व्यापमं से जुड़ा खौफ पिछले दिनों तब और बढ़ गया जब टीवी पत्रकार अक्षय सिंह की मृत्यु के बाद आशीष ने दावा किया कि अक्षय का इस घोटाले से जुड़े सात-आठ प्रमुख लोगों के नाम जान लेना ही उनकी मौत का कारण बना. इस पूरे कांड में मुख्यमंत्री की संदिग्ध भूमिका और एक व्हिसल-ब्लोअर होने के जोखिमों के बारे में आशीष चतुर्वेदी ने अमित भारद्वाज से बात की
व्यापमं कांड के विरोध में उतरने की क्या वजह रही?
मेरी कैंसर पीडि़त मां के प्रति डॉक्टरों के व्यवहार और स्वास्थ्य विभाग में फैले भ्रष्टाचार ने मुझे गुस्से से भर दिया था. दिसंबर 2011 में मेरी मां का देहांत हुआ और उसके दो साल बाद ही मेरे भाई की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई और तब मैंने प्री-मेडिकल टेस्ट (पीएमटी) प्रवेशों में तेजी से बढ़ रहे भ्रष्टाचार को देखकर इसकी कलई खोलने की ठान ली. मेरा पूरा विश्वास है कि इन अनैतिक गतिविधियों के चलते ही स्वास्थ्य विभाग में इतनी अव्यवस्थाएं हैं.
कब और कहां से इन खुलासों की शुरुआत हुई?
इसके लिए मैंने 2009 बैच के पीएमटी छात्र बृजेंद्र रघुवंशी के साथ पूरा एक साल बिताया. बृजेंद्र अवैध तरीके से मेडिकल प्रवेश करवाने वाले एक रैकेट से जुड़ा हुआ था. जुलाई 2011 में मैंने पीएमटी काउंसलिंग के नाम पर हो रहे गैर-कानूनी प्रवेशों पर एक स्टिंग ऑपरेशन किया और घोटाले से जुड़े बड़े नामों जैसे डॉ. दीपक गुप्ता का नाम सामने लेकर आया. साथ ही इसमें मिलकर काम कर रहे निजी और सरकारी मेडिकल कॉलेजों के संगठित नेटवर्क का भी खुलासा किया. इस स्टिंग ऑपरेशन के आधार पर पीएमटी में हो रही इस धांधली से जुड़े 15 संदिग्धों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज की गई थी.
क्या इन सब खुलासों से आपकी सुरक्षा पर कोई असर पड़ा है?
जी बिलकुल, इन खुलासों के दौरान मुझ पर तकरीबन 10 बार हमला हुआ जिसमें कई बार मैं घायल भी हुआ. कई बार, कई जगहों पर, यहां तक कि मेरे घर पर भी मुझे अनजान हमलावरों ने मार देने या टुकड़े करके फेंक देने की धमकी दी. दो सालों में मेरे 70 निजी सुरक्षा अधिकारी बदले जा चुके हैं, कुछ ने मुझे मेरे कामों के भयानक परिणामों के प्रति चेताया भी है पर मुझे उनसे कोई शिकायत नहीं है.
इन हमलों का जिम्मेदार कौन है?
शुरुआती हमले तो उन छात्रों ने करवाए थे, जो फर्जी प्रवेशों के मामले में मेरे किए खुलासों के बाद जांच के घेरे में आ गए थे. उनके वकीलों ने भी मुझ पर हमले करवाने की कोशिश की. जब मैं व्यापमं में फैली इस धांधली को जड़ से उखाड़ने के इरादे से और आगे बढ़ा तो सरकार भी इन हमलावरों की सूची में शामिल हो गई. मुझे सरकार से सुरक्षा तो मिली हुई है पर रूलिंग पार्टी मुझे रास्ते से हटाना चाहती है.
क्या आपका इशारा मुख्यमंत्री की ओर है?
जी हां, मुख्यमंत्री खुद व्यापमं घोटाले में शामिल हैं और मेरी मौत चाहते हैं. वो अपने सहयोगियों और रिश्तेदारों को बचाना चाहते हैं.
ये कैसे कह सकते हैं कि वो दोषियों को बचा रहे हैं?
मैंने ग्वालियर बेंच के एक पूर्व सहायक महाधिवक्ता (एडिशनल एडवोकेट जनरल) एमपीएस रघुवंशी के इस मामले में संलिप्त होने के खिलाफ कई बार मुख्यमंत्री के पास शिकायत दर्ज करवाई पर आज तक कोई एक्शन नहीं लिया गया, वो अब भी अपने पद पर बने हुए हैं. मेरे पास दस्तावेज हैं जो साबित करते हैं कि 2009 में हुए पीएमटी घोटाले की जांच में उन्होंने एक अभ्यर्थी को बचाया था और राजकीय फोरेंसिक साइंस लैब, सागर की एक रिपोर्ट में हेराफेरी करने के बदले दस लाख रुपये रिश्वत ली थी. शुरू में उन्होंने मुझे भी मुंह बंद रखने के लिए कीमत देने का प्रयास किया था. पर जब मैं नहीं माना तब वे बोले, ‘बहुत से लोग सड़क दुर्घटनाओं में मरते हैं. अगर मेरा नाम व्यापमं मामले में आया तो तुम सावधान रहना.’
आप ‘शाखा’ के सदस्य है. पसंदीदा राजनेता कौन हैं?
मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पसंद करता हूं, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी पसंद हैं. हालांकि प्रधानमंत्री जी की कथनी और करनी में आ रहे फर्क को देखते हुए मेरा उनपर से विश्वास कम हुआ है. व्यापमं और शिवराज सिंह चौहान पर उनका मौन रहना दुखद है. मैंने 2 नवंबर 2014 को शिवराज सिंह चौहान सहित व्यापमं घोटाले से जुड़े 200-300 लोगों के नामों की सूची उन्हें भेजी थी पर वो सरकार को वापस भेज दी गई. अब वो ग्वालियर के एएसपी के पास है. आप खुद ही बताइए कैसे कोई एएसपी या इंस्पेक्टर जनरल (आईजी) भी राज्य के मुख्यमंत्री के खिलाफ जा सकता है?