अवैध निर्माण से त्रस्त उत्तराखण्ड

जोशीमठ और सिल्क्यारा हादसों के बावजूद नहीं सीखा कोई सबक़

उत्तराखण्ड में पर्यावरण से खिलवाड़ रुकना चाहिए। पहाड़ों पर अवैध निर्माण के चलते वहाँ का प्राकृतिक स्वरूप बिगड़ रहा है। कई बार इस अवैध निर्माण के चलते हादसे हुए हैं और बड़ी संख्या में लोग असमय मृत्यु का शिकार हुए हैं। हाल में उत्तरकाशी के सिल्क्यारा में अचानक बंद हुई सुरंग काटकर उससे भले ही 41 श्रमिकों को किसी तरह 17 दिन के बाद बाहर निकाल लिया गया और वहाँ फ़िलहाल काम भी रोक दिया गया है। लेकिन साथ लगते नैनीताल में तमाम निर्माण कार्य धड़ल्ले से हो रहे हैं। पारिस्थितिक रूप से नाज़ुक इस पर्यटन शहर में भवन निर्माण के नियमों का उल्लंघन हो रहा है और भ्रष्ट अधिकारी उल्लंघनकर्ताओं के साथ मिले हुए हैं। इसी का ख़ुलासा कर रही तहलका एसआईटी की ख़ास रिपोर्ट :-

उत्तराखण्ड में निर्माण के कई नियम बने हैं; लेकिन क़ानून को ताक पर रख आपको सब कुछ मिलेगा- ज़मीन, रिजॉर्ट, भवन और वो सब कुछ जो आप चाहते हैं। उत्तराखण्ड में तमाम पर्यावरणीय ख़तरों के बावजूद इस ग़ैर-क़ानूनी धंधे से जुड़े लोग, जिनमें सरकारी कर्मी भी शामिल हैं; सक्रिय हैं। बस पैसा फेंको, तमाशा देखो।

‘तहलका’ रिपोर्टर ने इस मामले में केशव गिरी गोस्वामी से बातचीत की। हैरानी की बात यह है कि गोस्वामी सरकारी कर्मचारी हैं और नैनीताल में झील विकास प्राधिकरण (एलडीए) में 1993 से पर्यवेक्षक के रूप में कार्यरत हैं। गोस्वामी ने दावा किया- ‘मैं आपको सभी निर्माण नियमों में आपकी पसंद का रिसॉर्ट बनाने में सहायता के लिए ढील दूँगा। मैं मानता हूँ कि एक व्यवसायी के लिए सभी नियमों का पालन करना हमेशा संभव नहीं। व्यावहारिक रूप से देखा जाए, तो हर नियम का सख़्ती से पालन करने से व्यापार में बाधा आ सकती है। मैं एक ड्राफ्ट्समैन का प्रबंध करूँगा, जो मेरा मातहत है। वह आपके लिए रिसॉर्ट का एक नक़्शा बनाएगा और आपको इसके एवज़ में दिये जाने वाले पैसे (रिश्वत) बताएगा, जो आपको देने होंगे।’

एक ग़ौर करने लायक बात है। उत्तराखण्ड हाल के वर्षों में बार-बार दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के कारण सुर्ख़ियों में रहा है। चाहे वह जोशीमठ और नैनीताल के घरों में दरारें आने की बात हो, चाहे सन् 2013 में केदारनाथ में हुई त्रासदी हो या फिर चाहे हाल में उत्तरकाशी में सिल्क्यारा सुरंग में मलबा गिरने से 41 लोगों के 17 दिन तक सुरंग के भीतर फँसे रहने की घटना हो। सवाल उठता है कि आख़िर ऐसा क्यों हुआ है? क्यों ऐसी भयावह घटनाएँ इस पहाड़ी राज्य में हुई हैं? ‘तहलका’ एसआईटी की जाँच-पड़ताल का लब्बोलुआब यह है कि हाल के वर्षों में उत्तराखण्ड के इस पहाड़ी राज्य में हुई त्रासदियों से किसी ने कोई सबक़ नहीं सीखा है।

विशेषज्ञों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि इन तमाम हादसों में यदि कोई एक सामान्य सूत्र है, वह है- उत्तराखण्ड में चल रहा अवैध और अनियोजित निर्माण। पर्यावरणविद् भविष्य में आपदाओं को रोकने के लिए सरकार पर तत्काल निर्माण रोकने पर भी ज़ोर देते हैं। ‘तहलका’ रिपोर्टर ने जब गोस्वामी के सामने भवन निर्माण के नियमों तो तोडक़र उत्तराखण्ड के नैनीताल में एक रिसॉर्ट बनाने का काल्पनिक प्रस्ताव पेश किया, तो आश्चर्यजनक रूप से उन्होंने तत्परता से हमारी योजना पर सहमति जता दी। यहाँ यह बता दें कि एलडीए विभाग में केशव गिरी गोस्वामी की ज़िम्मेदारी उनकी निगरानी वाले भवाली और मुक्तेश्वर जैसे इलाक़ों में अवैध निर्माण रोकना है। लेकिन अपने अधिकार क्षेत्र में नियमों और एलडीए के निर्माण मानदंडों का पालन सुनिश्चित करने की जगह यह श्रीमान ‘तहलका’ एसआईटी के खोजी रिपोर्टर को तमाम नियम-क़ायदे ताक पर रखकर मदद करने के लिए बे-हिचक सहमत हो गये। यह सब रिश्वत के बदले होना है, जो रिपोर्टर ने बाद में देने की बात कही।

रिपोर्टर : मतलब सारे क़ानून, नियम तो फॉलो नहीं कर पाएँगे हम..?

गोस्वामी : सारे कौन करता है, कोई नहीं करता है…सारे तो कर ही नहीं पाता है, बिल्डिंग पास करवाने पे, नक़्शा पास करवाने पे, अप्रूव हो गया…वो ख़ुद मिलेगा, कितना ख़र्चा लगेगा बताएगा

रिपोर्टर : ड्राफ्टमैन आपका, नाम क्या है उसका?

गोस्वामी : नाम क्या है, …उसका? ए.के. ङ्गङ्गङ्गङ्गङ्ग..।

रिपोर्टर : आपका बंदा है?

गोस्वामी : मेरा बंदा है। …मेरे कहने पर नक़्शा भी बनाएगा, ख़र्चा भी बताएगा, मेरे कहने पर…। आप अपना हैडेक ही उसको दे दीजिए जी…!

रिपोर्टर : एलडीए का ख़र्चा? सरकारी ख़र्चे की बात नहीं कर रहा हूँ मैं।

गोस्वामी : हाँ; प्राइवेट ख़र्चा। …हाँ, वो ख़र्चा जाएगा। …ङ्गङ्गङ्ग, ङ्गङ्गङ्गङ्गङ्गङ्ग पर, वो तो आपको पता ही है; वो व्यवस्था वो करेगा।

रिपोर्टर : मुझे एक बंदा चाहिए था, एलडीए का; मिल नहीं रहा था, अब आप मिल गये।

‘तहलका’ रिपोर्टर ने गोस्वामी को सूचित किया कि एलडीए में हमारे संपर्कों की कमी के कारण वह रिश्वत का पैसा सीधे उन्हें देना पसंद करेंगे। गोस्वामी ने इस बात को स्वीकार कर लिया।

रिपोर्टर : मैं किसी को नहीं जानता, …मैं आपको जानता हूँ।

गोस्वामी : हाँ-हाँ।

रिपोर्टर : जो भी लेन-देन पैसे की होगी, वो आपसे होगी।

गोस्वामी : हाँ-हाँ; …कोई चिन्ता नहीं है।

‘तहलका’ रिपोर्टर ने गोस्वामी से बातचीत में दोहराया कि हमारे रिसॉर्ट के निर्माण के लिए एलडीए के निर्धारित सभी नियमों का पालन करना हमारे लिए अव्यावहारिक होगा। गोस्वामी ने रिपोर्टर को इस मामले में दोबारा आश्वस्त करने की कोशिश की और हर नियम का पालन करने की चुनौतियों को स्वीकार करते हुए उनकी बात पर सहमति जतायी।

रिपोर्टर : देखो, अगर 100 नियम हैं एलडीए के बिल्डिंग बनाने में, तो 100 के 100 नियम फॉलो करना तो मुश्किल है?

गोस्वामी : फिर तो बिल्डिंग ही नहीं बनेगी…।

रिपोर्टर : बिल्डिंग बनेगी नहीं, …मुनाफ़ा भी नहीं होगा।

गोस्वामी : कहीं नहीं बनेगी…।

रिपोर्टर : तो 100 में से 10 फॉलो कर लिये, 90 छोड़ दिये।

गोस्वामी : 10 तो ऑटोमेटिकली छूट जाते हैं…।

रिपोर्टर : नहीं, 90 छोड़ दिये, 10 मान लिये।

गोस्वामी : नक़्शे जब पास हो जाते हैं तो, …तो फिर तो आदमी का ख़ुद भी राइट होता है। …प्लानिंग की ज़िम्मेदारी भी होती हैं। …पास तो तभी करेंगे, जब कुछ नॉम्र्स तो होंगे उसके; वैसे तो करेंगे नहीं। …खुले में तो कर नहीं देंगे। …हर चीज़ देखना पड़ता है। …बैकग्राउंड में कितना छोडऩा है, क्या छोडऩा है, …सब चीज़ देखनी पड़ती है।

गोस्वामी को जब ‘तहलका’ रिपोर्टर ने बताया कि जोशीमठ संकट के बाद उत्तराखण्ड में रिसॉर्ट बनाना एक कठिन काम बन गया है, क्योंकि सरकार ने पहाडिय़ों में निर्माण गतिविधियों पर अपनी निगरानी बढ़ा दी है; तो गोस्वामी ने रिपोर्टर के डर को दूर करने की कोशिश की और कहा कि वह उनकी हर संभव मदद करेंगे।

रिपोर्टर : हमारे कई साथी हैं, जिनके मुक्तेश्वर में रिसॉर्ट हैं। …वो सब कह रहे हैं- भाई पहाड़ों में काम करना बहुत मुश्किल हो गया है, जोशीमठ के बाद। …जोशीमठ में जो क्रैक्स आये हैं ना, …इसलिए हमें भी डर लगता है; कहीं हमें भी सारे नियम फॉलो न करने पड़ें।

गोस्वामी : नियम तो कुछ फॉलो करने पड़ते हैं, जो मदद होगी, धरातल में वो करेंगे।

अब ‘तहलका’ के कैमरे पर गोस्वामी ने दावा किया कि जब नैनीताल में निजी मकानों में दरारें आयीं, तो कैसे एलडीए ने मामले को रफ़ा-दफ़ा करने की कोशिश की थी। हालाँकि उन्होंने कहा कि जिन मकानों में दरारें आयीं, उन्हें एलडीए ने मंज़ूरी नहीं दी थी। लेकिन प्राधिकरण ने क़ानूनी कार्रवाई कर इज़्ज़त बचाने का काम किया।

रिपोर्टर : तो नैनीताल की बिल्डिंग्स में भी क्रैक्स आ गये हैं क्या?

गोस्वामी : नैनीताल में भी आये हैं।

रिपोर्टर : क्रैक्स आये हैं! जोशीमठ की तरह?

गोस्वामी : हाँ-हाँ।

रिपोर्टर : तो वो क्या प्राइवेट बिल्डिंग में हैं, …या सरकारी?

गोस्वामी : अपने मकानों में हो रहे हैं, …पर्सनल।

रिपोर्टर : तो उसमें एलडीए का क्या लेना-देना?

गोस्वामी : एलडीए का लेना-देना तो पूरा होता है…अतिक्रमण में; …पूरा ज़िला विकास प्राधिकरण के अंडर वो है, …बिलकुल बॉडी के अंदर है ये।

रिपोर्टर : जिन मकानों में क्रैक्स हैं, वो एलडीए से अप्रूव्ड हैं?

गोस्वामी : वो अप्रूव्ड नहीं होंगे, …वो ऐसे बनाये होंगे; …हमने क़ानूनी कार्रवाई की होगी, अपनी बचत तो की होगी हमने।

रिपोर्टर : हा..हा…हा….।

गोस्वामी : बचत तो करते ही हैं हम अपनी।

रिपोर्टर : मतलब, बिना एरिया के अप्रूव किये होंगे?

गोस्वामी : हाँ, थोड़ी-बहुत, …1-2 कमरे का।

‘तहलका’ रिपोर्टर ने गोस्वामी को नैनीताल में एक रिसॉर्ट के निर्माण के लिए ज़मीन लेने के अपने इरादे के बारे में बताया; जब रिपोर्टर ने उप-नियम के उल्लंघन के साथ भवन की मंज़ूरी के लिए उनकी मदद माँगी। उन्होंने फिर यह कहकर रिपोर्टर को आश्वस्त करने की कोशिश की कि किसी के लिए भी सभी नियमों का पालन करना कठिन है।

रिपोर्टर : अब ऐसा है, मुझे ज़मीन बताओ; …क्लीन ज़मीन। पेड़ न हो, …15-20 नाली, उस पर हम बनाएँगे रिसॉर्ट। ठीक है? अब उसमें वायलेशन हो, वो आपको देखना है।

गोस्वामी : जो भी है, मैं करवा दूँगा; …जो मदद होगी।

रिपोर्टर : ठीक है। …क्यूँकि उसमें सारे क़ानून हैं, अगर हम फॉलो करेंगे।

गोस्वामी : सारे तो नहीं हो पाते हैं, …कोई कर ही नहीं पाता है।

जब रिपोर्टर ने पूछा कि इस मदद के बदले उन्हें कितनी रिश्वत देनी होगी, तो गोस्वामी ने जवाब दिया कि वह काम पूरा होने के बाद ही कैश लेंगे। हमारी तरफ़ से रिश्वत का भुगतान ड्राफ्ट्समैन को नहीं, बल्कि सिर्फ़ उसे करने का इरादा जताने पर वह तुरन्त सहमत हो गया।

रिपोर्टर : आप अपना ख़र्चा-पानी बता दो?

गोस्वामी : जो चाय-पानी दे दोगे, जब आपका काम हो जाएगा; आपसे तो हम ले लेंगे।

रिपोर्टर : मैं पैसे आप ही को दूँगा; …ड्राफ्टमैन को नहीं।

गोस्वामी : कोई दिक़्क़त नहीं है, …कोई टेंशन नहीं है। मैं आपको मिलवाऊँगा।

रिपोर्टर : आपका जॉब ही होगा? …अंडर दि टेबल की बात कर रहा हूँ मैं।

जैसे ही रिसॉर्ट के निर्माण के सम्बन्ध में चर्चा आगे बढ़ी, गोस्वामी ने रिपोर्टर को सभी सम्बन्धित सरकारी अधिकारियों को रिश्वत देकर परियोजना को आसान बनाने में अपनी सहायता का भरोसा दिलाया। उन्होंने कहा कि यह निर्माण प्रक्रिया को सुचारू रूप से चलाना सुनिश्चित करेगा और साथ ही अधिकारियों की तरफ़ से विनियमन उल्लंघनों से भी सुरक्षित करेगा।

रिपोर्टर : रिसॉर्ट बनाने के लिए खुली छूट दे देना।

गोस्वामी : रिसॉर्ट के लिए तो ज़मीन देखूँगा भैया!

रिपोर्टर : ज़मीन देख लो आप, उसमें रिसॉर्ट बनाने के लिए खुली छूट दे देना।

गोस्वामी : खुली छूट क्या, …जब मैं साथ रहूँगा, तो कोई दिक़्क़त ही नहीं है।

रिपोर्टर : ऐसा न हो आप ओ.के. कर दो, …ऊपर वाला कोई टाँग अड़ा दे?

गोस्वामी : न-न, ऐसा नहीं है। …ऊपर वाला टाँग नहीं अड़ाएगा। …ऊपर वाले का भी मुँह बन्द किया जाता है, …वो बंदा ऊपर तक होता है, ऐसा कुछ नहीं है।

रिपोर्टर : ठीक है, …तो आप ज़मीन बता दो उसके बाद एक बार और बैठ लेंगे। …उसमें पूरा एस्टीमेट बना लेंगे। ख़र्चा-पानी, आपका कितना होगा, उसका कितना होगा, फिर कॉटेज की कॉस्टिंग कर लेंगे।

गोस्वामी : ठीक है।

गोस्वामी ने अब गारंटी दी कि वह एलडीए के वरिष्ठ अधिकारियों को सँभाले लेंगे, ताकि यह सुनिश्चित हो जाएगा कि वे हमारे निर्माण का विरोध नहीं करेंगे। इस भरोसे को पुख़्ता करने के लिए उन्होंने ‘तहलका’ रिपोर्टर से 1,000 रुपये स्वीकार कर लिये।

रिपोर्टर : ङ्गङ्गङ्गङ्गङ्ग कौन हैं अभी आपके?

गोस्वामी : ङ्गङ्गङ्गङ्गङ्ग जी हैं, …ङ्गङ्गङ्गङ्गङ्ग बहुत बढिय़ा आदमी है।

रिपोर्टर : ये तो आईएएस हैं?

गोस्वामी : आईएएस हैं।

रिपोर्टर : आपकी जान-पहचान है?

गोस्वामी : बहुत बढिय़ा।

रिपोर्टर : ऊपर से कोई दिक़्क़त तो नहीं आएगी बनाने में?

गोस्वामी : कोई दिक़्क़त नहीं आएगी, आप कोशिश करेंगे, तो कोई दिक़्क़त नहीं आएगी। …कोशिश करनी पड़ेगी।

रिपोर्टर : ये लो ख़र्चा-पानी, …रुपीज 1,000 हैं।

गोस्वामी : हाँ ठीक है, …आप मुझे फोन कीजिएगा। जहाँ पे लोगे मुझे बता दीजिएगा, आप अपनी समझ से लीजिए।

रिपोर्टर : चाहे अपार्टमेंट लूँ?

गोस्वामी : हाँ, बस जानकारी दीजिएगा।

गोस्वामी ने रिपोर्टर को सूचित किया कि मुक्तेश्वर और भवाली उनके अधिकार क्षेत्र में हैं और हमें अपने रिसॉर्ट निर्माण के लिए इन क्षेत्रों में भूमि अधिग्रहण करने की सलाह दी। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया। चूँकि ये क्षेत्र उनके दायरे में हैं, इसलिए हमें (रिपोर्टर को) निर्माण प्रक्रिया के दौरान किसी भी समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा।

गोस्वामी : मुक्तेश्वर में चलेगा…?

रिपोर्टर : एलडीए है मुक्तेश्वर में?

गोस्वामी : हाँ-हाँ; है। …मेरी ही ड्यूटी है।

रिपोर्टर : जहाँ आपकी ड्यूटी हो..।

गोस्वामी : भवाली मेरी ड्यूटी है।

रिपोर्टर : मुक्तेश्वर?

गोस्वामी : मेरी है।

रिपोर्टर : नैनीताल?

गोस्वामी : नैनीताल विश्नोई की है।

रिपोर्टर : मतलब, आपके होते हुए कोई दिक़्क़त न आये?

गोस्वामी : दिक़्क़त आने की कोई बात ही नहीं है। …जहाँ हम बीच में आएँगे तो, …अगर हम बीच में हैं तो कोई दिक़्क़त नहीं है।

गोस्वामी ने इसके बाद रिपोर्टर के (काल्पनिक) रिसॉर्ट के नक़्शे को मंज़ूरी देने के लिए ज़रूरी चीज़ों के बारे में बताया और उन्हें भरोसा दिलाया कि वह (गोस्वामी) इस काम को तेज़ी से करवा सकते हैं। वित्तीय पहलू को लेकर उन्होंने बताया कि ड्राफ्ट्समैन हमें (रिपोर्टर को) उस राशि के बारे में बता देगा, जो रिश्वत के रूप में देनी होगी।

रिपोर्टर : अब ये बताओ सर! …रिसॉर्ट में जो नक़्शे वग़ैरह पास होंगे कॉटेज के, उसका क्या हिसाब-किताब रहेगा?

गोस्वामी : उसका पहले आर्किटेक्ट से नक़्शा बनवाएँगे, …फिर उसके बाद मालूमात करके ऑनलाइन सबमिट हो जाएगा।

रिपोर्टर : एलडीए में?

गोस्वामी : एलडीए में…जो भी उसके, …जो भी उसके नॉम्र्स होंगे; …जो एरिया आपको छोडऩा पड़ेगा, …साइड एरिया छोडऩा पड़ता है; …जिस हिसाब से…पेड़ भी न गिरे. …पेड़ भी नहीं गिरना चाहिए; …पेड़ हुए, तो दिक़्क़त आ जाएगी।

रिपोर्टर : पेड़ नहीं होने चाहिए? ठीक है उसके बाद?

गोस्वामी : उसके बाद पास करवाएँगे। …पास जो करवाएगा, वो डॉक्यूमेंट्स लेगा आपके, …वो एलडीए का ही होगा।

रिपोर्टर : ख़र्चा-पानी?

गोस्वामी : ख़र्चा-पानी…, वो करवा देंगे।

रिपोर्टर : मतलब, जल्दी हो जाए नक़्शा पास। अच्छा सर! रिसॉर्ट बनाने में कोई दिक़्क़त परेशानी आये…?

गोस्वामी : अरे, कुछ नहीं होता।

रिपोर्टर : क्योंकि आप एलडीए में हो इसलिए बात कर रहा हूँ। …ऐसा न हो कि ये का$गज़ लाओ, ये अप्रूवल लाओ?

गोस्वामी : अरे, ऐसा है…वो तो बिडिंग होगी ना! …वो जो डॉक्यूमेंट बनाता है, नक़्शा बनाता है, ख़ुद लगा रहता है उसके पीछे। …तुम्हारा हैडेक कम रहेगा…वैसे हम भी दिलवा देंगे, … तो पूरा हैडेक उस पर रहेगा।

रिपोर्टर : ख़र्चा-पानी तो बता दो?

गोस्वामी : ख़र्चा-पानी वो बताएगा।

रिपोर्टर : एक अंदाज़ा तो बता दो?

गोस्वामी : अंदाज़ा तो वही बताएँगे साहिब! …कितना है? क्या है?

रिपोर्टर : मान लो 20 कॉटेज हैं, …20 कॉटेज का नक़्शा अप्रूव करवाना है हमें, …कितना ख़र्चा आ जाएगा?

गोस्वामी : अब ये तो ड्राफ्ट्समैन बताएगा।

उत्तराखण्ड में सन् 2013 में आयी त्रासदी ने दुनिया को खौफ़ से भर दिया था। यह विनाशकारी घटना, जोशीमठ की घटना और हाल में सिल्क्यारा सुरंग में लोगों के फँसने की घटना से ये सवाल उठते हैं कि क्या हमने इन त्रासदियों से कुछ सीखा है?

विशेषज्ञ हिमालयी राज्यों में अनियोजित, अवैध और भारी-भरक़म निर्माण को इन आपदाओं के सबसे बड़े कारणों में से एक मानते हैं। ‘तहलका’ एसआईटी के इस ख़ुलासे से साफ़ ज़ाहिर होता है कि पर्यावरण विशेषज्ञों की चेतावनियों के बावजूद उत्तराखण्ड में अवैध और अनियमित निर्माण गतिविधियाँ जारी हैं। इस रिपोर्ट से पता चलता है कि कैसे सरकारी अधिकारियों और भू-माफ़िया की मिलीभगत से यह सब हो रहा है।

अब हमारे सामने एक स्पष्ट विकल्प है कि क्या अर्थव्यवस्था को प्राथमिकता मिलनी चाहिए या पारिस्थितिकी तंत्र को प्राथमिकता मिलनी चाहिए? क्या हम अल्पकालिक आर्थिक लाभ के लिए हिमालय के बेहद नाज़ुक संतुलन और सुंदरता का नुक़सान करने को तैयार हैं? यह कार्रवाई करने का वक्त है।