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कोरोना के डेथ सर्टिफिकेट पर पीएम मोदी की फोटो क्यों नहीं : मांझी

कोरोना टीके की कमी को लेकर जहां कई राज्य परेशान है और बहुत जगह तो सभी वयस्कों के टीकाकरण पर रोक लगा दी गई है। इस बीच, सियासत और बयानबाजी भी जारी है। कोरोना टीकाकरण के बाद मिलने वाले प्रमाण पत्र पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर को लेकर फिर चर्चा शुरू हो गई है। इससे पहले विधानसभा चुनाव के दौरान मामले ने तूल पकड था। ताजा मामला बिहार में एनडीए सरकार में साझीदार हम पार्टी ने निशाना साधा है।

हम पार्टी के अध्यक्ष जीतन राम मांझी ने ट्वीट कर निशाना साधा ‘को-वैक्सीन का दूसरा डोज लेने के बाद मुझे प्रमाण-पत्र दिया गया, जिसमें प्रधानमंत्री की तस्वीर लगी है। देश में संवैधानिक संस्थाओं के सर्वेसर्वा राष्ट्रपति हैं। इस नाते उसमें राष्ट्रपति की तस्वीर होनी चाहिए। वैसे तस्वीर ही लगानी है तो राष्ट्रपति के अलावा प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की भी तस्वीर हो। इससे पहले केंद्र सरकार कह चुकी है कि राज्यों को खुद टीकाकरण का खर्च उठाना होगा।

नीतीश सरकार में सहयोगी जीतन राम मांझी ने सोमवार को एक और ट्वीट किया जिसमें लिखा कि वैक्सीन के सर्टिफिकेट पर यदि तस्वीर लगाने का इतना ही शौक है तो कोरोना से हो रही मृत्यु के डेथ सर्टिफिकेट पर भी तस्वीर लगाई जाए। यही न्याय संगत होगा।

महामारी के मामलों में लगातार गिरावट जारी, पर मौतें चिंता का सबब

देश में कोरोना महामारी की दूसरी लहर का प्रकोप आंकड़ों में तो कम होता जा रहा है, जिससे सरकार राहत की सांस ले सकती है, लेकिन मौत के आंकड़े लगातार चिंता का सबब बने हुए हैं। अब भी रोजाना औसतन करीब चार हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो रही है, जबकि संक्रमितों का आंकड़ा निरंतर कम हो रहा है।उत्तर प्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश समेत देश के आधे से ज्यादा प्रदेशों में लॉकडाउन या सख्त पाबंदियां अब भी लागू हैं। देशभर में पिछले 24 घंटे में 2.22 लाख नए कोरोना संक्रमित मरीज मिले हैं और 4,455 लोगों की मौत हो गई।

इसी बीच, ब्लैक फंगस ने भी महामारी का नया रूप ले लिया है। इसके मरीजों की तादाद भी रोजाना बढ़ रही है। इसकी दवाओं की भी किल्लत है और मरीजों के लिए नई समस्या पैदा हो गई है। अभी वे कोरोना संक्रमण के दर्द की वजह से अपनी कराह खत्म नहीं कर पाए थे कि नई मुसीबत घर कर गई है। बिहार और उत्तराखंड में कोरोना कर्फ्यू को एक जून तक बढ़ा दिया गया है।

स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने सोमवार को बताया कि कि पिछले 22 दिनों से देश में सक्रिय मामलों की संख्या में लगातार कमी देखी जा रही है। 3 मई के समय देश में 17.13 फीसदी सक्रिय मामलों की संख्या थी अब यह घटकर 10.17 फीसदी रह गई है। पिछले 2 हफ्तों में सक्रिय मामलों की संख्या में करीब 10 लाख की कमी दर्ज की गई है।

लव अग्रवाल ने कहा कि 45 वर्ष से अधिक आयु के लोगों को कुल 14.56 करोड़ (पहली और दूसरी खुराक) टीके ले चुके हैं। जबकि 18 से 44 वर्ष की आयु के लोगों को 1.06 करोड़ टीके की पहली खुराक दी जा चुकी है। वहीं, उत्तर प्रदेश अपर मुख्य सचिव स्वास्थ्य अमित मोहन प्रसाद ने बताया कि पिछले 24 घंटे में कोविड संक्रमण के 3,981 मामले सामने आए और 11,918 लोग डिस्चार्ज हुए। अब 76,703 सक्रिय मामले बने हुए हैं। रिकवरी दर 94.3 फीसदी हो गई। वहीं 24 घंटे में 157 लोगों की मृत्यु हुई। कल प्रदेश में 3,26,399 नमूनों की जांच की गई।

लाँकडाउन से कूलर और पंखे के कारोबार पर चोट

कोरोना के कहर और लाँकडाउन के चलते सीजनल धंधों का बेड़ा गर्क हो रहा है। पिछली साल 2020 में लाँकडाउन के लगने से कूलर –पंखों का कारोबार करने वालों का सारा का सारा काम धंधा चौपट हो गया था। फिर 2021 में कोरोना का कहर लोगों के जीवन में ही संकट बनकर नहीं आया है। बल्कि धंधें वालों पर रोजी-रोटी का संकट बनकर आया है। कूलर –पंखों का काम करने वाले कूलर व्यापारी प्रदीप शुक्ला का कहना है कि दिल्ली से देश के कई राज्यों में उनके कूलर- पंखे थोक और फुटकर में विकते थे। लेकिन लाँकडाउन के कहर ने सब कुछ चौपट कर दिया है।

दिल्ली के कमला मार्केट के कूलर व्यापारी हिमांशु का कहना है कि कई बार मुशीबत एक साथ इंसान का इंम्तिहान लेती है। जैसे कोरोना का कहर , लाँकडाउन और इस साल तो मई माह में गर्मी तो कम ही पड़ी है। उस पर ताउते तूफान ने ऐसी वर्षा की है। धंधा सब पानी-पानी हो गया है। हिमांशु का कहना है कि अप्रैल –मई माह में ही कूलर की बिक्री ही सबसे ज्यादा होती है। लेकिन लाँकडाउन के चलते नहीं हो पायी है । अब तो जून का महीना आने वाला है। जो धंधें की बाट लगा देगा। ऐसे में कूलर व्यापारियों ने सरकार से मांग की है। उनको को भी कुछ राहत पैकेज के माध्यम से राहत दी जाये ताकि, वे अपने परिवार का अपना पालन पोषण कर सकें।

दिल्ली में कोरोना के मामलों में गिरावट, लोगों ने ली राहत की सांस

दिल्ली में कोरोना के मामलों में लगातार गिरावट आने से, दिल्ली के लोगों ने राहत की सांस ली है। 23 मई को 1649 कोरोना के मामलें आये है और 189 लोगों की कोरोना से मौत हुई है। अब तक मई के महीने सबसे कम मामलें और कम मौतें है। दिल्लीवासियों ने तहलका संवाददाता को बताया कि लाँकडाउन का नतीजा है। जिससे कोरोना के मामले कम हुये है।

लोगों ने कोरोना गाइड लाइन का कड़ाई से पालन किया है।मैक्स अस्पताल के कैथ लैब के डायरेक्टर डाँ विवेका कुमार का कहना है कि दिल्ली सहित पूरे देश में कोरोना के मामलों में गिरावट आने से ,कोरोना को जल्दी से काबू पा लिया जायेगा। उन्होंने कहा कि सोशल डिस्टेसिंग का पालन करें और मुंह में मास्क लगाये तो निश्चित तौर पर कोरोना चला जायेगा।

डाँ विवेका कुमार का कहना है कि कोरोना के साथ-साथ अन्य रोग से पीड़ित रोगियों को समय पर इलाज मिलना चाहिये। जिसमें मधुमेह रोगी को तो समय –समय पर स्वास्थ्य का चैकअप करवाते रहना चाहिये। और नियमित व्यायाम पर बल देना चाहिये। हार्ट रोग से पीड़ित मरीजों को सीने के दर्द और जबड़े के दर्द को नजरअंदाज नहीं करना चाहिये। क्योंकि कई बार जरा सी लापरवाही घातक हो सकती है।

चिपको आंदोलन के प्रणेता सुंदरलाल बहुगुणा ने फानी दुनिया को कहा अलविदा

चिपको आंदोलन के प्रणेता और मशहूर पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा का शुक्रवार को कोरोना संक्रमण के चलते निधन हो गया। पिछले दिनों कोरोना संक्रमित होने के बाद उन्हें एम्स ऋषिकेश में भर्ती करवाया गया था। शुक्रवार को 95 वर्ष की उम्र में उन्होंने इस फानी दुनिया को अलविदा कह दिया। इसके साथ ही उनके चाहने वालों में शोक की लहर दौड़ गई। देशभर में उनके जाने से शोक संदेशों का सिलसिला शुरू हो गया।
पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा के निधन की खबर मिलते ही प्रधानमंत्री, राजनीतिक दल, सामाजिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि सुंदरलाल बहुगुणा जी का निधन देश के लिए बड़ी क्षति है। उन्होंने प्रकृति के साथ सद्भाव में रहने की सदियों पुरानी परंपरा को जोड़े रखा। उनकी सादगी और करुणा की भावना को कभी नहीं भुलाया जा सकेगा।  उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने ट्वीट किया-चिपको आंदोलन के प्रणेता, विश्व में वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध महान पर्यावरणविद् पद्म विभूषण सुंदरलाल बहुगुणा जी के निधन का अत्यंत पीड़ादायक समाचार मिला। यह खबर सुनकर मन बेहद व्यथित है। यह सिर्फ उत्तराखंड के लिए नहीं, बल्कि संपूर्ण देश के लिए अपूरणीय क्षति है।

चिपको आंदोलन से मशहूर हुए
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सिद्धांतों पर चलने वाले सुंदरलाल बहुगुणा ने 70 के दशक में पहाड़ी इलाकों में पर्यावरण सुरक्षा को लेकर अभियान चलाया था। इसी दौरान वृक्षों को बचाने के लिए चिपको आंदोलन का आगाज हुआ। उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय में बड़े पैमाने पर कटाई शुरू की गई थी। 1974 में बहुगुणा के नेतृत्व में कटाई का विरोध शांतिपूर्ण तरीके से शुरू करने का फैसला किया। उन्होंने विरोध का अनूठा तरीका ईजाद किया। जब कोई पेड़ काटने के लिए पहुंचता तो स्थानीय महिलाएं पेड़ों से चिपक कर खड़ी हो जाती थीं और उस पेड़ की जिंदगी बच जाती थी। इसके बाद पूरी दुनिया इसे चिपको आंदोलन के नाम से जानने लगी।

वृक्ष मित्र और हिमालय के रक्षक का तमगा मिला

सुंदरलाल बहुगुणा जितने क्रांतिकारी शख्सियत रहे, उतने ही आम जीवन में वे सरल और सौम्य चिंतन मनन करने वाले रहे। उनके जीवन में पत्नी विमला के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। मंचों पर बोलने का अंदाज उनका बेहद विनम्र होता था, जो हर किसी को आकृष्ट कर लेता था। प्रकृति के उपासक सुंदर लाल बहुगुणा ने अपना पूरा जीवन पर्यावरण की रक्षा के लिए समर्पित कर दिया। उन्हें वृक्षमित्र और हिमालय के रक्षक के रूप में जाना गया।
सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म 9 जनवरी 1927 को उत्तराखंड के टिहरी में हुआ था। विलक्षण प्रतिभा वाले बहुगुणा किशोरावस्था से ही सामाजिक क्षेत्र और जन सरोकारों से जुड़े रहे।18 साल की उम्र में उन्हें पढ़ने के लिए लाहौर भेजा गया। वहां डीएवी कॉलेज में तालीम हासिल की। महान क्रांतिकारी शहीद श्रीदेव सुमन उनके मित्रों में से थे जिनके कहने पर उन्होंने सामाजिक क्षेत्र से जुड़ने का मन बना लिया।
1956 में 23 साल की उम्र में  विमला देवी के साथ विवाह होने के बाद उन्होंने अपनी जीवन की दिशा बदल ली। वह प्रकृति की सुरक्षा और सामाजिक हितों से जुड़े आंदोलनों में अपना योगदान देने लगे। उन्होंने मंदिरों में हरिजनों को प्रवेश के अधिकार दिलाने के लिए आंदोलन किया। शादी के बाद गांव में रहने का फैसला किया और पहाड़ियों में एक आश्रम खोला। इसके बाद कई सामाजिक आंदोलनों में हिस्सा लेकर अपने आपको साबित किया।

पहले कोरोना और फिर ताउते तूफान से परेशान जनमानस

लोगों के बीच इस बात  की आशंका प्रबल होती जा रही है कि कोरोना के साथ ताउते तूफान जैसी विकराल समस्या कहीं भयंकर महामारी की आहट तो नहीं है। क्योंकि लगातार एक के बाद समस्या लोगों को मुसीबत में डाल रही है। इन्ही समस्याओं पर तहलका संवाददाता को लोगों ने बताया कि कोरोना एक महामारी ने जिस प्रकार सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक ताना-माना को तहस – नहस कर दिया है। उसी प्रकार ताउते तूफान का कहर लोगों के बीच एक घबराहट पैदा कर रहा है। देश में जहां-तहां हो रही वर्षा से लोगों को काफी आर्थिक नुकसान हो रहा है।

78 वर्षीय सेठ मथुरा दास ने बताया कि उनके जीवन काल में इस तरह की एक साथ मुसीबतें देश ने नहीं देखी है। क्योंकि पहले भी प्लेग जैसी महामारी आयी है। लेकिन सालों-साल तक नहीं रही है। अब जो कोरोना आया है उसको लेकर अभी तक चिकित्सा जगत ये ही स्पष्ट नहीं कर पाया है। कि कोरोना कब तक है और कब जायेगा। वैक्सीन लगवाओं और ये दवा और वो दवा में अटका है। उनका कहना है कि कोरोना जैसी महामारी को काबू करने के लिये वैज्ञानिकों को काफी रिसर्च करनी होगी । क्योंकि कोरोना के बदलते स्वरूप और नये –नये स्टेन भी लोगों के बीच डरावने संदेश दे रहे है। कि कोरोना भयंकर है।चिकित्सक डाँ जे पी शर्मा का कहना है कि कोरोना और ताउते तूफान जैसी समस्या-महामारी लोगों के बीच मानसिक और आर्थिक नुकसान पहुंचा रही है। जो मानव जीवन के लिय शुभ नहीं है।

शहर से गांव तक कोरोना और ब्लैक फंगस का कहर

आई सी एम आर, एम्स  सहित तामाम स्वास्थ्य संगठनों ने कई बार चेतावनी के तौर लोगो को आगाह किया है, कि सोशल डिस्टेसिंग के अभाव में और धार्मिक आयोजनों, सामाजिक गतिविधियों के कारण खासकर न सिर्फ गांवों में भी कोरोना के मामलें ही बढ़े है, बल्कि मौतों भी काफी हो रही है। कोरोना की सही मायने में चेन तोड़ने के लिये सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना होगा। तभी कोरोना को काबू पाया जा सकता है। अन्यथा कोरोना का कहर लोगों के जीवन को तबाह कर देगा।

डीएमए के पूर्व अध्यक्ष डाँ अनिल बंसल का कहना है कि कोरोना अब शहरों से गांव तक पहुंच गया है। शहरों की तुलना में गांवों की स्वास्थ्य सेवायें लाचार है। ऐसे में गांव तक स्वास्थ्य सेवायें कैसे मजबूत हो और लोगों को बेहत्तर स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ मिल सकें। इस पर काम होना चाहिये।

आयुर्वेदाचार्य डाँ दिव्यांग देव गोस्वामी का कहना है कि समय रहते अगर गांवों में कोरोना को नियत्रंण नहीं किया गया तो, आने वाले दिनों में गांवों में कोरोना का कहर भयंकर रूप धारण कर लेगा। डाँ दिव्यांग का कहना है कि कोरोना का कहर थम नहीं रहा है।

अब ब्लैक फंगस का कहर लोगों के बीच डर, भय और प्रकोप के रूप में तेजी से ऊभरा है। जो काफी चिंता जनक है और घातक है। कोरोना के साथ अब ब्लैक फंगस को काबू नहीं किया गया तो बच्चें, युवा और बुजुर्गो को काफी नुकसान हो सकता है।

समय –समय पर स्वास्थ्य की जांच कराये और नियमित व्यायाम करें ताकि स्वास्थ्य को फिट रखा जा सकें। एम्स के डाँ आलोक कुमार का कहना है कि आंखों में सूजन और लालिमा को नजर अंदाज ना करें । नेत्र रोग विशेषज्ञों से परामर्श लें और उपचार करवायें ताकि ब्लैक फंगस जैसी बीमारी को रोका जा सकें।

पीएम के साथ मीटिंग में कठपुतली की तरह बैठे रहे सीएम : ममता

देश में कोरोना संकट के संक्रमित मरीज भले ही कम आने लगे हों, पर इससे मौत के बढ़ते आंकड़े चिंताजनक हैं। इसी महामारी से जुड़े संकट को लेकर वीरवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 राज्यों के मुख्यमंत्री और 54 जिलाधिकारियों के साथ अहम बैठक की। इसमें पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी शामिल हुईं।

बैठक के बाद ममता बनर्जी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर पीएम मोदी पर निशाना साधा। उन्होंने आरोप लगाया कि सिर्फ भाजपा के कुछ मुख्यमंत्रियों ने अपनी बात रखी। बाकी राज्यों के मुख्यमंत्री चुपचाप कठपुतली की तरह बैठे रहे। यहां तक कि मुझे भी बोलने का मौका नहीं मिला। ममता ने कहा कि उन्होंने अपने डीएम को इसलिए नहीं भेजा कि वह खुद ही दवाओं और टीकाकरण की मांग रखेंगी, लेकिन उन्हें बोलने का मौका ही नहीं दिया गया।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने केंद्र की मोदी सरकार पर भेदभाव का आरोप लगाते हुए कहा कि राज्य में वैक्सीन की भारी किल्लत है। हम तीन करोड़ टीके की मांग रखने वाले थे, लेकिन कुछ बोलने ही नहीं दिया गया। इस महीने 24 लाख वैक्सीन देने का वादा किया गया था, लेकिन सिर्फ 13 लाख मिलीं। टीके न होने की वजह से कई टीकाकरण केंद्र बंद करने पड़े हैं। केंद्र सरकार ने राज्य में मांग के मुताबिक वैक्सीन नहीं भेजी, इसलिए टीकाकरण की रफ्तार सुस्त पड़ी है।

मुख्यमंत्री ममता ने कहा कि केंद्र सरकार ने संघीय ढांचे को नुकसान पहुंचाया है। देश के ज्यादातर हिस्सों में ऑक्सीजन, दवाई, वैक्सीन कुछ भी उपलब्ध नहीं है। बंगाल को रेमडेसिविर इंजेक्शन भी नहीं दिए गए, पीएम मोदी मुंह छुपाकर भाग गए। ममता बनर्जी ने कहा कि जब राज्य में कोरोना के मामले कढ़ रहे थे तो केंद्र सरकार ने अपनी टीम का दौरा करवाया, लेकिन अब गंगा में शव रहे हैं तो वहां टीम तक नहीं भेजी जा रही है। उन्होंने बताया कि बंगाल में कोरोना संक्रमित दर में कमी आई है। राजय में मृत्युदर 0.9% है।

अस्पतालों में कोरोना रोगियों और परिजनों के साथ अमानवीय व्यवहार

कोरोना काल में एक बात तो लोगों की समझ में आ गयी है कि कोरोना का बचाव अगर स्वयं नहीं किया तो, जान के लाले पड़ सकते है। ये कहना है कि दिल्ली में जो कोरोना जैसी बीमारी के चपेट में आये है। कोरोना से पीड़ित रहे रामकिशन का कहना है कि सरकारी अस्पतालों में आज भी सही मायने में बिना अप्रोच के मरीजों को आँक्सीजन और बेड नहीं मिल रहे है। लोगों को मजबूरी में अपनी जान बचाने के लिये निजी अस्पतालों में जाने को मजबूर होना पड़ रहा है।

उन्होंने आप बीती तहलका को बताई की कोरोना के रोगी के नाम प मरीजों के साथ सबसे पहले डाँक्टर और कर्मचारी ऐसे व्यवहार करते है। जो कोई ये घातक प्राणी सामने आ गया हो। मरीजों के साथ ठीक व्यवहार ना होने पर मरीज तन और मन से टूट रहे है। 33 वर्षीय बबीता का कहना है कि उनके पति जोगेन्द्र को कोरोना हुआ तो दिल्ली के लोकनायक अस्पताल ले जाया गया, वहीं पर स्वास्थ्य सेवा लड़खड़ाती और बिगड़ती हालत को देख कर वे एक निजी अस्पताल में ले गये।जहां पर 97 हजार रूपये जमा करने पड़े, तब जाकर इलाज हुआ। लेकिन आँक्सीजन की कमी के कारण डाँक्टरों व पैरामेडिकल कर्मचारियों का आमानवीय चेहरा देखने को मिला। जिससे बहुत मन टूटा और लगा कि कोरोना से ज्यादा घातक इलाज कराना हो रहा है।

इसी तरह आशोक गोंसाई का कहना है कि दिल्ली में मौते के आंकडों पर गौर करों तो लगातार मौतें हो रही है। लेकिन जो कोरोना के मामले कम हो रहे है। उसके पीछें टेस्टिंग कम हो रही है। और आंकड़े बाजी कम हो रही है।

दिल्ली में कोरोना पीडितों के साथ उनके परिजनों को अस्पतालों के साथ होता है अमानवीय व्यवहार जिससे होती है। मरीज और परिजनों को परेशानी। परिजनों का कहना है कि ऐसे सरकार और डाँक्टर को हौसला बढ़ाना चाहिये जो नहीं बढ़ाया जा रहा है।

चक्रवात ताउते ने गुजरात में तबाही मचाई, 13 लोगों की मौत

गुजरात में चक्रवात ‘ताउते’ ने महाराष्ट्र में तबाही मचाने के बाद गुजरात में कहर बरपाया है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अकेले गुजरात में ही कम से कम 3 लोगों की मौत हो चुकी है। तूफान के चलते बड़ी तादाद में पेड़ गिरे और जगह-जगह बिजली की आपूर्ति ठप हो गई। महाराष्ट्र के साथ ही गुजरात के तटीय इलाकों में भारी बारिश से काफी नुकसान हुआ है। इस बीच, भारतीय नौसेना व तटरक्षक बलों ने मुंबई के निकट अरब सागर में फंसे दो जहाजों में मौजूद 317 लोगों को सुरक्षित बचा लिया।

भारतीय मौसम विभाग ने कहा कि ताउते गुजरात के तट से बेहद गंभीर चक्रवाती तूफान के तौर पर आधी रात के करीब गुजरा और धीरे-धीरे कमजोर होकर गंभीर चक्रवाती तूफान तथा बाद में और कमजोर होकर अब चक्रवाती तूफान में बदल गया है। इसका असर एनसीआर और उत्तर भारत में भी देखने को मिल सकता है। इन इलाकों में 60 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से हवाएं चल सकती हैं और तेज बारिश की भी संभावना जताई गई है।

गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने कहा कि ताउते के चलते 16000 से ज्यादा घरों को नुकसान पहुंचा, 40 हजार से ज्यादा पेड़ और 70 हजार से ज्यादा बिजली के खंभे उखड़ गए जबकि 5951 गांवों में बिजली गुल हो गई। रुपाणी बताया कि चक्रवात के कारण मरने वालों का आधिकारिक आंकड़ा 13 का है। इसे अब तक का सबसे बुरा चक्रवात बताया गया। कई इलाकों में 150 से 175 मिलीमीटर तक बारिश दर्ज की गई।

चक्रवात ताउते दोपहर बाद अहमदाबाद जिले की सीमा से लगते हुए उत्तर की तरफ बढ़ गया और इससे पहले और इस दौरान भी यहां लगातार भारी बारिश हुई जिससे शहर के कई इलाकों में घुटनों तक जलभराव हो गया। अधिकारियों ने कहा कि ताउते की तीव्रता भले ही कमजोर हो गई हो लेकिन यह अपने पीछे विनाश के चिन्ह छोड़ गया जिसमें भावनगर,राजकोट, पाटण, अमरेली और वलसाड समेत गुजरात के विभिन्न इलाके इसकी चपेट में आ गए।

707 कर्मियों को ले जा रहे तीन बजरे और एक ऑयल रिग सोमवार समुद्र में फंस गया था। तटरक्षक बल के दो चेतक हेलीकॉप्टरों ने बेहद खराब मौसम के बीच के सतपति तट के निकट समुद्र में फंसे जहाज के चालक दल के आठ सदस्यों को भी बचा लिया। इस बीच एक अधिकारी ने बताया कि विपरीत मौसम से जूझते हुए भारतीय नौसेना और तटरक्षक बलों ने ताउते के दस्तक देने से पहले मुंबई के निकट अरब सागर में फंसे दो बजरों में मौजूद 317 लोगों को सुरक्षित निकाल लिया है, लेकिन 390 लोग अब भी फंसे हुए हैं। नौसेना ने बताया कि तीन जहाज फंस गए, जिनमें एक में ही 273 लोग सवार थे, जिनमें से 180 लोगों को बचा लिया गया, बाकी लापता हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार को तौकते प्रभावित गुजरात का दौरा करेंगे। इससे पहले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने अपने-अपने राज्यों में तूफान से हुए नुकसान के बारे में समीक्षा की और बचाव अभियान को तेज करने का आह्वान किया।