलेश, मंजूर एहतेशाम जैसे विभिन्न विधाओं के प्रमुख रचनाकारों के संस्मरण पाठकों की स्वादग्रंथियों को संतुष्ट करते हैं. नामवर सिंह का निराला से जुड़ा संस्मरण जहां इस अंक की अहम उपलब्धि है वहीं ओमप्रकाश वाल्मीकी का आत्मकथात्मक अंश भी बेहद महत्वपूर्ण है. वाल्मिकी जी का ‘त्रासदी के बीच बनते रिश्ते’ शीर्षक वाला यह आत्मकथांश उनके अंतिम दिनों में लिखा गया जब वे अस्पताल में कैंसर से जूझ रहे थे. इसमें उन्होंने समाज में धीरे-धीरे ही आ रहे सकारात्मक बदलाव को न केवल महसूस किया बल्कि उसे रेखांकित भी किया है. इस अंक की केंद्रीय चर्चा हिंदी प्रदेशों की सांस्कृतिक स्थिति पर है. तमाम वरिष्ठ रचनाकारों ने इसमें अपनी राय रखी है. संस्मरणों और यात्रा वृत्तांत के अलावा कविताओं, डायरी, व्यंग्य और उपन्यास अंश को भी स्थान दिया गया है. हालांकि कहानी खंड में केवल एक रचना दी गई है जो समझ से परे है क्योंकि समकालीन कहानी संसार बेहद समृद्ध है और उसमें कुछ बेहद सशक्त रचनाकार हैं. काशीनाथ सिंह के उपन्यास ‘उपसंहार’ के अंश के अलावा प्रेमचंद गांधी, शेखर जोशी और पंकज बिष्ट के यात्रा वृतांत भी अत्यंत पठनीय हैं. कविताओं का जिक्र किए बिना इस अंक की बात पूरी न हो सकेगी.