लेखक-खालिद सलीम
सियासत के महरीन खिलाड़ी हैरान है की 2024 के आते-आते हिंदुस्तानी सियासत से मुसलमान को इस तरह बेदखल कर दिया जाएगा की जैसे हिंदुस्तानी सियासत में उनका कोई रूल ही नहीं रह गया है अजीब बात यह है कि एक वह वक्त भी था जब हिंदुस्तानी सियासत में मुसलमान को सबसे ज्यादा अहमियत का हमिल समझा जाता था और कहा जाता था के मुसलमान हिंदुस्तानी सियासत का एक ऐसा मोहरा है कि वह जिधर भी पलट जाए और जिस सियासी पार्टी के हक में वोट कर दें हिंदुस्तान में इस पार्टी की हुकूमत होगी यह बात गलत भी नहीं है आजादी के 60 साल तक हिंदुस्तानी मुसलमान ने बादशाह ग र का रुल अदा किया है और कांग्रेस पार्टी को मुसलमान नेऔर दूसरी सेकुलर पार्टियों को हिंदुस्तान में हुकूमत करने के मौके दिए हैं लेकिन पिछले 20 सालों से हिंदुस्तानी सियासत से मुसलमान को ऐसे बाहर कर दिया गया है कि जैसे हिंदुस्तान में उनका कोई वजूद ही नहीं रह गया है और बीजेपी की 10 साल की हुकूमत में तो मुसलमान को स्टेट और सेंट्रल से बिल्कुल बाहर कर दिया गया है हैरत की बात यह है कि भाजपा ने तो अपने सियासी फायदा के लिए और अपने सियासी नजरियात के तहत मुसलमान को ना पार्लियामेंट के टिकट दिया ना किसी असेंबली का टिकट दिया लेकिन अफसोस तो उन सियासी सेकुलर पार्टियों पर है जो मुसलमानो के वोट से विधानसभाओं और सेंट्रल में अपनी हुकूमतें बनती आई है उन्होंने भी पिछले 10 सालों के इलेक्शन में मुसलमान को विधानसभाऔ में लोकसभा में राज्यसभा में बिल्कुल नजरअंदाज कर दिया है और अब2024 के सिलेक्शन में अगर सरसरी नजर भी डाली जाए तो साफ नजर आ जाएगा की तमाम सेकुलर पार्टियों चाहे वह कांग्रेस हो समाजवादी पार्टी हो और बिहार में तेजस्वी यादव या सेकुलरिज्म का दम भरने वाले और अब बीजेपी के साथी बिहार के चीफ मिनिस्टर नीतीश कुमार जी हो इन सब ने मुसलमानो को टिकट देने में आनाकानी की है अजीब बात यह है कि महाराष्ट्र में वंचित बहुजन अखाडी ने एक भी मुसलमान को टिकट नहीं दिया है वहां दलितों के मशहूर लीडर प्रकाश आंबेडकर जो के डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के पोते हैं उन्होंने विंचित बहुजन अखाडी इलजाम लगाया है कि वह मुसलमानौ को टिकट देने से इसलिए डर रही है की कहीं हिंदू वोटर नाराज ना हो जाए बताया जाता है की महाराष्ट्र कांग्रेस की अध्यक्ष वर्षा गायकवाड़ नई दिल्ली में कांग्रेस के वरिष्ठ लीडरों से मिलने के लिए आई और उन्होंने जोर देकर कहा कि महाराष्ट्र में किसी भी मुसलमान को टिकट न दिया जाए और कांग्रेस की लीडरशिप ने उनकी यह बात मान ली है पिछली लोकसभा में मुसलमान पार्लियामेंट की तादाद सिर्फ 23 थी और आजादी के बाद यह तादाद सबसे कम थी हमें लग रहा है कि इस मर्तबा मुसलमान पार्लियामेंट मे 23 की तादाद को भी नहीं पहुंच पाएंगे अगर ऐसा होगा तो यह हिंदुस्तान की डेमोक्रेसी और यहां के सेकुलरिज्म पर एक बहुत बड़ा सवाल या निशान लग जाएगा हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि अगर इस मर्तबा बीजेपी इलेक्शन जीत जाती है और वह हुकूमत बना लेती है तो आइंदा हिंदुस्तान में इलेक्शन जम्हूरियत डेमोक्रेसी एक पुराना किस्सा बन जाएगा अगर ऐसा है तो इसमें सबसे ज्यादा कसूरवार अगर कोई होगा तो वह हिंदुस्तान की नाम निहाद सेकुलर पार्टियों होगी जिन्होंने यहां की अलपसंकयक को नजरअंदाज किया है खासतौर से मुसलमान को जिनके वह वोट से कामयाब होती आई है और सता के मजे लूटती रही है कांग्रेस ने अपनी गलतियों से अभी भी सबक हासिल नहीं किया है वह बीजेपी और आरएसएस के जाल में बुरी तरह फंस चुकी है उसे जिधर बीजेपी और आरएसएस ने धकेल ना चाहा कांग्रेस इस तरफ बढ़ती चली गई उसे अंदाजा भी नहीं हुआ है कि उसके साथ क्या हो रहा है कांग्रेस के नौजवान लीडर राहुल गांधी की ईमानदार शख्स है और उन्होंने मेहनत भी बहुत की है लेकिन वही मिसाल दी जा सकती है कि एक चना क्या भाड़ झुकेगा कांग्रेस के बड़े-बड़े लीडर बीजेपी में शामिल हो चुके हैं और जो कुछ बच्चे खींचे हैं उनसे भी यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह कब कांग्रेस पार्टी का दामन छोड़ दें सवाल यह है कि कांग्रेस अपनी उस इज्जत को कैसे वापस लाईगी जो नेहरू गांधी मौलाना आजाद सरदार पटेल जी जैसे बड़े मा पुरुषों ने कांग्रेस की इज्जत को चार चांद लगा दिए थे मुसलमान और दूसरे अल्पसंख्यक ग्रुप कांग्रेस से बहुत ही मायूस है और उम्मीद करते हैं कि वह डटकर फिर का प्रस्तावों का मुकाबला करेगी हां एक उम्मीद यहां कि अल्पसंख्यकों को बंगाल की चीफ मिनिस्टर ममता बनर्जी से है फिरका परस ताकतों से लड़ रही है और उनकी सियासत ढकी छुपी नहीं है वह जो करती हैं खुल्लम-खुल्ला करती हैं और जो बोलते हैं साफ बोलते हैं उन्हीं से बहुत सी उम्मीद है कि वह हिंदुस्तान की सियासत को उन ताकतों से आजाद कराएंगी जो हिंदुस्तान को तोड़ने और बिखरने पर आमादा है