आगामी विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत की क्या संभावनाएं देखती हैं?
कांग्रेस राज्य में सरकार बनाने के लिए तैयार है. जीत के लिए अच्छी संभावनाएं दिख रही हैं. पिछले चुनावों में भी करीब 20 विधानसभा क्षेत्रों में जीत का मार्जिन बहुत कम था. हम पंजाब चुनावों के इतिहास में सबसे सशक्त विपक्ष के रूप में सामने आए हैं. नौ साल तक सही से शासन न चलाने से अकाली दल की पोल खुल चुकी है. जनता उनसे निराश हो चुकी है. वे कृषि, बेरोजगारी, ड्रग्स और सबसे जरूरी कानून और व्यवस्था से जुड़े मुद्दों पर कुछ नहीं कर पाए. अनाज की खरीद-फरोख्त तो दूसरा मसला है.
कांग्रेस किसानों के लिए और उनके साथ हमेशा खड़ी रही है, वहीं जो लोग (बादल परिवार) किसानों का हितैषी होने का दावा करते थे, 1200 करोड़ रुपये के अनाज घोटाले के बाद उनकी भी असलियत सामने आ चुकी है. शिरोमणि अकाली दल व्यवस्थाओं में सुधार करने के बजाय अपनी सफाई पेश करने के लिए विज्ञापनों में फिजूलखर्च कर रहा है. वे क्या साबित करना चाहते हैं? क्या इतनी मात्रा में अनाज के गायब होने के बारे में रिजर्व बैंक झूठ बोल रहा है? या भारतीय स्टेट बैंक का पंजाब सरकार को दिए गए लोन को नॉन-परफॉर्मिंग एसेट की श्रेणी में डालना गलत है? सरकार किसे बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रही है? उन्हें समझना होगा कि जनता समझदार हो रही है और पहले की तरह वो इनके जाल में नहीं फंसेगी. पंजाब में परिवर्तन का एकमात्र विकल्प कांग्रेस है.
क्या आप मानती हैं कि अन्य राज्यों के चुनावों में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन का पंजाब में कोई असर होगा?
पंजाब एक सीमावर्ती राज्य है और यहां मुद्दे बाकी राज्यों से काफी अलग हैं. हमारी यहां अच्छी पकड़ है. इसका अंदाजा हमारी रैलियों को मिलने वाली प्रतिक्रियाओं से लगाया जा सकता है. बल्कि अगर मैं कहूं कि पंजाब के परिणाम राष्ट्रीय स्तर पर बदलाव लाएंगे, वो सही होगा. पंजाब चुनाव कांग्रेस के लिए गेम चेंजर साबित होंगे.
बड़ी चुनौती कौन है, अकाली दल या आम आदमी पार्टी?
मुझे तो कहीं भी कोई चुनौती नहीं दिखती. अगर शिरोमणि अकाली दल-भाजपा गठबंधन पंजाब में बेनकाब हो चुका है तो दिल्ली में आप की पोल खुल चुकी है. मुझे कोई एक सार्थक परिवर्तन बताइए जो आप सरकार दिल्ली में लाई हो. लोग इन्हें कभी माफ नहीं करेंगे कि ये कैसे अन्ना हजारे आंदोलन से एक राजनीतिक दल बनकर खड़े हुए थे और अब क्या कर रहे हैं. क्या अब भी इनकी वही विचारधारा है?
माना जाता है कि कांग्रेस में अंदरूनी कलह है.
यहां मैं ‘अंदरूनी कलह’ शब्द नहीं बल्कि ‘लोकतंत्र’ कहना चाहूंगी. ये किसी एक परिवार या एक व्यक्ति द्वारा चलाई जा रही पार्टी नहीं है जैसे अकाली दल में बादल हैं, आप में केजरीवाल या भाजपा में मोदी. हमारे पास बड़े नेता हैं जिन्होंने आड़े वक्त में खुद को साबित किया है. हम सबका अपना दृष्टिकोण है और यही लोकतंत्र है. अगर हमारे बीच कोई मतभेद रहा है, तो आपसी समझ से हम इसे समय-समय पर सुलझाते रहे हैं. इस समय पूरी पंजाब कांग्रेस एक साथ है और कहीं भी कोई मतभेद नहीं है. हमारा एकमात्र उद्देश्य राज्य से भ्रष्टाचार और वंशगत राजनीति को खत्म करना है.
पूर्व में आप कैप्टन अमरिंदर का विरोध कर चुकी हैं और इस बार आपने उनका पक्ष लिया.
हां, मैं चाहती हूं कि अमरिंदर सिंह ही इस बार प्रतिनिधित्व करें. वे पार्टी के बड़े नेता हैं उन्हें क्यों आगे नहीं आना चाहिए? जैसा मैंने आपसे पहले भी कहा कि विभिन्न मुद्दों पर हमारी राय अलग हो सकती है पर हम एक-दूसरे की बात का सम्मान करते हैं.
ऐसा भी सुना जाता है कि पार्टी हाईकमान के प्रभुत्व के चलते कैप्टन अमरिंदर सिंह को भी स्वतंत्र रूप से फैसले लेने का अधिकार नहीं है.
कांग्रेस एक राष्ट्रीय दल है. और ये तो सभी जानते हैं कि प्रदेश इकाइयां हमेशा हाईकमान के साथ मिलकर काम करती हैं. साथ ही, पार्टी हाईकमान यह भी सुनिश्चित करता है कि जिस भी व्यक्ति को जिम्मेदारियां दी जाएं, उसे रणनीतियों को लागू करने और अपने हिसाब से काम करने की आजादी भी मिले क्योंकि स्थानीय नेता ही राज्य और वोटरों की नब्ज जानता है. और फिर किसी महत्वपूर्ण फैसले में राष्ट्रीय नेतृत्व से मार्गदर्शन लेना तो प्रादेशिक इकाइयों के हित में भी होगा.
अकाली दल लंबी अवधि से सत्ता में है जिसका अर्थ है अकूत धन. पिछले कुछ सालों में उन्होंने हर तरफ से पैसा कमाया है. वे निश्चय ही सरकारी इकाइयों का अपने हित में इस्तेमाल करेंगे जैसा उन्होंने पहले भी किया है. यहां वोटरों को भी जागरूक होना पड़ेगा कि वे वादों और पैसों के लालच में न आएं
आगामी चुनावों के लिए बनी पार्टी की कार्यकारी समिति में 36 उपाध्यक्ष और 96 महासचिव हैं. क्या ये समिति छोटी नहीं होनी चाहिए थी?
मेरे ख्याल से ये फैसला पार्टी के हित को ध्यान में रखकर लिया गया है.
इस चुनावी अभियान में कांग्रेस का फोकस किस पर रहेगा, अकाली दल के कार्यकाल में हुए भ्रष्टाचार पर या रोजगार उपलब्ध कराने और विकास की रफ्तार बढ़ाने पर?
हम सभी मुद्दों पर काम करेंगे पर प्रमुख एजेंडा विकास ही है. हालांकि जब भी चुनाव आते हैं, अकाली दल पंथ की बात करके समुदायों को बांटने की कोशिश करता है पर जनता इस बंटवारे की राजनीति से आजिज आ चुकी है. वैसे हमें अकालियों की सच्चाई उनके काले कारनामों के जरिए सामने लानी होगी. बेरोजगारी भी एक बड़ा मुद्दा है जिससे राज्य जूझ रहा है. हम राज्य में निवेश लाकर रोजगार उत्पन्न करने के बारे में दृढ़ हैं.
चुनावों में ‘एनआरआई’ फैक्टर कितना जरूरी है? क्या प्रवासी भारतीयों को लुभाने में समय और मेहनत लगाना सही है?
प्रवासियों को सिर्फ वोट बैंक के नजरिये से देखना सही नहीं है. वे इसी जमीन के बेटे-बेटियां हैं. इस जमीन से उनकी भावनाएं जुड़ी हैं, जो कभी नहीं बदलेंगी. उनके भी सरकार से जुड़े कुछ मुद्दे हैं और चुनावी प्रक्रिया में भाग लेकर प्रवासी भारतीय बदलाव ला सकते हैं.
ऐसा कहा जा रहा है कि ‘आप’ ने पंजाब के गांवों में अपनी पैठ बना ली है.
ये तो वक्त ही बताएगा. दिल्ली में आप के खराब शासन को तो हम देख ही रहे हैं. क्या आपको लगता है कि यहां लोग वैसी ही गलती दोहराना चाहेंगे?
पर ‘आप’ का तो दावा है कि उन्होंने दिल्ली में बहुत कुछ किया है.
ऐसे खोखले दावों से उन्हें कुछ हासिल नहीं होगा.
सत्तारूढ़ दल के खिलाफ आपकी क्या रणनीति रहेगी?
इसमें चुनाव आयोग की बड़ी भूमिका हो सकती है. अकाली दल लंबी अवधि से सत्ता में है जिसका अर्थ है अकूत धन. पिछले कुछ सालों में उन्होंने हर तरफ से सिर्फ पैसा कमाया है. वे निश्चय ही सरकारी इकाइयों का अपने हित में इस्तेमाल करेंगे जैसा उन्होंने पहले भी किया है. यहां वोटरों को भी जागरूक होना पड़ेगा कि वे वादों और पैसों के लालच में न आएं.
क्या चुनावों से छह महीने पहले ही उम्मीदवारों की घोषणा करना (जैसा अमरिंदर सिंह ने किया है) फायदेमंद होगा?
हां, जनता के सामने ये साफ रहेगा कि उनका प्रतिनिधि कौन होगा. बाकी पार्टियों जैसा नहीं जहां सिर्फ पैसा चलता है और आखिर तक कोई तस्वीर साफ नहीं होती. मैं अमरिंदर सिंह के इस कदम की तारीफ करती हूं.
क्या आपको लगता है कि कांग्रेस के लिए बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ गठबंधन करना पार्टी के हित में होगा? बसपा को पिछली बार पांच फीसदी वोट मिले थे.
ये फैसला हम उचित समय आने पर करेंगे.