जंग से तंग

Arvind Graphic

‘दिल्ली के साथ केंद्र जो सौतेला व्यवहार कर रहा है वो ठीक नहीं है. इसे रोकें. एक तरफ तो इनकम टैक्स और सेल्स टैक्स पर बैठ जाते हैं. इसका जायज शेयर नहीं देते. ऊपर से जब हम बस स्टॉप, बस डिपो या नए अस्पताल खोलने के लिए जमीन मांगते हैं तो कहतें हैं, 10 करोड़ रुपये प्रति एकड़ में ले लो. चार करोड़ रुपये प्रति एकड़ में ले लो. ये जो समस्या है वो बहुत गंभीर है. इसकी ओर ध्यान दिलाना जरूरी है. दिल्ली का हक मांग रहे हैं. दिल्ली के हक के लिए आवाज उठाते रहेंगे. हम कोई खैरात थोड़े मांग रहे हैं लेकिन कोई बात नहीं हम यह भी जानते हैं  कि न रहबर से मिलेगा न, रहगुजर से मिलेगा, ये हमारे पांव का कांटा है हम ही से निकलेगा’

25 जून की शाम आम आदमी पार्टी सरकार का पहला बजट पेश करते हुए दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने ये बातें विधानसभा में कहीं. साल 2015-16 के लिए 41,129 करोड़ रुपये के प्रावधान वाले बजट को पेश करते हुए सिसोदिया करीब एक घंटे तक सदन में बोले लेकिन उनके भाषण के कुछ शुरुआती मिनटों में ही यह साफ हो गया कि मौजूदा केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के बीच सब कुछ सामान्य नहीं है. देश में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच तल्खी और तनातनी कोई नई बात नहीं है. फिर दिल्ली में तो ऐसी तल्खी बेहद आम बात है, क्योंकि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा हासिल नहीं है. दिल्ली सरकार के इतिहास में पहले भी ऐसा कई बार हो चुका है जब मुख्यमंत्रियों ने इस बात की शिकायत की है कि पूर्ण राज्य का दर्जा न होने की वजह से वो जनता के लिए ठीक से काम नहीं कर पा रहे हैं. हमेशा से ऐसे आरोप-प्रत्यारोप के केंद्र में दिल्ली के उप राज्यपाल रहे हैं. हम यहां जिस विवाद की चर्चा कर रहे हैं उसके केंद्र में भी दिल्ली के उप राज्यपाल नजीब जंग हैं.

विवाद को लेकर उप राज्यपाल और मुख्यमंत्री राष्ट्रपति और गृहमंत्री से मिले व अपना-अपना पक्ष रखा. लेकिन मामला अभी भी थमा नहीं है

मई के दूसरे सप्ताह से दिल्ली सरकार और उप राज्यपाल के बीच तनातनी बनी हुई है. हालिया विवाद उस वक्त शुरू हुआ जब दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव केके शर्मा दस दिन की छुट्टी पर गए. शर्मा के छुट्टी पर जाने के बाद उप राज्यपाल ने ऊर्जा सचिव शकुंतला गैमलिन को कार्यकारी मुख्य सचिव नियुक्त कर दिया. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस नियुक्ति को असंवैधानिक करार देते हुए उप राज्यपाल को चिट्ठी लिखी. चिट्ठी में केजरीवाल ने कहा, ‘आपने चुनी हुई सरकार को नजरअंदाज किया है. आप एक संवैधानिक पद पर हैं. आप पर चाहे जैसा दबाव हो, आपको संविधान के मुताबिक काम करना चाहिए.’ इस चिट्ठी में केजरीवाल ने शकुंतला की नियुक्ति को लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार को प्रभावहीन करने की कोशिश बताया है. इस मामले में उप राज्यपाल की तरफ से जारी बयान में यह कहा गया कि नियमों के मुताबिक मुख्य सचिव के पद को 35 घंटे से ज्यादा खाली नहीं रखा जा सकता. इसी के चलते जब दिल्ली सरकार की ओर से कोई जवाब नहीं आया तो उन्होंने कार्यवाहक मुख्य सचिव के पद पर वरिष्ठता के हिसाब से शकुंतला गैमलिन की नियुक्ति कर दी. केजरीवाल ने शकुंतला को पद ग्रहण करने से मना किया लेकिन उन्होंने पद ग्रहण किया. शकुंतला के पद ग्रहण करने के साथ मामला थमा नहीं बल्कि हर रोज बढ़ता गया.

16 मई को अरविंद केजरीवाल ने शकुंतला की नियुक्ति का आदेश निकालने वाले प्रधान सचिव (सेवा) अनिंदो मजूमदार को उनके पद से हटाकर उनका कामकाज प्रधान सचिव राजेंद्र कुमार को सौंप दिया. उसी दिन उप राज्यपाल ने मुख्यमंत्री के इस आदेश को खारिज कर मजूमदार को अपने पद पर बने रहने का आदेश दिया. उप राज्यपाल का तर्क था कि इस फैसले के बाबत मुख्यमंत्री ने उनसे सलाह-मशविरा नहीं किया था. अगले दिन मजूमदार दिल्ली सचिवालय स्थित अपने दफ्तर पहुंचे तो वहां उन्हें ताला लगा मिला. जानकारी मिली की मुख्यमंत्री के आदेश से उनके दफ्तर में ताला लगाया गया है. यहां से शुरू हुआ विवाद राष्ट्रपति भवन, गृह मंत्रालय से होता हुआ कोर्ट-कचहरियों तक पहुंचा. दिल्ली के मुख्यमंत्री और उप राज्यपाल बारी-बारी से राष्ट्रपति और गृहमंत्री राजनाथ सिंह से मिले. दोनों ने अपना पक्ष रखा. फिर भी मामला थमा नहीं. समय के साथ-साथ इस तनाव ने राजनीतिक रंग भी ले लिया. दिल्ली की सत्ता संभाल रही आम आदमी पार्टी और केंद्र की सत्ता पर काबिज भाजपा आमने-सामने आ गए. टीवी स्टूडियो में होने वाले बहसें तेज हुईं और दोनों पक्ष एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने लगे.

मनीष सिसोदिया ने इस मसले पर मीडिया से बात करते हुए कहा कि केंद्र की भाजपा सरकार उप राज्यपाल के जरिए जनता द्वारा चुनी गई सरकार का तख्ता पलट करवाना चाह रही है. वहीं केजरीवाल ने ट्विटर पर दिल्ली वालों से पूछा कि क्या दिल्ली के मुख्यमंत्री को अपने हिसाब से एक अधिकारी तक रखने का अधिकार नहीं है. उप राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच जारी टकराव का दूसरा राउंड तब शुरू हुआ जब केजरीवाल ने भ्रष्टाचार निरोधी शाखा (एसीबी) की निर्भरता दिल्ली पुलिस पर से खत्म करने की कोशिश के तहत बिहार से एसीबी में अधिकारी शामिल करने की इच्छा जताते हुए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से संपर्क किया. बिहार सरकार ने दिल्ली सरकार की तरफ से की गई इस मांग को मंजूरी दे दी और बिहार पुलिस के तीन निरीक्षक और दो उप निरीक्षक दिल्ली सरकार के एसीबी में शामिल होने के लिए दिल्ली आ गए लेकिन उप राज्यपाल ने मुख्यमंत्री के इस आदेश को भी खारिज कर दिया. उनका कहना है कि एसीबी दिल्ली पुलिस का ही एक हिस्सा है. इस नाते एसीबी से जुड़ा कोई भी फैसला मुख्यमंत्री अकेले नहीं ले सकते. मुख्यमंत्री का फैसला निरस्त करने के बाद उप राज्यपाल ने एसीबी पर अपना अधिकार साबित करने की मंशा से दिल्ली पुलिस के एक संयुक्त आयुक्त मुकेश मीणा को एसीबी का प्रमुख बना दिया. इस पर दिल्ली सरकार की ओर से कड़ी प्रतिक्रिया जताई गई.

‘उप राज्यपाल केंद्र की शह पर काम कर रहे हैं, जो पूरी तरह से असंवैधानिक है. ऐसी हालात में एक निर्वाचित सरकार के लिए काम करना मुश्किल होगा’

 फिलहाल दिल्ली में एसीबी के दो प्रमुख हैं. एक हैं- मुख्यमंत्री की ओर से नियुक्त एसीबी प्रमुख एसएस यादव  और दूसरे हैं मुकेश कुमार मीणा, जिनकी नियुक्ति उप राज्यपाल ने की थी. इस मामले को लेकर दिल्ली सरकार हाई कोर्ट तक पहुंच गई है. सरकार की तरफ से दायर याचिका में कहा गया है कि एसीबी में संयुक्त आयुक्त के पद का कोई प्रावधान नहीं है. सरकार के मुताबिक जब ऐसे किसी पद का प्रावधान ही नहीं है, तो एसीबी में  संयुक्त आयुक्त के पद पर मीणा की नियुक्ति गैरकानूनी और असंवैधानिक है. याचिका में दिल्ली सरकार ने ये दलील भी दी है कि जिस व्यक्ति के खिलाफ पहले ही एसीबी में हवाला के आरोपों की जांच चल रही हो, उसे कैसे एसीबी का सर्वेसर्वा बनाया जा सकता है. हालांकि हाई कोर्ट ने कह दिया है कि मामले की अगली सुनवाई तक मीणा पद पर बने रहेंगे. मामले की अगली सुनवाई 11 अगस्त को होगी. उसी दिन फैसला होगा कि वह पद पर बने रहेंगे या नहीं.

उप राज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच पिछले एक महीने से चल रही रस्साकशी पर जस्टिस काटजू का कहना है, ‘उप राज्यपाल पूरी तरह से केंद्र की शह पर काम कर रहे हैं, जो गलत ही नहीं पूरी तरह से असंवैधानिक है. ऐसी हालात मे एक निर्वाचित सरकार के लिए काम करना मुश्किल होगा. सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता केटीएस तुलसी इस मामले में जीएनसीटी एक्ट (गवर्नमेंट ऑफ एनसीटी एक्ट) 1991 की 42वीं धारा का हवाला देते हुए कहते हैं, ‘जिन मुद्दों पर दिल्ली विधानसभा को कानून बनाने का अधिकार नहीं है वहां उप राज्यपाल अपने विवेक से काम कर सकते हैं. दिल्ली में ऐसे दो मुद्दे हैं. पहला जमीन और दूसरा पुलिस. इन दोनों जगहों पर उप राज्यपाल अपने विवेक से फैसला ले सकते हैं, लेकिन मुख्य सचिव की नियुक्ति का मामला उनके विशेषाधिकार में नहीं आता है. विधान मंडल की सिफारिश के आधार पर ही ऐसे मामलों में उप राज्यपाल को फैसला लेना चाहिए.’

दूसरी तरफ आप के पूर्व मार्गदर्शक रहे वरिष्ठ वकील अधिवक्ता शांति भूषण का मानना है कि अरविंद केजरीवाल बिना वजह इस लड़ाई को आगे बढ़ा रहे हैं. मीडिया से हुई एक बातचीत में शांति भूषण कहते हैं, ‘केजरीवाल या तो यह समझ नहीं पा रहे या समझना नहीं चाहते कि दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं, बल्कि केंद्र शासित प्रदेश है. संविधान की धारा 239 में स्पष्ट है कि केंद्र शासित प्रदेश का शासन, केंद्र की चुनी हुई सरकार उप राज्यपाल के माध्यम से करेगी. स्थानीय शासन को, विधायकों को कोई अधिकार नहीं है. उन्हें सिर्फ यही अधिकार है कि जो फैसला वह लें उसे उप राज्यपाल को भेजें. अगर उप राज्यपाल को सही लगेगा तो वह लागू होगा, वरना वो मामले को केंद्र को भेज सकते हैं. केंद्र के फैसला लेने तक मामले में उप राज्यपाल के निर्देश लागू होंगे. आज जो स्थिति है उसमें केंद्र सरकार जब चाहे तब राष्ट्रपति शासन लगा सकती है, विधानसभा को भंग कर सकती है. केंद्रीय गृह मंत्रालय पहले ही एक गजट अधिसूचना लाकर यह साफ कर चुका है कि इस लड़ाई में उप राज्यपाल का पक्ष जायज है.’ इस मसले पर केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने यह साफ किया है, ‘दिल्ली में शक्तियों के बंटवारे को लेकर पैदा विवाद राजनीतिक नहीं बल्कि संवैधानिक मुद्दा है.’

हालांकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि महीने भर पहले अधिकारियों की नियुक्ति और तबादले से शुरू हुआ विवाद आज पूरी तरह से राजनीतिक रंग ले चुका है. इस लड़ाई में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का समर्थन पहले ही मिल चुका है. अगर राजनीतिक दलों की बात करें तो सीपीएम नेता सीताराम येचुरी और दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के प्रमुख अजय माकन इस मसले पर दिल्ली के मुख्यमंत्री के साथ खड़े दिख रहे हैं. अजय माकन का कहना है, ‘लोकतंत्र में निर्वाचित सरकार के मत का सम्मान होना चाहिए. अधिकारियों की नियुक्ति में मुख्यमंत्री का अधिकार होना चाहिए. उप राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच समुचित तालमेल होना चाहिए.’ वहीं सीपीएम नेता सीताराम येचुरी का मानना है, ‘केंद्र को राज्यों के अधिकार का अतिक्रमण नहीं करना चाहिए. अगर केंद्र उप राज्यपाल के जरिए राज्य सरकार के अधिकारों में अतिक्रमण करेगा तो यह गलत है. हम इसका विरोध करते हैं.’

इस लड़ाई में नीतीश कुमार और ममता बनर्जी का समर्थन पहले ही केजरीवाल को मिल चुका है. माकपा और दिल्ली प्रदेश कांग्रेस भी साथ दिख रहे हैं

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उप राज्यपाल नजीब जंग के बीच छिड़ी लड़ाई पर सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटी (सीएसडीएस) में एसोसिएट प्रोफेसर अभय कुमार दुबे का मानना है, ‘भाजपा दिल्ली में उप राज्यपाल के मार्फत शासन करना चाह रही है जिसका अधिकार उसे जनता ने दिया ही नहीं है. भाजपा बड़ी गलती कर रही है. जनता द्वारा चुनी हुई सरकार को उप राज्यपाल के जरिए जिसे, खुद केंद्र की सरकार कुर्सी पर बिठाती है इस कदर परेशान करना ठीक बात नहीं है. जो संदेश दिल्ली और देश के बाकी हिस्सों में जा रहा है वह यह है कि नरेंद्र मोदी सरकार अरविंद केजरीवाल को काम नहीं करने दे रही है.’

अभय दुबे इस लड़ाई का असर बिहार में होने वाली विधानसभा चुनाव में भी देख रहे हैं. वो कहते हैं, ‘बिहार में चुनाव होने हैं. आप के नेता पहले ही यह कह चुके हैं कि वो बिहार चुनाव में भाजपा के विरोध में प्रचार करेंगे. कल्पना कीजिए एक तरफ भाजपा के नेता चुनाव प्रचार के दौरान केंद्र की ‘सुशासन सरकार’ पक्ष में गीत गाएंगे और उसी बिहार में आप के नेता ये बताएंगे कि दिल्ली में इसी ‘सुशासन सरकार’ ने जनता द्वारा चुनी हुई सरकार को किस-किस तरह से परेशान किया. नतीजा आप खुद सोच लीजिए.’ राजनीति से इतर जब हम अभय कुमार दुबे से यह जानने की कोशिश करते हैं कि इस लड़ाई में क्या सारी गलती एक ही पक्ष यानी उप राज्यपाल की है. अरविंद केजरीवाल भी तो सहयोग के लिए तैयार नहीं दिखते. फिर दिल्ली में न तो पहली बार उप राज्यपाल का पद बना है और न ही पहली बार कोई मुख्यमंत्री चुनकर आया है. इस सवाल के जवाब में वह कहते हैं, ‘बिल्कुल सही कह रहे हैं आप. ये दोनों पद लंबे समय से दिल्ली में हैं और यह भी सच है कि इनके बीच अधिकारों को लेकर खींचतान पहले भी होते रहे हैं. अरविंद से पहले भी कई मुख्यमंत्रियों ने यह कहा है कि उप राज्यपाल की वजह से उनके हाथ बंधे हुए हैं लेकिन उन्होंने कभी अपने अधिकारों के लिए लड़ाई नहीं लड़ी. अरविंद लड़ रहे हैं. इनकी स्थिति बाकी के मुख्यमंत्रियों से अलग है. वो जन आंदोलन से निकले हैं. इन्हें जनता को हमेशा यह संदेश देना होगा कि वो जनता के लिए सभी से लड़ रहे हैं. जनता की उम्मीदें बहुत बड़ी हैं और उसे पूरा करने के लिए इन्हें अधिकार भी चाहिए. ये बाकी मुख्यमंत्रियों की तरह केवल ‘हाथ बंधे हैं’ जैसा बयान देकर चुप नहीं बैठ सकते.’

आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता आशुतोष यह मानने को कतई तैयार नहीं हैं कि इस लड़ाई से दिल्ली में जनता के काम प्रभावित हो रहे हैं

अरविंद केजरीवाल के साथी रह चुके प्रो. आनंद कुमार ऐसा नहीं मानते हैं कि सब मिलकर अरविंद केजरीवाल को परेशान कर रहे हैं. वह कहते हैं, ‘दिल्ली के मुख्यमंत्री को उप राज्यपाल के साथ मेलजोल बनाकर ही काम करना होता है. यह पूर्ण राज्य नहीं है. यहां अधिकार बंटे हुए हैं. अरविंद को हमेशा टकराव की भूमिका में नहीं रहना चाहिए. कोई भी मुख्यमंत्री दिल्ली में बिना उप राज्यपाल के सहयोग के शासन नहीं कर पाएगा.’ हालांकि आप के प्रवक्ता आशुतोष इस बात से बिल्कुल सहमत नहीं हैं कि अरविंद केजरीवाल, नजीब जंग से टकराव मोल ले रहे हैं. इस बारे में वो कहते हैं, ‘सरकार क्यों उप राज्यपाल से टकराव चाहेगी? लेकिन वे दिल्ली सरकार के अधिकारों का हनन करेंगे तो सरकार चुप कैसे रह जाएगी?हमने जनता से वोट लिया है. हमने वायदे किए हैं. कल हमें चुनाव में फिर से जाना है. हम दिल्ली में एक साफ-सुथरी सरकार देने का वायदा करके आए हैं और सबसे बड़ी बात दिल्ली की जनता ने अरविंद केजरीवाल को चुना है और मुख्यमंत्री बनाया है.’ यह पूछने पर कि इस टकराव से ही दिल्ली की जनता के लिए मुश्किलें खड़ी हो रही हैं. जनता के हित के कई काम रुके  हैं. सफाई कर्मियों को समय से वेतन नहीं मिल पाया. उन्हें हड़ताल करना पड़ा. इसके जवाब में वे कहते हैं, ‘कोई काम रुका नहीं है. देखिए, एक के बाद एक कई काम हो रहे हैं. महिलाओं की सुरक्षा के लिए दिल्ली की हर बस में मार्शल्स तैनात किए जा रहे हैं. बजट सरकार पेश कर चुकी है. सरकार काम भी कर रही है और अपने अधिकारों के लिए केंद्र सरकार और उप राज्यपाल से लड़ भी रही है.’

बहरहाल इस खींचतान को शुरू हुए एक महीना हो गया है, लेकिन अभी तक यह साफ नहीं है कि ऊंट किस करवट बैठेगा. उप राज्यपाल की तरफ से जो बयान आते हैं उसमें वो अपने फैसलों को सही ठहराते हैं. वहीं दिल्ली सरकार की तरफ से जो बयान दिए जाते हैं उसमें दिल्ली सरकार और मुख्यमंत्री के फैसलों को सही ठहराया जाता है.

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tomarफर्जी डिग्री और ‘आप’ के फर्जी वायदे

आठ जून की सुबह दिल्ली के तत्कालीन कानून मंत्री और आम आदमी पार्टी के विधायक जितेंद्र सिंह तोमर को दिल्ली पुलिस ने फर्जी डिग्री मामले में गिरफ्तार किया. फिलहाल तोमर न्यायिक हिरासत में हैं और मामला अदालत के समक्ष है. गिरफ्तारी के अगले दिन तोमर ने कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया. आप ने तोमर के इस्तीफे के बाद करावल नगर से विधायक कपिल मिश्रा को दिल्ली का नया कानून मंत्री बनाया है. तोमर के फर्जी डिग्री मामले को जिस तरीके से पार्टी और खुद अरविंद केजरीवाल ने हैंडल किया उससे यह साफ हो जाता है कि पार्टी द्वारा राजनीति को बदलने के बारे में जो-जो कहा गया वो शायद एक जुमला भर था. इस मामले में तोमर की गिरफ्तारी तक पूरी पार्टी और खुद केजरीवाल बार-बार यह कहते रहे कि केंद्र की भाजपा सरकार दिल्ली पुलिस के जरिए उनके नेता को बिना वजह गिरफ्तार करवा रही है.

केजरीवाल ने खुद कई मौकों पर यह कहा कि तोमर की डिग्रियां सही हैं. उन्होंने उसकी जांच कर ली है. उसमें कुछ भी गलत नहीं है. लेकिन जब जितेंद्र तोमर की गिरफ्तारी हुई और पुलिस की शुरुआती जांच से यह लगने लगा कि उनकी डिग्रियों में कुछ बड़ा झोल है तो 23 जून को विधानसभा में बोलते हुए केजरीवाल ने कहा कि तोमर ने उन्हें भी अंधेरे में रखा. वहीं केजरीवाल के पुराने साथी योगेंद्र यादव ने 28 जून को मीडिया से बात करते हुए यह दावा किया कि अंधेरे में रखने वाली बात गलत है. केजरीवाल को पहले दिन से इस बात की जानकारी थी. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा अंधेरे में रखने की जो बात कही गई है वो असल में किसी के भी गले नहीं उतर रही. अभय कुमार दुबे इस बात को सिरे से खारिज करते हैं कि इतनी बड़ी बात अरविंद से कोई छुपा भी सकता है. वो कहते हैं, ‘इस मामले में मैं केजरीवाल को सौ फीसदी दोषी मानता हूं. अंधेरे में रखने वाली बात समझ ही ही नहीं आ रही. मैं यह मान ही नहीं सकता कि उन्हें कोई अंधेरे में रख रहा हो और वो पार्टी से टिकट पा जाए. चुनाव जीत जाए और तो और कानून मंत्री भी बन जाए. इस मामले में ऐसा लगता है कि केजरीवाल ने सब कुछ जानते-समझते हुए भी अपनी आंखे बंद रखी.’ जितेंद्र तोमर जेल में हैं. मामला अदालत के सामने है. क्या सही और क्या गलत का फैसला भी अदालत से ही होगा. दिल्ली को नया कानून मंत्री मिल चुका है. विपक्षी दल भाजपा और कंग्रेस हर रोज इस मसले पर कोई न कोई प्रदर्शन कर रहे हैं. लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि राजनीति में आने के दौरान और चुनाव लड़ने के दौरान अरविंद केजरीवाल ने जिस राजनीतिक शुचिता की दुहाई बार-बार दी और वो इस मामले में ताक पर रखते नजर आए.

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