
आगे क्या? दिल्ली विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक प्रदर्शन के बाद आम आदमी पार्टी (आप) को लेकर सभी के मन में यही सवाल है. पार्टी कहती है कि वह लोकसभा और देश के दूसरे राज्यों की विधानसभा के लिए चुनावी किस्मत आजमाने को तैयार है. वह तमाम मंचों से ईमानदार लोगों को एक मंच पर लाने यानी उन्हें खुद से जोड़ने की बात कह रही है. पार्टी नेता अजीत झा कहते हैं, ‘हम चाहते हैं कि जो लोग भी वर्तमान व्यवस्था से त्रस्त हंै और इसे बदलना चाहते हैं वे हमसे जुड़ें. ’ इसी योजना के तहत पार्टी ने हरियाणा की कांग्रेस सरकार की आंखों की किरकिरी बन चुके आईएएस अफसर अशोक खेमका को पार्टी से जुड़ने का आमंत्रण भेजा. दूसरी तरफ यूपी में रेत माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई करने और उसके कारण राज्य की सपा सरकार से नाराजगी मोल लेकर चर्चा में आई दुर्गाशक्ति नागपाल से भी पार्टी ने जुड़ने की अपील की है.
आप से जुड़े लोगों के मुताबिक पार्टी लोकसभा चुनावों को देखते हुए देश भर से लोगों को आप से जोड़ने के लिए प्रचार अभियान चलाएगी. वह उद्योगपति, शिक्षाविद, युवा, महिलाएं और सामाजिक कार्यकर्ताओं से लेकर हर तबके के साफ-सुथरी छवि वाले लोगों का समर्थन हासिल करने की कोशिश करेगी. पार्टी नेता गोपाल राय बताते हैं कि पार्टी पूरे देश में अलग-अलग जनसमूहों और जनसंघर्षों को अपने से जोड़ने का प्रयास करेगी. आगामी चुनावी योजनाओं के बारे में आप से जुड़े अंकित लाल कहते हैं, ‘अभी पार्टी लोकसभा की 200-250 शहरी और अर्द्धशहरी सीटों पर चुनाव लड़ने के बारे में पार्टी सोच रही है. वहीं विधानसभा के लिए हरियाणा और महाराष्ट्र पर उसकी नजर है.
वैसे पार्टी कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक चुनावी बिगुल फूंकने का दम भर रही है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या वह दिल्ली वाली सफलता देश के दूसरे राज्यों में दोहरा पाएगी.
दिल्ली में पार्टी ने डोर टू डोर कैंपेन और सोशल मीडिया का जमकर प्रयोग किया. राज्य की लगभग हर सीट पर अरविंद केजरीवाल ने जाकर खुद चुनाव प्रचार किया. पार्टी ने दिल्ली चुनाव में 20 करोड़ रु खर्च किए. दिल्ली में यह प्रयोग सफल रहा.
लेकिन जानकार मानते हैं कि दिल्ली एक छोटा प्रदेश है. एक शहर जिसकी आबादी बेहद सीमित है. सामाजिक, सांस्कृतिक, भौगौलिक, भाषाई आदि रूप से वह उतना विविध नहीं है जितने देश के कई राज्य हंै. ऐसे में पार्टी भविष्य में यूपी, एमपी, बिहार, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश आदि राज्यों में कैसे काम करेगी यह देखने वाली बात होगी. जिस देश में लगभग हर राज्य अपने आप में एक अलग देश जितनी विविधता लिए हो वहां पूरे देश में खुद को चुनावी रूप से क्या आप स्थापित कर पाएगी ? वरिष्ठ पत्रकार दिलीप पड़गांवकर कहते हैं, ‘यह बहुत मुश्किल है. आप को देश की विविधता को ध्यान में रखकर खुद को तैयार करना होगा. अभी जो उसका स्वरुप है वो बेहद सीमित है.’
उनकी बात को आगे बढाते हुए जनसत्ता के संपादक ओम थानवी कहते हैं, ‘आप के पास लक्ष्य तो है, कार्यक्रम भी दिख रहा है लेकिन उसमें विचारधारा का अभाव है. दिल्ली के बाहर अगर उसे पहुंचना है तो इस दिशा में उसे काम करना होगा.’
ये देखना दिलचस्प होगा कि देश के विभिन्न हिस्सों में होने वाली वोट बैंक की राजनीति जिसमें जातिवाद, धर्मवाद, क्षेत्रवाद जैसी चीजें बेहद मजबूत रूप ले चुकी हैं, उससे आप कैसे निपटेगी. क्या देश की बाकी जनता सिर्फ भ्रष्टाचार के नाम पर आप को वोट देगी? क्षेत्रीय, जातीय, धार्मिक आदि प्रश्नों को पीछे रखकर किस तरह आप विभिन्न राज्यों में अपना स्थान बनाएगी ?