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डाँ अम्बेडकर को याद किया

भारत रत्न बाबा साहेब डाँ भीमराव अम्बेडकर की जयंती के अवसर पर आज दिल्ली में तामाम सामाजिक संस्थाओं द्वारा कार्यक्रमों का आयोजन किया। डाँ अम्बेडकर के बताये रास्ते पर चलने पर बल दिया गया। कार्यक्रम में केन्द्रीय फिल्म बोर्ड के सदस्य व भाजपा नेता राजकुमार सिंह ने कहा कि देश को सहीं मायने में डाँ अम्बेडकर के बताये रास्ते पर चलने की आवश्यकता है। क्योंकि जो काम डाँ अम्बेडकर ने अपनी सोच से गरीब और सामाज के अंतिम व्यक्ति को न्याय दिलाने के लिये किया है। राजकुमार सिंह ने कहा कि आज सारी दुनिया कोरोना जैसी बीमारी से जूझ रही है। ऐसे में लोगों को सोशलडिस्टेंसिंग का पालन करना चाहिये ताकि बीमारी को रोका जा सकें।अम्बेडकर वादी नेता एडवोकेट राजेन्द्र कुमार ने कहा कि डाँ अम्बेडकर कहा करते थे। कि सबको शिक्षा और सबको अधिकार मिले बिना कोई भी देश आगे नहीं बढ़ सकता है।उन्होंने कहा कि आज देश में दलितों को जो न्याय मिल रहा है। वो डाँअम्बेडकर की नीति और न्याय के कारण।आप पार्टी के कार्यकर्ता प्रदीप शुक्ला ने कहा कि देश में संविधान लोगू कराने से लेकर उसके पालन कराने तक डाँ अम्बेडकर के द्वारा किये गये प्रयासों को हमें याद किया जायेगा। प्रदीप शुक्ला ने कहा कि शिक्षा को बढ़ाने में डाँ अम्बेडकर ने जो सराहनीय काम किये है उसी के बलबूते पर देश के हर वर्ग को समान शिक्षा मिल रही है।

 

सीबीएसई की 10वीं की परीक्षा रद्द, मूल्यांकन के आधार पर देंगे नतीजे, 12वीं परीक्षा पर फैसला 1 जून को

सीबीएसई की 10वीं की परीक्षाएं कोरोना के बढ़ाते मामलों के कारण रद्द कर दी गयी हैं जबकि 12वीं की परीक्षा को लेकर फैसला पहली जून को किया जाएगा। अब 10वीं के छात्रों के नतीजे अंदुरूनी मूल्याङ्कन के आधार पर तय किये जाएंगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शिक्षा मंत्रियों के साथ बैठक के बाद यह फैसला किया गया। देश के कमोवेश सभी राज्यों ने केंद्र से मांग की थी कि कोरोना के मामलों में आशातीत आधात्री को देखते हुए यह परीक्षाएं स्थगित कर दी जानी चाहियें।
अब इनपर फैसला कर लिया गया है। फैसले के मुताबिक सीबीएसई की 10वीं की परीक्षाएं कोरोना के बढ़ाते मामलों के कारण फिलहाल रद्द कर दी गयी हैं जबकि 12वीं की परीक्षा को लेकर फैसला पहली जून को किया जाएगा। बच्चों को अब 10वीं की परीक्षा नहीं देनी होगी और इसके नतीजे अंदुरूनी मूल्याङ्कन के आधार पर तय किये जाएंगे।

यूपी के मुख्यमंत्री योगी कोरोना पॉजिटिव, खुद ट्वीट कर बताया

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी कोरोना पॉजिटिव हो गए हैं। खुद ट्वीट करके योगी ने यह जानकारी दी है। ट्वीट में योगी ने कहा कि उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई है  उन्होंने खुद को आईसोलेशन में रखा है।
एक दिन पहले ही यह खबर आई थी योगी ने एक बैठक में हिस्सा लिया था जिसमें कुछ अद्धिकारी कोरोना पॉजिटिव मिले थे। अब योगी ने खुद के कोरोना पॉजिटिव होने की जानकारी ट्वीट करके दी है। साथ ही उन्होंने अपने संपर्क में आये लोगों से भी जांच करवा लेने की अपील की है। बता दें योगी हल में बंगाल और अन्य जगह चुनाव प्रचार करते रहे हैं। कुछ दिन पहले कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने एक ट्वीट करके यह कहा था कि योगी कोरोना पॉजिटिव लोगों के सम्पर्क में आने के बावजूद चुनाव प्रचार करते रहे हैं। हालांकि, उस समय योगी के पॉजिटिव होने की कोई जानकारी नहीं थी। योगी के पॉजिटिव होने का पता एक दिन पहले उनके टेस्ट करने से हुआ है।
याद रहे मंगलवार को कोरोना वायरस यूपी के सीएम ऑफिस तक पहुंच गया था। इस कारण से मुख्यमंत्री योगी ने खुद को आइसोलेट कर लिया था। उनके कार्यालय के कुछ अधिकारी कोरोना से संक्रमित पाए गए थे। योगी ने ट्विटर के माध्यम से कल यह जानकारी दी थी।
उधर समाजवादी पार्टी के मुखिया व उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी कोरोना संक्रमित हो गये हैं। उन्होंने खुद ट्वीट कर यह जानकारी दी है। अखिलेश यादव ने ट्वीट करते हुये कहा कि, मेरी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई है और मैंने खुद को आईसोलेट कर लिया है और घर पर ही उपचार हो रहा है।

कोरोना के अस्तित्व को लेकर बहस, असमंजस में लोग

कोरोना काल पीक पर चल रहा है। लोग अपने बचाव पर कम लोगों को ज्यादा जानकारी दे रहे है। ऐसे में दिल्ली में आये दिन झगड़े और मारपीट की घटनायें बढ़ रही है। ऐसा ही आलम आज दिल्ली के दरियागंज में देखने को मिला। वहां एकत्रित भीड़ में कोरोना को लेकर अपरिचित लोगों को बीच किसी बात को लेकर बहस हो गयी और कोरोना के केस बढ़ने के लिये एक दूसरे को दोषी ठहराने लगे, कि तुम ने मास्क सही से नहीं पहना है। दूसरे ने कहा कि तुम कौन होते हो मास्क पहनाने की कला सिखाने वाले।

बस मामला इस कदर बढ़ा कि वहां पर उपस्थित लोगों ने किसी का कोई बीच बचाव तो नहीं किया लेकिन झगड़ा का मजा लिया। बताते चलें कि इस झगड़े की जड़ में लोगों का कहना कि कोरोना है, कि नहीं क्योंकि कोरोना वहां बढ़ रहा है जहां पर चुनाव नहीं है। जबकि देश के नेता पांच राज्यों में हो रहे है, चुनाव में जमकर रैलियां कर रहे है। वो भी बिना मास्क और जनता के बीच जाकर वोट मांग रहे है। वहां पर कोरोना को लेकर कोई बात नहीं हो रही है और कोरोना के मामले बढ़ रहे है। ऐसे में लोगों के बीच कोरोना के अस्तित्व को लेकर भी असमंजस है। कि कोरोना है भी कि नहीं। 

दरिया गंज बस के इंतजार कर रहे सोहन सिंह ने बताया कि कोरोना को लेकर संशय है कि वास्तविक रूप में कोरोना कहां है और कहां नहीं । ऐसे में लोग कोरोना से सहीं मायने में बचाव कम कर रहे है।अगर कोई मास्क लगा भी रहा है तो वो कोरोना के डर से नहीं बल्कि पुलिस और चालान से बचने के लिये लगा रहा है।

शाह का गोरखा दांव : बंगाल में भाजपा की सरकार बनी तो गोरखा समस्या का समाधान होगा

कोराना संक्रमण में बढ़ोतरी के साथ ही पश्चिम बंगाल में चुनाव प्रचार का पारा भी चरम पर है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बंगाल में भाजपा के सत्ता में आने पर ‘गोरखा समस्या’ का राजनीतिक समाधान ढूंढने का मंगलवार को लोगों को भरोसा दिया है। अमित शाह ने चुनावी रैली को संबोधित करते हुए कहा कि देश का संविधान विस्तृत है और इसमें सभी समस्याओं के हल का प्रावधान है।
शाह ने कहा कि मैं वादा करता हूं कि भाजपा की डबल इंजन की सरकार, एक केंद्र में और दूसरी बंगाल में, गोरखा समस्या का स्थायी राजनीतिक समाधान निकाल लेगी। अगर ऐसा हुआ तो आप लोगों को प्रदर्शनों का सहारा नहीं लेना पड़ेगा।’ हालांकि, उन्होंने पूरी तरह से स्पष्ट नहीं किया कि वह किस समस्या की बात कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अभी के लिए राष्ट्रीय नागरिक पंजीयन (एनआरसी) लागू करने की कोई योजना नहीं है। अगर ऐसा होता भी है तो गोरखा समुदाय को इसकी चिंता करने की जरूरत नहीं है

शाह ने कहा कि यह वह स्थान है जहां सत्तारूढ़ टीएमसी के नेता फुर्सत में आते हैं। । उन्होंने ममता सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि दार्जिलिंग में विकास कार्य पर पूर्ण विराम लगा दिया है। शीर्ष भाजपा नेता ने दावा किया कि टीएमसी की मुखिया ममता बनर्जी ने ‘कुछ’ गोरखाओं के खिलाफ आपराधिक मामला चलवाकर भाजपा और गोरखा समुदाय के बीच सौहार्दपूर्ण संबंधों को खराब करने की कोशिश की। शाह ने किसी का नाम लिए बिना कहा, ‘दीदी ने कई की हत्या करवाई और कई के खिलाफ मामले चलवाए। भाजपा सत्ता में आने के बाद, ऐसे लोगों के अपराध क्षमा करेगी।

भाजपा के पूर्व सहयोगी, जीजेएम नेता बिमल गुरुंग 2017 में हिंसक आंदोलन का कथित तौर पर नेतृत्व करने के बाद उनके खिलाफ लगाए गए कई आपराधिक आरोपों के बाद बहुत दिन तक छिपे रहे थे। पिछले साल अक्तूबर में सामने आने के बाद उन्होंने तृणमूल कांग्रेस के साथ हाथ मिला लिया था। राज्य प्रशासन ने इनमें से कुछ मामलों को वापस लेने के लिए अब अदालत का रुख किया है। राज्य में आठ चरणों में हो रहे चुनाव में अगले चरण का मतदान 17 अप्रैल को होगा।

महाराष्ट्र में लॉकडाउन या नहीं, 8.30 बजे बताएँगे सीएम ठाकरे

महाराष्ट्र में कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों को देखते हुए सीमियत समय के लॉक  के बीच राज्य के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे आज रात 8.30 बजे प्रदेश की जनता को सम्बोधित करेंगे। इसमें वे सरकार की कोविड के मामले रोकने के लिए  करेंगे। इसमें लॉक डाउन की घोषणा भी हो सकती है।
हाल के दिनों में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने संकेत दिए हैं कि कोविड के मामले बढे तो लॉक डाउन लगाने की नौबत आ सकती है। ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा है कि कि राज्य सरकार लॉकडाउन की घोषणा कर सकती है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे आज रात 8-8.30 बजे के दौरान राज्य की जनता को संबोधित करेंगे और इसी में पता चलेगा सरकार क्या ऐलान करने वाली है।
राज्य के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे ने भी हाल में महाराष्ट्र में कोरोना संक्रमण रोकने के लिए 15 दिन के लॉकडाउन पर जोर दिया था। राज्य सरकार हाल में केंद्र पर वैक्सीन देने को लेकर भेदभाव का आरोप लगा चुकी है। राज्य में पिछले कुछ दिन से कोरोना के नए केस लगातार आ रहे हैं।
देश भर में पिछले 24 घंटे में 1 लाख 61 हजार से ज्यादा नए केस सामने आने और इन  24 घंटों में 879 लोगों की जान जाने की जानकारी केंद्र सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने अपनी रूटीन प्रेस कांफ्रेंस में आज सुबह दी थी। कई जगह हालात काफी खराब हैं। कोरोना के कहर के चलते अस्पतालों में बिस्तरों की भारी कमी हो गयी है।  श्मशान घाटों तक में वेटिंग के बोर्ड लटक रहे हैं।
उधर केंद्र ने कहा है कि राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों के पास टीके की 1.67 करोड़ खुराक उपलब्ध हैं। टीके की कमी नहीं है। केंद्र ने राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों को कोविड रोधी टीके की 13.10 करोड़ वैक्सीन भेजी हैं जिनमें बेकार हो गई वैक्सीन समेत कुल 11.43 करोड़ वैक्सीन का इस्तेमाल हुआ है।

नये राजनीतिक मोर्चे की तैयारी

गै़र-भाजपा, गै़र-कांग्रेस गठबन्धन बनाने में जुटे शरद पवार

चार राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश के विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद देश में नया राजनीतिक फ्रंट बनाने की तैयारी हो रही है। संकेत यही हैं। शरद पवार के नेतृत्व में यह फ्रंट बन सकता है। नतीजे कांग्रेस के अनुकूल नहीं रहते हैं, तो पार्टी के कुछ बाग़ी (जी-23) नेता अपना अलग ग्रुप बनाकर इस फ्रंट से जुड़ सकते हैं, जिसका नाम डेमोक्रेटिक कांग्रेस पार्टी जैसा कुछ हो सकता है। शरद पवार, जो गै़र-भाजपा, गै़र-कांग्रेस गठबन्धन बनाना चाहते हैं, पिछले चार महीनों में इस दिशा में कई राजनीतिक दलों के नेताओं से सम्पर्क कर चुके हैं।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के अलावा पवार की इस मसले पर मुख्यमंत्री नेता सीताराम येचुरी, कांग्रेस के बाग़ियों, आम आदमी पार्टी के कुछ नेताओं, राज्य स्तर पर पैठ रखने वाले क्षेत्रीय दलों के नेताओं के अलावा उत्तर प्रदेश के दलों के नेताओं से भी बात हो रही है। यहाँ तक कि शिव सेना भी इसका हिस्सा हो सकती है। जानकारी के मुताबिक, कांग्रेस में आलाकमान को लेकर कथित ब़ागी नये गठबन्धन के विचार के बाद ही सक्रिय हुए। कांग्रेस के इन ब़ागी नेताओं को लगता है कि प्रस्तावित गठबन्धन देशव्यापी होगा और यह कांग्रेस को अप्रसांगिक कर सकता है जिससे इसे भाजपा के मुकाबले मुख्य गठबन्धन के रूप में सामने आने में मदद मिलेगी।

केरल में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पीसी चाको ने जब मार्च के पहले हमें कांग्रेस छोड़ी, तो यह कयास लगने लगे कि वह भाजपा में जा सकते हैं। लेकिन चाको कुछ दिन बाद ही शरद पवार की एनसीपी में चले गये। चाको का कांग्रेस छोड़ कर एनसीपी में जाना नये मोर्चे या गठबन्धन के गठन से जोड़कर देखा जा सकता है। एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता के मुताबिक, आने वाले समय में हो सकता है कुछ और इक्का-दुक्का नेता कांग्रेस से एनसीपी जैसे दलों में जाएँ। कांग्रेस संस्कृति से जुड़े नेता एनसीपी को भाजपा के मुकाबले बेहतर विकल्प मानते हों; क्योंकि वे वहाँ ज्यादा सहज महसूस करते हैं। कहा जाता है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे बड़े नेता एक साल बाद भी भाजपा में जाकर बहुत सहज महसूस नहीं कर रहे।

कांग्रेस में अचानक प्रियंका गाँधी को सक्रिय करने की रणनीति इस प्रस्तावित गठबन्धन की भनक आलाकमान को मिलने के बाद ही बुनी गयी है। इस गठबन्धन के सम्भावित दल के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर ‘तहलका’ से बातचीत में कहा- ‘इसमें कोई दो राय नहीं कि कांग्रेस का आज भी बड़ा आधार है और राहुल और प्रियंका गाँधी जनता में लोकप्रियता रखते हैं। लेकिन साफ नेतृत्व के अभाव में और लगातार चुनाव हारने से कांग्रेस के भीतर निराशा का माहौल है। यदि यह मोर्चा बनता है, तो इसे सफलता मिल सकती है। इसमें कोई दो-राय नहीं कि कांग्रेस के पास अभी भी कई बड़े नेता हैं। इनमें से बहुत ज़मीनी नेता हैं और जनता पर उनकी मज़बूत पकड़ है। नहीं भूलना चाहिए कि सन् 2017 में राहुल गाँधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के एक साल के भीतर ही पार्टी ने तीन बड़े राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा को चुनाव में हराकर सरकार बना ली थी। सन् 1999 में जब शरद पवार ने सोनिया गाँधी के खिलाफ बगावत करते हुए कांग्रेस छोड़ी थी, तो उनकी उम्मीद के विपरीत गिने चुने बड़े नेता ही उनके साथ गये थे। इनमें से तारिक अनवर अब कांग्रेस में हैं; जबकि एक और बड़े नेता पीए संगमा अब इस दुनिया में नहीं हैं। तीसरे मोर्चे की बात हवा-हवाई नहीं है। यह बहुत अहम है कि मार्च के तीसरे ह$फ्ते $खुद एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने देश में तीसरे मोर्चे की वकालत करते हुये इसकी जरूरत जतायी है। पवार ने कहा कि अभी तक कोई आकार नहीं दिया गया है। हम विभिन्न पक्षों से बात कर रहे हैं। निश्चित ही देश को तीसरे मोर्चे की जरूरत है। पवार ने यह बात तब कही, जब पीसी चाको उनकी पार्टी में शामिल हुए।

एक और बात गौर करने लायक है। चार राज्यों  और एक केंद्र शासित प्रदेश में चुनाव की बात पर पवार ने दावा किया है कि भाजपा असम के अलावा बाकी चार राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव हारेगी। असम में भाजपा का सीधा मुकाबला कांग्रेस से है और वहाँ मुकाबला एकतरफा नहीं है। लेकिन यूपीए का हिस्सा होते हुए भी पवार ने कांग्रेस के जीतने की बात नहीं कही। उन्होंने यह जरूर कहा कि इन राज्यों के चुनाव परिणाम देश की राजनीति की नयी दिशा तय करेंगे। पश्चिम बंगाल में सत्ता का दुरुपयोग करने का आरोप भी उन्होंने मोदी सरकार पर लगाया। पश्चिम बंगाल में पवार ही नहीं, शिव सेना भी ममता बनर्जी और टीएमसी का समर्थन कर रहे हैं। महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी सरकार के असली शिल्पकार ही पवार हैं, लिहाज़ा बहुत कम सम्भावना है कि वे शिवसेना से नाता तोड़ेंगे। एपीआई सचिन वझे और पूर्व डीजीपी परमबीर सिंह की मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को अनिल देशमुख के खिलाफ लिखी चिट्ठी के मामले में भी शरद पवार सरकार के खिलाफ नहीं गये हैं। उलटे उनका बयान परमबीर सिंह के खिलाफ आया है कि क्यों उन्होंने पद से हटाये जाने के बाद ही देशमुख पर फिरौती वाले आरोप लगाये। अब यदि देशमुख का इस्ती$फा भी हो जाता है, तब भी उद्धव सरकार पर आँच शायद ही आये। शरद पवार किसी भी सूरत में सरकार गिरने नहीं देंगे। इसके आधार पर ही तीसरे मोर्चे का गठन होगा, क्योंकि सत्ता के भीतर रहते हुए ज्यादा बेहतर विकल्प होगा।

गुलाम नबी आज़ाद के नेतृत्व वाले जी-23 नेताओं की पिछले साल के आखिर में लिखी चिट्ठी 15 मई, 1999 की याद दिलाती है जब कांग्रेस कार्यसमिति के तीन मज़बूत सदस्यों शरद पवार, तारिक अनवर और पीए संगमा ने एक चिट्ठी लिखकर सोनिया गाँधी की प्रधानमंत्री पद की दावेदारी का विरोध कर दिया था। दिलचस्प यह है कि तब गुलाम नबी आज़ाद जैसे नेता सोनिया गाँधी (गाँधी परिवार) के साथ थे। तब पवार खुद प्रधानमंत्री पद के दावेदार होना चाहते थे। आखिर इन तीनों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। कांग्रेस का और कोई बड़ा नेता उनके साथ नहीं गया इसलिए इन नेताओं ने जब एनसीपी बनायी, तो यह पवार के प्रभाव वाले राज्य महाराष्ट्र तक ही सीमित रह गयी।

अब माना जा रहा है कि जिस तरह पवार, संगमा और अनवर को विद्रोह की सज़ा मिली थी और उन्हें कांग्रेस से बाहर कर दिया गया था वैसा ही जी-23 के कुछ नेताओं के साथ हो सकता है। यदि ऐसा होता है तो उसके बाद इन नेताओं की खुली गतिविधियाँ शुरू हो जाएँगी। यह माना जाता है कि जी-23 के नेता गुलाम नबी आज़ाद को अपना नेता बना चुके हैं। पवार सभी राज्यों के नेताओं को अपने साथ जोडऩा चाहते हैं, ताकि का प्रस्तावित तीसरा मोर्चा देशव्यापी स्वरूप वाला हो। निश्चित ही उनका म$कसद कांग्रेस का विकल्प देना है, ताकि भाजपा से मुकाबला किया जा सके। समस्या सि$र्फ उनकी उम्र और सेहत की है। पवार 80 साल के हो चुके हैं, भले वे राजनीति में अभी खासे सक्रिय हैं। वो तीसरा मोर्चा बनाते हैं तो इसमें निश्चित ही गुलाम नबी आजाद की भी बड़ी भूमिका होगी। लिहाज़ा राज्यों के विधान सभा चुनाव नतीजे देश की राजनीति में बहुत कुछ नयी चीज़े सामने लाएँगे। कांग्रेस असम और केरल जीत लेती है तो कांग्रेस के भीतर बागि़यों के खिलाफ माहौल बनते देर नहीं लगेगी, हालाँकि इससे कांग्रेस के भीतर की राजनीति ही प्रभावित होगी। और यदि कांग्रेस दोनों में हारी तो पवार के तीसरे मोर्चे के गठन को पंख लग जाएँगे।

उधार की फौज

देश का शायद यह पहला विधानसभा चुनाव है, जिसमें केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी किसी राज्य में अपनी विरोधी पार्टी से लडऩे के लिए उसी से तोड़कर लाये या टूटकर आये 150 (आधे से भी ज्यादा) उम्मीदवारों के साथ मैदान में उतार रही हो। बात भाजपा और पश्चिम बंगाल के चुनाव की है, जहाँ भाजपा के भीतर पार्टी की इस नीति से घमासान मच गया है। वर्षों से भाजपा के लिए काम करते रहे नेता ब$गावत पर उतर आये हैं और कई जगह भाजपा के ही लोग अपने उम्मीदवारों की लुटिया डुबोने का काम करें, तो हैरानी की बात नहीं होगी। खुले तौर पर हिन्दू कार्ड खेल रही भाजपा को आठ मुस्लिम प्रत्याशी भी मैदान में उतारने पड़े हैं; लेकिन उन्हीं सीटों पर जहाँ भाजपा की सम्भावना बेहद कमज़ोर है। सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि भाजपा ने टीएमसी से आये जिन नेताओं को अपना उमीदवार बनाया है, उनमें से कई पर वह खुद भ्रष्टाचार के गम्भीर आरोप लगा चुकी है। जानकारों के मुताबिक, पार्टी की सूची ज़ाहिर करती है कि भाजपा की रणनीति बनाने वालों को पश्चिम बंगाल की राजनीति की समझ नहीं और न इसके लिए होमवर्क किया गया है। भाजपा को तब और भी ज्यादा फजि़हत झेलनी पड़ी, जब उसके घोषित दो उम्मीदवारों ने यह कहकर भाजपा के टिकट पर काशीपुर-बेलगछिया से लडऩे से साफ मना कर दिया कि उन्होंने तो भाजपा ज्वॉइन ही नहीं की और न ही उनकी ऐसा करने की कोई इच्छा है। इनमें से एक तरुण साहा हैं, जिनकी पत्नी माला साहा टीएमसी की विधायक हैं। भाजपा ने उन्हें काशीपुर-बेलगछिया से उम्मीदवार बना दिया। उत्तर कोलकाता के चौरंगी से कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दिवंगत सोमेन मित्रा की पत्नी शिखा मित्रा को भाजपा ने बिना उनसे पूछे उम्मीदवार बना दिया। शिखा ने भी यह कहते हुए चुनाव लडऩे से इन्कार कर दिया कि न वे भाजपा में गयी हैं, न चुनाव लडऩा चाहती हैं। पश्चिम बंगाल के वरिष्ठ पत्रकार प्रभाकर मणि तिवारी ने इस पर ‘तहलका’ से बातचीत में कहा कि टीएमसी के लोगों को टिकट देने से भाजपा के समर्पित नेता ख़फा हैं और वे इन उम्मीदवारों को हराने की कोशिश कर सकते हैं; ताकि उनका खुद का राजनीतिक भविष्य दाँव पर न लगे। यहाँ यह भी दिलचस्प है कि घायल ममता बनर्जी व्हीलचेयर पर प्रचार कर रही हैं, जिसकी कोई काट भाजपा नहीं निकाल सकी है, ताकि उन्हें सहानुभूति के वोट मिलने से रोका जा सके।

नाइट कर्फ्यू के बावजूद दिल्ली के पार्को में हो रहा नियमों का उल्लंघन

भले ही दिल्ली में कोरोना के कहर को रोकने के लिये दिल्ली सरकार तामाम जतन कर रही हो, रात का कर्फ्यू लगा रखा हो। फिर भी लोग कोरोना विरोधी गाईड लाईन की धज्जियां उड़ा रहे है। दिन में पार्को में बुजुर्ग और युवाओं को बिना मास्क लगाये, बिना सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किये हुये झुंड के झुंड ताश के पत्तों के साथ खेलते हुये देखा जा सकते है। यहीं है हाल रात को 10 बजें से सुबह 5 बजे तक भले ही कर्फ्यू लगा हो इस दौरान भी  रात के दस बजे के बाद भी लोगों को पार्कों में टहलते , बैडमिनडन खेलते देखा जा सकता है। तहलका संवाददाता ने रात के दस बजे के बाद दिल्ली के कई पार्कों की पड़ताल की तो पता चला कि कोरोना को लेकर लोगों में ना कोई भय है और ना कोई डर। लोगों ने बताया कि सरकार तो कोरोना को लेकर राजनीति कर रही है। क्योंकि दिन में जब भीड़ होती और कोरोना बढ़ने का होने का कारण हो सकता है। तब सरकार धड़ल्लें से बाजारों को खोल रही है। रात को जब लोगों को टहलने का मौका मिलना चाहिये तब कर्फ्यू लगा रही है। जिससे लोगों में रात के कर्फ्यू का मतलब समझ में नहीं आता है। दिल्ली में रात में पार्क में खेलने वाले युवा रामू माथुर , अनुज गुसाईं ने बताया कि कोरोना की आड़ में सरकार जनता को परेशान कर रही है। ऐसे में लोग कोरोना के डर से नहीं बल्कि सरकार की बे-वजह पाबंदी से डर के कारण बीमार हो रहे है।

सबसे गंभीर बात तो ये है कि पार्कों में कोरोना गाईड लाईन की धज्जियां भले ही उड़ाई जा रही हो लेकिन रात में गश्त करती पुलिस इनको रोकती तक नहीं है।

सुशील चंद्रा देश के नए मुख्य चुनाव आयुक्त बने, कार्यभार संभाला  

Sushil Chandra to take over as Election Commissioner of India today

चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा देश के नए मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) बन गए हैं। निर्वाचन आयोग में सबसे वरिष्ठ आयुक्त चंद्रा ने मंगलवार को अपना पद संभाल लिया। उन्होंने सुनील अरोड़ा की जगह ली है, जिनका कार्यकाल आज समाप्त हो गया।
सुशील चंद्रा का कार्यकाल अगले साल मई तक चलेगा। उनके कार्यकाल में देश में   गोवा, मणिपुर, उत्तराखंड, पंजाब और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश सहित इन सभी राज्यों में चुनाव बेहतर ढंग संपंन कराने की चुनौती अनुभवी चंद्रा के सामने होगी।
चंद्रा फरवरी, 2014 में चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त हुए थे। देश में निर्वाचन आयोग में सबसे वरिष्ठ आयुक्त को मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किए जाने की परंपरा रही है और चंद्रा वर्तमान आयुक्तों में सबसे वरिष्ठ हैं।
चुनाव आयोग में आयुक्त का जिम्मा संभालने से पहले चंद्रा केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के अध्यक्ष भी रहे हैं। उन्हें इंटरनेशनल टैक्सेशन विषय का बहुत अच्छा जानकार माना जाता है। चंद्रा 1980 बैच के आईआरएस अधिकारी हैं और महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तरप्रदेश और दिल्ली में कई उच्च पदों पर रह चुके हैं।
उनसे पहले भारतीय रेवेन्यू सेवा से आने वाले टीएस कृष्णमूर्ति भी मुख्य निर्वाचन अधिकारी बन चुके हैं। सुशील चंद्रा ने पढ़ाई रुड़की विश्वविद्यालय से की और बाद में  देहरादून के डीएवी कॉलेज से एलएलबी की डिग्री हासिल की।

चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ धरने पर बैठीं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी

चुनाव प्रचार करने पर 24 घंटे की पाबंदी लगाए जाने के चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी मंगलवार को  कोलकाता में गांधी मूर्ति के पास धरने पर बैठ गई हैं। ममता धरना स्थल तक व्हीलचेयर पर पहुंची। कल ही ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग पर एकतरफा फैसले लेने का आरोप लगाते हुए उसकी निंदा की थी और उसे ‘मोदी का चुनाव आयोग’ बताया था। धरना ख़त्म करने के बाद ममता रात 8 बजे के बाद 2 रैलियां करेंगी। इस  बंगाल में राजनीति गरमा गयी है।
आज ममता बनर्जी जहाँ धरने पर बैठी हैं वह जगह कोलकाता शहर के बीचों-बीच है। ममता बनर्जी व्हीलचेयर पर धरना देने पहुंची। बता दें पिछले महीने चुनाव प्रचार के दौरान घायल हो जाने के बाद डाक्टरों की सलाह पर उन्हें व्हीलचेयर पर बैठना पड़ा है और अब तक का सारा प्रचार ममता ने व्हील चेयर पर ही किया है।
ममता ने आज  पूर्वाह्न करीब 11.40 बजे कोलकाता के मायो रोड परिसर में महात्मा गांधी की प्रतिमा के निकट बैठकर धरना शुरू किया। ममता बनर्जी के साथ और कोई नेता नहीं दिखा। तृणमूल के मुताबिक प्रदर्शन स्थल के निकट किसी पार्टी नेता को जाने की अनुमति नहीं है लिहाजा दीदी अकेली बैठी हैं।
ममता बनर्जी रात 8 बजे के बाद धरना समाप्त करके 2 रैलियां करेंगी। यह रैलियां बारासात और बिधाननगर में होंगी। याद रहे चुनाव  आयोग ने ममता बनर्जी के कथित तौर पर केंद्रीय बलों के खिलाफ बयान और कथित धार्मिक प्रवृत्ति वाले एक बयान पर 24 घंटे तक उनके चुनाव प्रचार करने पर रोक लगा दी है। फैसले की सख्त निंदा करते हुए ममता ने कहा कि आयोग असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक फैसले कर रहा है और वह एक राजनीतिक दल के हिसाब से काम कर रहा है।
चुनाव आयोग की ओर से चुनाव प्रचार पर चौबीस घंटे की पाबंदी के ख़िलाफ़ पश्चिम धरने के लिए ममता को सेना की अनुमति नहीं मिली थी। धरने वाली जगह सेना का क्षेत्र है। मंगलवार सुबह टीएमसी ने धरने की अनुमति के लिए सेना को एक पत्र भेजा था, लेकिन दोपहर 12 बजे तक इस पर फ़ैसला नहीं हुआ था। सेना प्रवक्ता के मुताबिक इतने कम वक्त में अनुमति नहीं दी जा सकती क्योंकि इसके लिए कुछ तय प्रक्रिया का पालन करना होता है।
भाजपा ने ममता के धरने पर कहा कि एक मुख्यमंत्री को इस तरह चुनाव आयोग के फ़ैसले के ख़िलाफ़ सड़क पर उतरना शोभा नहीं देता। कांग्रेस और सीपीएम ने भी ममता के धरने की आलोचना की लेकिन दोनों दलों ने चुनाव प्रचार पर पाबंदी के चुनाव आयोग की निष्पक्षता को लेकर सवाल उठाए हैं।