हर धर्म में कुरीतियां होती हैं. भारत का एक धर्म क्रिकेट भी है. इस धर्म में भी एक कुरीति है- सट्टेबाजी. भारत क्रिकेट में सट्टेबाजी का विश्व का सबसे बड़ा बाजार है. सट्टेबाजी के इस शास्त्र ने भारतीय क्रिकेट को कई ऐसे जख्म दिए हैं जो कभी भरे नहीं जा सकते. सट्टेबाजी पर यूं तो देश में कानूनन रोक है. घुड़दौड़, रमी और लॉटरी को छोड़ दिया जाए तो सट्टा अवैध है. फिर भी यह भीतरखाने धड़ल्ले से जारी है. सरकारी मशीनरी इसकी रोकथाम में विफल रही है. इसलिए क्रिकेट पर पड़ते इसके दुष्प्रभावों को देख समय-समय पर क्रिकेट सट्टेबाजी को वैध करने की मांग उठती रही है. लेकिन पहली बार यह मांग कानूनी हलकों से बाहर आ रही है. देश के पूर्व प्रधान न्यायाधीश आरएम लोढ़ा ने क्रिकेट सुधार पर अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंप दी है. इस तीन सदस्यीय लोढ़ा समिति ने क्रिकेट सट्टेबाजी को कानूनी बनाने की सिफारिश की है. लोढ़ा समिति ने कहा है, ‘क्रिकेट पर सट्टा कानूनी होगा तो खेल भ्रष्टाचार मुक्त होगा. सट्टे पर कानूनी निगरानी होने से कालेधन पर लगाम लगेगी. पारदर्शिता आएगी. खेल से हवाला रैकेट का सफाया होगा. देश को कर के रूप में मोटा राजस्व भी मिलेगा.’
दोहा की संस्था अंतर्राष्ट्रीय खेल सुरक्षा केंद्र (आईसीएसएस) के मुताबिक भारत में अवैध सट्टेबाजी का बाजार करीब दस लाख करोड़ रुपये का है. भारत जिस एकदिवसीय मैच में खेलता है, उस पर दुनियाभर में लगभग 1320 करोड़ रुपयेे दांव पर लगते हैं. पिछले दिनों ईडी के हवाले से भी खबर आई थी कि भारत में यूके की बैटफेयर डॉट कॉम 2010 से सक्रिय है. यह क्रिकेट पर सट्टा लगवाती है. इस वेबसाइट पर भारत की दस लाख आईडी से लगभग 1.9 लाख करोड़ रुपये अवैध तौर पर भेजे गए हैं. इससे देश में क्रिकेट पर सट्टे का अर्थगणित समझा जा सकता है. कुछ मीडिया रिपोर्ट के अनुसार फिक्की भी मानता है कि क्रिकेट पर सट्टा वैध करने से भारत को सालाना 12 से 20 हजार करोड़ रुपयेे के राजस्व की प्राप्ति हो सकती है. इस मामले में ब्राजील का जिक्र करना जरूरी होगा. वहां फुटबाल के लिए ऐसी ही दीवानगी है जैसी भारत में क्रिकेट के लिए. वहां भी फुटबॉल पर सट्टा प्रतिबंधित है. लेकिन सरकार की डांवाडोल अर्थव्यवस्था को संभालने के विकल्प के तौर पर सट्टा वैध बनाने के प्रयास होते रहे हैं. इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि एक देश की पूरी अर्थव्यवस्था को संभालने की कूवत रखने वाले सट्टा बाजार में कितना पैसा हो सकता है.
क्रिकेट एक्सपर्ट आशीष शुक्ला कहते हैं, ‘सट्टा हम रोक नहीं पा रहे. यह गुप्त रूप से चलता रहेगा. अच्छा यही है कि इसे वैध कर दें. पर्दे के पीछे होने वाली चीजें फिर सामने तो आएंगी. यहां बहुत कालाधन है. लेकिन इससे मोटा राजस्व मिलेगा, इस पर शंका है. जो मोटा पैसा है वो 365 डॉट कॉम, बैटफेयर डॉट कॉम जैसी विदेशी वेबसाइटों पर ही जाएगा. क्योंकि बड़ा सट्टा कोई व्हाइट मनी से तो लगाएगा नहीं. ऐसा भी नहीं है कि पचास लाख लेकर दुकान पर पहुंच जाएं और कहें कि लगा दो मैच पर. बावजूद इसके कहूंगा कि यह एक सराहनीय पहल है. सट्टा समाज का हिस्सा बन चुका है इसे वैध करने में ही भलाई है.’
‘सट्टा मीठा जहर है. पहले आप छोटे दांव खेलकर जीतते हैं और फिर लालच में एक ही बड़े दांव में सब गंवा देते हैं. यह आपको पराश्रित कर देता है’
भारतीय क्रिकेटरों की बात करें तो वहां भी इस पर दो राय बनती दिख रही है. मनिंदर सिंह का कहना है, ‘कुछ सालों पहले मैंने भी देश में क्रिकेट सट्टा वैध करने की बात कही थी. फिर बाद में विचार आया कि वैध करने से भी कौन सा अवैध सट्टेबाजी रुक जाएगी. चेक से कौन सट्टा लगाना चाहेगा? बैंक से पैसा निकालकर कौन देगा? हम टैक्स चोरी में वैसे ही माहिर हैं. फिर सट्टा जीतने पर टैक्स चुकाना चाहेंगे? कोई व्यक्ति अपनी कमाई घर खर्च में दिखाना चाहेगा या जुए में? ऊपर से इस पैसे पर टैक्स भी ज्यादा लगता है.’
इसके परे अगर बात करें क्रिकेट सट्टे को देशभर में वैधता देने में आने वाली अड़चनों की तो इसे वैधता देना न तो बीसीसीआई के हाथ है और न ही सुप्रीम कोर्ट के. पब्लिक गैम्बलिंग एक्ट 1867 सट्टेबाजी पर प्रतिबंध लगाता है. सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला इसकी व्याख्या करते हुए खेलों को दो श्रेणी में बांटता है, कौशल वाले खेल (games of skills) और अवसर वाले खेल (games of Chance). कौशल वाले खेलों पर सट्टेबाजी की अनुमति है. फिलहाल घुड़दौड़ और रमी पर ही देश में सट्टा लगाया जाता है. इस लिहाज से तो क्रिकेट की दावेदारी मजबूत दिखती है, क्रिकेट में कौशल लगता है लेकिन सट्टा राज्यों का विषय है. कानून राज्य सरकारों को अधिकार देता है कि वे अपने यहां सट्टा या लॉटरी जैसी व्यवस्था को अनुमति दे या न दें. केरल, गोवा, सिक्किम और पंजाब सरकार ने ही वर्तमान में अपने यहां सट्टेबाजी को वैधता प्रदान कर रखी है. यहां रमी, घुड़दौड़ और लॉटरी पर सट्टे खेले जाते हैं लेकिन यहां पूरे देश में क्रिकेट सट्टे को वैधता देने की बात हो रही है. इसके लिए केंद्र सरकार की पहल जरूरी है. उसे गैम्बलिंग एक्ट पर पुनर्विचार करना होगा. पर इस मामले में पिछला अनुभव कड़वा रहा है. 2013 में जब आईपीएल सट्टेबाजी और स्पॉट फिक्सिंग कांड सामने आया था, तब भी यही मांग उठी. उस समय केंद्र में यूपीए की सरकार थी. कपिल सिब्बल कानून मंत्री थे. उन्होंने यह कहते हुए इस मांग को सिरे से खारिज कर दिया था कि इससे समाज पर दुष्प्रभाव पड़ेंगे. जनता बाद में इसके लिए सरकार को कोसती नजर आएगी. इस आधार पर कह सकते हैं कि वर्तमान सरकार भी इस पर शायद ही ऐसा कोई जोखिम उठाए. देश के कानून मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा ने ऐसे संकेत भी दे दिए हैं. इकोनॉमिक्स टाइम्स को दिए साक्षात्कार में उन्होंने कहा, ‘क्रिकेट पर सट्टेबाजी को वैध बनाने के बारे में तब सोचा जाए जब हम हर स्तर पर इसे रोक पाने में असमर्थ साबित हों. देश का वर्तमान कानून और सरकार सट्टेबाजी को खत्म करने में सक्षम है.’
आशीष शुक्ला कहते हैं, ‘पहली बात तो विधेयक ही आगे नहीं बढ़ेगा. इसका कड़ा विरोध किया जाएगा. कारण है कि सट्टेबाजी एक गुप्त रूप से चलने वाली गतिविधि है. समाज इसे इतनी आसानी से स्वीकार नहीं करेगा कि सब खुले में हो और सरकार जन भावना के खिलाफ जाएगी नहीं. यह कुछ-कुछ शराबबंदी वाली स्थिति है.’
सुप्रीम कोर्ट में वकील अशोक अग्रवाल कहते हैं, ‘सट्टा एक सामाजिक बुराई है. इसका अंत करने की जरूरत है न कि बढ़ावा देने की. इसने न जाने कितने ही घर बर्बाद किए हैं. ये एक बुरी लत बन जाती है.’
सोचा जाए तो बात सही भी जान पड़ती है. शेयर बाजार के वैध सट्टे में न जाने कितने ही लोग बर्बाद हो चुके हैं. कईयों ने तो स्वयं का जीवन ही समाप्त कर लिया. शेयर बाजार के एक सट्टा कारोबारी बताते हैं, ‘सट्टा मीठा जहर है. पहले आप छोटे-छोटे दांव खेलते हैं, जीतते हैं और फिर लालच में एक ही बड़े दांव में सब गंवा देते हैं. यह आपको एक तरह से पराश्रित कर देता है. आप काम पर ध्यान कम देते हैं. एक झटके में पैसा बनाने पर ज्यादा.
वर्तमान में कुछ ही देशों में खेलों पर सट्टेबाजी वैध है, इनमें यूके, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, अमेरिका के कुछ राज्य और यूरोप का कुछ भाग शामिल है. क्रिकेट पर सट्टेबाजी केवल यूके में होती है. अगर भारत में भी इसे मान्यता मिलती है तो लोगों का क्रिकेट देखने का नजरिया ही बदल जाएगा.
सट्टे की भाषा में कहा जाता है कि मैच की हर गेंद कीमत रखती है. क्रिकेट पर सट्टा वैध होने के बाद हर क्रिकेट प्रेमी हर गेंद की कीमत का आकलन करता नजर आएगा क्योंकि जिस देश में क्रिकेट धर्म हो, वहां इसके भक्त भला कैसे उससे जुड़े किसी उपक्रम से दूर रह सकते हैं.