लोकसभा चुनावों के समय पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू की किताब ‘द एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर : द मेकिंग एंड अनमेकिंग ऑफ मनमोहन सिंह’ सामने आई. अपनी किताब में बारू ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के 64 वर्षीय राजनीतिक सचिव अहमद पटेल की राजनीतिक शख्सियत और कांग्रेस तथा मनमोहन सिंह सरकार में उनकी भूमिका को लेकर कई खुलासे किए. बारू ने अपनी किताब में बताया कि कैसे यूपीए सरकार के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के सभी संदेश प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तक पहुंचाने का काम नियमित तौर पर अहमद पटेल किया करते थे. वे सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह के बीच की राजनीतिक कड़ी थे. बारू के मुताबिक प्रधानमंत्री निवास में जब अचानक पटेल की आवाजाही बढ़ जाती तो यह इस बात का संकेत होता कि कैबिनेट में फेरबदल होने वाला है. पटेल ही उन लोगों की सूची प्रधानमंत्री के पास लाया करते थे जिन्हें मंत्री बनाया जाना होता था या जिनका नाम हटाना होता था. बारू यह भी बताते हैं कि कैसे पटेल के पास किसी भी निर्णय को बदलवाने की ताकत थी. वे एक उदाहरण भी देते हैं, ‘एक बार ऐसा हुआ कि ऐन मौके पर जब मंत्री बनाए जाने वाले लोगों की सूची राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के लिए प्रधानमंत्री निवास से जाने ही वाली थी कि पटेल प्रधानमंत्री निवास पहुंच गए. उन्होंने लिस्ट रुकवाकर उसमें परिवर्तन करने को कहा. उनके कहने पर तैयार हो चुकी सूची में एक नाम पर वाइट्नर लगाकर पटेल द्वारा बताए गए नाम को वहां लिखा गया.’
बारू के इन खुलासों से इस बात का अच्छी तरह से पता चलता है कि कांग्रेस पार्टी में अहमद पटेल की क्या स्थिति है और सोनिया से उनके किस तरह के संबंध हैं. अहमद पटेल सोनिया के सबसे करीबी व्यक्ति उस समय से हैं जब सोनिया ने राजनीति में कदम भी नहीं रखा था. पार्टी में अहमद पटेल को गांधी परिवार के बाद कांग्रेस का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति माना जाता है. कोई अहमद पटेल को सोनिया का संकट मोचक कहता है तो कोई क्राइसिस मैनेजर. ‘सोनिया गांधी का रास्ता अहमद पटेल से होकर गुजरता है’ कहने वाले राजनीतिक गलियारों में बहुत से लोग मिल जाएंगे. सोनिया और अहमद पटेल की जोड़ी वैसे तो तभी से सक्रिय है जब सोनिया राजनीति में आई भी नहीं थीं. वैसे अहमद पटेल का कांग्रेस पार्टी से संबंध बहुत पुराना है. गांधी परिवार के इस वफादार सिपाही ने कांग्रेस का हाथ मजबूती से तभी से पकड़ रखा है जब इसकी कमान इंदिरा और उसके बाद राजीव गांधी के हाथों में हुआ करती थी. दोनों के साथ बेहद करीब से काम कर चुके अहमद पटेल सोनिया गांधी के संपर्क में तब पहली बार आए जब उन्हें जवाहर भवन ट्रस्ट का सचिव बनाया गया. उस दौर में सोनिया राजनीति से दूर थीं लेकिन उनकी ट्रस्ट के कामों में बहुत रुचि थी. कहते हैं कि पटेल ने ट्रस्ट से जुड़े कार्यों को पूरा करने के लिए न सिर्फ कड़ी मेहनत की बल्कि उसके लिए जरूरी पैसों का भी इंतजाम किया. इसके अलावा राजीव गांधी फाउंडेशन की स्थापना में भी पटेल की बेहद अहम भूमिका रही. सोनिया के मन के सबसे करीब इस प्रोजेक्ट को पूरा करने और उसका बेहतर संचालन करने में पटेल ने कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी. यहीं से उन दोनों के मजबूत संबंध की नींव पड़ी जो आज तक कायम है. सोनिया-पटेल के संबंधों की चर्चा करते हुए गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री शंकर सिंह वाघेला कहते हैं, ‘ राजीव गांधी की हत्या के बाद अहमद पटेल ने सोनिया गांधी से लेकर राहुल और प्रियंका सभी की जिम्मेदारी संभाली. चाहे वह राहुल व प्रियंका की पढ़ाई हो या फिर परिवार की आर्थिक या अन्य जरूरतें. पटेल ने एक सेवक की तरह परिवार की सेवा की.’
राजीव गांधी के देहांत के सात साल बाद तक खामोश रहने वाली सोनिया गांधी ने जब अंततः अपनी राजनीतिक चुप्पी तोड़ी तो पटेल उनके सारथी बने. वाघेला कहते हैं, ‘ सोनिया गांधी को पार्टी की कमान संभालने के लिए तैयार करने में पटेल की बहुत बड़ी भूमिका थी. सीताराम को बाहर करके सोनिया गांधी की ताजपोशी में पटेल ने महत्वपूर्ण रोल अदा किया.’ सोनिया गांधी के पार्टी संभालने के बाद पटेल का राजनीतिक कद और रुतबा दिनों दिन बढ़ता चला गया.
सोनिया के पटेल पर आंख बंद कर भरोसा करने के पीछे यह कारण भी बताया जाता है कि गांधी परिवार के इतने करीब और प्रभावशाली होने के बावजूद पटेल ने कभी अपनी राजनीतिक हैसियत का इस्तेमाल अपने निजी फायदे के लिए नहीं किया. गुजरात के वरिष्ठ पत्रकार देवेंद्र पटेल कहते हैं, ‘यूपीए की पिछली दो सरकारों में सभी जानते थे कि प्रधानमंत्री से ज्यादा अहमद पटेल शक्तिशाली हैं लेकिन उन्होंने कभी अपनी हैसियत का अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल नहीं किया.’
पटेल और सोनिया के बीच मजबूत संबंधों की चर्चा करते हुए कांग्रेस के एक नेता कहते हैं, ‘कांग्रेस में राहुल और प्रियंका के बाद यही हैं जिनकी शिकायत मैडम (सोनिया) से कोई नहीं कर सकता. क्योंकि अगर कोई अहमद पटेल का विरोध करेगा तो फिर वह पार्टी में नहीं रह पाएगा. किसी को याद नहीं कि पिछली बार कब कांग्रेस अध्यक्ष पटेल से किसी विषय पर सख्ती से पेश आई थीं.’
कांग्रेस के सूत्र बताते हैं कि कैसे पिछले 10 सालों में सोनिया गांधी द्वारा लिए गए हर निर्णय के पीछे अहमद पटेल का ही दिमाग रहा. पार्टी के एक पूर्व महासचिव कहते है, ‘पिछले 10 सालों में पार्टी में कोई भी ऐसा निर्णय नहीं हुआ जिसमें पटेल की सहमति ना हो. जब भी मैडम ने यह कहा कि वे सोच कर बताएंगी कि इस विषय पर क्या करना है तो पार्टी के लोग समझ जाते थे कि अब वे अहमद पटेल से सलाह लेंगी फिर फैसला करेंगी.’
वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई सोनिया के अहमद पटेल पर भरोसे की वजह बताते हुए कहते हैं, ‘पटेल की कोई व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा नहीं है. राजनीति में ऐसा होना बहुत दुर्लभ है. वफादारी में भी इनका कोई मुकाबला नहीं है. लो प्रोफाइल रहते हैं, खामोश रहते हैं. एक बेहतरीन पॉलिटिकल मैनेजर हैं.’
सोनिया के पटेल पर अति विश्वास का एक कारण यह भी माना जाता है कि उतार-चढ़ाव के दौर में जब तमाम नेता पार्टी छोड़कर यहां वहां जा रहे थे तब भी अहमद पटेल ने पार्टी से दूरी बनाने की कोशिश नहीं की.
आज जब पार्टी लोकसभा चुनाव में बुरी तरह हारने के बाद राज्यों में भी हारती चली जा रही है. और कांग्रेस के छोटे से लेकर बड़े नेता नेतृत्व को सीधे या घुमा फिराकर पार्टी की फजीहत का दोषी ठहरा रहे हैं वहीं किसी ने अहमद पटेल को कुछ बोलते हुए शायद ही सुना होगा. इससे पता चलता है कि कैसे यह जोड़ी (सोनिया-पटेल) अन्य जोड़ियों से अलग हटकर राजनीतिक हैसियत के कमजोर या मजबूत होने के चंगुल से आजाद है.