विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन

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फोटोः विकास कुमार

नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद एक संस्था बेहद तेजी से चर्चा में आई है. नाम है विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन (वीआईएफ). दिल्ली के चाणक्यपुरी इलाके में स्थित यह थिंक टैंक (विचार समूह) वैसे तो 2009 से ही सक्रिय था लेकिन इसके बारे में कहीं कोई खास चर्चा सुनाई नहीं देती थी. आज यह संस्थान राजनीतिक-प्रशासनिक गलियारों में चर्चा का केंद्र बना हुआ है. इस चर्चा के जन्म का कारण हैं तीन नियुक्तियां. वे तीन लोग जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी सरकार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए चुना है.

इनमें से एक हैं आईबी के पूर्व प्रमुख अजित डोवाल जिन्हें मोदी ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) बनाया है. डोवाल अनौपचारिक रूप से सरकार बनने के पहले ही सक्रिय हो गए थे. कहा जाता है कि सार्क प्रमुखों को मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में बुलाने का आईडिया उनका ही था. दूसरी नियुक्ति है ट्राई के पूर्व चेयरमैन नृपेंद्र मिश्रा की जिन्हें मोदी ने अपना प्रमुख सचिव बनाया है. नृपेंद्र मिश्रा की नियुक्ति में कानून आड़े आ रहा था जिसके मुताबिक ट्राई का चेयरमैन रह चुका व्यक्ति किसी सरकारी पद पर नहीं बैठ सकता. आड़े आ रहे कानून को मोदी ने पहले अध्यादेश लाकर और फिर कानून में ही बदलाव करके सीधा कर दिया. तीसरा नाम है पूर्व केंद्रीय कृषि सचिव पीके मिश्रा का जिन्हें मोदी ने एडिशनल प्रिंसिपल सेक्रेटरी बनाया है. इन तीनों लोगों में एक खास समानता है. ये तीनों विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन (वीआईएफ) से जुड़े रहे हैं. एनएसए बनने से पूर्व अजित डोवाल जहां वीआईएफ के निदेशक थे वहीं नृपेंद्र मिश्रा संस्था की कार्यकारिणी परिषद के सदस्य थे. पीके मिश्रा भी संस्था से बतौर सीनियर फैलो जुड़े हुए थे.

डोवाल के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनने के बाद पूर्व सेना प्रमुख जनरल एनसी विज को संस्था का निदेशक बनाया गया है. सूत्र बताते हैं कि विवेकानंद फाउंडेशन से और भी कई लोग सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर जानेवाले हैं. खबर है कि डीआरडीओ के पूर्व महानिदेशक वीके सारस्वत जो वीआईएफ में सेंटर फॉर साइंटिफिक एंड टेक्नोलॉजिकल स्टडीज के डीन हैं, मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार आर चिदंबरम की जगह ले सकते हैं. इसके अलावा रॉ के पूर्व प्रमुख सीडी सहाय, पूर्व शहरी विकास सचिव अनिल बैजल, रूस में भारत के राजदूत रह चुके प्रभात शुक्ला, पूर्व वायु सेना प्रमुख एसजी इनामदार और बीएसएफ के पूर्व प्रमुख प्रकाश सिंह भी उस सूची में शामिल हैं जो वीआईएफ से मोदी सरकार का सफर तय कर सकते हैं. प्रधानमंत्री बनने के बाद जिस पहली किताब ‘गेटिंग इंडिया बैक ऑन ट्रैक’ का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विमोचन किया उसके संपादकों में से एक बिबेक देबोरॉय वीआईएफ स्थित सेंटर फॉर इकोनॉमिक स्टडीज के डीन हैं.

दिल्ली के सत्ता गलियारों में यह कहा जाने लगा है कि सरकार के लिए वीआईएफ एक ऐसा नियुक्ति केंद्र बन गया है जहां मोदी के मनमाफिक लोगों की एक पूरी फौज है. सरकार की हर जरूरत का आइडिया और इंसान वीआईएफ में मौजूद है. ऐसे में मोदी सरकार में वीआईएफ से कैंपस प्लेसमेंट जारी रहने वाला है.

यहीं से यह प्रश्न खड़ा होता है कि ऐसा क्या है वीआईएफ में जिसने इसे मोदी का चहेता बना दिया है?  क्या काम करती है यह संस्था?  कौन लोग इससे जुड़े हैं?

वीआईएफ अजित डोवाल के दिमाग की उपज है. 2005 में आईबी प्रमुख के पद से रिटायर होने के बाद 2009 में डोवाल ने इसकी स्थापना की थी. इसका उद्घाटन उस साल दिसंबर माह में माता अमृतानंदमयी और न्यायमूर्ति एमएन वेंकटचलैया ने किया था. वीआईएफ कन्याकुमारी स्थित उस विवेकानंद केंद्र से संबद्ध है जिसकी स्थापना 1970  में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाहक एकनाथ रानाडे ने की थी. दिल्ली के चाणक्यपुरी इलाके में 1993 में तत्कालीन नरसिम्हा रॉव सरकार ने दिल्ली में भी इस संस्थान को जमीन आवंटित की थी. बाद में यहीं वीआईएफ की स्थापना हुई.

वीआईएफ की वेबसाइट पर फाउंडेशन का परिचय देते हुए लिखा है, ‘नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन (वीआईएफ) विवेकानंद केंद्र के तत्वावधान में भारत के अग्रणी सुरक्षा विशेषज्ञों, राजनयिकों, उद्योगपतियों और परोपकारियों के सामूहिक प्रयास से स्थापित किया गया है. वीआईएफ का उद्देश्य एक ऐसा उत्कृष्ट केंद्र बनना है जहां से नवीन विचारों और एक नई सोच के साथ एक मजबूत, सुरक्षित और समृद्ध भारत अपनी अंतरराष्ट्रीय भूमिका का सही से निर्वहन कर सके.’

संस्था अपने विजन और मिशन के बारे में बताते हुए लिखती हैं,  ‘वीआईएफ एक स्वतंत्र और निष्पक्ष संस्थान है जो गुणवत्तापूर्ण अनुसंधान और गहन अध्ययन को बढ़ावा देता है. इसका प्रयास है कि भारत के सभी प्रतिभाशाली लोगों को प्रमुख राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय विषयों पर गहनता से चर्चा करने के लिए एक मंच पर लाया जाए. इसका प्रयास ऐसी पहलों को बढ़ावा देना है जो शांति और वैश्विक सद्भाव को मजबूत करती हैं. संस्था का काम उन सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक गतिविधियों पर नजर बनाए रखना है जो भारत की एकता और अखंडता पर असर डाल सकती है…’

वीआईएफ के सलाहकार परिषद और कार्यपरिषद में शिक्षाविदों के साथ ही सेना के पूर्व प्रमुख, पूर्व राजदूत, विदेश सचिव, रॉ और आईबी से जुड़े सेवानिवृत अधिकारी, नौकरशाह एवं तमाम अन्य विभागों में बड़े पदों पर रह चुके पूर्व अधिकारियों की भरमार है.

संस्था के सलाहकार बोर्ड में पूर्व सेना प्रमुख वीएन शर्मा, रॉ के भूतपूर्व मुखिया एके वर्मा, बीएसएफ के पूर्व प्रमुख प्रकाश सिंह, पूर्व एयरचीफ मार्शल एस कृष्णास्वामी, पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल, एस गुरुमूर्ति, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बेंगलोर के प्रोफेसर आर वैद्यनाथन, पूर्व सेना प्रमुख शंकर रॉय चौधरी, पूर्व केंद्रीय मंत्री आरिफ मोहम्मद खान, पूर्व कैबिनेट सचिव प्रभात कुमार एवं जम्मू-कश्मीर के पूर्व गवर्नर एसके सिन्हा शामिल हैं.

कार्यकारिणी परिषद में पूर्व एयर मार्शल एसजी ईनामदार, अजित डोवाल, फ्रांस और जर्मनी में भारत सरकार के दूत रहे टीसीए रंगचारी, पूर्व गृह सचिव अनिल बैजल, पूर्व रॉ प्रमुख सीडी सहाय, पूर्व केंद्रीय सचिव धनेंद्र कुमार, पूर्व सेना प्रमुख एनसी विज, ट्राई के पूर्व चेयरमैन नृपेंद्र मिश्रा, विदेश मंत्रालय के पूर्व सचिव राजीव सीकरी जैसे नाम शामिल हैं.

संस्थान से जुड़े लोग बताते हैं कि फाउंडेशन प्रमुख रूप से आठ क्षेत्रों में काम करता है. इनमें राष्ट्रीय सुरक्षा और सामरिक अध्ययन, अंतरराष्ट्रीय संबंध/कूटनीति, तकनीकी और वैज्ञानिक अध्ययन, पड़ोस अध्ययन, गवर्नेंस और राजनीतिक अध्ययन, आर्थिक अध्ययन, ऐतिहासिक और सभ्यता अध्ययन तथा मीडिया स्टडीज जैसे क्षेत्र शामिल हैं.

जानकारों के मुताबिक वीआईएफ देश और विदेशों से तमाम स्कॉलर्स और विषय विशेषज्ञों को अपने यहां कॉंफ्रेंस और लेक्चर्स के लिए आमंत्रित करता है, दिल्ली स्थित राजनयिक समुदाय के सामने भारत का दृष्टिकोण रखता है और उनकी सोच को जानने का प्रयास करता है जिससे भारत के राजनीतिक, सामरिक, आर्थिक और सांस्कृतिक हितों को मजबूत किया जा सके. संस्थान सामयिक महत्व के मुद्दों पर नीति निर्माताओं के साथ संवाद करता है. वह नीति संबंधी सुझावों को सरकार के नुमाइंदों, सांसदों, न्यायपालिका के सदस्यों तथा शीर्ष संवैधानिक और सिविल सोसायटी के सदस्यों को भेजता है. संस्थान देश-विदेश के विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों, रिसर्च सेंटरों, भारतीय और विदेशी थिंक टैंकों समेत तमाम शैक्षणिक और अकादमिक इदारों से विचारों के आदान-प्रदान हेतु संबंध स्थापित करता है.

सलाहकार बोर्ड के सदस्य और खुफिया संस्था रॉ के पूर्व प्रमुख आनंद वर्मा कहते हैं, ‘इस संस्था ने पिछले पांच-छह सालों में शानदार काम किया है. यहां विभिन्न क्षेत्रों में बहुत उच्च स्तर की रिसर्च हुई हैं. अनगिनत राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय महत्व के सेमिनार यहां आयोजित हुए हैं. और इसने विश्व भर के विभिन्न थिंक टैंक्स के साथ संवाद किया है. दुनिया के तमाम देशों के उच्च अधिकारी यहां बातचीत के उद्देश्य से आते रहते हैं. इनमें गैर-सरकारी लोगों के साथ ही विभिन्न देशों की सरकारों में महत्वपूर्ण पदों पर मौजूद लोग भी शामिल हैं. चूंकि थिक टैंक के अपने कुछ नियम होते हैं इस कारण बहुत सी चर्चाओं को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता.’

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आरएसएस समर्थक माने जाने वाले इस फाउंडेशन से नरेंद्र मोदी का संबंध काफी पुराना है. सूत्र बताते हैं कि बतौर मुख्यमंत्री, मोदी इस संस्था से आर्थिक एवं अन्य मसलों पर लगातार सलाह करते रहते थे. यही नहीं उन्होंने दिल्ली कूच करने की जब सोची तो उसकी विस्तृत रूपरेखा इसी संस्था में बनाई गई. वीआईएफ से जुड़े एक सदस्य कहते हैं, ‘मोदी जी का प्रधानमंत्री बनना तय था. इसलिए हम लोग बहुत पहले से ही विदेश नीति, रक्षा नीति से लेकर आर्थिक नीति समेत तमाम विषयों पर काम शुरू कर चुके थे. चुनाव प्रचार के दौरान भी मोदी जी को संस्था की तरफ से विभिन्न मसलों पर तमाम इनपुट्स मुहैया कराए गए थे. यही नहीं असम, अरूणाचल, जम्मू आदि में चुनाव प्रचार से लेकर चुनाव के समय बौद्धिक मैनेजमेंट का एक बड़ा हिस्सा संस्था की तरफ से ही किया गया था.’

संस्थान से जुड़े लोग बताते हैं कि नरेंद्र मोदी संस्था के काम से बहुत पहले से ही प्रभावित हैं. मोदी ही नहीं बल्कि भाजपा और संघ के तमाम नेता समय-समय पर विभिन्न विषयों पर संस्था से सलाह मशविरा करते रहे हैं.

नरेंद्र मोदी और वीआईएफ के बीच किस तरह का संबंध है उसका पता इस बात से भी चलता है कि जब कांग्रेस पार्टी के नेतृत्ववाली पिछली सरकार ने इशरत जहां मुठभेड़ मामले में नरेंद्र मोदी को घेरना शुरू किया उस वक्त मोदी के बचाव में बेहद मजबूती से फाउंडेशन के निदेशक अजित डोवाल आए थे. डोवाल ने मोदी का बचाव करते हुए कहा कि इशरत लश्कर-ए-तैय्यबा की सदस्य थी और सरकार बेवजह इस मामले का राजनीतिकरण कर रही है.

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जो सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर जा सकते हैं

पूर्व डीजी (डीआरडीओ) वीके सारस्वत बतौर मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार आर चिदंबरम की जगह ले सकते हैं. रॉ के पूर्व प्रमुख सीडी सहाय, पूर्व शहरी विकास सचिव अनिल बैजल, रूस में भारत के राजदूत रहे प्रभात शुक्ला, पूर्व वायु सेना प्रमुख एसजी ईनामदार और बीएसएफ के पूर्व प्रमुख प्रकाश सिंह भी जल्द महत्वपूर्ण पदों पर जा सकते हैं.

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लोकसभा चुनावों के पहले अरविंद केजरीवाल ने नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए उन्हें भ्रष्ट ठहराया और कहा कि गुजरात में कोई विकास ही नहीं हुआ है, वहां सिर्फ उद्योगपतियों ने अपनी जेबें भरी हैं. इसके बाद ‘कंसर्नड सिटिजन्स’ नामक एक ग्रुप अपनी अपील के साथ सामने आया. उनकी अपील को भाजपा नेता विनय सहस्रबुद्धे ने भाजपा कार्यालय से जारी किया. अपील में कहा गया था कि मोदी पर  नए राजनीतिक दल का आरोप पूरी तरह निराधार है. यह दल और उसके नेता लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से काम कर रहा है. ‘कंसर्नड सिटिजन्स’ नामक ग्रुप में जो बारह लोग शामिल थे उनमें अजित डोवाल के अलावा लेखक और टिप्पणीकार एमवी कामथ, एमजे अकबर, जम्मू-कश्मीर के पूर्व गवर्नर एसके सिन्हा, पूर्व नौकरशाह एमएन बुच तथा अर्थशास्त्री बिबेक देबोरॉय शामिल थे. जाहिर सी बात है कि मोदी के बचाव के लिए यह काम वीआईएफ की कोशिशों का ही नतीजा था.

ये तो मोदी के व्यक्तिगत स्तर पर समर्थन और बचाव करने के उदाहरण हैं. वीआईएफ ने पिछले सालों में सबसे बड़ा काम यूपीए (कांग्रेस पढ़ें) सरकार के खिलाफ माहौल बनाने का किया है. यूपीए-2 के कार्यकाल में कांग्रेस पार्टी और सरकार के खिलाफ जो आक्रामक माहौल बना उसे तैयार करने में फाउंडेशन की भी एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है.

फाउंडेशन से जुड़े लोग बताते हैं कि 2011 में पूरे देश में भ्रष्ट्राचार विरोधी माहौल बनाने में वीआईएफ की एक महत्वपूर्ण भूमिका थी. संस्था के एक सदस्य कहते हैं, ‘अप्रैल 2011 में यहीं पर बाबा रामदेव के नेतृत्व में एक भ्रष्टाचार विरोधी मंच बनाने का निर्णय लिया गया था. इसकी प्लानिंग साल भर पहले से चल रही थी. फाउंडेशन ने केएन गोविंदाचार्य के राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के साथ मिलकर काला धन और भ्रष्टाचार पर एक अप्रैल से एक दो दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया था. उस कार्यक्रम में रामदेव के साथ अरविंद केजरीवाल और किरण बेदी भी शामिल हुए थे. सेमिनार के अंत में एक भ्रष्टाचार विरोधी मोर्चे का गठन किया गया. बाबा रामदेव उसके संरक्षक बने और गोविंदाचार्य संयोजक. मोर्चे के सदस्यों में अजित डोवाल, एनडीए सरकार में अमेरिका में भारत के ‘एम्बेस्डर-एट-लार्ज’ रहे भीष्म अग्निहोत्री, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बेंगलोर के प्रोफेसर आर वैद्यनाथन, पत्रकार और रामदेव के करीबी वेद प्रताप वैदिक तथा एस गुरुमूर्ति शामिल थे.’

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विवेकानंद फाउंडेशन के सदस्य

सलाहकार बोर्ड पूर्व सेना प्रमुख वीएन शर्मा, रॉ के भूतपूर्व मुखिया एके वर्मा, बीएसएफ के पूर्व प्रमुख प्रकाश सिंह, पूर्व एयरचीफ मार्शल एस कृष्णास्वामी, पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल, एस गुरुमूर्ति, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बेंगलोर के प्रोफेसर आर वैद्यनाथन, पूर्व सेना प्रमुख शंकर रॉय चौधरी, पूर्व केंद्रीय मंत्री आरिफ मोहम्मद खान, पूर्व कैबिनेट सचिव प्रभात कुमार एवं जम्मू-कश्मीर के पूर्व गवर्नर एसके सिन्हा आदि

कार्यकारिणी परिषद पूर्व एयर मार्शल एसजी ईनामदार, पूर्व आईबी प्रमुख अजित डोवाल, फ्रांस और जर्मनी में भारत सरकार के दूत रहे टीसीए रंगचारी, पूर्व गृह सचिव अनिल बैजल, पूर्व रॉ प्रमुख सीडी सहाय, पूर्व केंद्रीय सचिव धनेंद्र कुमार, लेखक एवं समकालीन अध्ययन के स्कॉलर डॉ. ए सूर्यप्रकाश, पूर्व सेना प्रमुख एनसी विज, पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल गौतम बैनर्जी, पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल आरके साहनी, ट्राई के पूर्व चेयरमैन नृपेंद्र मिश्रा, रूस में भारत के पूर्व राजदूत प्रभात शुक्ला, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व कार्यकारी उप कुलपति प्रोफेसर कपिल कपूर, विदेश मंत्रालय में पूर्व सचिव राजीव सीकरी आदि

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सेमिनार के अंत में जारी किये गए पत्र में बताया गया कि रामदेव ने ‘भ्रष्टाचार के खिलाफ चौतरफा युद्ध करने की घोषणा की है. और तत्काल ही यह मोर्चा लोगों के बीच जाएगा. और अन्य भ्रष्टाचार विरोधी संगठनों और व्यक्तियों तक पहुंचेगा.’ इसी दौरान गोविंदाचार्य ने रामदेव और अन्ना के बीच मीटिंग कराई. वीआईएफ का प्रयास था कि दोनों एक साथ मिलकर भ्रष्टाचार की लड़ाई को आगे बढ़ाएं. वीआईएफ में संपन्न हुए सेमिनार के तीन दिनों के बाद ही पांच अप्रैल से जंतर-मंतर पर अन्ना हजारे की पहली भूख हड़ताल शुरु हुई. अप्रैल के अंत में रामदेव ने भी चार जून से रामलीला मैदान में सरकार विरोधी आंदोलन की घोषणा कर दी.

सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस सरकार को घेरने की यह रणनीति भाजपा और संघ के इशारे पर वीआईएफ ने ही तैयार की थी. इसके तहत सामाजिक क्षेत्र में एक तरफ अन्ना हजारे और रामदेव ने सरकार पर हमला बोला तो दूसरी तरफ राजनीतिक स्तर पर भाजपा ने भ्रष्टाचार विरोधी आग में राजनीतिक घी डालने का काम किया. यही कारण है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को बार-बार संघ का एजेंडा बता रहे थे. दिग्विजय सिंह का कहना था कि कांग्रेस सरकार को टीम अन्ना और रामदेव द्वारा संघ और भाजपा के इशारे पर घेरा जा रहा है और इसकी रणनीति विवेकानंद फाउंडेशन में बनाई गई है. लेकिन भ्रष्टाचार आंदोलन के चरम पर, सरकार की उससे निपटने की अजीबो-गरीब कोशिशों और तरह-तरह की सीएजी रिपोर्टों के बीच दिग्विजय सिंह की बात किसी ने नहीं सुनी.

फाउंडेशन के ऊपर संघ का समर्थक होने और उसके लिए काम करने के आरोप और भी लोगों ने लगाए हैं. इसके एक नहीं अनेक कारण है. वीआईएफ में आरएसएस से जुड़े तमाम पदाधिकारियों का आना लगा रहता है. संघ प्रमुख मोहन भागवत, गोविंदाचार्य, गुरुमूर्ति, लालकृष्ण आडवाणी से लेकर संघ व भाजपा से जुड़े तमाम नेता फाउंडेशन की गतिविधियों में शामिल रहते हैं. हाल ही में पूर्व राजनयिक ओपी गुप्ता की किताब ‘डिफाइनिंग हिंदुत्व’ का विमोचन यहां आकर खुद संघ प्रमुख मोहन भागवत ने किया.

संस्था को संघी प्रतिष्ठान ठहराने वालों का तर्क है कि चूंकि फाउंडेशन विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी का हिस्सा है, जिसकी स्थापना एकनाथ रानाडे ने की थी, ऐसे में इसे संघ से अलग समझना नादानी होगी. संस्था के एक आलोचक कहते हैं, ‘वीआईएफ आरएसएस का प्रोजेक्ट है. वहां घुसते ही आपको एकनाथ रानाडे की तस्वीर दिखाई देगी. सारे दक्षिणपंथी रुझानवाले अधिकारी वहां भरे पड़े हैं. चूंकि ये लोग बौद्धिक जगत में हाशिए पर थे इसलिए इन्होंने अपना खुद का थिंक टैंक खोल लिया है. यह बौद्धिक जगत में अपनी स्वीकार्यता बनाने की छटपटाहट है. अगर ऐसा नहीं है तो फिर संघ प्रमुख का एक थिंक टैंक में क्या काम जो वो वहां हमेशा आते-जाते रहते हैं.’

वे कुछ लेखों का हवाला देते हैं ‘संस्थान से जुड़े सीनियर फेलो माखन लाल ने अपने एक लेख में वेंडी डोनिगर की किताब ‘द हिंदूज : एन ऑल्टरनेटिव हिस्ट्री’ पर उठे विवाद पर लिखा कि इस घटना से सूडो सेक्यूलरों और हिंदू विरोधियों को अपना पुराना खेल फिर से खेलने का मौका मिल गया है. जिसमें वे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर हिंदुओं की कटु आलोचना करते है. संस्था के ज्वाइंट डायरेक्टर प्रभात पी शुक्ला ने हाल ही में अपने एक लेख में लोकसभा चुनाव के परिणामों का विश्लेषण करते हुए लिखा है कि ये चुनावी प्रतिक्रिया पिछले कई दशकों से हिंदुओं के साथ हो रहे दुर्व्यवहार का नतीजा है. संस्था से ही जुड़े अनिर्बन गांगुली अपने रिसर्च पेपर ‘मैन एंड एनवायर्नमेंट इन इंडिया- पास्ट ट्रेडिशंस एंड प्रेजेंट चैलेंजेस’ में लिखा है कि कैसे हिंदू धर्म की ये आंतरिक विशेषता है कि वो पर्यावरण को लेकर सजग रहता है. इस परंपरा की चर्चा वेद और अर्थशास्त्र तक में मिलती है. ये दक्षिणपंथ का उदाहरण नहीं तो क्या है.’

संघ समर्थित होने के आरोप पर फाउंडेशन की पत्रिका विवेक के संपादक केजी सुरेश कहते हैं, ‘मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि क्यों इतनी निगेटिव रिपोर्टिंग हो रही है. लोगों ने ऐसा माहौल बनाया है मानो फाउंडेशन के अंदर सारे अधिकारी खाकी निकर पहन के बैठे रहते हैं. आरएसएस से फाउंडेशन को जोड़ना गलत है. हम पूरी तरह से अराजनीतिक हैं. न हमने बीजेपी से फंड लिया न आरएसएस से.’ संघ के करीब होने के सवाल पर आनंद वर्मा कहते हैं, ये थिंक टैंक पूरी तरह से गैर-राजनीतिक है. पूरी तरह सेक्यूलर है. आरएसएस से इसका कोई मतलब नहीं है. इसका अपना कोई एजेंडा नहीं है. इसका एकमात्र उद्देश्य है कैसे देश के सामने उपस्थित चुनौतियों का हल निकाला जाए.’

टाइम्स नाउ से जुड़े रक्षा विशेषक्ष मारूफ रजा जो संस्था के कई कार्यक्रमों में भाग लेते रहे हैं, मीडिया से बातचीत में कहते हैं, ‘ वैसे तो संघ के साथ वीआईएफ के संबंध की बातें दबी जुबान में होती रहती हैं लेकिन खुले तौर पर किसी तरह का दक्षिणपंथी रूझान सामने नहीं दिखता है. संस्था का काम बहुत बढ़िया है.’

संघ और फाउंडेशन में कोई संबंध न होने की चर्चा करते हुए वर्मा संघ की चर्चा शुरू कर देते हैं. वे कहते हैं, ‘देखिए मैं आरएसएस को उस दृष्टि से नहीं देखता जिस दृष्टि से कांग्रेस उसे देखती है. आरएसएस क्या गलत कर रहा है. वो तो हिंदू समाज को उसके गरिमापूर्ण स्थान पर वापस स्थापित करने का काम कर रहा है. जो इसे नहीं समझते संघ को गालियां देते हैं. वो पुराने सांस्कृतिक मूल्यों को दोबारा स्थापित कर रहा है. अच्छा काम कर रहा है. ’

वर्मा संघ को फाउंडेशन से जोड़ने की चर्चाओं को एक षड़यंत्र के रूप में देखते हैं. वो कहते हैं, ‘विवेकानंद ने जब शिकागो में अपना भाषण दिया तो उसकी पूरी दुनिया में चर्चा हुई. उस भाषण के बाद कुछ लोग उन पर ये आरोप लगाते हुए उनकी आलोचना करने लगे कि उन्होंने न्यू हिंदुइज्म की शुरूआत की है. उनके लिए विवेकानंद भी सेक्यूलर नहीं थे तो फिर दूसरा कौन होगा.’

कैसे वीआईएफ संघ-भाजपा समर्थित नहीं है, सही अर्थों में एक थिंक टैंक है इसकी चर्चा करते हुए सुरेश बताते हैं, ‘हम न भाजपा समर्थक हैं न कांग्रेस विरोधी. हम सही निर्णय का समर्थन करते हैं. यूपीए सरकार के दौरान देवयानी खोबरागड़े मामले पर हमने यूपीए सरकार का समर्थन किया था. ऐसे ही जब बांग्लादेश के साथ जमीन का मामला सामने आया तो हमने यूपीए सरकार को सपोर्ट किया. जबकि उस समय सदन में विपक्ष ने इसका विरोध किया था. ऐसे में हमें कांग्रेस विरोधी ठहराना गलत है. ये सही है कि उच्च स्तर पर बीजेपी और आरएसएस के लोग हमसे  विभिन्न विषयों पर इनपुट लेते हैं. लेकिन ये भी उतना ही सही है कि कांग्रेस के नेता भी हमारे सेमिनारों में भाग लेते हैं.’

फाउंडेशन के लोग बताते हैं कि कैसे भाजपा और संघ के अलावा अन्य पार्टियों और विचारधारा से जुड़े लोग भी संस्था के साथ जुड़े रहे हैं. वर्मा कहते हैं, ‘कुछ समय पहले ही कश्मीर के विषय पर हमने कॉंफ्रेंस का आयोजन किया था. पीडीपी के लोग उसमें आए थे. कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस के लोग भी थे. उन सभी ने बहस में हिस्सा लिया. कुछ समय पहले ही मौलाना महमूद मदनी भी वीआईएफ आए थे. पाकिस्तान में जमीयत उलमा-ए-इस्लाम के मुखिया मौलाना फजलुर रहमान यहां आ चुके हैं. दलाई लामा यहां कार्यक्रमों में भाग ले चुके हैं.’ फाउंडेशन से जुड़े एक सदस्य कहते हैं,, ‘यूपीए के कार्यकाल में भी पीएमओ से कई अधिकारी वीआईएफ द्वारा आयोजित विभिन्न सेमिनारों में आया करते थे. यहां तक कि पूर्व संस्कृति मंत्री कुमारी सैलजा खुद एक पुस्तक का विमोचन करने यहां आईं थीं.’

संस्था के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए वर्मा कहते हैं,  ‘बहुत सारे कामों के साथ ही जो एक बड़ा काम फाउंडेशन कर रहा है वो है हिंदुस्तान की सभ्यता, संस्कृति और आध्यात्म को सही रूप में सामने रखना. जिन किताबों से हमने पढ़ाई की है उन्होंने हमारे इतिहास को गलत तरीके से रखा है. हम आज ब्रिटिश और मैकाले द्वारा तैयार कराया गया इतिहास पढ़ते हैं. इनका उद्देश्य हम लोगों में हीन भावना पैदा करना और हमारे हिंदुस्तानी मूल्यों को नेस्तनाबूद करना था. हमें अपना सही इतिहास जानना है. इस दिशा में फाउंडेशन काम कर रहा है. 10-11 वाल्यूम में नए सिरे से भारत का इतिहास लिखा जा रहा है. जिसमें 5-6 वॉल्यूम तैयार हो चुके हैं.’

केजी सुरेश मीडिया से बातचीत में कहते हैं, ‘हमने पांच वाल्यूम में प्रचीन भारत का इतिहास पब्लिश किया है. इतिहास का राष्ट्रीयकरण करना ही होगा. वामपंथ राजनीतिक रूप से हाशिए पर चला गया है. अब वही उसके साथ बौद्धिक क्षेत्र में भी होने वाला है. अभी तक हम हाशिए पर थे, अब उनकी बारी है.’

फाउंडेशन के महत्व पर चर्चा करते हुए वर्मा कहते हैं, ‘इस संस्था का जन्म जरूरी था. स्थिति ये थी कि कोई भी जब हिंदुस्तानी संस्कृति की बात करता था तो अपने यहां वामपंथियों से भरा बुद्धिजीवी तबका उसे दक्षिणपंथी ठहराकर खारिज करने लगता था. उन्हें लगता था सामने वाला हिंदू धर्म का प्रचार कर रहा है. संस्कृति से जुड़ी हर चीज में वामपंथी इतिहासकारों को आरएसएस की साजिश नजर आती है.’

विभिन्न विभागों के अध्यक्षकंवल सिब्बल (पूर्व विदेश सचिव) डीन,
अंतरराष्ट्रीय संबंध और कूटनीति केन्द्र
सतीश चंद (पूर्व उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार) डीन, राष्ट्रीय सुरक्षा और सामरिक अध्ययन केंद्र
डॉ. बिबेक देबरॉय (अर्थशास्त्री और लेखक) – डीन, आर्थिक अध्ययन केंद्र
डॉ. दिलीप चक्रवर्ती (पूर्व प्रोफेसर, पुरातत्व विभाग, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय) डीन, ऐतिहासिक और सभ्यता अध्ययन केंद्र
डॉ. एम.एन. बुच (भारत सरकार के पूर्व सचिव) डीन, गवर्नेंस एवं राजनीतिक अध्ययन केंद्र
डॉ. वीके सारस्वत (डीआरडीओ के पूर्व डीजी) डीन, तकनीकी एवं वैज्ञानिक अध्ययन केंद्र

संस्था से जुड़े एक अन्य सदस्य कहते हैं, ‘देश में अधिकांश थिंक टैंक और अकादमिक संस्थानों पर वामपंथी सोच वालों का कब्जा हैं. ऐसे में वीआईएफ उन गैर-वामपंथी और राष्ट्रवादी सोच वाले लोगों के लिए एक प्लेटफॉर्म है जो बौद्धिक जगत में अभी तक अछूत समझे जाते थे.’

अजित डोवाल और नृपेंद्र मिश्रा के सरकार में जाने के बाद ऐसे लोगों कि तादाद कम नहीं है जो कहते हैं कि इन लोगों को मोदी सरकार में मिली बेहद महत्वपूर्ण भूमिका के पीछे संघ का ही हाथ है. वर्मा ऐसे किसी आरोप को कूड़ेदान में फेंकने की बात करते हुए कहते हैं, ‘मैं नौकरशाही को ऊपर से नीचे तक जानता हूं. मैं पूरी दृढ़ता के साथ ये कह सकता हूं कि इनकी टक्कर का आदमी पूरी सिविल सेवा में नहीं है.’ अजित डोवाल की चर्चा करते हुए वे कहते हैं, ‘जैसे कुछ लोग ये मानते हैं कि मोदी जैसा दूसरा कोई नहीं है वैसे मैं मानता हूं कि अजित जैसा कोई दूसरा नहीं हो सकता.’ लेकिन क्या संघ से उनकी नजदीकी नहीं है?  इस सवाल के जवाब में वर्मा कहते हैं, ‘ वो पूरी तरह से गैर-राजनीतिक व्यक्ति हैं. हां, व्यक्तिगत जीवन में उनकी सांस्कृतिक प्राथमिकता हो सकती है लेकिन सार्वजनिक जीवन में वो बेहद प्रोफेशनल व्यक्ति हैं.’

डोवाल, नृपेंद्र मिश्रा और पीके मिश्रा के मोदी सरकार में शामिल होने के बाद वीआईएफ राजनीतिक-राजनयिक-प्रशासनिक गलियारों में चर्चा का केंद्र बना हुआ है. संस्था की तरफ रुख करनेवालों की कतार लंबी होती जा रही है. संस्था से जुड़े लोग बताते हैं कि पिछले एक महीने में विदेश से चर्चा के लिए वीआईएफ आने वाले राजनयिकों एवं सरकारी और गैरसरकारी विशेषज्ञों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है. डोवाल का एनएसए के लिए नाम फाइनल होने के तीन दिन बाद ही दो चीनी प्रतिनिधिमंडल – जिनमें चीन के दक्षिण एशिया विशेषज्ञ शामिल थे – वीआईएफ आए थे. उसी दिन ब्रिटेन का 17 लोगों का एक प्रतिनिधिमंडल वीआईएफ आया जिसमें वहां के रॉयल कॉलेज ऑफ डिफेंस स्टडीज के कमांडेंट तथा पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल डेविड बिल भी थे. यूएस आर्मी वॉर कॉलेज का एक प्रतिनिधिमंडल भी यहां हाल ही में आया था जिसने नाभकीय हथियारों के विषय में यहां के रक्षा विशेषज्ञों से चर्चा की. कुछ समय पहले ही फ्रेंच एटॉमिक एनर्जी एजेंसी के विशेषज्ञ एवं फ्रांस के राजदूत ने भी यहां आकर सुरक्षा समेत विभिन्न मुद्दों पर बात की.

जहां तक संस्थान की फंडिग का सवाल है तो उसका बड़ा हिस्सा डोनेशन से आता है. वर्मा कहते हैं, ‘देश-विदेश से लोग इस संस्थान को अनुदान देते हैं. ये किसी सरकारी संस्था से अनुदान नहीं लेता है. हम और आप जैसे लोग इसे अनुदान देते हैं.’  साल 2013 में फाउंडेशन को एक करोड़ 49 लाख 56 हजार रुपये डोनेशन के तौर पर मिला.

जिस तरह से मोदी सरकार में वीआईएफ से जुड़े लोग महत्वपूर्ण पदों पर काबिज हो रहे हैं, चर्चाओं का बाजार गर्म है कि देश की विदेश, आर्थिक और सुरक्षा नीति समेत तमाम नीतियों को तय करने में फाउंडेशन की प्रमुख भूमिका रहनेवाली है.