20 वर्षीय रमन विश्नोई हरियाणा के फतेहाबाद जिले के रहने वाले हैं. नवंबर 2011 में रमन ने मारुति के मानेसर प्लांट में बतौर प्रशिक्षु काम करना शुरू किया था. जुलाई 2012 की घटना के बाद पुलिस ने उन्हें भी उनके कमरे से गिरफ्तार किया और जेल में डाल दिया. अपनी गिरफ्तारी के पौने तीन साल बाद रमन इसी साल मई में जमानत पर रिहा हुए हैं.
रमन से हमारी मुलाकात गुड़गांव के जिला एवं सत्र न्यायलय में हुई. वो यहां पेशी के लिए आए हैं. कंधे पर बैग लटकाए रमन एक पल के लिए किसी कॉलेज के छात्र जान पड़ते हैं लेकिन ऐसा है नहीं. रमन पिछले कई सालों से जेल में थे और उनके मुताबिक वो बिना किसी गलती के जेल की सजा काटकर आए हैं. रमन अपनी आपबीती बताते हुए कहते हैं, ‘क्या कहें… हमारा जीवन तो बर्बाद ही हो गया समझिए… हम तो पक्की नौकरी पर भी नहीं थे… ट्रेनी थे… कल को अगर बेगुनाह साबित भी हो गए तो भी कुछ नहीं मिलेगा… जो पक्की नौकरी पर थे वो तो केस-मुकदमा भी कर सकते हैं. हम क्या करेंगे… हमें तो कल को कोई नौकरी पर भी नहीं रखेगा… क्योंकि हम जेल में थे.’
रमन के परिवार में उनके पिता हैं जो खेती-किसानी करते हैं, मां हैं और एक बहन है. उनका छोटा-सा परिवार अपने गांव में ही रहता है. जितने दिन रमन जेल में रहे उतने दिन उनके पिता फतेहाबाद और गुड़गांव कोर्ट के बीच चक्कर लगाते रहे. हर तारीख पर आना. हर कुछ दिन पर अपने बेटे से जेल में जाकर मिलना. कपड़े और दूसरे जरूरी सामान देना उनकी नियमित
दिनचर्या थी. रमन के अनुसार आज उनके पिता जी के माथे पर करीब-करीब पांच से सात लाख का कर्ज है. बहन की शादी के लिए जो थोड़े-बहुत पैसे थे वो भी उन्हें बाहर लाने में चले गए. फिलहाल रमन को इस बात का
डर है कि आगे उन्हें कोई काम नहीं देगा क्योंकि उन पर जेल काटकर आने का ठप्पा लग चुका है.
रमन इस सबके लिए पूरे सिस्टम और मीडिया को दोषी मानते हैं. रमन के मुताबिक उनके साथ वही हुआ जो अब तक वो केवल टीवी या सिनेमा में देखते रहे हैं. वो कहते हैं, ‘मेरे साथ जो हुआ है वैसा होते हुए मैंने आज तक केवल फिल्मों में ही देखा है. फिल्म की शुरुआत में पूरा सिस्टम एक साथ मिलकर हीरो और उसके परिवार को परेशान करता है. फिल्म के आखिर में हीरो पूरे सिस्टम को सबक सिखाता है. लेकिन यहां ऐसा नहीं है. मैं फिल्म का हीरो नहीं हूं और यहां सब कुछ असली है. वास्तव में पूरा सिस्टम भ्रष्ट है. पुलिस ने हमे बिना एफआईआर में नाम के जेल में डाल दिया और अदालतों ने दो-ढाई साल तक जमानत नहीं दी… मीडिया ने भी हमारा साथ नहीं दिया… और मैं कुछ नहीं कर सकता. मैं केवल अपनी जिंदगी को शुरू होने से पहले ही बर्बाद होते हुए देख सकता हूं.’
मई की दोपहर में एक पेड़ के नीचे रमन विश्नोई हमसे ये सारी बातें एक सांस में कह गए. ऐसा महसूस होता है कि रमन ने जो कहा उसकी वजह से दिन का पारा सौ डिग्री के आसपास पहुंच गया है और इस आंच में सबकुछ धू-धूकर जल रहा है.