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इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि पर मोदी और कांग्रेस नेताओं ने श्रद्धांजलि दी

पूर्व प्रधानमंत्री और ‘आयरन लेडी’ इंदिरा गांधी की आज पुण्यतिथि है। इस मौके पर देश भर में उन्हें श्रंद्धांजलि अर्पित की गयी है। पीएम नरेंद्र मोदी, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आज़ाद, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी सहित कई वरिष्ठ ने इंदिरा गांधी को याद किया  है।
इंदिरा गांधी की पोती और उत्तर प्रदेश की प्रभारी महासचिव प्रियंका गांधी ने इंदिरा गांधी के बलिदान दिवस पर शक्ति स्थल स्थित उनकी समाधि पर संकल्प सुमन अर्पित किए। इंदिरा गांधी को याद करते हुए पोते और कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा – ‘असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर मा अमृतम गामया, असत्य से सत्य की ओर। अंधकार से प्रकाश की ओर। मृत्यु से जीवन तक। मुझे यह दिखाने के लिए कि इन शब्दों को जीने का क्या मतलब है, इसके लिए दादी का शुक्रिया।’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर आयरन लेडी इंदिरा को इन शब्दों में श्रद्धांजलि दी – ‘हमारी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी को उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि।’
वरिष्ठ कांग्रेस नेता गुलाम नबी आज़ाद ने इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए ट्वीट किया – ‘श्रीमती इंदिरा गांधी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि। इंदिरा गांधी ने पूरे देश को अदम्य साहस और देश प्रेम के लिए प्रेरित किया। देश की एकता के लिए उनके निरंतर योगदान और बलिदान को आने वाली पीढ़ियां याद करेंगी।’
उत्तर प्रदेश कांग्रेस की प्रभारी महासचिव प्रियंका गांधी ने अपनी दादी और पूर्व प्रधानमंत्री को उनकी 36वीं पुण्यतिथि पर शक्ति स्थल पर श्रद्धांजलि अर्पित की।  प्रियंका गांधी इंदिरा को श्रद्धांजलि देने के लिए उनकी समाधि शक्ति स्थल गईं। याद रहे 31 अक्टूबर, 1984 को इंदिरा गांधी की अकबर रोड स्थित उनके सरकारी आवास पर उनके ही अंगरक्षकों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी।
इस मौके पर वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने ट्वीट किया  ‘इंदिरा जी के बलिदान दिवस पर उनके प्रति श्रद्धांजलि। देश उन्हें कभी भी नहीं भुला पाएगा। देश के गरीब मज़दूर किसान दलित आदिवासी उन्हें सदैव याद रखेगा। देश उनके साहस और सबल शक्ति शाली नेतृत्व को कभी भी नहीं भुला पाएगा। कांग्रेस नेता जनार्दन द्विवेदी सहित कई कांग्रेस नेताओं ने इंदिरा गांधी को श्रद्धांजलि दी दी है।
पीएम मोदी ने ट्वीट किया, ‘‘हमारी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि.” कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता इंदिरा गांधी को आज उनकी पुण्यतिथि पर याद कर रहे हैं. बता दें कि इंदिरा गांधी भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री थीं. आज ही के दिन 1984 में उनकी हत्या कर दी गई थी. इंदिरा गांधी जनवरी 1966 से मार्च 1977 तक देश की प्रधानमंत्री रहीं. इसके बाद 1980 में दोबारा वह इस पद पर पहुंचीं. वह वर्ष 1959 से 1960 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष भी रहीं थीं.पीएम  मोदी का ट्वीट –
Narendra Modi
@narendramodi
Tributes to our former PM Smt. Indira Gandhi Ji on her death anniversary.

राहुल गांधी का ट्वीट –
Rahul Gandhi
@RahulGandhi
asato mā sadgamaya, tamaso mā jyotirgamaya, mṛtyor mā amṛtaṃ gamaya, From the false to truth. From darkness to light. From death to life. Thank you Dadi for showing me what it means to live these words.

तुर्की में 7.0 तीव्रता का भीषण भूकंप, भरभराकर गिरीं बहुमंजिला इमारतें

तुर्की और ग्रीस में शुक्रवार को आए 7 की तीव्रता वाले भीषण भूकंप से भारी तबाही हुई है। रिक्टर स्केल पर 7 की  तीव्रता वाले भूकंप से तुर्की के इजमिर शहर की कम से कम 20 बहुमंजिला इमारतें ढह गईं। बताया जा रहा है कि मलबे में कई लोगों के दबे होने का भी आशंका है। हालांकि अभी विस्तृत जानकारी का इंतज़ार है। मामले पर कई मंत्रियों ने ट्वीट किए हैं।
तुर्की के मंत्री सुलेमान सोयलू ने बताया कि इस भूकंप के कारण बोर्नोवा और बेराकली शहर में भी इमारतों को नुकसान पहुंचा है। उन्होंने कहा कि राहत और बचाव कार्य के लिए कई टीमें अगल-अलग शहरों में काम कर रही हैं। अमेरिकी जियोलॉजिकल सर्वे ने बताया कि भूकंप का केंद्र ग्रीस के नोन कार्लोवसियन शहर के उत्तर-पूर्व में 14 किलोमीटर की दूरी पर था। जमीन से कम गहराई पर इस भूकंप का केंद्र होने के कारण इसके तेज झटके महसूस किए गए हैं। इससे बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ है। कई लोगों के इमारतों में दबे होने की आशंका जताई गई है। हालांकि किसी के भी मारे जाने की सूचना नहीं है।
भूकंप के बाद तुर्की के राष्ट्रपति तैयब एर्दोगन ने ट्वीट कर लिखा कि गेट वेल सून इजमिर। हम सभी संसाधनों के साथ भूकंप प्रभावित अपने नागरिकों के साथ खड़े हैं। हमने अपने सभी संबंधित एजेंसियों और मंत्रियों के साथ प्रभावित क्षेत्र में बचाव अभियान शुरू कर दिया है।

अमेठी में दलित प्रधान के पति को जलाकर मार डाला, राहुल गांधी ने घटना की कड़ी निंदा की

उत्तर प्रदेश के अमेठी में एक दर्दनाक घटना में एक दलित प्रधान के पति की जिन्दा जलाकर हत्या कर दी गयी। इसे राजनीतिक दुश्मनी का मामला बताया गया है। पांच नामजद आरोपियों में से तीन गिरफ्तार कर लिए गए हैं। उधर कांग्रेस नेता और अमेठी के तीन बार सांसद रहे राहुल गांधी ने इस घटना की कड़ी निंदा की है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक दलित ग्राम प्रधान के पति को राजनीतिक दुश्मनी के कारण बदमाशों ने जलाकर मार डाला। पुलिस ने पांच नामजद आरोपियों में से तीन को गिरफ्तार कर लिया है। प्रधान के पति को गुरुवार की देर रात बंदोइया गांव के बाहरी इलाके में आग की लपटों में घिरा पाया गया जिसके बाद स्थानीय लोगों ने पुलिस को सूचना दी।

गंभीर हालत में उन्हें अस्पताल ले जाया गया लेकिन बुरी तरह से जल जाने के कारण शुक्रवार को उन्होंने दम तोड़ दिया। मृतक की पहचान 50 वर्षीय अर्जुन के रूप में हुई है। शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया है। तनाव को देखते हुए गांव में अतिरिक्त पुलिस तैनात की गयी है।

पुलिस के मुताबिक परिवार ने अभी तक कोई शिकायत नहीं दी है, लेकिन पुलिस मामले की जांच कर रही है। अर्जुन की पत्नी छोटका, ग्राम प्रधान है। छोटका ने बताया कि उनके पति किसी काम से बाहर गए थे और गुरुवार देर रात तक घर नहीं लौटे। इसके बाद उन्हें जानकारी दी गई कि उनके पति को गांव के बाहर सुनसान जगह पर आग के हवाले कर दिया गया। उनका आरोप है कि यह राजनीतिक रंजिश के कारण किया गया है।

इस बीच कांग्रेस नेता और अमेठी के तीन बार सांसद रहे राहुल गांधी ने इस घटना की कड़ी निंदा की है। उधर अमेठी की सांसद और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने पुलिस अधिकारियों से इस मामले पर बात की और उन्हें सख्त कार्रवाई के लिए कहा है।

कैट ने किया ई कॉमर्स पोर्टल भारत ईमार्किट का “लोगो” लांच

कॉन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने अपने महत्वकांक्षी ई कॉमर्स पोर्टल ‘भारत ईमार्केट’ का प्रतीक चिन्ह लांच कर दिया है। इसे लांच करते हुए कैट ने कहा, यह देश के ई कॉमर्स व्यापार में भारत के व्यापारियों और ई कॉमर्स व्यापार को विदेशी ई कॉमर्स कंपनियों के चंगुल से आजाद कराने की पहल है। इस पोर्टल की टैग लाईन ‘’मेरे लिए, मेरे देश के लिए’’ जो कि भारत के व्यापारियों द्वारा भारत के उपभोक्ताओ और व्यापारियो के लिए बनाई गई है। यह पोर्टल इस वर्ष दिसंबर तक शुरू किया जाएगा। भारत ईमार्किट की खास बात यह है कि इस पोर्टल पर ऐसी किसी भी वस्तु की बिक्री नहीं की जाएगी जो कि चीन में बनी हो।

इस लॉंचिंग के मौके पर वीडियो कॉन्फ्रेंस द्वारा देश के केंद्रीय वाणिज्य राज्य मंत्री सोम प्रकाश ने भारत ईमार्केट को लांच करने के उपलक्ष्य पर कैट के निर्णय की सराहना करते हुए कहा, कि निश्चित रूप से कदम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकल पर वोकल तथा आत्मनिर्भर भारत को अमली जामा पहनाने के लिए मील का पत्थर बनेगा। उन्होंने साफ शब्दों मे कहा कि सरकार ई कामर्स व्यापार को सबके लिए समानता से उपलब्ध कराने के लिए संकल्पित है और किसी ई कॉमर्स कंपनी की मनमानी को सरकार बर्दाश्त नहीं करेगी और यदि कोई भी सरकार की नीतियों का उल्लंघन करेगा तो उसे सख्त कारवाई का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। अब व्यापार करने का तरीका बदल रहा है और व्यापारियों को भी अब अपने व्यापार को तकनीक से जोड़ना जरूरी है।‘

आपको बता दें, कोरोना महामारी के चलते देश में हुए लॉकडाउन के समय ई मार्केट के प्रयोग में अचानक से वृदि देखने को मिली। भारत में कोरोना से पहले ई व्यव्साय केवल 7% था जो आज वर्तमान में बढ़कर 24% हो गया है। इसी को देखते हुए कैट ने ‘भारत ईमार्केट’ को लांच किया है। जिसमें चीन के किसी भी प्रोडक्ट की बिक्री नही की जाएगी। देश के शहरी क्षेत्रों में वर्तमान में इंटरनेट का उपयोग करने वाले 42% उपयोगकर्ता है। और जो कि ई कॉमर्स के माध्यम से अपनी सभी प्रकार के समान की खरीदारी भी करते है।

कॉन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स  के राष्ट्रीय अध्यक्ष बीसी भरतिया एंव राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने कहा, भारत में व्यापारियों को दुकाने भारतीय अर्थव्यवस्था में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रहेगी, जिन्हे कोई मिटा नहीं सकता। किंतु ई कामर्स व्यापार का नया तरीका है। जिसको देश के व्यापारियों द्वारा एक अतिरिक्त व्यापार के रूप में अपनाया जाना भी बेहद आवश्यक बन गया है।

वर्ष 2026 तक 200 बिलियन का करोबार होने की उम्मीद

भारत में स्मार्टफोन और इंटरनेट के तेजी से बढ़ते इस्तेमाल तथा केंद्र सरकार द्वारा बड़ी संख्या में पंचायतों को डिजिटल तकनीक के साथ जोड़े जाने के चलते देश के ई कामर्स बाज़ार की वर्ष 2026 तक 200 बिलियन डॉलर होने की उम्मीद है। जो वर्तमान में लगभग 45 बिलियन डॉलर है। 5जी तकनीक के आने के बाद से देश में ई कॉमर्स व्यापार तेजी से आगे बढ़ेगा और लोग बडी संख्या मे डिजिटल कॉमर्स को अपनाऐंगें। टेक्नोलॉजी ने डिजिटल पेमेंट, हाइपर लोकल लॉजिस्टिक्स, एनालिटिक्स से संचालित कस्टमर एंगेजमेंट और डिजिटल विज्ञापनों जैसे नए विचारों को जन्म दिया है। और जिससे भी भारत में व्यापार बढ़ेगा।

आतंकवादियों ने कश्मीर में 3 भाजपा नेताओं की हत्या की, उठे कई सवाल

केंद्र सरकार के जम्मू कश्मीर में आतंकवाद का खात्मा करने के दावों के बीच गुरूवार रात तीन भाजपा कार्यकर्ताओं की आतंकवादियों के हाथों हत्या ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। आतंकियों ने भाजपा नेताओं की हत्या तब की जब वे कार पर अपने घर जा रहे थे। तीनों कार्यकर्ता एक ही समुदाय के थे। घाटी में आतंकवादी पिछले कुछ समय से भाजपा कार्यकर्ताओं पर हमले कर रहे हैं, खासकर ऐसे मुस्लिम नेताओं पर जो भाजपा से जुड़े हैं।

इस घटना के बाद पीएम मोदी ने एक ट्वीट कर इस हमले की निंदा की है। उन्‍होंने लिखा – ‘मैं तीन युवा भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्‍या की निंदा करता हूं। वे जम्‍मू-कश्‍मीर में उत्‍कृष्‍ट कार्य करने वाले उज्ज्वल युवा थे। दुख के इस समय में मेरी संवेदनाएं उनके परिवार के साथ हैं। उनकी आत्मा को शांति मिले।’

जानकारी के मुताबिक गुरुवार देर रात कुलगाम में आतंकियों ने घात लगाकर एक हमले में इन तीनों की जान ले ली। आतंकियों ने भाजपा नेताओं की कार पर तब हमला किया जब वे घर जा रहे थे। गोली लगने से तीनों भाजपा नेताओं की मौत हो गई।

हमले के बाद पूरे इलाके में डर का माहौल है। पुलिस और सेना पूरे इलाके में इन नेताओं की हत्या करने वालों की खोज कर रही है। लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा ने भी घटना पर दुख जताया है। भाजपा के तीन नेताओं की हत्याओं पर उपराज्यपाल ने कहा कि हिंसा करने वाले मानवता के दुश्मन हैं और इस तरह के कायरतापूर्ण कृत्यों को उचित नहीं ठहराया जा सकता। उन्होंने शोक संतप्त परिवारों को सरकार की ओर से हर संभव मदद का आश्वासन दिया।

जानकारी के मुताबिक कुलगाम पुलिस को गुरुवार रात 8 बजे भाजपा नेताओं पर आतंकी हमले की सूचना मिली। इसके बाद वरिष्ठ पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुंचे। जांच में पता चला कि आतंकवादियों ने भाजपा के तीन कार्यकर्ताओं फिदा हुसैन, उमर रशीद बेग और अब्देर रशीद बेग पर गोलियां चला दीं। हमले में तीनों घायल हो गए जिसके बाद उन्हें इलाज के लिए उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। वहां उनकी मौत हो गयी।

बिहार, मध्य-प्रदेश चुनाव और दीपावली के बाद बढ़ सकते है कोरोना के मामले

कोरोना महामारी के बढ़ते मामलों को लेकर विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना को लेकर सरकार कड़ाई से कार्रवाई नहीं कर रही है। जिससे कोरोना को रोकना मुश्किल हो रहा है। एक ओर तो सरकार बाजारों में बिना मास्क पहने लोगों पर कार्रवाई नहीं कर रही है और वहीं सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाई जा रही है।

एम्स के डाँ आलोक कुमार का कहना है कि दीपावली के पर्व को लेकर बाजारों में भीड़भाड़ है। लोगों में सोशल डिस्टेंसिंग की कमी है। वहीं बिहार और मध्य- प्रदेश के चुनाव में लोगों को बिना मास्क के देखा जा रहा है। कहीं कोई सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं हो रहा है। जिससे कोरोना वायरस का संक्रमण बढ़ रहा है। और आने वाले दिनों में भयंकर रूप ले सकता है क्योंकि बिहार और मध्य-प्रदेश के चुनाव में मतदाताओं के साथ लोगों का एक –राज्य से दूसरे-राज्य में आना जाना रहा है। स्वभाविक है कि संक्रमण जरूर हुआ होगा जो आने वाले दिनों में सामने आयेगा।

डीएमए के पूर्व अध्यक्ष डाँ अनिल बंसल का कहना है कि जब तक लोग स्वयं कोरोना के खिलाफ सतर्क व सावधान नहीं रहेगे, तब तक कोरोना को काबू पाना मुश्किल होगा। उनका कहना है कि सरकार कहती है ‘जब तक दवाई नहीं तब तक ढिलाई नहीं’ पर जहां देखों ढिलाई ही ढिलाई है। शहरों में, गांवों में, कस्बों में और जो बिहार व मध्य-प्रदेश में चुनावी माहौल चल रहा है वहां की  चुनावी सभाओँ में तो बहुत ही कम लोग मास्क लगाये हुये देखे जा रहे है। जो निश्चित तौर पर कोरोना को बढ़ावा दे रहे है।

बिहार के मुंगेर में हिंसा, एसपी और डीएम को हटाया चुनाव आयोग ने

बिहार के मुंगेर में दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के दौरान पुलिस गोलीबारी में युवक की मौत के मामले पर गुरुवार को वहां जमकर हिंसा हुई। सैकड़ों गुस्साए लोगों की भीड़ ने आज एसपी दफ्तर में जबरदस्त तोड़फोड़ की और वाहनों को क्षतिग्रस्त कर दिया।  यही नहीं शहर के पूरबसराय ओपी के सामने एक पुलिस वाहन को आग लगा दी गयी। इस बीच मुंगेर मामले के बाद चुनाव आयोग ने एसपी और डीएम को तब्दील कर दिया है। इस बीच कांग्रेस ने नीतीश सरकार पर मुंगेर हिंसा को लेकर निशाना साधा है।

गोलीबारी की घटना और युकां की मौत के बाद चुनाव आयोग ने मुंगेर के डीएम और एसपी को हटा दिया है। हिंसा के बाद पुलिस ने फ्लैगमार्च किया है। पुलिस मामले की जांच कर रही है। अब वैशाली के पूर्व एसपी मानवजीत सिंह ढिल्लो और पूर्व डीएम रचना पाटिल को मुंगेर का नया एसपी और डीएम बनाया गया है।

उधर घटना से गुस्साए सैकड़ों लोग पुलिस प्रशासन के खिलाफ आंदोलन पर उतर  आए हैं। यह लोग मुंगेर की एसपी लिपि सिंह को निलंबित करने सहित दोषी पुलिसकर्मियों पर हत्या की मुकदमा दर्ज कर कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के दौरान पुलिस बर्बरता के विरोध में मुंगेर के युवा भी जबरदस्त आक्रोश में हैं।

आज बड़ी संख्या में युवाओं ने प्रदर्शन करते हुए पहले किला परिसर स्थित पुलिस अधीक्षक कार्यालय पहुंकर वहां जबरदस्त तोड़फोड़ की और फिर कोतवाली थाना और फिर सड़कों पर प्रदर्शन करते हुए पूर्वसराय ओपी में एक पुलिस वाहन में आग लगा दी। बासुदेवपुर ओपी में बड़े पैमाने पर तोड़फोड़ और आगजनी हुई है। ख़बरों के मुताबिक हालत यह है कि मुंगेर में स्थिति अनियंत्रित होने के बाद सड़कों पर तैनात पुलिस के लोग जान बचाकर छिप गए।

इस बीच कांग्रेस महासचिव और मुख्या प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट कर कहा –  ‘मुंगेर हिंसा निंदनीय है। पर इसके लिए जिम्मेवार कौन ? आठ लोगों को गोली मारने का जिम्मेवार कौन? मां दुर्गा के भक्तों को जानवरों से पीटने का जिम्मेवार कौन ? साफ़ है, ‘निर्दयी कुमार’ और ‘निर्मम मोदी’!

केरल: सोना तस्करी में मुख्यमंत्री के पूर्व प्रधान सचिव ईडी के रिमांड पर

हाई प्रोफाइल सोना तस्करी मामले में केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजय के पूर्व प्रधान सचिव एम शिवशंकर की गिरफ्तारी के बाद, वीरवार को कोर्ट में पेश किया, जहां से अदालत ने उनको 7 दिनों के लिए ईडी की हिरासत में सौंप दिया है। प्रवर्तन निदेशालय ने एम शिवशंकर को हिरासत में लेने के दौरान सात घंटे तक पूछताछ की थी, इसके बाद गिरफ्तार कर लिया था।
कोच्चि कोर्ट में ईडी ने एम शिवशंकर को पेश किया। अब एजेंसी सोना तस्करी के मामले में विस्तार से पूछताछ करेगी। इससे पहले ईडी की टीम बुधवार को वंचीयूर के एक निजी आयुर्वेद अस्पताल पहुंची थी, जहां वरिष्ठ आईएएस अधिकारी शिवशंकर इलाज करा रहे थे। केरल हाई कोर्ट से शिवशंकर की अग्रिम जमानत याचिका खारिज होने के बाद ईडी अधिकारियों ने शिवशंकर को हिरासत में ले लिया।
न्यायाधीश अशोक मेनन की पीठ ने शिवशंकर के व्हाट्सएप चैट से मिली सूचना के आधार पर दोनों ही मामलों में शिवशंकर की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी। शिवशंकर ने सीमा शुल्क और ईडी को राजनयिक सामानों की तस्करी से जुड़े मामलों में गिरफ्तारी से बचने को याचिका दी थी। पहले 28 अक्टूबर तक राहत मिली थी।  शिवशंकर के पास हालांकि सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प है।

बिहार विधानसभा चुनाव – 2020: महामारी में महामुकाबला

बिहार का चुनाव पूरे देश की राजनीति को दशा और दिशा तय करने में मदद करता है। देश भर में बिहार के लोग बसते हैं और इस बार बिहार के पिछड़ेपन के लगे ठप्पे को मिटाने के लिए अगले पाँच साल के लिए नयी सरकार चुनने का मौका है। तीन चरणों में चुनाव के बाद 243 सीटों के सस्पेंस से परदा 10 नवंबर को हट जाएगा। कोरोना महामारी में पहली बार हो रहा यह मुकाबला बेहद अहम है। ऐसे दौर में लोकतंत्र में विधानसभा चुनाव का होना ही दिलचस्प हैं, जिसमें 7.29 करोड़ मतदाता अपने जनप्रतिनिधि चुनेंगे। बिहार में पहले चरण में ही चुनाव प्रचार के दौरान रैलियों में उमड़ती भीड़ ने कोरोना वायरस फैलने के खतरे को फिलहाल एक तरह से नकार दिया है। महामारी के बीच चुनाव आयोग ने मतदान के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किये हैं।

दुर्भाग्य से ज़्यादातर राजनेता दशकों से मतदाताओं को लुभाने के लिए तरह-तरह के वादे करते हैं, पर राज्य में पर्याप्त शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं की कमी, प्रति व्यक्ति आय कम होना साथ ही औद्योगिक रूप से राज्य के पिछड़ेपन व गरीबी के साथ ही लोगों में निरक्षरता का 50 फीसदी से ज़्यादा होने से खास बदलाव नहीं दिखा है। लोगों के पास काम या नौकरी के मौके न होने के चलते कुशल और अकुशल दोनों तरह के लोगों को बिहार छोडऩे के लिए मजबूर होना पड़ता है। सियासी दल के तौर पर देखें तो यह चुनाव सत्ताधारी पार्टी जदयू से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और विपक्ष के राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव के लिए अस्तित्व की लड़ाई भी बन गया है।

नीतीश कुमार ने पिछले तीन कार्यकाल से मुख्यमंत्री का महत्त्वपूर्ण पद सँभाला है और एंटी इनकंबेसी के बावजूद सरकार बनाने में सफल रहे हैं। फिलहाल बिहार में जदयू एनडीए का हिस्सा है, जिसमें भाजपा, जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) और बॉलीवुड सेट डिजाइनर से राजनेता बने मुकेश साहनी की विकासशील इन्सान पार्टी (वीआईपी) शामिल हैं। भाजपा 110 सीटों पर चुनाव लड़ रही है और उसने अपने कोटे से 11 सीटें सहयोगी पार्टी वीआईपी को दी हैं। जदयू 115 सीटों पर चुनाव लड़ रही है और उसने अपने कोटे से 7 सीटें हम को दी हैं।

राज्य में मुख्य मुकाबला एनडीए का महागठबंधन से हैं। महागठबंधन में राजद के अलावा कांग्रेस और वामदल शामिल हैं। राजद 144 सीटों पर तो कांग्रेस 70 व वामदल 29 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। इसके अलावा तीसरा मोर्चा भी मैदान में है, जिसमें मायावती की बसपा, उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा और हैदराबाद के सांसद की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-एत्तेहाद मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) जैसी छोटी पार्टियों ने मिलकर कुशवाहा को अपना मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर पेश किया है। कुशवाहा 2018 तक भाजपा में एनडीए का हिस्सा रह चुके हैं। इसके अलावा बिहार की लोक जनशक्ति पार्टी की भूमिका बेहद दिलचस्प हो गयी है। लोजपा नेता चिराग पासवान ने बिहार में चुनाव लडऩे के लिए खुद को एनडीए से अलग कर लिया है और बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर किसी भी सूरत में वे नीतीश कुमार को देखना नहीं चाहते हैं। इसके अलावा उन्होंने भाजपा के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारे हैं; जबकि जदयू उम्मीदवारों के खिलाफ अपने प्रत्याशी खड़े किये हैं। हाल ही में लोजपा संस्थापक रामविलास पासवान के निधन से राज्य में सहानुभूति वोट मिलने की उम्मीद की जा रही है।

लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान खुला ऐलान कर चुके हैं कि वह नीतीश को अगला मुख्यमंत्री नहीं देखना चाहते; अगर वह फिर से मुख्यमंत्री बनते हैं, तो यह बिहार की जनता की हार होगी। वह एक साक्षात्कार में कह चुके हैं कि मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हनुमान हूँ। इस बीच भाजपा के नेता लोजपा को वोट-कटवा पार्टी कह चुके हैं। वहीं नीतीश पर निशाना साधते हुए तेजस्वी यादव चिराग के प्रति नरम दिखे हैं। चिराग को उम्मीद है कि परिणामों के बाद भाजपा और लोजपा की मिलकर प्रदेश में सरकार बनेगी। इसीलिए उन्होंने चुन-चुनकर जदयू उम्मीदवारों के खिलाफ अपने प्रत्याशी खड़े किये हैं। भाजपा ने दावा किया है कि जदयू नेता नीतीश ही एनडीए के मुख्यमंत्री होंगे, लेकिन दोनों दलों के बीच लम्बे समय से चली आ रही खींचतान से आगे कुछ भी सम्भव हो सकता है। इतना ही नहीं, राजनीतिक हलकों में अटकलें ये भी लगायी जा रही हैं कि अगर मौका मिला और हालात ऐसे हुए तो लोजपा महागठबंधन में शामिल हो सकती है।

केंद्र की एनडीए सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे रामविलास पासवान कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में भी कैबिनेट मंत्री रहे हैं। रामविलास को राजनीति का मौसम वैज्ञानिक कहा जाता था, अब स्वाभाविक है कि उनके बेटे चिराग भी उन्हीं के पद-चिह्नों पर चलेंगे। शायद यही वजह है कि रामविलास के निधन के बाद केंद्र में खाली हुई सीट फिलहाल भरी नहीं गयी है और लोजपा एनडीए का हिस्सा रहेगी या नहीं? यह सम्भवत: बिहार चुनाव के नतीजे ही तय करेंगे। दिलचस्प यह भी है कि महाराष्ट्र की दो पार्टियों, शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने भी अपने उम्मीदवार उतारे हैं। हालाँकि बिहार में इनकी अहमियत बहुत ज़्यादा नहीं है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और उनके बेटे व मंत्री आदित्य ठाकरे शिवसेना के स्टार प्रचारक हैं और राज्य में पार्टी ने 50 सीटों पर वर्चुअल रैलियों की तैयारी की है। शिवसेना की ओर से संजय राउत और राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी भी प्रचार कर सकती हैं। राकांपा प्रमुख शरद पवार, उनकी बेटी सुप्रिया सुले, महाराष्ट्र के बारामती से सांसद प्रफुल्ल पटेल अपनी पार्टी के 150 उम्मीदवारों के लिए प्रचार करेंगे।

अगर चुनाव नतीजों में एनडीए जीतती है, तो राजद और कांग्रेस के गठबंधन का भविष्य 2025 तक बनाये रखना तेजस्वी और राहुल दोनों के लिए एक बड़ी चुनौती होगी। पर महागठबंधन जीतता है, तो वह घटक दलों को केंद्र की मोदी सरकार और और पश्चिम बंगाल में भाजपा का मुकाबला करने के लिए एक समान मोर्चा बनाने का रास्ता खोल सकता है। पश्चिम बंगाल में 2021 में विधानसभा चुनाव होंगे।

सियासी जानकार बताते हैं कि 2020 के बिहार चुनावों में कोरोना संक्रमण के चलते केंद्र सरकार के अचानक लॉकडाउन से लाखों मज़दूरों के बिहार वापसी के लिए मजबूर होने को लेकर बड़ा गुस्सा है। तमाम दु:खद परिस्थितियों में वे अपने गाँव लौटने को मजबूर हुए। यह गुस्सा नीतीश कुमार सरकार के खिलाफ भी है, जिस पर बड़ी संख्या में ऐसे प्रवासी कामगार सरकार को जवाब देने को खुलकर बोल भी रहे हैं।

विपक्ष को उम्मीद है कि प्रवासियों के बीच यह गुस्सा उसके पक्ष में हवा बनाने में मददगार होगा और चुनाव प्रचार में इसका ज़िक्र भी बार-बार किया गया। इसके अलावा विपक्ष भी इस मुद्दे पर हमलावर है। चुनाव प्रचार के पहले चरण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राहुल गाँधी के साथ तेजस्वी यादव ने रैलियों को सम्बोधित कर अपना-अपना विजन को सामने रखा। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी ने मोदी की खिंचाई करते हुए कहा कि बिहार आकर वह मज़दूरों के सामने सिर झुकाते हैं; लेकिन जब वास्तव में उसकी आवश्यकता होती है, तो कुछ नहीं करते हैं। आप हज़ारों किलोमीटर तक पैदल चले, प्यासे और भूखे रहते हैं; लेकिन मोदी ने आपको ट्रेन नहीं दी। बल्कि सरकार की ओर से कहा जाता है कि जो मरता है, मर जाए। नवादा की रैली में राहुल ने कहा कि बिहार की जनता नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी को सही जवाब देगी। तेजस्वी यादव ने कहा कि मुख्यमंत्री ने प्रवासियों की अनदेखी की। नीतीश कुमार मुख्यमंत्री आवास में 144 दिनों तक घर में ही बन्द रहे। लेकिन अब वह आवास से बाहर निकले हैं। क्यों? तब भी कोरोनो वायरस था और अब भी है। लेकिन अब उन्हें आपका वोट चाहिए, इसलिए निकले हैं।

हालाँकि प्रधानमंत्री मोदी ने विपक्ष के इस हमले पर कहा कि मुख्यमंत्री ने महामारी से निपटने में अच्छा काम किया है। सासाराम में मोदी ने एक साझा रैली को सम्बोधित करते हुए कहा कि अगर बिहार ने तेज़ी से कार्रवाई नहीं की होती, तो महामारी बहुत-से लोगों की जान ले चुकी होती और क्या हालात होते इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते। लेकिन आज कोविड-19 के बावजूद बिहार में लोकतंत्र के पर्व को अंजाम दिया जा रहा है।

2015 के राज्य और 2019 के आम चुनाव

पिछले 2015 के विधानसभा चुनावों में नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद के साथ अपनी पुरानी प्रतिद्वंद्विता को छोड़ राजद-जदयू-कांग्रेस महागठबंधन में शामिल होकर चुनाव लड़ा था। सामाजिक समीकरणों के ज़रिये महागठबंधन ने 243 में से 178 सीटें जीतकर एनडीए का सफाया कर दिया था। सन् 2015 के चुनाव में भाजपा ने 53, लोजपा ने 2, हम ने एक और रालोसपा दो सीटें जीती थीं। महागठबंधन में राजद 80 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी, इसके बावजूद नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने पर सहमति दी थी। जदयू ने 71 सीटें जीती थीं। हालाँकि करीब डेढ़ साल बाद जदयू और राजद में मतभेद के बाद राजद नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना करना पड़ा। इसी बीच 2017 में नीतीश कुमार ने गठबंधन से अलग होकर भाजपा के साथ हाथ मिलाकर सरकार बना ली। भाजपा नेताओं का दावा है कि इस बार जातिगत समीकरण एनडीए का पक्षधर है, जो ओबीसी, महादलित और उच्च जाति के वोट बैंक का प्रतिनिधित्व करता है। महागठबंधन को राजद के पारम्परिक यादव, मुस्लिम और ओबीसी वोट बैंक और कांग्रेस के ऊपरी जाति के वोटों के अलावा वाम दलों का समर्थन करने वाले वगों से भी फायदा होने की उम्मीद है।

यह भी अहम है कि बिहार विधानसभा चुनाव से एक साल पहले हुए लोकसभा के 2019 के आम चुनावों में राज्य की 40 लोकसभा सीटों में से 39 सीटें जीती थीं। भाजपा ने 17 लोकसभा सीटें जीती और सहयोगी जदयू को 16, इसके बावजूद केंद्रीय कैबिनेट में उसे एक भी मंत्री पद नहीं मिला।

जदयू दो कैबिनेट मंत्री पद की माँग कर रहा था, पर उसे एक की पेशकश की गयी। लोकसभा 2019 के चुनाव में भाजपा, जदयू और लोजपा के बीच 17-17-6 सीटों का बँटवारा किया गया था। हालाँकि राष्ट्रीय और राज्य चुनावों में मतदान का पैटर्न आमतौर पर अलग-अलग होता है, लेकिन यह देखा जाना बाकी है कि 2019 के लोकसभा चुनाव की बढ़त को एनडीए बरकरार रख पायेगा? इसी तरह, 2020 के राज्य चुनाव यह तय करेंगे कि राजद और कांग्रेस पिछले साल के आम चुनाव में खो चुकी चमक को कितना वापस ला पाते हैं।

प्रचार अभियान के तरीके

एनडीए और महागठबंधन के नेता एक-दूसरे पर आरोपों की बौछार के साथ वोटरों को लुभाने के लिए बड़े-बड़े वादे कर रहे हैं। एनडीए नेता जहाँ राजद के संस्थापक और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद के 15 साल के कुशासन और भ्रष्टाचार को निशाना बना रहे हैं। वहीं महागठबंधन के नेता पिछले 15 वर्षों के दौरान विकास थमने के लिए नीतीश सरकार को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं। बिहार चुनाव अभियान की एक और विशेषता यह है कि जहाँ एनडीए मोदी सरकार की पिछले छ: साल में शुरू की गयीं विकास योजनाओं का गुणगान कर रहा है। वहीं महागठबंधन जदयू-भाजपा की सरकारों के दौरान बेरोजगारी, आर्थिक मंदी, खराब स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली और प्रवासी श्रमिकों की दुर्दशा के मुद्दे उछालकर घेर रहा है। एनडीए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की डबल इंजन की सरकार बता रहे हैं और यह साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि लालू शासन के 15 साल की तुलना में पिछले 15 साल में विकास हुआ है। जबकि लालू के शासन में वह बिहार में सामाजिक न्याय का चेहरा बने; लेकिन राज्य को बदहाली की ओर ले जाने के आरोप लगाये गये।

चुनाव प्रचार के दौरान विपक्ष को करिश्माई लालू प्रसाद यादव की याद आ रही है, जो चारा घोटाला मामले में जेल में हैं और जमानत होने पर भी अभी रिहा नहीं हुए हैं। फिलहाल उनका रांची के राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (रिम्स) में इलाज चल रहा है। राजद के अभियान का नेतृत्व उनके बेटे तेजस्वी यादव कर रहे हैं, जो 2015 में नीतीश कुमार के डिप्टी थे। सन् 1990 के दशक से सन् 2005 तक, जब नीतीश कुमार राज्य के लोकप्रिय ओबीसी नेता के रूप में उभरे। इससे पहले तक राजद के संस्थापक लालू प्रसाद यादव, दलित और मुस्लिम वोट बैंक को सफलतापूर्वक साधते रहे ओर चुनाव जीतने में कामयाब रहे। सन् 2015 के चुनावों में लालू प्रसाद ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत के विवादास्पद बयान आरक्षण नीति की समीक्षा किये जाने की बात का चुनाव प्रचार में जमकर इस्तेमाल किया था, और एनडी को पिछड़ा वर्ग विरोधी बताया था।

इस बार महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के दावेदार तेजस्वी अपने अभियान में युवाओं के लिए रोज़गार सृजन के वादे पर ज़ोर दे रहे हैं। उनकी रैलियों में उमड़ती भीड़ ने उनके उत्साह को बढ़ा दिया है। वह यह साबित करने पर तुले हैं कि राज्य की जनता खासकर युवा नीतीश सरकार से खफा है। तेजस्वी ने महागठबंधन की ओर से जारी घोषणा-पत्र में कहा है कि मैं एक विशुद्ध बिहारी हूँ। मेरा डीएनए शुद्ध है। अगर हमारी सरकार बनती हैं, तो पहली कैबिनेट में 10 लाख युवाओं को नौकरी देंगे। वे बार-बार दोहराते हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शारीरिक और मानसिक रूप से अब थक गये हैं। नीतीश के 15 साल के शासन के बाद अब तेजस्वी से पूछ रहे हैं कि नौकरी के लिए पैसा कहाँ है? 30 हज़ार करोड़ रुपये के बजट की भरपाई कैसे करेंगे? तेजस्वी कहते हैं कि उनके कार्यकाल में 60 घोटाले किये गये। उनकी जल-जीवन-हरियाली नीति के लिए 24,000 करोड़ रुपये दिये गये, यह सब पैसा भ्रष्टाचार में जा रहा है। विज्ञापनों में अपना चेहरा चमकाने के लिए 500 करोड़ रुपये खर्च किये। तेजस्वी कहते हैं कि इतना सब करने वाला कहे कि पैसा कहाँ से आएगा? इस पर हँसी आती है।

नीतीश कुमार ने यह भी कहा कि बिहार के पास कोई समुद्र नहीं है, इसलिए कोई उद्योग और कारखाने नहीं हैं। तेजस्वी ने कहा कि जीत और हार खेल का हिस्सा हैं; लेकिन लगता है कि मुख्यमंत्री ने अपना संतुलन खो दिया है। बजट में 4.5 लाख नौकरियों के लिए अभी व्यवस्था है। साथ ही देश के औसत से देखें, तो नीति आयोग के अनुसार, बिहार की प्रगति के लिए और 5.5 लाख नौकरियों की आवश्यकता है। अगर आपमें इच्छाशक्ति हो तो यह बिल्कुल सम्भव है। इस बार राजद के साथ ही कांग्रेस के लिए भी ज़्यादा मौका है, जिसने 2015 के चुनावों में 27 सीटें जीती थीं। इस बार वह 70 सीटों पर हाथ आजमा रही है। कांग्रेस का बोले बिहार बदले सरकार नारे के साथ चुनावी मैदान में हैं। शिक्षा, बेरोज़गारी, बढ़ते भ्रष्टाचार, अनियंत्रित अपराध और राज्य सरकार की विफलता को उसने मुद्दा बनाया है। महागठबंधन के लिए कांग्रेस से राहुल गाँधी के अलावा पार्टी प्रमुख सोनिया गाँधी, प्रियंका गाँधी वाड्रा, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, गुलाम नबी आज़ाद, सचिन पायलट, पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, शत्रुघ्न सिन्हा, कीर्ति आज़ाद, मीरा कुमार, रणदीप सुरजेवाला और राज बब्बर चुनाव प्रचार कर रहे हैं।

तेजस्वी यादव के 10 लाख नौकरियों के वादे का मुकाबला करने के लिए भाजपा ने 19 लाख नौकरियों के विकल्प का वादा किया है। इसके अलावा बिहार के सभी लोगों के लिए कोरोना वैक्सीन मुफ्त देने का वादा भी किया है। हालाँकि इसकी सभी दलों ने कड़ी आलोचना की है। कांग्रेस ने भाजपा के घोषणा-पत्र को एक और जुमला करार दिया और बिहार को विशेष दर्जा देने की लम्बे समय से लम्बित माँग पर भगवा दल की चुप्पी पर सवाल उठाये। एनडीए के लिए एक कठिन चुनाव है। भाजपा ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कट्टर हिन्दुत्ववादी नेता की छवि को भुनाने के लिए बिहार में प्रचार कराने को उतारा है। सन् 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 को हटाने का उल्लेख उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री मोदी दोनों को बार-बार करना पड़ रहा है।

पूर्वी लद्दाख में भारत-चीन सीमा विवाद भी बिहार चुनाव का हिस्सा बन गया है। 15 जून को चीन के सैनिकों के साथ हुई झड़प में 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गये थे। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि बिहार के जाँबाज़ों ने गलवान घाटी में अपनी शहादत दे दी; लेकिन देश का सिर ऊँचा रखा। चीन सीमा और पुलवामा में शहीद बिहार के जवानों को मैं नमन करता हूँ।

चुनाव आयोग की भूमिका

चुनाव आयोग ने दिशा-निर्देश जारी किये हैं और राज्य में चुनाव प्रचार, नामांकन, मतदान और मतगणना के लिए कैसी व्यवस्था हो। इसके साथ ही केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक रणनीति तैयार करने के लिए अपनी टीम बिहार भेजी, ताकि कोरोना वायरस का संक्रमण को फैलने से रोकने में मदद मिले। मतदान से सभी वोटरों की थर्मल स्कैनिंग की व्यवस्था की गयी। मतदान सुबह 7 बजे से शाम 6 बजे तक होगा यानी एक घंटे का अतिरिक्त समय मिलेगा। हालाँकि नक्सल प्रभावित इलाकों में शाम 5 बजे तक ही मतदान होगा। कोरोना वायरस के मरीज़ भी स्वास्थ्य अधिकारियों की देखरेख में मतदान करेंगे। इसके अलावा 80 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों या विकलांग व्यक्ति डाक मतपत्र का विकल्प चुन सकते हैं। मतदान में 7.43 करोड़ एक बार उपयोग वाले दस्ताने, 46 लाख मास्क, 7.6 लाख फेस शील्ड, 7 लाख यूनिट हैंड सैनिटाइजर और छ: लाख पीपीई किट की व्यवस्था की गयी है। सभी मतदाता दस्ताने, मास्क पहनेंगे और हैंड सैनिटाइजर का उपयोग करेंगे। कंटेनमेंट जोन में दिशा-निर्देशों का सख्ती से पालन करना होगा।

चुनाव आयोग ने प्रसारण और टेलीकास्ट के समय को दोगुना कर दिया है। कोरोना संक्रमण को देखते हुए दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो पर बिहार में राजनीतिक दलों के लिए समय आवंटित किया गया है। इसके अलावा सोशल मीडिया जैसे ट्विटर, फेसबुक और यूट्यूब के ज़रिये भी बड़े पैमाने पर प्रचार किया जा रहा है। उम्मीदवारों से उनका सोशल मीडिया अकाउंट की जानकारी भी माँगी गयी है।

किस दल में कितने दागी दावेदार

जब बिहार में चुनाव होते हैं, तो कोई भी दल यह दावा नहीं कर सकता है कि उसके उम्मीदवार बेदाग हैं। हर दल में ऐसे दावेदार हैं, जिन पर गम्भीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। चुनावी हलफनामे के आधार पर एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स के अनुसार, राजद ने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले 73 फीसदी और भाजपा ने 72 फीसदी उम्मीदवारों को टिकट दिया है। लोजपा के 49 फीसदी, कांग्रेस के 57 फीसदी, जदयू के 43 फीसदी और बसपा के 31 फीसदी प्रत्याशी दागी हैं।

ओपीनियन पोल में किसकी सरकार

विभिन्न ओपीनियन पोल की मानें तो बिहार में एनडीए को बहुमत मिल रहा है। लेकिन विपक्ष ने इसे नकार दिया और इनको बिका हुआ करार दिया है।

इंडिया टुडे-लोकनीति-सीएसडीएस

एनडीए               138 सीटें

महागठबंधन          93 सीटें

अन्य                   12 सीटें

टाइम्स नाउ-सीवोटर

एनडीए                 160 सीटें

महागठबंधन            76 सीटें

एबीपी-सी वोटर

एनडीए                 151 सीटें

महागठबंधन            74 सीटें

अन्य                     18 सीटें

बिहार बीमारू राज्यों में सबसे नीचे क्यों है?

बिहार विधानसभा के चुनाव तीन चरणों में पूरे होने के साथ नयी सरकार का गठन 29 नवंबर तक हो जाएगा। इस बीच चुनाव प्रचार अपने चरम पर है। पहले चरण में 28 ज़िले तो दूसरे में 10 ज़िलों में मतदान होगा। चुनाव के प्रचार में इस बार केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में लाये गये कृषि सुधारों से जुड़े कानूनों को लेकर विपक्ष जहाँ एनडीए के नेतृत्व वाली बिहार में नीतीश सरकार को घेर रहा है, तो सरकार भी अपने विरोधियों को घेरने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही है।

इस बार के चुनाव प्रचार में फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की दु:खद मौत जैसे मुद्दों के अलावा बिहार में गरीबी पर चर्चा न होना कहीं ज़्यादा दु:खद है। विडंबना यह है कि लम्बे समय यह बिहार बीमारू राज्य की श्रेणी में हैं और देश में सामाजिक और आर्थिक रूप से सबसे नीचे बरकरार है। 1980 में आर्थिक स्थिति का उल्लेख करते हुए बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के माथे पर बीमारू राज्य का ठप्पा लगा था। हाल के वर्षों में इन राज्यों ने कई मानव विकास संकेतकों पर प्रगति दर्ज की गयी; लेकिन देश को वैश्विक स्तर पर योगदान दिलाने में इन प्रदेशों से ज़्यादा मदद नहीं मिली। मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) में 188 देशों की सूची में भारत की 131वीं रैंक पर ही कायम है। नीति आयोग के अनुसार, पूर्वी भारत के राज्य, खासकर बिहार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, एमपी और राजस्थान लगातार सामाजिक रूप से पिछड़े बने हुए हैं, जबकि इन राज्यों में कारोबार को सुगम बनाया गया है; ताकि मानव विकास सूचकांक में सुधार लाया जा सके। देश के राज्यों से सामाजिक बदलावों को लेकर बहुत कम आँकड़े मिलते हैं। स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी सुविधाओं को लेकर 1998-99 और 2015-16 के बीच के आँकड़े दर्शाते हैं कि बीमारू व अन्य राज्यों में कितना ज़्यादा अन्तर है। करीब दो दशकों में बीमारू राज्य निचले पायदान पर ही हैं, जबकि केरल, पंजाब, गोवा और दिल्ली शीर्ष पर बने हुए हैं। बिहार भारत का सबसे गरीब राज्य बना हुआ है।

बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) अपेक्षाकृत संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम का नया समग्र आकलन हैं, जिसमें वैचारिक और सांख्यिकी समस्याओं में कुछ सुधार देखा गया है, जिसे मानव विकास सूचकांक में उपयोग किया जाता है। एचडीआई को महज़ आय से जोड़े जाने पर इसकी काफी आलोचना की गयी थी। एमपीआई को ऑक्सफोर्ड के सबीना अल्केर और जेम्स फोस्टर ने तैयार किया, जिसमें गरीबी को मापने के लिए 10 संकेतकों का उपयोग किया गया। इनमें तीन अहम आयाम- शिक्षा, स्वास्थ्य और जीवन स्तर को रखा गया। अगर व्यक्तिगत तरीके से देखें, तो एक-तिहाई या इससे अधिक देश के लोग सूचकांक के हिसाब से गरीब हैं। सूचकांक के ज़रिये गरीब और उनकी गरीबी के स्तर को मापा जाता है कि वे किन-किन चीज़ों से महरूम हैं। यहाँ तक की इस पैमाने पर भी बिहार सबसे निचले स्तर पर रहा। सांख्यिकी और कार्यक्रम मंत्रालय की रिपोर्ट और कार्यान्वयन (7 जनवरी, 2020 को जारी) के अनुसार, प्रति व्यक्ति आय के मामले में गोवा अव्वल रहा, तो उसके बाद दिल्ली और सिक्किम रहे। इन आँकड़ों के अनुसार, बिहार में प्रति व्यक्ति आय सबसे कम रही। मौज़ूदा कीमत के आधार पर 2018-19 में प्रति व्यक्ति सालाना आय महज़ 43,822 रुपये रही।

प्रति व्यक्ति आय का मतलब आर्थिक इकाई से है; जैसे देश, राज्य या शहर में लोग। इसका आकलन करने के लिए एक इकाई की कुल आय को आबादी से विभाजित किया जाता है।

गोवा की प्रति व्यक्ति आय भारत के औसत से 3.01 गुना अधिक है और सबसे गरीब राज्य बिहार से 7.18 गुना ज़्यादा। बिहार में वर्ष 2018-19 के दौरान 43,822 रुपये सालाना रही; जबकि 2017-18 में यह 38,631 रुपये थी।

गोवा 33 भारतीय राज्यों और केंद्र शसित प्रदेशों में सबसे अमीरों में शीर्ष पर रहा। गोवा की प्रति व्यक्ति सालाना आय 2018-19 के अनुसार 4,67,998 रुपये थी। दूसरे नंबर पर दिल्ली रही जहाँ प्रति व्यक्ति सालाना आय लगभग 3,65,529 रुपये रही; जबकि तीसरे स्थान पर सिक्किम रहा और चौथे स्थान पर चंडीगढ़ व पाँचवें नंबर पर पुड्डुचेरी रहा।

सबसे गरीब राज्यों में बिहार, उत्तर प्रदेश, मणिपुर, झारखंड और असम रहे। नीचे से शीर्ष-5 में शामिल इन राज्यों की औसत घरेलू प्रति व्यक्ति उत्पाद 80 हज़ार रुपये सालाना से भी कम रही।

पलायन और दुर्दशा बड़ा मुद्दा

तमाम मुद्दों के साथ ही कृषि कानूनों को लेकर काफी हंगामा चल रहा है। विपक्ष बिहार में पलायन के मुद्दे को ज़ोरदार तरीके से उठा रहा है, जबकि सत्ताधारी फिर से अपने काम व अन्य मुद्दों के नाम पर वापसी के लिए खूब मेहनत में जुटे हैं। देश में अचानक किये गये लॉकडाउन के दौरान देश भर से बिहार के करीब 30 लाख प्रवासियों हुए थे, जो इस बार के चुनाव में बड़ा मुद्दा बना हुआ है। हालाँकि जिस वजह से बिहार की लम्बे समय से हालत खस्ता है, उससे बाहर निकलने के लिए विकास को मुख्य मुद्दा होना चाहिए था। लेकिन क्या वर्तमान राजनीति में ऐसे मुद्दों पर विचार की कल्पना की जा सकती है?