छत्तीसगढ़ के सुदूर गांवों में मुर्गा लड़ाई के प्रति रहवासियों में खासा उत्साह देखा जा सकता है. तकनीक और मनोरंजन के किसी अन्य साधन से दूर दंतेवाड़ा के इन आदिवासी इलाकों में मुर्गों की लड़ाई की परंपरा रही है. इन मुर्गों को लड़ने के लिहाज से ही तैयार किया जाता है. हफ्ते में किसी एक दिन आसपास के किसी भी गांव या कस्बे में इन मुर्गों को लड़ाया जाता है. यहां के लोगों में इस खेल को लेकर कितना जुनून है यह यहां उमड़े हुजूम को देखकर पता चलता है. यह नजारा दंतेवाड़ा के पास मौजूद गिदम गांव का है.
साप्ताहिक बाजार करने आए इन दर्शकों में अपने पसंदीदा मुर्गे की जीत पर शर्तें लगती हैं. सैकड़ों की भीड़ इकट्ठा होने की वजह से मनोरंजन के अलावा यह खेल ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए भी फायदेमंद होता है. नक्सल प्रभावित इस क्षेत्र में इस खेल को लेकर इतना जुनून है कि कभी-कभी नक्सली और पुलिसवाले दोनों यह खेल देखने पहुंचते हैं और मुर्गों की ये लड़ाई पुलिस-नक्सली मुठभेड़ में तब्दील हो जाती है. वैसे मुर्गों की इस लड़ाई के खेल का नियम सीधा है, या तो खेल में जीत मिलेगी या मौत.
सभी फोटो : विजय पांडेय