अगर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं बने तो…

लेकिन क्या संघ और भाजपा के नेता इसके लिए तैयार होंगे? बोस कहते हैं, संघ तो इनके नाम पर तैयार नहीं होगा हालांकि भाजपा के नेता मजबूरन उनके कद के कारण दबाव में साथ देते नजर आएंगे.

संघ
मोदी को लेकर संघ में शुरु से ही एक तबका ऐसा था जो उन्हें प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी बनाने के खिलाफ था. मोदी की खिलाफत करने वाले इस तबके की संघ में अच्छी खासी तादाद है. मोदी का विरोध करने वाले इस वर्ग का मानना था कि मोदी ने गुजरात में 12 साल के अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में संघ को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया. मोदी के कार्यकाल में संघ के कार्यकर्ताओं पर गुजरात पुलिस ने खूब लाठियां भांजी, किसी तरह की सुविधा उन्हें स्वंयसेवक रहे मुख्यमंत्री के कार्यकाल में नहीं मिली और संघ की विचारधारा के खिलाफ जाते हुए न सिर्फ मोदी ने पूरी सत्ता अपने हाथों में ले ली बल्कि संगठन से भी वे बड़े हो गए. ऐसा व्यक्ति अगर प्रधानमंत्री बनता है तो वह संघ के साथ पूरे देश में वही दोहराएगा जो उसने गुजरात में किया है. इस तबके के विरोध के बावजूद पॉपुलर मूड को भांपते हुए संघ ने मोदी को पीएम पद का प्रत्याशी बनाने के लिए हरी झंडी दे दी.

अब ऐसी स्थिति में अगर 16 मई को परिणाम आने के बाद मोदी पीएम नहीं बन  पाते हैं तो इसका संघ पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?

शरत कहते हैं, ‘ ये तो साफ है कि मोदी को संघ नापसंद करता है. ऐसे में मोदी के पीएम न बनने पर उसे किसी तरह का कष्ट नहीं होगा.’

संघ के नेता और पांचजन्य के पूर्व संपादक बदलेव शर्मा कहते हैं, ‘संघ पर इस बात का रत्तीभर भी कोई असर नहीं पड़ेगा कि मोदी पीएम बनते हैं या नहीं. या भाजपा की सरकार आती है या नहीं. संघ सत्ता से संचालित नहीं होता है. संघ के काम पर कोई असर नहीं होगा. संघ पिछले 80 सालों से काम कर रहा है. इतने वर्षों में तो विरोधी ताकतें ही सत्ता पर काबिज रही हैं. ’

हालांकि सूत्र बताते हैं कि मोदी के रेस से बाहर होने की स्थिति में संघ राजनाथ सिंह या नितिन गड़करी का नाम आगे बढ़ा  सकता है.

फोटोः विकास कुमार
फोटोः विकास कुमार

मोदी समर्थक भाजपा कार्यकर्ता
वे भाजपा के कार्यकर्ता ही थे जिनके दबाव में पार्टी को मोदी को प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी बनाना पड़ा. मोदी के प्रत्याशी घोषित होने के बाद से अभी तक भाजपा कार्यकर्ताओं की सक्रियता चरम पर है. सोशल मीडिया से लेकर जमीन पर फैले ये कार्यकर्ता ही मोदी की असली ताकत हैं. ऐसे में अगर ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है कि मोदी पीएम नहीं बन पाएंगे तो इस पर इन कार्यकर्ताओं-समर्थकों की क्या प्रतिक्रिया होगी.

भाजपा कार्यकर्ता और मोदी चालीसा लिखने वाले मेरठ के रमेश जायसवाल कहते हैं, ‘हम तो इसकी कल्पना ही नहीं कर सकते. ऐसा हुआ तो लोग पागल हो जाएंगे. मोदी के अलावा किसी और को प्रधानमंत्री बनाया तो कार्यकर्ता बगावत कर देंगे. हम कार्यकर्ता किसी और को पीएम नहीं बनने देंगे. आप मेरी बात मानिए पार्टी टूट जाएगी. लोग प्रत्याशियों को नहीं बल्कि मोदी को वोट कर रहे हैं. ऐसे में इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है. मोदी के अलावा किसी और को कार्यकर्ता स्वीकार नहीं करेगा.’

शरत कहते हैं, ‘ये सही ही है कि कार्यकर्ताओं में मोदी को लेकर भाव है लेकिन एक सीमा के बाद कार्यकर्ता की चलती नहीं है. अगर ऊपर बैठे लोग निर्णय कर लेंगे तो बेचारे कार्यकर्ता के पास उसे मानने के अलावा कोई और चारा नहीं होगा.’

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग)
मोदी के प्रधानमंत्री नहीं बनने का राजग पर क्या प्रभाव पड़ेगा ? क्या उसका विस्तार होगा ? क्या  और पार्टियां भाजपा से जुडेंगी?  क्या वे पार्टियां राजग में वापस आएंगी जो मोदी के कारण उससे दूर जा चुकी हैं?  क्या ममता और नीतीश मोदी के सीन से बाहर होने की स्थिति में फिर से राजग का दामन थाम सकते हैं?

जानकार इस बात को स्वीकार करते हैं कि मोदी के सीन से बाहर होने की स्थिति में एनडीए के पुराने साथी भाजपा के प्रति जरूर कुछ नरमी बरत सकते हैं. शरत प्रधान कहते हैं, ‘इसकी पूरी संभावना है कि मोदी के फ्रेम से बाहर होने की स्थिति में एनडीए से बाहर चल रहे दल उसकी तरफ फिर से हाथ बढ़ाएं. ऐसे में एनडीए के विस्तार होने और उसके फिर से मजबूत होने की संभावना बनती है.’

हालांकि जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के वरिष्ठ नेता और प्रवक्ता केसी त्यागी ऐसी किसी भी संभावना से इंकार करते हैं. वे कहते हैं, ‘अटल बिहारी वाजपेयी और जॉर्ज फर्नाडिंस के बीच जो लिखित समझौता हुआ था वो खत्म हो गया है. भाजपा ने अपने घोषणापत्र में इस बार राममंदिर, धारा 370 और समान नागरिक संहिता को शामिल किया है. पूरे चुनाव को भाजपा ने सांप्रदायिक बना दिया है. इस भाजपा से हमारा कोई रिश्ता नहीं हो सकता. ’

लेकिन अगर भाजपा मोदी की जगह किसी और को पीएम बनाने की बात करती है तो क्या जदयू उसका समर्थन करेगी? त्यागी कहते हैं, ‘हम किसी भी सूरत में भाजपा को सपोर्ट नहीं करेंगे. सिर्फ मोदी ही नहीं हमें लगता है कि पूरी भाजपा अब सांप्रदायिक हो चुकी है. ऐसे में चुनाव परिणाम आने के बाद पार्टी किसी को आगे करे, हम उसका समर्थन नहीं करेंगे. चाहें वो राजनाथ सिंह हों या फिर लालकृष्ण आडवाणी’

फोटोः एएफपी
फोटोः एएफपी

अर्थव्यवस्था
नरेंद्र मोदी के प्रति व्यापार जगत की दीवानगी किसी से छिपी नहीं है. जब भाजपा में मोदी की पहचान गुजरात के मुख्यमंत्री तक ही सीमित थी और उनको राष्ट्रीय स्तर पर लाने की कोई सुगबुगाहट तक नहीं थी, तभी देश के प्रमुख उद्योगपतियों ने उन्हें भारत के लिए जरूरी घोषित कर दिया था. रतन टाटा, अंबानी बंधु, अडानी, नारायणमूर्ति से लेकर न जाने कितने छोटे-बड़े उद्योगपति हैं जिन्होंने मोदी के गुजरात में किए गए काम की न खूब न प्रशंसा की बल्कि उसे भारत के लिए मॉडल भी बताया. उद्योगपतियों की तरफ से कहा गया कि मोदी को भारत का प्रधानमंत्री होना चाहिए. ऐसा होने पर जिस तरह का विकास उन्होंने गुजरात में किया है, जिस तरह से उद्योग-धंधे गुजरात में दिन दूनी, रात चौगुनी तरक्की कर रहे हैं, वैसा ही पूरे देश में होगा. यह भी कहा जा सकता है कि मोदी को पहले पीएम के तौर पर प्रोजेक्ट करने का काम उद्योगपतियों ने ही किया.

हाल के महीनों में चुनावी सर्वेक्षणों में भाजपा की जीत और मोदी के प्रधानमंत्री बनने की संभावनाएं चरम पर पहुंच जाने के बाद भारतीय बाजार भी अपने चमक के सबसे ऊपरी पायदान पर है.

पिछले छह महीनों में भारत में विदेशी संस्थागत निवेश एक लाख 16 हजार करोड़ पहुंच चुका है. वहीं पिछले 23 अप्रैल को सेंसेक्स ने भी अपने इतिहास की सबसे ऊंची छलांग लगाई और 22913 के आंकड़े को छू लिया. निफ्टी भी 6862 के ऐतिहासिक ऊंचाई को छू पाने में सफल रहा.

मार्केट के कई जानकारों का ऐसा मानना है कि शेयर बाजार और निवेश की यह गुलाबी तस्वीर सिर्फ इस कारण से है कि मार्केट को पक्का विश्वास है कि मोदी 16 मई के बाद पीएम बनने वाले हैं. इस उम्मीद के कारण ही बाजार इस तरह बेहतर प्रदर्शन कर रहा है.

ऐसे में प्रश्न उठता है कि अगर मोदी प्रधानमंत्री नहीं बन पाते हैं तो फिर बाजार की इस गुलाबी तस्वीर का रंग क्या होगा ?

बाजार के जानकार अभय शाह कहते हैं, ‘ देखिए मोदी के आने की उम्मीद में ही बाजार लहलहाता हुआ दिखाई दे रहा है. हालांकि जमीन पर कुछ हुआ नहीं है लेकिन सेंसेक्स, जो अर्थव्यवस्था का दर्पण होता है, बता रहा है कि मोदी के आने का अर्थतंत्र कितना बेसब्री से इंतजार कर रहा है. अगर किसी कारण से मोदी नहीं आ पाते हैं तो बाजार का चेहरा फिर से पीला पड़ जाएगा. अर्थव्यस्था के रिवाइवल की जो उम्मीद जगी थी वो खत्म हो जाएगी.’

बाजार को जानने वाले लोग बताते हैं कि मोदी के पीएम न बनने की स्थिति में कुछ समय तक सेंसेक्स आदि में भारी गिरावट देखी जाएगी. जैसे सेंसेक्स जो 22913 तक पहुंचा है वह 17 हजार पर आ सकता है. मोदी के पीएम न बनने की खबर पर बाजार बेहद नाकारात्मक प्रतिक्रिया देगा. बाजार को थोड़े समय के लिए गंभीर झटका लगेगा क्योंकि वह यह मान कर बैठा है कि अच्छे दिन आने वाले हैं क्योंकि मोदी आने वाले हैं. ’

शाह कहते हैं, ‘ मोदी की सरकार नहीं बनने की स्थिति में काफी कुछ इस बात पर भी निर्भर करेगा कि फिर किसकी सरकार बनती है. अगर तीसरा मोर्चा आया जिसमें 10 प्रधानमंत्री के दावेदार होंगे या फिर कांग्रेस आई तो फिर बाजार गर्त में चला जाएगा.’

लेकिन अगर मोदी की जगह भाजपा का ही कोई और पीएम बनता है तब की स्थिति में क्या होगा?

इस सवाल का जवाब देते हुए अर्थशास्त्री भरत झुनझुनवाला कहते हैं, ‘ बाजार के गुलजार होने का कारण सिर्फ मोदी नहीं है. इसका बड़ा कारण सत्ता परिवर्तन की संभावना है. ऐसे में अगर मोदी पीएम नहीं बनते हैं और भाजपा से कोई और प्रधानमंत्री बनता है, तो उस स्थिति में भी बाजार की चमक बनी रहेगी. मोदी के न होने का कोई खास असर नहीं होगा. बाजार को एक स्थाई और प्रो मार्केट वाली सरकार चाहिए.

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