केदारनाथ यात्रा-2014: एक खतरनाक चुनावी स्टंट

मुश्किल भारी बफर्भारी के बीच केदारनाथ के लिए रास्ता बनाने की जद‍ोजहद जारी है
मुश्किल भारी बफर्भारी के बीच केदारनाथ के लिए रास्ता बनाने
की जद‍ोजहद जारी है

उत्तराखंड के लिए मई का पहला हफ्ता दो कारणों से बेहद महत्वपूर्ण है. एक, प्रदेश की पांचों लोकसभा सीटों पर मतदान होने हैं और दूसरा, चार धाम यात्रा शुरू होनी है. प्रदेश में सत्तासीन कांग्रेस इन दोनों ही मोर्चों पर विफलता के मुहाने पर खड़ी है. लोकसभा चुनावों के लिए पार्टी की तैयारियां बेहद कमजोर हैं तो चार धाम यात्रा के लिए उसकी सरकार की तैयारियां जर्जर हालत में हैं. पिछले साल 16-17 जून को उत्तराखंड के पहाड़ों पर पानी कहर बनकर टूटा था. इसमें दर्जनों गांव, सैकड़ों भवन और हजारों लोगों का अस्तित्व हमेशा के लिए मिट गया. इस आपदा का सबसे ज्यादा प्रभाव केदारनाथ इलाके में हुआ था. केदारनाथ मंदिर तो सुरक्षित रहा लेकिन इसके आसपास और मंदाकनी घाटी में सैकड़ों किलोमीटर तक सब कुछ तबाह हो गया. दर्शन करने आए हजारों यात्रियों की मौत हो गई और हजारों लापता हुए. आशंका जताई जा रही थी कि यात्रा शायद अब दो-तीन साल तक संभव नहीं होगी. हालांकि कुछ महीनों बाद ही केदारनाथ मंदिर में दोबारा से पूजा शुरू कर दी गई, लेकिन यह औपचारिकता मात्र ही थी. श्रद्धालुओं का मंदिर तक पहुंच पाना असंभव था. सभी मोटर और पैदल मार्ग ध्वस्त हो चुके थे. ऐसे में मंदिर समिति के कुछ लोगों और पुजारियों को हवाई मार्ग से मंदिर तक पहुंचाया गया और पूजा शुरू हुई.

इस आपदा में हजारों स्थानीय लोग बेघर हुए और सैकड़ों गांवों के सभी संपर्क मार्ग टूट गए. ऐसे में सरकार की दो महत्वपूर्ण प्राथमिकताएं थीं. एक, प्रभावित लोगों का पुनर्वास और दूसरा, प्रभावित क्षेत्रों का पुनर्निर्माण. लेकिन सरकार ने एक तीसरे ही विकल्प को अपनी प्राथमिकता बनाया. वह था किसी भी तरह केदारनाथ यात्रा को जल्द से जल्द दोबारा शुरू करना. उत्तराखंड में सात मई को लोकसभा के लिए मतदान होना है. इससे तीन दिन पहले ही चार मई को केदारनाथ यात्रा शुरू हो रही है. चुनाव प्रचार में यात्रा के शुरू होने को एक उपलब्धि के तौर पर पेश किया जा रहा है. सरकार यह संदेश देना चाहती है कि उसने इतने कम समय में ही इतनी भीषण आपदा से निपट कर चार धाम यात्रा को सुचारू कर दिया है. लेकिन हकीकत यह है कि हजारों प्रभावित लोगों के पुनर्वास और उनकी मूलभूत जरूरतों को नजरअंदाज करके वह दूसरे हजारों लोगों को एक खतरनाक यात्रा का निमंत्रण दे रही है. Read More>>


सबब तो है सबक नहीं

बीते साल की भयावह आपदा और उससे हुई अकल्पनीय क्षति के बाद उत्तराखंड सरकार ने दावे तो बहुत किए मगर एक साल बाद हाल बड़ी हद तक वही ढाक के तीन पात जैसा दिखता है

IMG_0403केदारघाटी समेत उत्तराखंड के तमाम पर्वतीय इलाकों में बीते साल जो प्राकृतिक आपदा आई थी उसके असर की भयावहता के लिए आपदा प्रबंधन तंत्र को भी काफी हद तक जिम्मेदार माना गया था. इसने संकट को भांपने में शुरुआती चूक तो की ही, बचाव और राहत के मोर्चे पर भी यह बुरी तरह पस्त पड़ गया था. इस भयानक आपदा को हुए अब साल भर होने को है. केदारनाथ सहित उत्तराखंड के चारों धामों की यात्रा शुरू होने वाली है. इसलिए सरकार और खास तौर पर उसके आपदा प्रबंधन तंत्र की तैयारियों की तरफ निगाहें टिकना स्वाभाविक है. उम्मीद की जा रही है कि इतनी बड़ी आपदा से सबक सीखकर प्रदेश सरकार का आपदा प्रबंधन विभाग अब पहले से बेहतर तरीके से तैयार होगा.

लेकिन सरकार ने जो कदम उठाए हैं उन्हें देखते हुए यह उम्मीद धुंधली पड़ने लगती है. बेशक अब तक सरकार ने आपदा से निपटने को लेकर फौरी तौर पर बहुत सारी अस्थाई व्यवस्थाएं बना ली हैं, लेकिन जिन स्थाई और दूरगामी उपायों की सबसे अधिक जरूरत पिछली आपदा से भी पहले से बताई जा रही थी, उनको लेकर न तो अभी कोई शुरुआत ही हो सकी है और न ही निकट भविष्य में ऐसी कोई संभावना नजर आती है. जानकारों का मानना है कि पिछली आपदा से सबक लेने की बात कहते हुए अब तक जितने भी नए कदम उठाए गए हैं, उनमें से अधिकांश ऐसे हैं जिनसे यात्रा की कामचलाऊ व्यवस्था तो हो सकती है, लेकिन दूरगामी नजरिए से उनकी सफलता को लेकर ठोस दावे नहीं किए जा सकते. Read More>>