नुक्कड़ नाटकों के जरिए राजनीति

– दिल्ली विधानसभा चुनाव में मतदाताओं को साधने के लिए नुक्कड़ नाटकों का सहारा ले रहीं पार्टियां!

इंट्रो- नुक्कड़ नाटक चौक-चौराहों पर भीड़ का ध्यान खींचने का बहुत पुराना माध्यम हैं। इन नुक्कड़ नाटकों के जरिए बड़ी आसानी से लोगों को संदेश दिए जाते रहे हैं। पूर्व में जब प्रसार के माध्यम कम थे, तब सरकारें देश के लोगों में किसी कार्य या योजना के प्रति जागरूकता लाने के लिए नुक्कड़ नाटकों का आयोजन कराती थीं। लेकिन अब चुनावों का रुख मोड़ने के लिए भी नुक्कड़ नाटकों का सहारा लिया जाता है। कुछ कलाकारों का दावा है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में कुछ राजनीतिक पार्टियां नुक्कड़ नाटक कराकर मतदाताओं को लुभाने की कोशिश में जुटी हैं। इन नुक्कड़ नाटकों में कभी-कभी नैतिकता की सीमाएं लांघी जा रही हैं। इस बार ‘तहलका’ ने इस तरह की चुनाव साधने की विभिन्न पार्टियों की योजनाओं की जानकारी कलाकारों से जुटाते हुए पड़ताल की है। पढ़िए, तहलका एसआईटी की यह अनोखी पड़ताल :-

‘मैंने प्रशांत किशोर की टीम के लिए काम किया है और 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान कई नुक्कड़ नाटक किए हैं, जब वह भाजपा के लिए काम कर रहे थे। उस चुनाव में मैंने चार निर्वाचन क्षेत्रों- आगरा, अकबरपुर, आजमगढ़ और रामपुर का प्रभार संभाला था। इनमें से भाजपा ने तीन सीटें जीती थीं। मैं निश्चितता के साथ कह सकता हूं कि नुक्कड़ नाटकों ने मतदाताओं को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।’ -यह बात नुक्कड़ नाटक कलाकार धर्मवीर मिश्रा ने नुक्कड़ नाटकों के नकली कॉन्ट्रेक्टर बनकर उससे मिले ‘तहलका’ के अंडरकवर रिपोर्टर को बताई।

‘पहले नुक्कड़ नाटकों का इस्तेमाल सामाजिक जागरूकता फैलाने के लिए किया जाता था। आजकल इनका इस्तेमाल राजनीतिक पार्टियां चुनावों के दौरान अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए करती हैं। इसके लिए किसी बड़ी भीड़ या मंच की आवश्यकता नहीं होती है। आप (नुक्कड़ कलाकार) कहीं भी जाकर प्रदर्शन कर सकते हैं और सिर्फ 10 मिनट के नाटक में सभी राजनीतिक एजेंडे को व्यक्त कर सकते हैं। दो अलग-अलग टीमों के साथ आप (नुक्कड़ कलाकार) बिना किसी कठिनाई के एक साथ दो स्थानों पर प्रदर्शन कर सकते हैं।’ -यह बात विभिन्न पार्टियों को अपनी सेवाएं प्रदान करने वाले एक अन्य रंगमंच कलाकार अनुराग द्विवेदी ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताई।

‘जब मैं पिछले आम चुनावों के दौरान दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए नुक्कड़ नाटक कर रहा था, तो श्रोताओं में से कई लोगों ने खुले तौर पर भाजपा के खिलाफ बात की थी। हालांकि जब चुनाव परिणाम घोषित हुए, तो भाजपा दिल्ली की सभी सातों लोकसभा सीटों पर विजयी हुई। यह दर्शाता है कि हमारे नुक्कड़ नाटकों ने भाजपा के पक्ष में मतदाताओं को प्रभावित करने में भूमिका निभायी।’ -यह दावा एक तीसरे थिएटर कलाकार शशांक साशा ने ‘तहलका’ के रिपोर्टर से बातचीत के दौरान किया।

‘हालांकि भविष्य में मैं भाजपा के लिए नुक्कड़ नाटक नहीं करूंगा, क्योंकि वे भुगतान जारी करने से पहले चुनावों के दौरान हमारे द्वारा किए गए नुक्कड़ नाटकों का व्यापक सबूत मांगते हैं। हमने हाल ही में हुए जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों के दौरान भाजपा के लिए काम किया; लेकिन उनके साथ हमारा अनुभव अच्छा नहीं रहा।’ -अनुराग द्विवेदी ने ‘तहलका’ रिपोर्टर से कहा।

‘यदि आप (कलाकार) आम आदमी पार्टी या कांग्रेस से नुक्कड़ नाटक अभियान का ठेका चाहते हैं, तो आपको सीधे उम्मीदवारों से संपर्क करना होगा, क्योंकि ये पार्टियां ऐसे मामलों को केंद्रीय रूप से नहीं संभालती हैं। दूसरी ओर भाजपा के मामले में आप (कलाकार) नुक्कड़ नाटकों का ठेका केवल उनके मुख्यालय के माध्यम से ही हासिल कर सकते हैं।’ -शशांक साशा ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया।

‘2025 के दिल्ली चुनावों में मैं आम आदमी पार्टी द्वारा जारी गीत- फिर लाएंगे केजरीवाल में शामिल हूं। पिछले कई वर्षों में मैंने भारत भर में विभिन्न राजनीतिक दलों के लिए तीन-चार लाख नुक्कड़ नाटक किये हैं। यदि 25 लोग हमारा नाटक देखने के लिए एकत्रित होते हैं, तो कम-से-कम पांच लोग हमारे अभिनय से प्रभावित होंगे और वे पांच लोग एक श्रृंखला बनाएंगे।’ -धर्मवीर मिश्रा ने अपने अनुभव को आधार बताते हुए कहा।

नुक्कड़ नाटक लंबे समय से भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग रहे हैं। भारतीय जन नाट्य संघ (आईपीटीए) ने देश भर में नुक्कड़ नाटकों को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ये प्रदर्शन आमतौर पर सार्वजनिक स्थानों जैसे मॉल, बाजार क्षेत्रों और सड़क के किनारे आयोजित किए जाते हैं। इसमें कलाकार पूरी तरह से अपनी प्राकृतिक आवाज पर निर्भर रहते हैं तथा माइक्रोफोन या स्पीकर के बिना अभिनय करते हैं। परंपरागत रूप से नुक्कड़ नाटकों का उपयोग किसानों के अधिकार, जल संकट, बाल श्रम और घरेलू हिंसा जैसे मुद्दों पर सामाजिक जागरूकता बढ़ाने के लिए किया जाता था।

हालांकि आजकल नुक्कड़ नाटक राजनीतिक दलों के लिए चुनावों के दौरान अपने एजेंडे को बढ़ावा देने का साधन बन गये हैं। सच्चाई को उजागर करने के लिए ‘तहलका’ ने इसकी पड़ताल की और नुक्कड़ नाटक समूहों से बात की। इन कलाकारों ने विभिन्न राजनीतिक दलों के लिए प्रचार करने और अपने प्रदर्शनों के माध्यम से मतदाताओं को प्रभावित करने की बात स्वीकार की।

इस सच्चाई का पता लगाने के लिए 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक उम्मीदवारों के लिए नुक्कड़ नाटक समूह की तलाश करने वाले एक काल्पनिक ग्राहक के रूप में ‘तहलका’ रिपोर्टर ने पहली मुलाकात दिल्ली के शशांक साशा से की। साशा पिछले 10 वर्षों से अपना पंजीकृत समूह क्रिएटिव आर्ट ग्रुप सोसायटी चला रहे हैं। उन्होंने बताया कि चुनावों के दौरान मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए सभी राजनीतिक दलों द्वारा नुक्कड़ नाटकों का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। उन्होंने दावा किया कि 2024 के आम चुनावों के दौरान उन्होंने दिल्ली में भाजपा के लिए नुक्कड़ नाटक किये थे और शहर की सभी सात लोकसभा सीटों पर पार्टी की जीत में उनका योगदान रहा है। साशा के अनुसार, उनके प्रदर्शन ने उन मतदाताओं को प्रभावित करने में भूमिका निभायी, जो शुरू में भाजपा के खिलाफ थे। उन्होंने खुलासा किया कि उन्हें नुक्कड़ नाटक करने के लिए भाजपा से प्रतिदिन 15,000 रुपए मिलते थे।

रिपोर्टर : एक बात बताओ आप, ये जो नुक्कड़ नाटक करवाओगे आप, दिल्ली में इससे क्या वोटर इंफ्लूएंस (मतदाता प्रभावित) होता है?

साशा : हां; बिलकुल होता है सर! फायदा होता है। अभी मैं आपको बताता हूं, लास्ट ईयर (पिछले साल) भी किया था मैंने, …2024 में। तब पीछे से आवाज सुनाई दे रही थी, जब हम कर रहे थे- क्या बीजेपी, क्या बीजेपी। बाद में पता लग रहा है कि सातों सीट बीजेपी ले गयी। …मतलब, मैं हैरान था सर! लिटरली (सचमुच) हैरान था, सात सीट्स सर!

रिपोर्टर : ये नुक्कड़ नाटक से हुआ है?

साशा : ये नुक्कड़ नाटक से ही हुआ है; और बाकी के जो लोग होते हैं सर! वो भी कुछ-न-कुछ काम करते हैं।

रिपोर्टर : तो आपकी कितनी सीट्स हो गई थीं लोकसभा इलेक्शन में?

साशा : बेसिकली आपको एक एरिया प्रोवाइड करवा देते हैं। हमको मिला था …रोहिणी के आस-पास का; जो लोकसभा मिली थी मुझे, लोकसभा सात में, …एक लोकसभा में, …बहुत बड़ी होती है वो, तो उसमें अलग विधानसभाओं में तो वही टीम छोड़ दी थी, वहां 10-12 दिन का प्रोग्राम चलाया था।

रिपोर्टर : तो आपने लगातार 10-12 दिन तक नुक्कड़ नाटक किया रोज? उसमें क्या करते थे आप?

साशा : यही नुक्कड़ नाटक; …स्क्रिप्ट दे दी थी।

रिपोर्टर : अच्छा! स्क्रिप्ट यही लोग देते हैं? …पॉलिटिकल पार्टी?

साशा : बीजेपी तो बनाकर देती है, आप को बताना पड़ता है, ये-ये है।

रिपोर्टर : ये ओपेनली (खुलेआम) करते हो आप?

साशा : हां-हां; जैसे अब बीजेपी करवा रही है, तो ये हमें प्रोवाइड करवा देंगे कुर्ता, एक स्टॉल टाइप का होता है, तो सामने देखते ही पता चल जाएगा, ये बीजेपी के बंदे हैं। लास्ट टाइम भी इन्होंने लोगो दिया था, भगवा कलर के जूते दिए थे। बेसिकली दिस इज अ कैंपेन (मूलत: यह एक अभियान है)।

रिपोर्टर : कितना पैसा देते हैं ये लोग?

साशा : लास्ट टाइम इन्होंने दिया था एक दिन का लगभग 15 हजार।

रिपोर्टर : तो 10 दिन किया, तो हो गया 1.5 लाख रुपए।

साशा ने खुलासा किया कि 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा ने मतदाताओं को प्रभावित करने के उद्देश्य से नुक्कड़ नाटक समूहों को नुक्कड़ नाटक करने के लिए आमंत्रित किया है। उनके सहित लगभग 250 समूहों ने अनुबंधों के लिए आवेदन किया है। अवसर प्राप्त करने के बारे में आश्वस्त, साशा ने चयन प्रक्रिया को समझाया और विस्तार से बताया कि कैसे भाजपा व्यापक कवरेज सुनिश्चित करने के लिए अपने पर्याप्त संसाधनों का उपयोग करते हुए निर्वाचन क्षेत्रों में टीमों को आवंटित करती है।

रिपोर्टर : अब जैसे आपने XXXX को बुलाया, ये किसका कैंपेन (अभियान) है?

साशा : बीजेपी का।

रिपोर्टर : अप्लाई की क्या फॉर्मेलिटी है?

साशा : सोर्स (स्रोत) से सारी चीजें पता चलती हैं। कोई सोर्स गया उसने बताया, उसके बाद रजिस्ट्रेशन कर लेते हैं।

रिपोर्टर : मान लो, भगवान न करे रिजेक्ट (रद्द) हो गया आपका, फिर?

साशा : नहीं, रिजेक्ट तो नहीं होगा सर! इतनी सियोरिटी है। …अब जैसे आप कह रहे हैं, आप तीन कैंडिडेट्स दे देंगे; तो आपकी भी कुछ बातचीत होगी!

रिपोर्टर : बीजेपी अभी कितने पर करवा रही है?

साशा : जो एंट्री भरी है, 250 टीम्स के आसपास एंट्री भरी है।

रिपोर्टर : और आप कॉन्फिडेंट हो, आपको मिल जाएगा?

साशा : हां; कितनी सीट्स हैं?

रिपोर्टर : 70

साशा : हां; तो ये लगभग 70 टीम्स को तो काम दे ही देंगे। और ये लोग क्या करते हैं, मान लीजिए एक टीम को इन्होंने 10 दिन के लिए हायर किया, तो एक विधानसभा में दो-तीन दिन में उतार देते हैं।

रिपोर्टर : 70 की 70 सीट्स पर करवा लेगी बीजेपी?

साशा : करवाएंगे सर! बीजेपी के पास फंड इतना है।

रिपोर्टर : सारा आप ही को (तुमको) मिलेगा?

साशा : नहीं, नहीं।

रिपोर्टर : आपको कितनी सीट की संभावना है?

साशा : एक ही मिलेगी सर! मैक्समम दो, …एक-दो ओनली। क्यूंकि आल ओवर दिल्ली में एक ही टीम नहीं कर सकती सर!

जब साशा से पूछा गया कि क्या वह भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के लिए भी अभियान का प्रबंधन कर सकते हैं, तो उन्होंने आत्मविश्वास के साथ अपनी रणनीति बतायी कि उनके समूह में अलग-अलग पार्टियों के लिए अलग-अलग टीमें हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि कोई ओवरलैप या मिक्स-अप न हो। दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने कहा कि भाजपा भी इस व्यवस्था से अवगत है; लेकिन उसका ध्यान केवल अपने परिणाम सुरक्षित करने पर है। नुक्कड़ नाटक प्रदर्शन के लिए साशा ने ‘तहलका’ रिपोर्टर से प्रतिदिन 20,000 रुपए लेने की मांग की, जिसमें भोजन और पटकथा लेखन का खर्च शामिल नहीं था।

रिपोर्टर : अगर मैं आपको आप और कांग्रेस के दो-तीन कैंडिडेट्स दिलवा दूं, कर लोगो आप?

साशा : हां।

रिपोर्टर : मिक्स नहीं हो जाएगा?

साशा : नहीं, मेरी और भी टीम्स हैं। जैसे मैं पर्टिकुलरली बीजेपी का कर रहा हूं; दूसरी टीम आम आदमी पार्टी का कर लेगी। तीसरी टीम कांग्रेस कर लेगी। एक्चुअली ये चीज जो है, बीजेपी वालों को भी पता है। यहां लोग ऐसे भी हैं, जो किसी पार्टी के हैं और दूसरी पार्टी के लिए काम कर रहे हैं। सबको सब पता है सर! लेकिन उनको तो अपने काम से मतलब है ना सर! और होता क्या है, …बीजेपी वाले अगर हम कहीं जा रहे हैं, तो एक पर्सन (व्यक्ति) अपना दे देते हैं। इससे मैं लोकेशन लूंगा, को-ऑर्डिनेशन होगा, वो साथ में ही रहेगा पर्सन। उससे क्या होगा, वो हमको वॉच करता (देखता) रहेगा, हम कोई गलत इंफॉर्मेशन तो पास नहीं कर रहे हैं!

रिपोर्टर : अच्छा, मैं कितना रेट कोट कर दूं आपकी तरफ से?

साशा : कर दीजिए 20 के आसपास।

रिपोर्टर : जो 15 हजार आपने लोकसभा में किए थे, उसमें खाना था?

साशा : नहीं सर!

रिपोर्टर : स्क्रिप्ट आपकी होगी।

साशा : हां; वो लिखवानी पड़ेगी बाहर से, उसका भी खर्चा जाएगा।

साशा ने अब भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच अभियान रणनीतियों में महत्वपूर्ण अंतर को रेखांकित किया। उन्होंने बताया कि भाजपा का केंद्रीय कार्यालय चुनावों के लिए नुक्कड़ नाटक के ठेकों का सीधे प्रबंधन करता है। इसके विपरीत कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने यह जिम्मेदारी व्यक्तिगत उम्मीदवारों पर छोड़ दी है तथा थिएटर समूहों को काम के लिए सीधे उनसे संपर्क करना पड़ता है।

साशा : बीजेपी वाले ना क्या करते हैं, मैं आपको बताऊं- जैसे अब दिल्ली में इलेक्शन हैं। दिल्ली बीजेपी का जो कार्यालय है, वो कार्यालय ही से डील करते हैं डायरेक्ट। …अब जैसे कि उन्होंने निकाल दिया कि आप लोग आ जाओ।

रिपोर्टर : जितनी भी नुक्कड़ टीम्स हैं?

साशा : हां; अब जिन-जिन लोगों को पता चलता है, वो अपना अप्लाई कर देते हैं। कांग्रेस और आप क्या है, उनके लिए पर्टिकुलरली (खासतौर पर) हर कैंडिडेट (उम्मीदवार) के पास जाना पड़ता है। वो डील नहीं करते, जैसे दिल्ली प्रदेश है। आम आदमी पार्टी का वो डील नहीं करते, सीधे आप कैंडिडेट के पास जाओ। …कैंडिडेट ही आपको काम देगा। डिपेंड करता है, कैंडिडेट पर, काम करवाएगा या नहीं। यही कांग्रेस में है।

अब साशा ने विस्तार से बताया कि कैसे नुक्कड़ नाटक मतदाताओं को प्रभावित करने का एक शक्तिशाली साधन हैं। उन्होंने बताया कि लाइव इंटरेक्शन और मनोरंजन के पहलू दर्शकों को आकर्षित करते हैं और ऐसा प्रभाव पैदा करते हैं, जिसे डिजिटल प्लेटफॉर्म अक्सर हासिल करने में असफल रहते हैं। जमीनी स्तर पर लोगों से सीधे जुड़कर ये प्रदर्शन स्थायी प्रभाव छोड़ते हैं, भले ही दर्शकों का केवल एक छोटा-सा हिस्सा ही इच्छित संदेश को समझ पाता हो। दर्शकों के साथ सीधा और व्यक्तिगत जुड़ाव एक अभियान माध्यम के रूप में नुक्कड़ नाटकों की अद्वितीय प्रभावशीलता को रेखांकित करता है।

रिपोर्टर : अच्छा; अगर मैं बात करूं किसी कैंडिडेट से आप (आम आदमी पार्टी) के या कांग्रेस के, तो उनका पहला सवाल होगा- कैसे इंफ्लूएंस करेंगे? वो आप मुझे तरीका समझा दो।

साशा : सर! तरीका इतना-सा है, हमारी जो स्क्रिप्ट होगी ना! आप जब भी बात करेंगे, बोलिएगा नुक्कड़ नाटक बहुत अच्छा प्लेटफॉर्म है; …ऑडियंस (दर्शक) को इंफ्लूएंस (प्रभावित) किया जा सकता है। क्यूंकि हम जब भी कोई चीज फोन पर देखते हैं ना! स्क्रॉल कर देते हैं; लेकिन जब मैन-टू-मैन बात होती है, परफॉर्मेंस दिखाते हैं 15 मिनट, 20 मिनट का, तो उसमें ग्राउंड पर जाते हैं। उनसे इंट्रेक्ट करते हैं, तो 15-20 मिनट में इंटरटेनमेंट पर्पज से उसको दिखाते हैं। जब दिखाने लगते हैं, तो लोग इंटरेस्ट लेने लगते हैं। कहीं-न-कहीं अगर 100 लोग खड़े हैं, 100 में से 30 के दिमाग में भी आ गयी, तो कन्वर्ट तो हो ही गया। तो बहुत अच्छा प्लेटफॉर्म है एंटरटेनमेंट के हिसाब से लोगों तक अपनी बात पहुंचाना और लोग इंज्वॉय भी करते हैं। गालियां पड़ती हैं आर्टिस्ट (कलाकार) को पड़ती हैं, पर वो लेट गो (जाने दो) वाली बात होती है। देखिए, जब हम आम जनता के बीच में जाते हैं, नेताओं को भी गालियां पड़ती हैं, फिर हम तो आर्टिस्ट हैं।

साशा के बाद अब ‘तहलका’ रिपोर्टर की मुलाकात दिल्ली के माध्यम नुक्कड़ नाटक समूह के अनुराग द्विवेदी से हुई। अनुराग द्विवेदी और रिपोर्टर मुलाकात में एक दिलचस्प परिप्रेक्ष्य सामने आया। कभी सामाजिक जागरूकता का माध्यम रहे नुक्कड़ नाटक अब राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के साधन बन गये हैं। अनुराग ने बताया कि किस प्रकार इस परिवर्तन ने मतदाताओं को लक्षित रूप से प्रभावित करने में मदद की है, तथा बड़ी व्यवस्था या भीड़ की आवश्यकता के बिना विभिन्न मोहल्लों में लघु, प्रभावशाली प्रदर्शनों का लाभ उठाया है।

अनुराग : पॉलिटिकल एजेंडा के लिए कभी यूज (उपयोग) नहीं हुआ नुक्कड़ नाटक। सोशल अवेयरनेस के लिए ही यूज होता है; लेकिन अब ये हो गया है कि पॉलिटिकल भी, …एक साथ एक नाटक 10 मिनट में आप अपने सारे एजेंडा डील कर सकते हो। आप कहीं भी एप्रोच कर सकते हो। मंच लगाने की जरूरत नहीं, हजारों लोगों को बुलाने की जरूरत नहीं है। यदि आपकी गली में दो चौराहे हैं, तो दोनों चौराहों पर कर सकते हैं। अगर 20-25 लोग इस चौराहे पर जमा हैं, 20-25 उस चौराहे पर, तो जरूरी नहीं हम उनको भी यहां बुलाएं, हम वहां भी कर सकते हैं।

अनुराग ने हाल ही में जम्मू-कश्मीर चुनावों के दौरान निराशाजनक अनुभव का हवाला देते हुए 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा के साथ काम न करने की मंशा व्यक्त की। उन्होंने बताया कि किस प्रकार भाजपा की व्यापक तकनीकी आवश्यकताओं, जिसमें अनेक फॉर्म भरने से लेकर उनके एप और व्हाट्सएप चैनल पर प्रदर्शन के लिए फोटोग्राफिक प्रमाण उपलब्ध कराना शामिल है; ने इस प्रक्रिया को चुनौतीपूर्ण बना दिया। इसके अतिरिक्त भुगतान में देरी से मामला और जटिल हो जाता है, जिससे भाजपा के साथ दोबारा काम करने में उनकी (अनुराग की) रुचि कम हो गयी है।

रिपोर्टर : अभी आपने बीजेपी के लिए अप्लाई किया है 2025 में?

अनुराग : अभी नहीं किया है। बीजेपी के लिए नहीं करना है। वो वाला एक्सपीरिएंस थोड़ा-सा अच्छा नहीं हुआ। हम इतनी दूर जा रहे हैं, बीजेपी की टेक्निकल चीजें ज़्यादा हैं। हम अपनी आर्टिस्टिक (कलात्मक) चीजें नहीं दे पा रहे हैं, जितनी उनकी टेक्निकल चीजें हैं। जैसे वो फॉर्म देते हैं, उसे भरो, कितने लोगों ने नाटक किया, किस लोकेशन पर किया, उस लोकेशन से तीन-चार व्यक्तियों से साइन भी करवाना। उसके बाद उनकी एक एप आती है और इनका व्हाट्सएप चैनल भी चलता है, सेम फोटो इनको ग्रुप पर भी चाहिए। सेम एप पर भी अपलोड करो आर्टिस्टों की, वो इतने ज़्यादा प्रूफ मांग रहे हैं नाटक के। …उनकी एप पर हर घंटे आपको फोटो अपलोड करनी है। पेमेंट भी ऐसे नहीं देते। उसका भी लोचा है। जम्मू में इतने साल बाद जा रहे थे, इतने साल बाद चुनाव हो रहे थे, बहुत कम लोग वहां जाने को तैयार हुए थे। ये सब चीजें करने के बाद पेमेंट के लिए भी बहुत ज़्यादा इंतजार करना पड़ता था। कार्यालय जाओ, वहां फॉर्म भरो। …अगर आपने 10 दिन काम किया है, तो 10 दिन के फॉर्म भरो; …आपके पास फोटो प्रूफ भी होना चाहिए।

रिपोर्टर : वर्ना वो पैसे काट लेंगे?

अनुराग : हां।

अनुराग ने दावा किया कि उनके नुक्कड़ नाटकों ने भाजपा को जम्मू-कश्मीर चुनावों के दौरान राम मंदिर और अनुच्छेद-370 जैसे विषयों पर ध्यान केंद्रित करते हुए हिन्दुत्व कार्ड खेलने में मदद की थी। अपने नुक्कड़ नाटक प्रदर्शनों के लिए उन्हें प्रति नाटक 2,200 रुपए मिलते थे और वे प्रतिदिन छ: से सात प्रदर्शन करते थे, जो शारीरिक श्रम के हिसाब से काफी कठिन होता था। उन्होंने बताया कि किसी व्यक्तिगत उम्मीदवार ने नहीं, बल्कि भाजपा ने ही उनकी टीम को चालीस नुक्कड़ नाटक समूहों के एक बड़े दल के हिस्से के रूप में तैनात किया था।

रिपोर्टर : जम्मू में तो आपने बीजेपी का हिंदुत्व कार्ड खेला होगा?

अनुराग : हां; वही है। राम मंदिर का मुद्दा, 370 का मुद्दा; …ये ही दोनों मेन मुद्दे थे। मैं तो सोच रहा हूं आप जो हमें देंगे, हम उसी के इर्द-गिर्द बनाएंगे नाटक।

रिपोर्टर : कितना पेमेंट होता है एक दिन का?

अनुराग : एक दिन का नहीं सर! एक नाटक का। 2,200 रुपया दिया एक नाटक का। …2,200 के हिसाब से छ: नाटक, सात नाटक।

रिपोर्टर : दिन में कितने करते थे?

अनुराग : दिन में छ: से सात नाटक, ये हमारी लिमिट है। छ:-सात नाटक अगर 10-10 मिनट भी किया सर! बहुत एनर्जी (ऊर्जा) लगती है।

रिपोर्टर : ये आपको पार्टी ने बुलाया था या क्लाइंट ने?

अनुराग : पार्टी ने बुलाया था सर! चालीस टीम्स गई थीं।

अनुराग ने हमें विश्वास के साथ आश्वासन दिया कि उनका प्रदर्शन हमारे उम्मीदवारों के पक्ष में मतदाताओं को प्रभावित कर सकता है तथा उन्होंने इसे प्रमाणित करने के लिए अपनी कलात्मक क्षमता पर विश्वास जताया। उन्होंने नकद भुगतान पर जोर दिया और अपने अनुभव का हवाला देते हुए कहा कि राजनीतिक दल आमतौर पर नकद भुगतान करते हैं। अपनी सेवाओं के लिए उन्होंने नुक्कड़ नाटक प्रदर्शन के लिए प्रतिदिन 10,000 रुपए की मांग की।

रिपोर्टर : इसकी क्या गारंटी है कि वोटर इंफ्लूएंस होगा?

अनुराग : मैं एक आर्टिस्ट हूं। पहले आपको दिखाऊंगा, आप इंफ्लूएंस होंगे, तब आप करवाएंगे।

रिपोर्टर : मोड ऑफ पेमेंट (भुगतान का नियम) क्या होगा?

अनुराग : कैश या ऑनलाइन। …लेकिन पॉलिटिकल पार्टी से आज तक ऑनलाइन मिला नहीं है हमको। झूठ नहीं बोल रहे हैं। जहां भी हुआ है, कैश ही हुआ है।

रिपोर्टर : अभी अगर हम आपसे करवाएं, तो कितना पेमेंट लोगे?

अनुराग : 10 हजार पर-डे (प्रति दिन) का।

अनुराग से मिलने के बाद ‘तहलका’ रिपोर्टर ने दिल्ली में धर्मा नुक्कड़ नाटक ग्रुप के सदस्य और आम आदमी पार्टी के हालिया प्रचार गीत- ‘फिर लाएंगे केजरीवाल’ के कलाकार धर्मवीर मिश्रा से संपर्क किया। रिपोर्टर ने उन्हें 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनावों के लिए स्वतंत्र उम्मीदवारों से जुड़े एक मनगढ़ंत सौदे को लेकर बातचीत की। धर्मवीर ने बिना किसी हिचकिचाहट के 2014 के आम चुनावों के दौरान प्रशांत किशोर की टीम का हिस्सा होने के अपने अनुभव को साझा किया, जहां उन्होंने उत्तर प्रदेश में नुक्कड़ नाटक के माध्यम से भाजपा के अभियान में योगदान दिया था।

धर्मवीर : कोई दिक्कत नहीं सर! पिछले चुनाव में प्रशांत किशोर की टीम का हिस्सा रहा हूं मैं; …नुक्कड़ टीम का।

रिपोर्टर : प्रशांत किशोर का?

धर्मवीर : हां।

रिपोर्टर : कब?

धर्मवीर : 2014 में यूपी में। आजमगढ़ में संभाला था। अकबरपुर में संभाला था। रामपुर भी मैंने संभाला था और आगरा भी। ये चार, …चारों जगह नुक्कड़ नाटक किये थे, 2014 के चुनाव में।

रिपोर्टर : किसके लिए काम कर रहे थे तब?

धर्मवीर : तब बीजेपी के लिए काम कर रहे थे।

रिपोर्टर : अच्छा, मोदी के लिए काम कर रहे थे?

धर्मवीर : हां जी! हम बोलते थे थे, बच्चे आते हैं नुक्कड़ नाटक में। बोलते थे, कोई दिक्कत नहीं। बच्चों के माइंड में जब आएगी, वो बोलेंगे घर जाकर; हर-हर मोदी-घर-घर मोदी। …इसमें हमने तीन सीट जीती थीं और एक सीट हारी थी।

धर्मवीर अब दावा करते हैं कि उन्होंने 2014 से अब तक भारत भर में विभिन्न पार्टियों के लिए 3-4 लाख राजनीतिक नुक्कड़ नाटक आयोजित किये हैं। उनका मानना है कि ये प्रदर्शन समर्थन की छोटी; लेकिन प्रभावशाली श्रृंखला बनाकर मतदाताओं को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

रिपोर्टर : अब आप ये बताओ, नुक्कड़ नाटक से कैसे वोटर्स को इंफ्लूएंस कर सकते हो आप?

धर्मवीर : नुक्कड़ नाटक होता है भीड़ करना। सब्जेक्ट दिया, उसके बाद हमें उसमें से 20-25 लोग इकट्ठे करने पड़ते हैं, उसमें से पांच बंदा निकलता है, जो आपके पक्ष में रहता है। और वो पांच बंदे ही चेन बनवाते हैं।

रिपोर्टर : ये कैसे पता आपको पांच बंदे ही बनवाते हैं चेन?

धर्मवीर : एक्सपीरिएंस है सर! …2014 से।

रिपोर्टर : आपने कितने पॉलिटिकल नुक्कड़ नाटक इलेक्शन के अभी तक करवा दिये?

धर्मवीर : पॉलिटिकल नाटक तो मैं तीन-चार लाख करवा चुका हूं अभी तक।

रिपोर्टर : तीन-चार लाख! आल ओवर इंडिया? (पूरे भारत में?)

धर्मवीर : हां; आल ओवर इंडिया। …अलग-अलग चुनाव में।

अब धर्मवीर ने अपनी नुक्कड़ नाटक टीम की संरचना और लागत का विवरण दिया, जिसमें पांच सदस्य होते हैं- एक लड़की और चार लड़के। वह प्रति प्रस्तुति 1,700 रुपए लेते हैं, जिसमें यात्रा, दर्शकों को इकट्ठा करना और 20-25 मिनट का प्रदर्शन आयोजित करना शामिल है। टीमों का संगठित दृष्टिकोण दर्शाता है कि लक्षित संदेश सीधे लोगों तक कैसे पहुंचाए जाते हैं।

रिपोर्टर : एक टीम में कितने लोग होंगे?

धर्मवीर : पांच लोग। …एक लड़की, चार लड़के।

रिपोर्टर : कितना खर्चा होगा?

धर्मवीर : 1,700 रुपए एक नाटक का। आना-जाना पब्लिक को बुलाना, वो 20-25 मिनट का होता है ये सब।

01 जनवरी, 1989 को 34 वर्षीय कवि और नाटककार सफदर हाशमी, जो कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के नेता थे; गाजियाबाद सिटी बोर्ड चुनाव में पार्षद पद के लिए सीपीएम उम्मीदवार रामानंद झा के समर्थन में एक बड़ी भीड़ के सामने नुक्कड़ नाटक कर रहे थे; तब उन पर झा के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले उस समय के कांग्रेस उम्मीदवार मुकेश शर्मा ने क्रूरतापूर्वक हमला किया था। इस हमले के बाद सफदर हाशमी की अस्पताल में मौत हो गयी थी। यह दु:खद घटना इस बात को रेखांकित करती है कि मतदाताओं की राय को आकार देने में नुक्कड़ नाटकों ने कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है; इस हद तक कि प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवारों को चरम उपायों का सहारा लेना पड़ा है। 36 साल बाद भी नुक्कड़ नाटक मतदाताओं तक पहुंचने का एक महत्वपूर्ण साधन बने हुए हैं, जो आधुनिक राजनीतिक आख्यानों के अनुकूल ढलते हुए जमीनी स्तर पर अपना प्रभाव बरकरार रखते हैं। उनका निरंतर प्रचलन भारतीय राजनीति में एक प्रभावशाली माध्यम के रूप में उनकी स्थायी शक्ति को उजागर करता है।