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राजस्थान में कोरोना संक्रमित होने लगे बच्चे, कई राज्य चौकन्ने

जिस तीसरी लहर की बात मेडिकल विशेषज्ञ और जानकार कर रहे थे, कहीं वह बच्चों के ज़रिये शुरू तो नहीं हो गयी?

कोरोना वायरस की दूसरी लहर का कहर जिस तरह जारी है, उससे हर कोई डरा हुआ है। लेकिन कोरोना महामारी की तीसरी लहर से अब लोग बहुत घबरा गये हैं। कोरोना की तीसरी लहर की आशंका से मेडिकल विशेषज्ञ और जानकार पहले ही आगाह कर चुके हैं। ज़्यादातर लोगों का कहना है कि तीसरी लहर अगस्त में आएगी और इस बार की महामारी की चपेट में बच्चे आएँगे। लेकिन क्या इस तीसरी लहर ने दस्तक दे दी है? क्योंकि राजस्थान में बच्चे इस कोरोना महामारी की चपेट में आने लगे हैं, वह भी बड़ी संख्या में।

हाल की रिपोर्टों की मानें, तो राजस्थान के दो ज़िलों दौसा और डूंगरपुर में बच्चे बहुत तेज़ी से कोरोना संक्रमित हुए, उसके बाद दूसरे शहरों में भी बच्चे संक्रमित होने लगे हैं। राजस्थान में 27 मई तक 18 साल से कम उम्र के 7,500 से ज़्यादा बच्चे के संक्रमित हो चुके थे। बच्चों में फैल रहे इस कोरोना को लेकर पूरे राजस्थान में दहशत का माहौल है।

राजस्थान के साथ-साथ गुजरात में भी इसे लेकर चर्चा गरम है और लोग अपने बच्चों को लेकर काफ़ी चिन्तित और परेशान दिख रहे हैं। बच्चों में कोरोना के संक्रमण से राजस्थान सरकार भी काफ़ी परेशान है और लोगों में हाहाकार मच गया है। दौसा में सिकराय उप खण्ड के एक गाँव में बच्चियों को कोरोना होने से यह बात सामने आ रही है कि इन बच्चियों के पिता कोविड पॉजिटिव थे, जिसके चलते उनका निधन भी हो गया था। इसी तरह दौसा में अन्य बच्चे भी संक्रमित मिल रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग की मानें, तो 18 साल से कम उम्र के दौसा में 1 मई से 21 मई तक 341 बच्चे और डूंगरपुर में 12 मई से 22 मई तक 255 बच्चे संक्रमित हुए। डूंगरपुर के सीएमओ राजेश शर्मा ने 12 से 22 मई तक 250 से ज़्यादा बच्चे कोरोना संक्रमित होने की बात कही थी। उन्होंने यह भी कहा कि यह एक ऐसी महामारी है, जिसमें कुछ भी हो सकता है। इससे पहले डूंगरपुर के कलेक्टर सुरेश कुमार ओला ने कहा था कि ज़िले में बच्चों में कोरोना का संक्रमण बिल्कुल सामान्य है। उन्होंने यह भी कहा था कि जिन बच्चों के माँ-बाप कोरोना पॉजिटिव हुए थे, वे बच्चे संक्रमित हुए हैं और उनकी संख्या कम है। लेकिन बाद में कलेक्टर की बातों को सीएमओ ने ख़ारिज़ कर दिया और सच्चाई बतायी।

राजस्थान में बच्चों के संक्रमित होने कीख़बर के बाद पहले ही अलर्ट पर चल रहे महाराष्ट्र, दिल्ली और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में और भी सावधानी बरती जा रही है। वहीं केंद्र सरकार के दिशा-निर्देश पर देश भर में बाल रोग चिकित्सकों को विशेष रूप से ट्रेनिंग करने की योजना तैयार की गयी है।

अगर दिल्ली की बात करें, तो कोरोना की तीसरी लहर से बच्चों को बचाने के लिए यहाँ की राज्य सरकार ने अलग टास्क फोर्स बनाने का फ़ैसला लिया है। माना जा रहा है कि अगर कोरोना की तीसरी लहर आयी, तो यहाँ 40,000 बेड और 10,000 आईसीयू बेड की आवश्यकता होगी। दिल्ली में संक्रमितों के इलाज में कोई कमी न आये, इसके लिए दिल्ली सरकार ने अस्पतालों में बच्चों के इलाज के लिए पहले से ही व्यवस्था शुरू कर दी है। इसके लिए अधिकारियों की एक अलग समिति अस्पतालों में दवाई, बेड और ऑक्सीजन की व्यवस्था पर नज़र रखेगी। इसके अलावा दिल्ली सरकार ने अधिक संख्या में ऑक्सीजन टैंकर और सिलिंडरख़रीदने का फ़ैसला किया है। वहीं महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कोरोना महामारी की तीसरी लहर से छोटे बच्चों को बचाने के लिए राज्य की टास्क फोर्स के साथ बातचीत की, जिसमें तक़रीबन 6,000 बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर उनके साथ ऑनलाइन थे। उन्होंने कहा है कि तीसरी लहर में बच्चों पर होने वाले असर की सम्भावनाओं को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने बाल रोग विशेषज्ञों की टास्क फोर्स तैयार की है,

जिसके अध्यक्ष डॉ. सुहास प्रभु हैं और सदस्य डॉ. विजय येवले और डॉ. परमानंद आंदणकर हैं। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे इस मामले में सतर्कता बरतने की हिदायत देते हुए डॉक्टरों से कहा है कि हमें तीसरी लहर को लेकर पहले से तैयार रहने की ज़रूरत है। ज़रूरी है कि हम समय रहते प्रभावी क़दम उठाएँ। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने यह भी कहा कि समय रहते हमने लॉकडाउन लगाने के बारे विचार किया, जिसका राज्य के लोगों ने भी स्वागत किया। वहीं डॉक्टरों ने इस बुरे वक़्त में पूरी निष्ठा से काम करके लोगों की ज़िन्दगी बचाने की हर सम्भव कोशिश की है। उन्होंने जून में टीकाकरम की गति बढ़ाने की बात भी कही। बता दें कि महाराष्ट्र में 14 मई से 18 से 44 आयु वर्ग के लोगों के टीकाकरण का कार्यक्रम बन्द पड़ा है।
इधर उत्तर प्रदेश में भी तीसरी लहर से निपटने की तैयारी योगी सरकार युद्ध स्तर पर कर रही है। कहा जा रहा है कि प्रदेश सरकार ने कोरोना की तीसरी लहर से निपटने के लिए तैयारियों को अन्तिम रूप देना शुरू कर दिया है, जिसके तहत बच्चों के लिए अस्पताल मुहैया कराने और उनके माता-पिता के लिए स्पेशल टीकाकरण शिविर लगवाने का निर्णय सरकार द्वारा लिया गया है। इसके तहत प्रदेश में जगह-जगह शिविर लगाकर 12 साल से कम आयु के बच्चों के अभिभावकों का स्पेशल टीकाकरण किया जाएगा। इसके अलावा प्रदेश सरकार आयुष कवच से बच्चों को जोड़ेगी, जिसका नया फीचर तैयार किये जाने की बात हो रही है। इसके लिए राज्य सरकार हर ज़िले में बच्चों के लिए अलग से वार्ड बनवा रही है, जिसमें 20 से 25 बेड बच्चों के लिए होंगे। इसमें जापानी इंसेफलाइटिस से निपटने के लिए तैयार किये गये 38 अस्पतालों को भी शामिल किया जाएगा। इसके अलावा राज्य सरकार ने लखनऊ पीजीआई के डायरेक्टर की अध्यक्षता में विशेषज्ञ डॉक्टरों की समिति बनायी है। सभी शिशु और बाल रोग विशेषज्ञ को तकनीकि और कोरोना प्रोटोकॉल और उसके उपचार की बारीकियों को समझाने के लिए प्रशिक्षण जल्द शुरू होगा। इन प्रशिक्षित डॉक्टरों की पीडियाट्रिक आईसीयू संचालन में अहम भूमिका होगी।

बच्चों के लिए नेजल वैक्सीन
बुजुर्गों और युवाओं को बचाने के साथ-साथ अब देश की केंद्र और राज्य सरकारों के कन्धों पर बच्चों को बचाने की ज़िम्मेदारी भी पडऩे वाली है। क्योंकि देश में कोरोना वायरस जैसी भयंकर महामारी की तीसरी लहर शुरू हो रही है। वैज्ञानिकों का मानना है कि कोरोना महामारी की यह लहर सबसे ज़्यादा बच्चों को प्रभावित करेगी। क्योंकि अब तक बड़ों के लिए वैक्सीन बनी है, लेकिन गर्भवती महिलाओं और बच्चों के लिए नहीं बन सकी है। लेकिन तीसरी लहर के दावे के बाद कई दवा कम्पनियाँ बच्चों की वैक्सीन बनाने की कोशिश में जुटी हैं। फ़िलहाल नेजल वैक्सीन नाम की एक वैक्सीन बच्चों के लिए तैयार की जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तो दावा भी किया है कि कोराना की नेजल वैक्सीन बच्चों के लिए गेमचेंजर साबित हो सकती है। डब्ल्यूएचओ की चीफ साइंटिस्ट सौम्या स्वामीनाथन हाल ही में एक टीवी चैनल पर कहा कि नेजल वैक्सीन नाक के ज़रिये दी जाएगी, जो इंजेक्शन वाली वैक्सीन के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा असरदार है। उन्होंने यह भी कहा कि इस वैक्सीन को लेना भी आसान रहेगा। यह रेस्पिरेटरी ट्रैक में बच्चों की इम्यूनिटी पॉवर भी बढ़ाएगी।

 


भारत बायोटेक बना रही नेजल वैक्सीन

अच्छीख़बर यह है कि नेजल वैक्सीन बनाने के लिए बड़ों की कोरोना वैक्सीन बनाने वाली कम्पनी भारत बायोटेक ने तैयारी शुरू कर दी है। कम्पनी ने नेजल वैक्सीन का ट्रायल शुरू करने की बात कहते हुए कहा है कि नेजल स्प्रे की सि$र्फ चार बूँदें ही कोरोना को मात देने में कारगर साबित हो सकती हैं। इस वैक्सीन को बच्चों की नाक के दोनों नथुनों में केवल दो-दो बूँद डालना होगा, जिसके बाद इसके बेहतर परिणाम सामने आने लगेंगे। क्लीनिकल ट्रायल्स रजिस्ट्री के अनुसार, फ़िलहाल नेजल वैक्सीन ट्रायल के तौर पर 175 लोगों को दी गयी है। इन्हें तीन ग्रुपों में बाँटा गया है। पहले और दूसरे ग्रुप में 70 वालंटियर रखे गये हैं और तीसरे में 35 वालंटियर रखे गये हैं। लेकिन वैक्सीन ट्रायल के नतीजे आने पर ही इसके फ़ायदे और नुक़सान के बारे में कुछ कहा जा सकता है। उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही भारतीय बच्चों की नेजल नाम की कोरोना वैक्सीन मिल जाएगी।

इधर 18 से 44 साल के युवाओं को कोरोना वैक्सीन कोविशील्ड मिलने की क़िल्लतें जारी हैं। कई राज्यों मे दूसरे चरण का टीकाकरण रुका हुआ है। ऐसे में बच्चों को वैक्सीन समय पर मिल पाएगी या नहीं कुछ नहीं कहा जा सकता। क्योंकि महामारी आने से पहले टीकाकरण हो, तो हो सकता है कि बच्चों में तीसरी लहर का प्रभाव हो ही न या बहुत कम हो। इधर वैक्सीन अप्वॉइंटमेंट बुक करने के लिए एक मात्र साधन कोविन पोर्टल होने के चलते कोरोना की दूसरी डोज की उपलब्धता देखने के बाद लोग लगातार अपने लिए वैक्सीनेशन की बुकिंग के लिए जद्दोज़हद कर रहे हैं। कोविन पोर्टल पर गड़बड़ी सामने आने के बाद सरकार ने भी इस बारे में कुछ स्पष्ट नहीं किया है। हालाँकि केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार, देश भर में अब तक तक़रीबन 20 करोड़ लोगों को कोरोना वैक्सीन लगने का अनुमान है। लेकिन वैक्सीनेशन की धीमी गति और अनुपलब्धता को लेकर केंद्र सरकार पर विपक्षी दल और लोग सवाल भी उठाते रहे हैं।

क्रूर राजनीति की चक्की में पिसता पश्चिम बंगाल

 

जबसे पश्चिम बंगाल में भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच सत्ता की जंग छिड़ी है, तबसे यह राज्य क्रूर राजनीति की चक्की में पिसता दिख रहा है। कहना न होगा कि यहाँ राज्य के विकास की नहीं, बल्कि सत्ता हथियाने की राजनीति होने लगी है, जो इतनी क्रूर होती जा रही है कि इसमें दोनों पार्टियों के समर्थकों और कार्यकर्ताओं की बलि दी जा रही है। छोटी पार्टी के नेताओं को फँसाने और अपने दल में खींचने से लेकर अन्दरखाने डराने-धमकाने का दौर चल रहा है, जिसमें तृणमूल कांग्रेस को कहीं-न-कहीं कमज़ोर करने की कोशिशें भी देखी जा रही हैं। इस बात को सिद्ध करने की ज़रूरत नहीं है, बल्कि तृणमूल कांग्रेस के चार नेताओं पर सीबीआई की कार्रवाई पर ग़ौर करके समझने की ज़रूरत है।
दरअसल यह मामला नारदा घोटाले से जुड़ा है। लेकिन इसके कुछ दोषियों को सीधे तौर पर बचा लिया गया है। हालाँकि कोलकाता उच्च न्यायालय ने नारदा घोटाला मामले के आरोपी टीएमसी के चारों नेताओं को अंतरिम जमानत दे दी है। सीबीआई ने आरोपी नेताओं को जमानत के कोलकाता उच्च न्यायालय के ख़िलाफ़ सर्वोच्च न्यायालय का रुख़ किया, लेकिन फिर स्वयं ही याचिका वापस ले ली। इधर, पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के बाद हुई राजनीति हिंसा को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य से एक लाख से ज़्यादा लोगों के पलायन के मामले को लेकर दायर याचिका की सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार और राज्य सरकार को नोटिस जारी कर दोनों सरकारों से जवाब माँगा है। इस मामले की अगली सुनवाई 7 जून को होगी।

दरअसल नारदा घोटाला मामले में पिछले दिनों सीबीआई ने चार टीएमसी नेताओं- परिवहन मंत्री फिरहाद हकीम, मंत्री सुब्रत मुखर्जी, विधायक मदन मित्रा, कोलकाता के पूर्व मेयर और पूर्व कैबिनेट मंत्री शोभन चटर्जी के ख़िलाफ़ जाँच करने के बाद उनके ख़िलाफ़ अहम सुबूत मिलने का दावा कर चारों नेताओं को गिरफ़्तार कर लिया था, जिसके बाद खुद बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सीबीआई दफ़्तर के बाहर धरना देकर बैठ गयी थीं और सीबीआई को चुनौती दी कि अगर हिम्मत है, तो सीबीआई अफ़सर उन्हें गिरफ़्तार करके दिखाएँ। हालाँकि इस मामले में तृणमूल कार्यकर्ताओं पर सीबीआई दफ़्तर के बाहर प्रदर्शन और पथराव करने का आरोप भी लगा। लेकिन इस मामले पर कोई बड़ा हंगामा नहीं हुआ। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि नारदा घोटाले में दो तृणमूल नेता, जो अब भाजपा में हैं; के ख़िलाफ़ सीबीआई ने कोई कार्रवाई क्यों नहीं की? जबकि इस घोटाले में इन दोनों नेताओं के शामिल होने को स्टिंग ऑप्रेशन में साफ़-साफ़ देखा जा सकता है। इन दो नेताओं के नाम हैं- सुवेंदु अधिकारी और मुकुल रॉय। सुवेंदु अधिकारी तो अख़बार में लिपटे हुए रुपयों के बंडल रिश्वत के रूप में लेते हुए कैमरे में क़ैद हुए थे; जिसे मुख्यधारा की मीडिया ने अभी तक नहीं दिखाया है।

सवाल यह है कि आख़िर नवनिर्वाचित विधानसभा का सत्र बुलाये जाने से ठीक पहले गिरफ्तारियाँ क्यों की गयीं? विधानसभा अध्यक्ष की अनुमति क्यों नहीं ली गयी? हालाँकि इस मामले में सीबीआई ने लोकसभा अध्यक्ष से सुवेंदु अधिकारी समेत शिकंजा कसे गये चारों तृणमूल नेताओं पर मुक़दमा चलाने के लिए मज़ूरी माँगी थी। मगर बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने हाल ही में पश्चिम बंगाल के चार तृणमूल नेताओं पर मुक़दमा चलाने की मज़ूरी दी थी, जिसके बाद एजेंसी ने अपने आरोप-पत्र को अन्तिम रूप दिया और उन्हें गिरफ़्तार किया था।

हैरत यह है कि जब सीबीआई की पक्षपात वाली कार्रवाई को लेकर सवाल उठे, तो सीबीआई की तरफ से जाँच एजेंसी पर लगाये गये पक्षपात करने के आरोपों को ख़ारिज कर दिया गया। चारों तृणमूल नेताओं की गिरफ़्तारी के बाद तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता कुणाल घोष ने सुवेंदु अधिकारी और मुकुल रॉय को बचाने का आरोप केंद्र सरकार पर लगाते हुए कहा था कहा कि सीबीआई ने अधिकारी और रॉय को छोड़ दिया, क्योंकि वे भाजपा में शामिल हो चुके हैं।


तृणमूल कांग्रेस के विधायक तापस रॉय ने भी भाजपा की केंद्र सरकार पर राज्य में करारी हार का बदला तृणमूल से लेने का आरोप लगाया था। तृणमूल कांग्रेस के नेता कल्याण बनर्जी ने कहा था कि पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने नारदा स्टिंग मामला सीबीआई को ट्रांसफर कर दिया, जो संविधान के ख़िलाफ़ है। उन्होंने कहा था कि हम जानते हैं कि हम उनके ख़िलाफ़ आपराधिक मामला दर्ज नहीं कर सकते। लेकिन हम लोगों से उनके ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज करने का आग्रह कर रहे हैं। वह भारतीय संविधान के हत्यारे हैं। इधर बंगाल सरकार ने 20 मई को कोलकाता नगर निगम (केएमसी) के कामकाज की देखरेख के लिए राज्य के शीर्ष विभागों के सचिवों का एक बोर्ड गठित किया है। ग़ौरतलब है कि कोलकाता नगर निगम का कार्यकाल समाप्त होने के बाद राज्य सरकार क़रीब एक साल से बोर्ड ऑफ एडमिनिस्ट्रेटर नियुक्त कर निगम का कामकाज चला रही थी, जिसके प्रमुख फिरहाद हकीम हैं। लेकिन नारदा घोटाले के आरोप में हकीम की गिरफ़्तारी के बाद निगम के कामकाज को देखने के लिए राज्य सरकार ने अलग से सचिवों का एक बोर्ड गठित किया है, जिसका चेयरमैन मुख्य सचिव अलापन बंधोपाध्याय को बनाया है। जबकि गृह सचिव एसके द्विवेदी एवं शहरी विकास व नगरपालिका विभाग के प्रधान सचिव खलील अहमद को इस बोर्ड का सदस्य बनाया गया है। हालाँकि भाजपा नेताओं ने इस नियुक्ति को लेकर सवाल खड़े किये हैं।

क्या है नारदा घोटाला?
सन् 2016 में बंगाल में विधानसभा चुनाव से पहले नारदा स्टिंग टेप का ख़ुलासा हुआ था। इस स्टिंग टेप को लेकर दावा किया गया था कि ये मामला सन् 2014 का है, तभी इसकी स्टिंग की गयी थी। इस स्टिंग टेप में तृणमूल के सांसद, मंत्री, विधायक और कोलकाता के मेयर को कथित रूप से एक काल्पनिक कम्पनी के प्रतिनिधियों से रक़म लेते दिखाया गया था।


यह स्टिंग ऑपरेशन नारदा न्यूज पोर्टल के सीईओ मैथ्यू सैमुअल ने किया था। सन् 2016 में बंगाल में विधानसभा चुनाव से पहले नारदा स्टिंग टेप सार्वजनिक किये गये थे। इसमें टीएमसी के मंत्री, सांसद और विधायक की तरह दिखने वाले व्यक्तियों को कथित रूप से एक काल्पनिक कम्पनी के प्रतिनिधियों से अख़बार में लिपटी नक़दी लेते देखा गया था, जिसमें सुवेंदु अधिकारी भी दिख रहे हैं। इसके बाद सन् 2017 में कोलकाता उच्च न्यायालय ने इन टेप की जाँच का आदेश सीबीआई को दिया था। लेकिन अब सीबीआई ने इस मामले में कार्रवाई की, जिसमें उसकी पक्षपातपूर्ण कार्रवाई पर उँगलियाँ उठने लगी हैं।

बोलने पर शिकंजा
वहीं दो पूर्वोत्तर राज्यों- त्रिपुरा और मेघालय के पूर्व गवर्नर और पश्चिम बंगाल में भाजपा नेता तथागत रॉय पर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की निगाहें कुछ टेड़ी दिख रही हैं। क्योंकि उनके एक बयान के बाद शीर्ष नेतृत्व से उनका दिल्ली के लिए बुलावा आया, जिससे एक दिन पहले तथागत रॉय ने जानकारी दी कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की ओर से उन्हें दिल्ली आने के लिए कहा है। दरअसल उन्होंने इस आदेश के एक दिन पहले ही पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा शीर्ष नेतृत्व द्वारा उठाये गये कुछ क़दमों की आलोचना की थी।

दरअसल रॉय ने दावा किया था कि विधानसभा चुनाव से पहले तृणमूल कांग्रेस से अवांछित तत्त्वों को भाजपा में शामिल किया गया और ऐसे नेताओं को राज्य के चुनाव प्रचार में शामिल किया गया, जिन्हें बंगाली संस्कृति और विरासत के बारे में कोई जानकारी या समझ नहीं है। चुनाव परिणाम आने के बाद उनकी यह टिप्पणी भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को खल गयी और उन्हें दिल्ली हाज़िर होने को कहा गया। इसकी जानकारी ट्वीटर पर साझा करते हुए तथागत रॉय ने लिखा- ‘मुझे पार्टी के शीर्ष नेतृत्व द्वारा शीघ्र दिल्ली आने के लिए कहा गया है। यह सामान्य जानकारी के लिए है।’

रॉय ने ट्विटर पर यह भी लिखा कि अपनी गहरी निराशा के समय में मैं अपने प्रेरणास्रोत डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीन दयाल उपाध्याय के बारे में सोचता हूँ। उन्होंने कैसे-कैसे मुश्किलों का सामना किया, आज उसकी तुलना अपनी पीड़ा से करता हूँ। ऐसे विचार, ऐसे कष्ट व्यर्थ नहीं जाएँगे; कभी नहीं। केडीएसए (कैलाश-दिलीप-शिव-अरविंद) ने हमारे सम्मानित प्रधानमंत्री और गृहमंत्री का नाम मिट्टी में मिला दिया और दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के नाम पर धब्बा लगाया है। हेस्टिंग्स अग्रवाल भवन में बैठे हैं। अपनी विवादास्पद टिप्पणियों के लिए चर्चा में आते रहने वाले तथागत रॉय ने इससे पहले कहा था कि भाजपा में शामिल अभिनय जगत से जुड़ी तीन महिला सदस्य बड़े अन्तर से हार गयीं, वे राजनीतिक रूप से मूर्ख हैं। उन्होंने कहा कि इन महिलाओं में कौन से महान् गुण थे? कैलाश विजयवर्गीय, दिलीप घोष ऐंड कम्पनी को जवाब देना चाहिए।

भाजपा नेताओं को सुरक्षा
इधर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पश्चिम बंगाल के कांथी संसदीय क्षेत्र से लोकसभा सांसद शिशिर कुमार अधिकारी और तमलुक सीट से सांसद दिब्येंदु अधिकारी को वाई+ सुरक्षा दी है। बता दें कि शिशिर कुमार अधिकारी पूर्व केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं और फ़िलहाल वो लोकसभा सदस्य हैं। वहीं सिसिर कुमार अधिकारी भाजपा के टिकट पर इसी बार नंदीग्राम से विधायक चुने गये सुवेंदु अधिकारी के पिता हैं, जबकि दिव्येंदु अधिकारी सुवेंदु आधिकारी के भाई हैं।

भेदभाव
इधर चक्रवात ‘यास’ से राहत के लिए केंद्र सरकार ने भेदभावपूर्ण रवैया अपनाया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र पर भेदभाव आरोप लगाते हुए कहा है कि ओडिशा और आंध्र प्रदेश की तुलना में बड़ी और अधिक घनी आबादी के बावजूद आपदा राहत के लिए पश्चिम बंगाल को कम राशि जारी की गयी है। दो तटीय राज्यों की तुलना में राहत राशि के तौर पर पश्चिम बंगाल को 400 करोड़ रुपये मिले, जबकि ओडिशा और आंध्र प्रदेश को 600-600 करोड़ रुपये दिये गये। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चक्रवात से राहत के लिए 15,000 करोड़ रुपये की केंद्र सरकार से माँग की है। फ़िलहाल 15 लाख से ज़्यादा लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजा गया है।

हमले की राजनीति
पश्चिम बंगाल में पिछले क़रीब ढाई-तीन साल से भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच हमले की राजनीति चल रही है। दोनों तरफ़ के कई नेताओं पर भीड़ तंत्र द्वारा कई बार हमले हो चुके हैं और दोनों ही पार्टियाँ अपने-अपने नेताओं पर हुए हमलों का आरोप एक-दूसरे पर मढ़ती रही हैं। हाल ही में 6 जून को पश्चिम बंगाल के पश्चिम मिदनापुर ज़िले में केंद्रीय राज्यमंत्री वी मुरलीधरन की कार पर हमला हुआ, जिसमें उनका ड्राइवर जख़्मी हो गया।
मुरलीधरन ने ट्विटर पर आरोप लगाया कि उनके क़ाफ़िले पर हमले के पीछे टीएमसी के गुंडों ने का हाथ है। हमले के बाद मुरलीधरन ने कहा कि मैं पश्चिम मिदनापुर में पार्टी के उन कार्यकर्ताओं से मिलने गया था, जिनके ऊपर और घर पर हमला हुआ था। मैं अपने क़ाफ़िले के साथ एक घर से दूसरे घर जा रहा था, तभी लोगों का एक समूह अचानक हमारी ओर बढऩे लगा और हमला कर दिया। इससे पहले चुनावों के प्रचार प्रसार के दौरान ममता बनर्जी पर भी हमला हुआ था, जिससे उनके पैर में विकट चोट आयी थी। इसके अलावा भी दोनों पार्टियों के नेताओं और कार्यकर्ताओं पर कई बार हमले हो चुके हैं।

बड़ी बात यह है कि अभी तक राजनीतिक हिंसा के लिए दोनों पार्टियाँ एक-दूसरे पर आरोप लगा रही हैं। यह लुकाछिपी का खेल राजनीतिक रंग में रंग गया है। भाजपा के नेताओं का आरोप है कि अभ तक उसके कई कार्यकर्ताओं की हत्याएँ हो चुकी हैं। वहीं तृणमूल कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा उसके कार्यकर्ताओं पर हमले करा रही है। कुछ भी हो हिंसा के लिए राजनीति में जगह नहीं होनी चाहिए। क्योंकि यह साज़िशें फिर-फिरकर अपना सिर उठाती रहती हैं और राज्य के सामान्य लोगों का जीवन इससे बहुत बुरी तरह प्रभावित होता है।

यहाँ यह भी बता देना ज़रूरी होगा कि पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा का लम्बा इतिहास रहा है। लेकिन पिछले कुछ साल से यह हिंसा तेज़ी से बढ़ी हैं। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को अपने इस कार्यकाल में इस धब्बे को मिटाने की कोशिश करनी चाहिए। उसे यह भूलना नहीं चाहिए कि राज्य में कोरोना महामारी तेज़ी से फैल रही है, जिसे रोकने के लिए सरकार को अपनी पूरी ताक़त
लगानी चाहिए।
बता दें कि ममता बनर्जी पहले ही कह चुकी हैं कि उनकी सरकार की प्राथमिकता कोरोना महामारी को क़ाबू में करने की होगी, जो बिल्कुल ठीक है। इसके बाद भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बीएल संतोष ने आरोप लगाया कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी लोकतंत्र के लिए ख़तरा हैं। संतोष ने कहा कि पश्चिम बंगाल को लोकतंत्र की प्रयोगशाला बनना था, लेकिन यह राजनीतिक हिंसा की प्रयोगशाला बन गया है। वहीं तृणमूल के नेता और कार्यकर्ताओं का कहना है कि जबसे भाजपा की नज़र बंगाल पर लगी है, तबसे उसने हमलों की साज़िश करनी शुरू कर दी है। बंगाल में हार के बाद तो भाजपा का शीर्ष नेतृत्व और भी खिसिया गया है और हमलों की राजनीति कर रहा है, जो कि असंवैधानिक और बहुत-ही अशोभनीय कार्य है।

छवि ख़राब करने की शाज़िश
राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहता है। भाजपा और तृणमूल में इस समय यही चल रहा है। बात यह है कि भाजपा तो दंगों की राजनीति में काफ़ी बदनाम है। लेकिन इस बार तृणमूल पर भी कुछ ऐसे ही आरोप लग रहे हैं। भाजपा तृणमूल नेताओं का कहना है कि बेदा$ग छवि की नेता मानी जाने वाली ममता बनर्जी जनहित की सोच रखती हैं। अन्य दल के नेता और कु राजनीतिक जानकार भी बंगाल में हुई हिंसा को भाजपा की साज़िश बता रहे हैं।
बता दें कि प्रकृति से प्यार करने वाली संगीत प्रेमी ममता बनर्जी इतिहास, शिक्षा और कानून की डिग्रियाँ हासिल की हुई एक अच्छी और मझी हुई राजनीतिक खिलाड़ी हैं। और इस बार उन्होंने तीसरी बार बंगाल के विधानसभा चुनाव में दुनिया के सबसे बड़े दल भाजपा को चारों खाने चित करके 294 सीटों में से 211 सीटें हासिल करके यह सिद्ध कर दिया कि उन्हें बंगाल की भूमि पर हराना डंडे से हाथी को मारने की कोशिश करना है।
यूँ तो राजनीतिक गलियारों में दीदी के नाम से मशहूर ममता बनर्जी सामान्य जनजीवन जीने वाली ऐसी आरयन लेडी हैं कि सारी सुविधाएँ होते हुए भी वह हर रोज़ 5-6 किलोमीटर पैदल चलती हैं। कुछ स्थानीय लोगों का कहना है कि बंगाल में लगातार हिंसक झड़पों की आड़ में उनकी छवि को ख़राब किया जा रहा है, जिसे उन्हें ख़ुद ही हिंसा पर कट्रोल करके सुधारना होगा। अन्यथा आने वाले समय में उन्हें भी इसका नुक़सान भी हो सकता है। क्योंकि इसी बार दुनिया की सबसे बड़ी इस पार्टी भाजपा, जिसे बंगाल के लिए बाहरी मद भी कह सकते हैं; के कई नेताओं ने बंगाल के विधानसभा चुनाव में अच्छी बढ़त हासिल की है। हालाँकि इस बढ़त में बड़ा योगदान तृणमूल से भाजपा में छिटककर गये नेताओं का ही है।
तृणमूल में वापसी को बेचैन दलबदलू
इस बार के बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले ममता की पार्टी का दामन छोडक़र भाजपा में शामिल होने वाले दलबदलुओं का इस समय न घर, न घाट वाला हाल दिख रहा है। अब कई विधायक जो भाजपा में जाकर जीत भी गये ममता बनर्जी के साथ आने को परेशान दिख रहे हैं। तृणमूल से भाजपा में गयीं और भाजपा के टिकट पर जीतीं सोनाली गुहा ने तो यहाँ तक कह दिया कि जिस तरह एक मछली पानी से बाहर नहीं रह सकती, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह पाऊँगी दीदी। मैं आपसे माफ़ी चाहती हूँ और अगर आपने मुझे माफ़ नहीं किया, तो मैं जीवित नहीं रह पाऊँगी। उन्होंने अपील की कि कृपया मुझे वापस (तृणमूल कांग्रेस में) आने के लिए की अनुमति दें। इससे सोनाली की बेचैनी का पता चलता है। बता दें कि कभी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की परछाई मानी जाने वाली सोनाली तृणमूल में चार बार विधायक रह चुकी हैं। इसी तरह सरला मुर्मू और अन्य कई भाजपा विधायक और कुछ हारे हुए प्रत्याशी तृणमूल में आने को बेताब हैं।

लडख़ड़ाती अर्थ-व्यवस्था

 

अगर सिस्टम में दोष हो और सरकारी नीतियों में भेदभाव हो तो भ्रष्टाचार फलता-फूलता है और देश की अर्थ-व्यवस्था में घुन की तरह लगकर आर्थिक दशा को कमज़ोर कर देता है। इन दिनों लडख़ड़ाती अर्थ-व्यवस्था को लेकर तहलका संवाददाता ने दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और हरियाणा के व्यापारियों से बात की। व्यापारियों ने बताया कि अर्थ-व्यवस्था बाज़ारबंदी और मंदी से ही नहीं लडख़ड़ाती है, बल्कि व्यापार में भ्रष्टाचार से भी बर्बाद होती है और बड़े स्तर पर काले धन के रूप में तब्दील हो जाती है। इससे बाज़ार में नकदी का अभाव होता है। कोरोना-काल में त्राहि-त्राहि मची हुई है। वहीं सत्ता से जुड़े व्यापारी जमकर चाँदी कूट रहे हैं और देश की अर्थ-व्यवस्था में सेंध लगा रहे हैं। दिल्ली के व्यापारी प्रमोद जैन का कहना है कि पुलिस के डण्डे के डर और कोरोना बीमारी के भय से कोरोना-काल में लॉकडाउन के चलते कपड़े का कारोबार पूरी तरह से बन्द रहा है। पर वहीं कुछ सत्ता में अपनी पकड़ के सहारे जमकर कोरोना वायरस से बचाव के लिए जारी दिशा-निर्देशों की धज्जियाँ ही नहीं उड़ायीं, बल्कि अर्थ-व्यवस्था और जीएसटी को भी बट्टा लगाया है।

प्रमोद जैन का कहना है कि देश में शादी-विवाह का अवसर (मुहूर्त) चल रहा है। ऐसे में जिन परिवारों में पहले से शादी तय हो गयी है, वो हर हाल में येनकेन प्रकारेण शादी के लिए कपड़ों की ख़रीददारी के लिए बाज़ारों में निकलें कैसे? क्योंकि साधारण और ग़ैर-राजनीतिक व्यापारियों की दुकानें बन्द हैं। केवल सत्ता में पकड़ की दम पर दुकानों को खोला और जमकर कपड़ों का व्यापार किया। बिना बिल दिये बिक्री की वो भी औने-पौने दामों पर। ऐसे में सीधे तौर पर देश की अर्थ-व्यवस्था में सेंध लगी है और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला है।

नोएडा के जूता व्यापारी आलोक कुमार का कहना है कि कोरोना महामारी, सियासी लोगों के बड़े काम आया है। ज़िला स्तर से लेकर राज्य स्तर के नेताओं ने अपने संगे सम्बन्धियों के काम-काज में और व्यापार पर आँच तक नहीं आने दी है। वजह सा$फ है कि चोर दरवाज़ो से व्यापार हुआ है। क्योंकि सत्ता से जुड़े लोग को किसी शासन-प्रशासन का भय नहीं है। वे भले ही दिखावे के तौर पर दुकानों की शटरों को बन्द किये रहे हैं, लेकिन धन्धा चलता रहा है। हरियाणा के जाट आर.के. सिंह का कहना है कि लॉकडाउन तो आम लोगों के लिए है। जिनकी सियासत में अच्छी पकड़ है, उन्हें कहीं कोई रोक-टोक नहीं है। वे अपना काम-काज ख़ूब कर रहे हैं। वहीं जिनकी सियासी पहुँच अच्छी नहीं है, वे परेशान हो रहे हैं।

काम-काज करना दूर, दुकान के आस-पास भी दिखने पर वे पुलिस के कोपभाजन का शिकार हो रहे हैं, उनके चालान काटे जा रहे हैं। मध्य प्रदेश के दीपक शर्मा का कहना है कि यहाँ दो तरह का लॉकडाउन है। जो लोग किसी मंच से जुड़े हैं, उनके कारोबार को कोई आँच नहीं आयी है। जैसे राशन की दुकान में कपड़े से लेकर सारे सामान की बिक्री बड़े पैमाने पर हुई है। यहाँ कहीं पर कोई खाता न बही, जो दुकानदार ने ग्राहकों से कहा वही सही की व्यवस्था चल रही है।
आर्थिक मामलों के जानकार राजकुमार का कहना है कि देश में कोरोना महामारी से मज़दूरों का पलायन बढ़ा है। छोटे और मध्यम वर्ग का कारोबार मंदी और बंदी के कगार पर पहुँचा है। इससे लाखों युवाओं की नौकरी गयी है, जो सीधे तौर पर आर्थिक छति है। क्योंकि नौकरी जाने से देश का एक बड़ा वर्ग पैसों के लेन-देन से वंचित रहा है। लॉकडाउन के लगने से जीएसटी में गिरावट आ रही है, जो कोरोना महामारी के साथ आर्थिक महामारी के रूप में उभर रही है।
दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर डॉ. अमित कुमार का कहना है कि अगर सरकार को अगर सही मायने में सही समय पर देश की अर्थ-व्यवस्था को पटरी पर लाना है, तो उन युवाओं की नौकरी बचानी होगी, जो प्राइवेट कम्पनी में नौकरी करते हैं। इसके अलावा सरकार को उद्योगों, कम्पनियों को राहत राशि (पैकेज) देना चाहिए, ताकि वो चल सकें और अपने कर्मचारियों को समय पर वेतन दे सकें। साथ ही सरकारी महकमों में भी भर्ती प्रक्रिया तेज़ करनी होगी। अन्यथा लोगों को अपने जीवन-यापन में दिक़्क़त हो सकती है।

छोटे और मझोले व्यापारी संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष विजय जैन का कहना है कि देश की अर्थ-नीतियों में चोट लगाने की जो चालें चली जा रही हैं, उसमें हमारे सरकारी सिस्टम का दोष है। उनका कहना है कि मौज़ूदा समय में देश के दो-चार बड़े औद्योगिक घराने अपने से छोटे कारोबारियों के धन्धे हथियाने में लगे हैं, जिसको देश की सरकार अपने अंदाज़ से नजरअंदाज़ कर रही है। क्योंकि यह देश की अर्थ-व्यवस्था दो-चार औद्योगिक घरानों के हवाले करने की साज़िश लगती है, जो बाज़ारों में रौनक़ होती थी, अब वो बाज़ारों में रौनक़ नहीं है। ऐसे में अर्थ-व्यवस्था का अव्यवस्थित होना लाज़िमी है।

निराशा के बीच आशा

कोरोना महामारी के चलते हुई तालाबंदी से जर्जर होती
अर्थ-व्यवस्था को कृषि एवं सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र से उम्मीदें

वित्त वर्ष 2020-21 ऐसा रहा, जिसने पूरी दुनिया को प्रभावित किया और बहुत कुछ बदल गया। कोविड-19 की दूसरी लहर ने भारत को झकझोर दिया है और अप्रैल-मई, 2021 के हालात अर्थ-व्यवस्था के लिए झटके वाले संकेत देते हैं। इस दौरान तरक़ी्क़ी की राह पर ब्रेक, विवेकाधीन ख़र्च, बेरोज़गारी का बढऩा और निवेश में भारी कमी का रुझान देखा गया। हालाँकि इसी बीच बड़े पैमाने पर टीकाकरण अभियान और कृषि व सूचना प्रौद्योगिकी यानी आईटी क्षेत्र का बेहतर प्रदर्शन निराशा में एक आशा की उम्मीद जगाता है। इन्हीं तथ्यों पर आधारित भारत हितैषी की रिपोर्ट :-

कोरोना वायरस के नये वैरिएंट के संक्रमणों का प्रभाव ‘यू’ आकार का प्रतीत होता है। यू आकार से मतलब यह है कि वे सभी प्रभावित हैं सिवाय कृषि और आईटी सेक्टर के। यू की ढलान पर एक तरफ़ संगठित और स्वचालित निर्माण होते हैं और दूसरी तरफ़ ऐसी सेवाएँ, जिन्हें दूरस्थ रूप से वितरित कर सकते हैं। इनमें उत्पादकों व उपभोक्ताओं को स्थानांतरित करने की ज़रूरत नहीं होती है। ये गतिविधियाँ महामारी प्रोटोकॉल के तहत जारी रखी जाती हैं। सबसे कमज़ोर ब्लू कॉलर समूह होता है, जिन्हें जीवित रहने के लिए और शेष समाज के लिए जोखिम उठाना पड़ता है; जैसे कि डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी। नगरपालिका कर्मियों, दैनिक आजीविका चलाने वाले व्यक्ति, छोटे व्यवसाय, संगठित और असंगठित क्षेत्र को नीतियों में प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।

रिजर्व बैंक की राहत
अर्थ-व्यवस्था को राहत देने के लिए रिजर्व बैंक ने फिर से अहम क़ीदम उठाया है। आरबीआई ने 21 मई को घोषणा की कि वह वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए भारत सरकार को 99,122 करोड़ रुपये का अधिशेष हस्तांतरित करेगा। यह लाभांश 01 जुलाई, 2020 से 31 मार्च, 2021 तक नौ महीने की अवधि के लिए होगा। घोषित लाभांश पहले से घोषित 73.5 फ़ीसदी अधिक है। वित्तीय वर्ष 2020 के लिए 57,128 करोड़ हस्तांतरित किये गये थे। भारत सरकार ने आरबीआई से कुल लाभांश के रूप में 53,511 करोड़ रुपये की कमायी का बजट रखा था। यह 2022 के लिए बजट की गयी राशि का क़ीरीब दोगुना है। बढ़े हुए भुगतान से भारत सरकार को अपने बजटीय दायित्वों को पूरा करने और अर्थ-व्यवस्था के पुनरुद्धार में मदद मिलेगी।
लाभांश एक राहत के रूप में होता है, क्योंकि माँग के झटके से अप्रत्यक्ष कर लक्ष्यों पर दबाव बढ़ जाता है। बढ़े हुए लाभांश से सरकार को महामारी की दूसरी लहर से उपजी स्वास्थ्य देखभाल पर ख़र्च में अप्रत्याशित वृद्धि को पूरा करने में भी मदद मिल सकेगी।

रिजर्व बैंक की चेतावनी
केंद्रीय बैंक ने 17 मई को जारी अपने मासिक बुलेटिन में बताया था कि कोविड-19 की दूसरी लहर का सबसे बड़ा झटका लोगों की माँग में कमी है। इससे नकारात्मकता के संकेत दिये हैं। मसलन-इनवेंटरी संचय के अलावा गतिशीलता, विवेकाधीन ख़र्च और बेरोज़गारी का बढ़ना।


बढ़ती बेरोज़गारी
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के नवीनतम आँकड़ों से पता चलता है कि 23 मई को समाप्त सप्ताह में बेरोज़गारी दर दोहरे अंकों में दर्ज की गयी। इससे पता चलता है कि घरेलू और राज्यवार लॉकडाउन (तालाबंदी) ने अर्थ-व्यवस्था और नौकरियों को नक़ीसान पहुँचाना शुरू कर दिया है। अखिल भारतीय साप्ताहिक बेरोज़गारी दर 23 मई तक सप्ताह में 14.7 फ़ीसदी तक पहुँच गयी, जो पिछले सप्ताह के 14.5 फ़ीसदी से मामूली ज़्यादा है। सीएमआईई के आँकड़ों के अनुसार, शहरी भारत में साप्ताहिक बेरोज़गारी दर 17.4 फ़ीसदी रही, जो 16 मई को 14.7 थी, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह 13.5 फ़ीसदी थी, जो अगले सप्ताह 14.3 फ़ीसदी दर्ज की गयी।
सीएमआईई के प्रबन्ध निदेशक और सीईओ महेश व्यास ने अपनी वेबसाइट पर लिखा, हाल के दिनों में देखी गयी दो अंकों की बेरोज़गारी दर इंगित करती है कि कोरोना के चलते लगायी गयीं पाबंदियाँ भी अर्थ-व्यवस्था पर भारी पड़ रही हैं। उन्होंने कहा कि अप्रैल 2021 की शुरुआत से शहरी बेरोज़गारी दर बढ़ रही है। 01 अप्रैल को 30 दिवसीय चलती औसत शहरी बेरोज़गारी दर 7.2 फ़ीसदी थी। 01 मई तक यह 9.6 फ़ीसदी और फिर 23 मई तक 12.7 फ़ीसदी पर पहुँच गयी। व्यास ने कहा कि ग्रामीण भारत में बेरोज़गारी का बढऩा हाल की घटना है।

कमायी में कमी
एक नई रिपोर्ट ‘स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया 2021 : वन ईयर ऑफ कोविड -19’, जिसे हाल ही में अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय द्वारा जारी किया गया है, इसमें कहा गया है कि महामारी के कारण अधिकांश श्रमिकों की आय में भारी गिरावट आयी है। इसके परिणामस्वरूप ग़रीबी में अचानक वृद्धि दर्ज की गयी है। रिपोर्ट भारत में कोविड-19 के एक वर्ष के प्रभाव, नौकरियों, आय, असमानता और ग़रीबी पर दस्तावेज़ों का आकलन किया गया है। रिपोर्ट से पता चलता है कि महामारी ने अनौपचारिकता को और बढ़ा दिया है और अधिकांश श्रमिकों की कमायी में भारी गिरावट आयी है, जिसके परिणामस्वरूप ग़रीबी बढ़ी है। महिलाओं और युवा श्रमिकों को असमान रूप से प्रभावित किया है। परिवारों ने भोजन का सेवन कम करने, उधार लेने और सम्पत्ति बेचने जैसी चुनौतियों का सामना किया है। सरकारी राहत ने संकट के सबसे गम्भीर रूपों से बचने में मदद की है। लेकिन सबसे कमज़ोर कुछ श्रमिकों और परिवारों को छोडक़र सहायता उपायों की पहुँच अधूरी ही है।

रिपोर्ट के मुख्य रूप से यह निष्कर्ष है कि देशव्यापी अप्रैल-मई 2020 तालाबंदी के दौरान क़ीरीब 10 करोड़ लोगों ने नौकरियाँ गँवायीं। अधिकांश जून, 2020 तक काम पर वापस आ गये थे; लेकिन 2020 के अन्त तक भी क़ीरीब 1.5 कर्मचारियों को काम नहीं मिला। आमदनी भी कम ही रही। अक्टूबर, 2020 में प्रति व्यक्ति औसत मासिक घरेलू आय 4,979 रुपये रही, जो जनवरी, 2020 में 5,989 रुपये के स्तर पर थी। सबसे ज़्यादा कोरोना मरीज़ों वाले राज्यों में सबसे ज़्यादा नौकरियाँ गयीं। महाराष्ट्र, केरल, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और दिल्ली ने नौकरी छूटने वालों की तादाद सबसे ज़्यादा रही।
तालाबंदी के दौरान और इसके बाद के महीनों में 61 फ़ीसदी कामकाजी पुरुष कार्यरत रहे और 7 फ़ीसदी ने रोज़गार गँवा दिया और काम पर नहीं लौटे। महिलाओं की बात करें, तो केवल 19 फ़ीसदी कार्यरत रहीं और 47 फ़ीसदी को तालाबंदी के दौरान स्थायी नौकरी से हाथ धोना पड़ा और 2020 के अन्त तक भी काम पर नहीं लौटीं। युवा श्रमिकों पर सबसे ज़्यादा प्रभाव पड़ा। अच्छी नौकरी के चक्कर वालों को भी कोई मौक़ीा नहीं मिल सका। 15-24 वर्ष आयु वर्ग के 33 फ़ीसदी श्रमिक दिसंबर, 2020 तक भी रोज़गार पाने में नाकामयाब रहे। 25-44 वर्ष समूह में यह संख्या केवल 6 फ़ीसदी थी।
हालाँकि आय में कमी हर जगह देखी गयी। महामारी ने ग़रीब परिवारों पर सबसे ज़्यादा असर डाला है। गत अप्रैल और मई में 20 फ़ीसदी सबसे ग़रीब परिवारों ने अपनी पूरी आय ही गँवा दी। इसके विपरीत, धनी परिवारों को अपनी पूर्व-महामारी आय के एक-चौथाई से भी कम का नक़ीसान हुआ। पूरे आठ महीने की अवधि (मार्च से अक्टूबर) में निचले तबक़ीे में से 10 फ़ीसदी में एक औसत परिवार को 15,700 रुपये या सि$र्फ दो महीने की आय का नक़ीसान हुआ।
परिवारों ने भोजन का सेवन कम कर दिया, सम्पत्ति बेच दी और दोस्तों, रिश्तेदारों और साहूकारों से अनौपचारिक रूप से क़ीर्ज़ लिया। अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी कोविड लाइवलीहुड फोन सर्वे में 90 फ़ीसदी हिस्सा लेने वालों ने बताया कि तालाबंदी के परिणामस्वरूप घरों में भोजन की मात्रा में कमी आयी है। इससे भी अधिक चिन्ता की बात यह है कि 20 फ़ीसदी ने बताया कि तालाबंदी के छ: महीने बाद भी भोजन की गुणवत्ता में सुधार नहीं हुआ है।
इसमें सुझाव दिया गया है कि संकट से मज़बूत होकर उबरने के लिए साहसिक उपायों की आवश्यकता होगी, लेकिन अभी तक भारत की कोविड-19 पर सरकारी मदद ख़ास नहीं रही है। रोकथाम के साथ-साथ कल्याण के मामले में महामारी का सामना करने के लिए राज्यों की वित्तीय हालत भी बहुत अच्छी नहीं है। इस प्रकार केंद्र सरकार के लिए अब अतिरिक्त ख़र्च करने के लिए मजबूर करने वाले कारण हैं। पीडीएस के तहत जून से मुफ़्त राशन का विस्तार कम-से-कम 2021 के अन्त तक करने का प्रस्ताव दिया है। तीन महीने के लिए 5,000 रुपये का नक़ीद हस्तांतरण कमज़ोर परिवारों को किया जाना चाहिए। खातों, मनरेगा पात्रता को 150 दिनों तक विस्तार और कार्यक्रम मज़दूरी को संशोधित करके राज्य न्यूनतम मज़दूरी को बढ़ा सकते हैं। मनरेगा के बजट को कम-से-कम 1.75 लाख करोड़ रुपये तक बढ़ाया जाना चाहिए। इसने सबसे अधिक प्रभावित •िालों में एक पायलट शहरी रोज़गार कार्यक्रम का भी सुझाव दिया है, जो सम्भवत: महिला श्रमिकों पर केंद्रित है।

टीकाकरण अभियान
3 जनवरी, 2021 को भारत ने औपचारिक रूप से दो टीकों के आपातकालीन उपयोग को मंज़ूरी दी और 16 जनवरी को, इसने दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान शुरू किया। इस वर्ष प्राथमिकता सूची में क़ीरीब 30 करोड़ लोगों को टीका लगाने की योजना है। संकट के समय इस पर वैश्विक समर्थन भी मिला है, जिसमें 40 से अधिक सरकारें भारत को आवश्यक चिकित्सा के साथ मदद करने को आगे आयी हैं। विश्व व्यापार संगठन के महानिदेशक गोजी ओकोंजोवियाला ने ट्वीट किया- ‘भारत ने नि:स्वार्थ रूप से अपने टीकों का 40 फ़ीसदी से अधिक निर्यात किया। भारत को इस पर समर्थन मिलने का समय आ गया है। अमेरिका ने वैक्सीन से सम्बन्धित कच्चे माल को टीकों के उत्पादन के लिए भारत भेजने का फ़ैसला किया है। अमेरिका की दो बड़ी फार्मास्युटिकल कम्पनियाँ गिलियड साइंसेज और मर्क ने स्वैच्छिक लाइसेंसिंग मार्ग के माध्यम से भारत में अपनी दवाओं तक पहुँच बढ़ाने के लिए क़ीदम उठाये हैं। रेमडेसिवीर बनाने वाली भारतीय कम्पनियों को समर्थन देने के साथ-साथ 450,000 शीशियाँ सहयोग के तौर पर पहुँचायी हैं। रूस ने 01 मई, 2021 से भारत को स्पुतनिक वी वैक्सीन का निर्यात शुरू किया, जिसे आपातकालीन मंज़ूरी भी दे दी गयी है। ऑक्सीजन सांद्रक, तरल ऑक्सीजन, क्रायोजेनिक ऑक्सीजन टैंक, ऑक्सीजन सिलेंडर, मोबाइल ऑक्सीजन उत्पादन संयंत्र और वेंटिलेटर समेत अन्य चिकित्सा उपकरणों के लिए कई अन्य देशों ने मदद की है। इनमें सिंगापुर से प्लेन और समुद्र के रास्ते से सहायता पहुँची हैं। इसके अलावा अमेरिका, यूके, फ्रांस, जर्मनी, संयुक्त अरब अमीरात, आयरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, सऊदी अरबय हांगकांग, और थाईलैंड ने भी मदद की है। एशियाई विकास बैंक (एडीबी) ने भारत में महामारी पर सहयोग करने के लिए 1.5 अरब अमेरिकी डॉलर राशि की मंज़ूरी दी है।

किससे है उम्मीद?
यह सच है कि नाउम्मीदी के बीच उम्मीद की किरणें हैं। मई की पहली छमाही के अन्त में सबसे घने शहर मुम्बई में कोरोना संक्रमण की दर सबसे ज़्यादा थी। दूसरी लहर में सबसे ज़्यादा प्रभावित रहने वाली मायानगरी में अप्रैल की शुरुआत में 26.6 फ़ीसदी संक्रमण दर थी, जो अब घटकर 7.9 फ़ीसदी हो गयी। मुम्बई में रोजाना नये मामले 7 अप्रैल को 10,000 के हाल के शिखर से घटकर अब क़ीरीब 2400 से कम हो गये हैं। स्वस्थ होने वाले मरीज़ों की तादाद भी दिन ब दिन बढ़ती जा रही है। 12 अप्रैल को 90,000 के शिखर से गिरकर वर्तमान में क़ीरीब 40,000 है। भारत की दूसरी लहर ने पहले मुम्बई (और महाराष्ट्र) को प्रभावित किया, इसके बाद देश के अन्य राज्यों में भी इसका व्यापक असर देखने को मिला।

इस बीच सोने ने एक अभूतपूर्व चमक पायी, जिसने अगस्त में सर्राफा की क़ीमतों में 25.1 फ़ीसदी की वृद्धि दर्ज की। पिछले वर्ष में 18.3 फ़ीसदी की वृद्धि के साथ एक सर्वकालिक उच्च बढ़ोतरी देखी। सुरक्षित आश्रय की माँग और अभूतपूर्व हालात ने 2020 में सर्राफा को शीर्ष प्रदर्शन करने वाली सम्पत्ति बना दिया। 2021 में सोने की क़ीमतों में अब तक गिरावट दर्ज की गयी है। क्योंकि सुरक्षित पनाहगाह की माँग कम होने के साथ-साथ डॉलर की मज़बूती के कारण भी बिकवाली हुई है। हाल के महीनों में सोने के आयात में तेज़ी से वृद्धि हुई है। अप्रैल में मार्च में रिकॉर्ड सोने के आयात के शीर्ष पर मूल्य और मात्रा दोनों के सन्दर्भ में लगातार सातवें महीने तक जारी रहा। जेम्स एंड ज्वैलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (जीजेईपीसी) के अनुसार, प्रमुख निर्यात स्थलों में माँग की स्थिति में सुधार, त्योहारी सीजन के साथ पहले स्थगित शादियों की घरेलू माँग ने सोने और आभूषणों की माँग बढ़ा दी है। व्यापार और उपभोक्ता की स्थिति में सुधार, सीमा शुल्क में कमी के चलते अगस्त, 2020 में रिकॉर्ड शिखर से सोने की क़ीमतों में गिरावट 2020-21 में अमेरिकी डॉलर की तुलना में भारतीय रुपये की स्थिति ने भी सोने में खुदरा निवेश को आकर्षित किया है। सोने की चमक को देखते हुए चाँदी के लिए भी साल अच्छा रहा। बेस मेटल्स, जिसमें साल के शुरुआती महीनों में तेज़ गिरावट देखी गयी थी, 2021 में ज़ोरदार रिकवरी हुई।

अन्य देशों की तलुना करने से पता चलता है कि भारत अन्य अर्थ-व्यवस्थाओं की तुलना में आगे बढ़ रहा है। देश के छ: सबसे बड़े राज्यों – महाराष्ट्र, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात और पश्चिम बंगाल में सार्वजनिक स्थलों पर 87 फ़ीसदी लोगों की मौज़ूदगी देखी गयी, जो महामारी (मिंट ट्रैकर) में अब तक का सबसे अच्छा स्तर है। समग्र माँग स्थितियों ने या तो हाल के लाभ को समेकित किया है या गति को मज़बूत करने के लिए बचत का इस्तेमाल किया गया है। बिजली की खपत में सालाना आधार पर 5.0 फ़ीसदी की वृद्धि हुई, जिसने लगातार चौथे महीने इसकी वृद्धि को बनाये रखा। मध्य प्रदेश (15 फ़ीसदी), राजस्थान (12 फ़ीसदी), बिहार (14 फ़ीसदी), पंजाब (12 फ़ीसदी) और उत्तर प्रदेश (10 फ़ीसदी) में बिजली की बढ़ी है। ला नीना और चक्रवाती तूफ़ानों के प्रभाव के चलते कई राज्यों में छिटपुट से लेकर तेज़ बारिश हुई। इससे ऊपरी भारत के अधिकांश हिस्सों में तापमान अधिक नहीं दर्ज किया गया और पिछले कई वर्षों के निचले स्तर पर आ गया है। उपभोक्ता विश्वास फिर से बहाल हो रहा है। डिजिटल और ओमनी-चैनल बिक्री के माध्यम से मूल्य वर्धित वस्तुओं और आवश्यक वस्तुओं के लिए बड़े बदलाव से पहले, ख़रीद व्यवहार से स्वास्थ्य और कल्याण उत्पादों के प्रति ऑनलाइन और ऑफलाइन वरीयता की उम्मीद बढ़ी है। बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए सेवा वितरण बढ़ाने के लिए ई-कॉमर्स कम्पनियों और किराना स्टोर के बीच गठजोड़ का विस्तार होने की उम्मीद है। उत्साहित उपभोक्ता भी इसमें दिलचस्पी दिखा रहे हैं। आवासीय इकाइयों की बिक्री में 2021 में तेज़ उछाल के साथ हुआ, जो प्रॉपर्टी के क्षेत्र के लिए अच्छा संकेत हैं। पिछली तिमाही के स्तर से क़ीरीब दोगुना होने के पीछे की वजह अनुकूल ब्याज दरें, अभी भी संयमित आवास की क़ीमतें, डेवलपर्स निर्माण इकायों को बेचने के लिए भारी छूट और कुछ राज्यों द्वारा स्टाम्प शुल्क में कमी हैं।

कृषि क्षेत्र पर असर नहीं
केरोना महामारी से कृषि क्षेत्र पर असर नहीं हुआ है। हालाँकि केंद्र सरकार के पिछले साल बनाये गये तीन कृषि क़ीानूनों का विरोध कर रहे किसानों पर सरकार ने ध्यान देना क़ीरीब बन्द कर दिया है। लेकिन संकट के समय में कृषि क्षेत्र में आर्थिक पुनरुद्धार से नयेपन की उम्मीद भी कई लोग पाले हैं। कोरोना की दूसरी लहर ने अर्थ-व्यवस्था को कैसे प्रभावित किया है? महामारी में इस तरह के आकलन असमान आधार प्रभावों के चलते ठीक से सामने नहीं आ पाते हैं। इसलिए मापने की गति पर नज़र डालने के लिए पहले भी बताया गया है। अप्रैल और मई, 2021 के लिए उच्च आवृत्ति संकेतक डाटा लैग के मद्देनज़र कम है। लेकिन उनका सुझाव है कि दूसरी लहर का सबसे बड़ा असर इन्वेंट्री संचय के अलावा गतिशीलता, विवेकाधीन ख़र्च में कमी और बेरोज़गारी बढऩा है।

कृषि क्षेत्र और इससे जुड़े लोगों की स्थिति मज़बूत बनी हुई है। प्रमुख फ़सलों की बुवाई सामान्य रक़ीबे से अधिक हो गयी है। रबी की बुवाई 2021 में 651.9 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में की गयी, जो पिछले वर्ष की तुलना में 1.6 फ़ीसदी अधिक है और पूरे सीजन के सामान्य रक़ीबे से अधिक है। जलाशय का स्तर 56 फ़ीसदी के दशकीय औसत के मुक़ीाबले पूरी क्षमता का 68 फ़ीसदी था, यह रबी मौसम के लिए एक महत्त्वपूर्ण है। रबी की प्रमुख फ़सल गेहूँ ने बुवाई के रक़ीबे (2.0 फ़ीसदी) में वृद्धि दर्ज की है, जिसका मुख्य कारण प्रमुख उत्पादक राज्यों, विशेषकर हरियाणा (1.2 फ़ीसदी) और मध्य प्रदेश (12.7 फ़ीसदी) में अधिक बुवाई हुई। दलहन और तिलहन ने भी रक़ीबे में प्रभावशाली बदलाव दर्ज किया है। रिकॉर्ड ख़रीफ़ उत्पादन के साथ, 51.3 मिलियन टन चावल की ख़रीद हुई, जो एक साल पहले की तुलना में 26.2 फ़ीसदी अधिक रहा। इससे अनाज (चावल और गेहूँ) का बफर स्टॉक सामान्य से 3.7 गुना अधिक हो गया।
कुल माँग की स्थिति प्रभावित हुई है, भले ही कोरोना की पहली लहर से ज़्यादा असर रहा हो। अप्रैल में माल और सेवा कर (जीएसटी) संग्रह 1.41 लाख करोड़ रुपये था, जो जीएसटी की शुरुआत के बाद से सबसे अधिक था। ई-वे बिल घरेलू व्यापार का एक संकेतक है, जिसके अप्रैल 2021 में महीने-दर-महीने 17.5 फ़ीसदी पर दोहरे अंकों का संकुचन दर्ज किया गया, जिसमें अंतर्राज्यीय और अंतर-राज्यीय ई-वे बिलों में 16.5 फ़ीसदी और 19 फ़ीसदी की गिरावट आयी।
पेट्रोल और डीजल की बिक्री के शुरुआती आँकड़े अप्रैल में ईंधन की माँग में गिरावट की ओर इशारा करते हैं, जिसकी वजह राज्यों में तालाबंदी या कोरोना के चलते पाबंदियों का पालन करना है। डीजल की बिक्री में 1.7 फ़ीसदी की कमी आयी, जबकि अप्रैल 2021 में पेट्रोल की बिक्री में 6.3 फ़ीसदी की गिरावट आयी। अप्रैल में बिजली उत्पादन महीने-दर-महीने स्थिर रहा, लेकिन अप्रैल 2019 के पूर्व-महामारी आधार पर, यह 8.1 फ़ीसदी की वृद्धि का बेहतर संकेत है। औद्योगिक गतिविधि पर दूसरी लहर का सीमित प्रभाव देखने को मिला। साल-दर-साल आधार पर बिजली उत्पादन में 39.7 फ़ीसदी की वृद्धि हुई।

अप्रैल 2021 के मध्य से कच्चे तेल की अंतर्राष्ट्रीय क़ीमतों में तेज़ी के साथ, देश में भी पेट्रोल-डीजल की क़ीमतों में भी मई की शुरुआत से एक अंतराल के साथ वृद्धि हुई। 03 मई, 2021 से 12 मई, 2021 के बीच पेट्रोल और डीजल पम्प की क़ीमतें (चार प्रमुख महानगरों में क़ीमतों का औसत) 1.53 रुपये प्रति लीटर और 1.85 रुपये प्रति लीटर बढक़र क्रमश: 94.10 रुपये प्रति लीटर और 86.33 रुपये प्रति लीटर हो गयी। मुम्बई में एक लीटर पेट्रोल अब 99.71 रुपये और डीजल की क़ीमत 91.57 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से बिक रहा है। इस स्तर पर पेट्रोलियम क़ीमतें नयी ऐतिहासिक ऊँचाइयों को छू रही हैं। कृषि, औद्योगिक कच्चे माल और ऊर्जा क्षेत्रों में कटौती करते हुए अंतर्राष्ट्रीय कमोडिटी की क़ीमतें भी तेज़ वृद्धि दर्ज कर रही हैं। इससे घरेलू लागत की हालत बिगड़ती जा रही है।

यात्री वाहनों (पीवी) के अधिकांश मूल उपकरण निर्माताओं (ओईएम) ने अप्रैल में गिरावट दर्ज की, जो माँग की कमी को दर्शाती है। दुपहिया वाहनों की बिक्री में भी 33.5 फ़ीसदी कमी हुई, इससे पता चलता है कि ग्रामीण इलाक़ीों में भी माँग पर असर पड़ा है। वाहन पंजीकरण और वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री जैसे अन्य वाहन संकेतकों ने दोहरे अंकों का संकुचन दिखाया। ट्रैक्टर की बिक्री जो लगातार बढ़ रही है, उसमें भी गिरावट दर्ज की गयी। इसके डीलरशिप में कमी देखी गयी। सार्वजनिक आवाजाही पर प्रतिबन्ध के साथ, माल ढुलाई और यात्री आन्दोलनों में नरमी देखी गयी।


01 मई, 2021 को समाप्त हुए लगातार छठे सप्ताह दैनिक विमान यात्रियों की औसत संख्या में कमी आयी। 17 अप्रैल से 01 मई को समाप्त सप्ताह के दौरान दैनिक हवाई सफ़र करने वालों की औसत संख्या 1,93,000 से कम होकर 1,26,000 हो गयी। रेलवे यात्री पंजीकरण अप्रैल के पहले सप्ताह से मंदी की स्थिति में लौट आये हैं।

2021 कैसा दिखेगा? रिकवरी हासिल का आकार आख़िर ‘वी’ आकार का होगा और वी का मतलब वैक्सीन है। भारत पहले ही दुनिया में सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान शुरू कर चुका है। आगे की राह ख़तरे से भरी ज़रूर है; लेकिन भारत का भविष्य कोरोना की दूसरी लहर डिगा नहीं सकेगी, बल्कि उसके बाद नयी •िान्दगी का अवसर प्रदान करेगी।

 

 

 

 

पेट्रोल और डीजल के साथ खाने के तेल के दामों में भी लगी आग

कोरोना महामारी के बीच ज्यादातर लोगों के काम धंधे बुरी तरह प्रभावित हुए है। दूसरी ओर महंगाई की मार ने आम लोगों के जीवन को और दुश्वार कर दिया है। इस बीच, पेट्रोल और डीजल के दामों में ही बढ़ोतरी नहीं हो रही है, बल्कि हर घर में इस्तेमाल होने वाले खाने के तेल के दाम में भी आग लगी है। ऐसा लगता है कि अब इनके कीमतों पर सरकारों की भूमिका बेहद सीमित हो गई है और मुनाफाखोर जमकर कमाई कर रहे हैं।

देश के छह राज्यों में पेट्रोल के दाम 100 रुपये प्रति लीटर को पार कर चुके हैं। रविवार को एक बार फिर पेट्रोल-डीजल की कीमतों में इजाफा किया गया है। पेट्रोल में 27 पैसे प्रति लीटर और डीजल में 29 पैसे प्रति लीटर की बढ़ोतरी हुई है। दिल्ली में आज पेट्रोल 95.03 रुपये प्रति लीटर और डीजल 85.95 रुपये प्रति लीटर पर पहुंच गया है जो अपने रिकाॅर्ड ऊंचाई के स्तर पर है।

मुंबई में पेट्रोल 101.25 रुपये और डीजल 93.10 रुपये, कोलकाता में पेट्रोल 95.02 रुपये और डीजल 88.80 रुपये, चेन्नई में पेट्रोल 96.47 रुपये और डीजल 90.66 रुपये प्रति लीटर बिक रहा है। एक रपोर्ट के अनुसार, देश के 135 जिलों में पेट्रोल के दाम 100 रुपये प्रति लीटर से अधिक हो चुके हैं। इसी साल पेट्रोल की कीमतें 13 फीसदी तक बढ़ चुकी हैं।

इसी बीच, देश के अलग-अलग इलाकों में खाने के तेल के दामों में भी आग लगी हुई है जिससे ज्यादातर लोग परेशान हैं। गत एक वर्ष में इन सभी खाने के तेलों के दामों रिकाॅर्ज तेजी दर्ज की गई है। दिल्ली में एक साल पहले जो सरसों का तेल 130 रुपये प्रति लीटर था वो इस वक्त 180 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच चुका है। 179 रुपये किलो वाला मूंगफली का तेल 200 रुपये को पार कर चुका है। खुदरा में कीमतें इससे भी ज्यादा हैं।

बता दें कि खाद्य तेलों का घरेलू उत्पादन उसकी जरूरतें पूरी करने के लिए पर्याप्त नहीं है। भारत अपनी कुल जरूरत का केवल 40 फीसदी खाद्य तेल का उत्पादन करता है। डिमांड और सप्लाई के गैप को पूरा करने के लिए देश की जरूरत का 60 तेल निर्यात किया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में खाने के तेल के दाम पिछले एक साल में बढ़े हैं। इसी वजह से देश में इनके दामों में इजाफा हुआ है। ये बातें खुद सरकार ने इसी साल मार्च में लोकसभा में कही थीं।

जीबी पंत अस्पताल ने भाषा पर विवादित सर्कुलर वापस लिया, राहुल गांधी ने किया था विरोध  

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने दिल्ली के एक सरकारी जीबी पंत अस्पताल के शनिवार को जारी किये गए उस सर्कुलर की कड़ी निंदा की जिसमें उसने अपने नर्सिंग स्टाफ को ड्यूटी के दौरान मलयालम भाषा नहीं बोलने का फरमान जारी किया। राहुल गांधी ने कहा कि किसी भी अन्य भारतीय भाषा की ही तरह मलयालम भी भारतीय भाषा है लिहाजा भाषा पर भेदभाव नहीं करना चाहिए। इस विरोध को देखते हुए अब रविवार को अस्पताल ने अपना यह विवादित सर्कुलर वापस ले लिया है।

सर्कुलर जारी करने पर अस्पताल का कहना था कि ज्यादातर मरीज और सहकर्मी इस भाषा को नहीं जानते हैं, जिस कारण बहुत असुविधा होती है। हालांकि, जीबी पंत नर्सेज एसोसिएशन के अध्यक्ष लीलाधर रामचंदानी ने भी कहा है कि एसोसिएशन इस सर्कुलर में इस्तेमाल किए गए शब्दों से असहमत है। वैसे उन्होंने दावा किया कि एक मरीज की तरफ से अस्पताल में मलयालम भाषा के इस्तेमाल पर की गयी एक शिकायत के बाद यह सर्कुलर जारी किया गया। विवादित सर्कुलर को आज अस्पताल ने वापस ले लिया।

उधर कांग्रेस नेता और वायनाड से सांसद राहुल गांधी ने अस्पताल के सर्कुलर पर इसे  भाषा पर भेदभाव बताया। गांधी ने एक ट्वीट में कहा- ‘किसी भी अन्य भारतीय भाषा की तरह ही मलयालम भी भारतीय भाषा है।भाषा पर भेदभाव बंद करो!’

बता दें दिल्ली के गोविंद बल्लभ पंत इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्टग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च ने शनिवार को एक सर्कुलर जारी करके अपने यहाँ नर्सों से कहा था कि वे बातचीत के लिए केवल हिंदी और अंग्रेजी का इस्तेमाल करें या ‘कड़ी कार्रवाई’ का सामना करने के लिए तैयार रहें। अस्पताल के इस सर्कुलर और उसकी भाषा पर गहरा विवाद पैदा हो गया, जिसके बाद उसने आज इसे वापस लेने का फैसला किया है।
इससे पहले कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल ने भी एक ट्वीट करके स्वास्थ्य मंत्री  हर्षवर्धन से अस्पताल के अधिकारियों की तरफ से जारी किए गए इस विवादित  सर्कुलर को तुरंत वापस लेने का आदेश देने का आग्रह किया था। उन्होंने कहा था कि ये सर्कुलर भेदभावपूर्ण है और हमारे संविधान की तरफ से दिए गए मूल अधिकार के खिलाफ है।

अनदेखी का काला दिवस


केंद्र के तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ किसान आन्दोलन के 26 मई को छ: माह पूरे हो गये, जबकि केंद्र सरकार की इस दिन सातवीं वर्षगाँठ थी। 26 मई, 2014 को ही केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में भाजपा सरकार का गठन हुआ था। किसान इसे काले दिवस के तौर पर मना रहे हैं। संयुक्त मोर्चा के आह्वान पर दिल्ली की सीमाओं के अलावा पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इसका असर देखने को मिला। किसानों का यह विरोध केंद्र सरकार की कृषि नीतियों के ख़िलाफ़ है। लेकिन पंजाब में यह विरोध वहाँ की कांग्रेस सरकार, विशेषकर कैप्टन अमरिंदर सिंह के ख़िलाफ़ भी हो रहा है। भारतीय किसान यूनियन (उग्राहां) ने 28, 29 और 30 मई को मुख्यमंत्री के पटियाला आवास के बाहर धरना देने की बात कही। आन्दोलन के प्रमुख चेहरे और भाकियू के प्रवक्ता राकेश टिकैत दो टूक कहते हैं कि कोरोना की वजह किसान नहीं, बल्कि ख़ुद सरकार है। सरकार अपनी नाकामी कोरोना की आड़ में आन्दोलन पर थोपकर देश को गुमराह कर रही है। विदित हो कि पंजाब में अगले वर्ष के शुरू में विधानसभा चुनाव हैं। लिहाज़ा राज्य में कैप्टन सरकार के ख़िलाफ़ किसानों का बढ़ता विरोध उसके लिए संकट खड़ा कर सकता है।

पूर्व मंत्री नवजोत सिद्धू ने तो अपने पटियाला और अमृतसर आवास पर काले झंडे लगाकर बता दिया है कि वह किसानों के साथ हैं। कैप्टन वैसे भी अपनी पार्टी के नेताओं-विधायकों से घिरे हैं। अब वह किसान नेताओं के निशाने पर हैं, जिससे लगता है कि आने वाले दिनों में उनकी सरकार के लिए मुश्किलें बढऩे वाली हैं। हरियाणा भी इसका अपवाद नहीं है। वहाँ हिसार में 16 मई को कोविड अस्पताल का शिलान्यास करने आये मुख्यमंत्री मनोहर लाल को किसानों का विरोध सहना पड़ा। उनके जाने के बाद पुलिस ने किसानों पर आँसू गैस के गोले दा$गे और लाठीचार्ज किया, जिसमें किसानों के साथ-साथ कई महिलाएँ भी घायल हो गयीं। इसके बाद पुलिस ने उलटा सैकड़ों किसानों के ख़िलाफ़ ही प्राथमिकी दर्ज कर ली। इसके विरोध में किसान संगठन एकजुट हुए और हज़ारों किसान लघु सचिवालय का घेराव करने पहुँच गये। हालात बेक़ाबू होते देख राज्य सरकार ने किसान नेताओं से बातचीत करके समस्या का हल करना ठीक समझा। समझौते में मु$कदमे वापस लेने और आन्दोलन दौरान हृदयाघात (हार्ट अटैक) से मरे किसान के परिवार के एक सदस्य को नौकरी देना तय हुआ। इसे किसानों ने अपनी जीत माना, वहीं सरकार ने स्थिति सँभाल लेना माना। आन्दोलन कब तक चलेगा? यह न किसान संगठन जानते हैं और न केंद्र सरकार। दोनों पक्षों के लिए स्थिति बड़ी विकट है, जिससे पूरा देश प्रभावित है। केंद्र के सामने हालत है ऐसी कि न उगलते बने, न निगलते; यानी न वह तीनों क़ानूनों को वापस लेने को तैयार है और न इसे लागू करने की हालत में है। वह 18 माह (डेढ़ साल) तक तीनों क़ानूनों को निलंबित कर चुकी है और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर मौखिक गारंटी देने को तैयार है। लेकिन लिखित में गारंटी नहीं दे रही है और न ही क़ानूनों पर खुलकर चर्चा को तैयार है। बस शुरू से एक ही रट लगाये हुए है कि क़ानून किसानों के हित में हैं और इससे उनका फ़ायदा होगा। संयुक्त किसान मोर्चा को कुछ समय के लिए क़ानूनों का निलंबन मंज़ूर नहीं, वे तीनों क़ानूनों को सीधे-सीधे रद्द करने की बात शुरू से ही स्पष्ट तौर पर कह रहे हैं। वैसे भी केंद्र की 18 माह की शर्त में काफ़ी समय बीत चुका है।
निश्चित तौर पर संयुक्त किसान मोर्चा 18 माह के बाद भी कृषि क़ानूनों को किसी भी हालत में मंज़ूर नहीं करेगा और केंद्र को यह गवारा न होगा। मतलब बातचीत से हल निकलने की भी कोई सम्भावना नहीं लगती। क्योंकि दोनों पक्षों में 12 दौर की बातचीत से भी कोई हल नहीं निकल सका है। इसके बाद कई राज्यों के उप चुनाव, पंचायत चुनाव और एक केंद्र शासित प्रदेश समेत पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव भी हो गये। कोरोना की दूसरी लहर आ गयी। राज्यों में लॉकडाउन और कफ्र्यू लगे। लेकिन किसानों ने हिम्मत नहीं हारी। अब लड़ाई आर-पार की है।
देश के प्रमुख विपक्षी नेताओं ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर किसान संगठनों से बातचीत करने का आग्रह किया। बावजूद इसके सरकार ने बातचीत की कोई पहल नहीं की। दरअसल सरकार की ऐसी कोई मंशा है भी नहीं; क्योंकि इससे उसका पक्ष कमज़ोर होगा। यह बात तो किसानों पर भी लागू होती है; लेकिन उन्होंने पहल तो की! संयुक्त किसान मोर्चा का बातचीत के लिए केंद्र को पत्र लिखना अच्छा $कदम कहा जा सकता है। लेकिन केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने वही पुराना प्रस्ताव रखा, जिसे किसान संगठन पहले ही नामंज़ूर कर चुके हैं।
हैरानी की बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अभी तक सीधे तौर पर इस मामले में हस्तक्षेप नहीं किया है। तीनों कृषि क़ानूनों के भविष्य में होने वाले फ़ायदों के बारे में वह बहुत बार बोल चुके हैं। लेकिन इसका असर किसानों पर नहीं हुआ है। किसान उनकी बार-बार वादा ख़िलाफ़ी को इसकी वजह बता रहे हैं। हमारे ख़याल से इस भरोसे को वापस पाने के लिए प्रधानमंत्री को एक बार संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं को बुलाना चाहिए। हो सकता है कि इससे कोई रास्ता निकले। क्योंकि संवादहीनता और संवेदनहीनता से तो कोई बात नहीं बनने वाली। संयुक्त किसान मोर्चा के नेता सीधे प्रधानमंत्री से वार्ता करके इस मसले के समाधान के इच्छुक हैं। भाकियू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकैत कई बार कह चुके हैं कि अगर प्रधानमंत्री से सीधे बातचीत हो जाए, तो निश्चित तौर पर समाधान हो जाएगा। लेकिन प्रधानमंत्री को किसानों की समस्याओं से ज़्यादा चुनावों की चिन्ता रही और उन्होंने किसानों की तरफ़ कोई ध्यान नहीं दिया। किसान आन्दोलन में अब तक 400 से ज़्यादा किसानों की जान जा चुकी है। इस समय भी अपनी जान हथेली पर लेकर किसान दिल्ली की सीमाओं पर मौसम की मार सहते हुए अपनी खेती-बाड़ी बचाने के लिए जद्दोज़हद कर रहे हैं; लेकिन सरकार के कान पर जूँ नहीं रेंग रही। हालाँकि अब दिल्ली की सीमाओं से केंद्र सरकार पर आन्दोलन का पहले जैसा दबाव नहीं है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि किसान ढीले पड़ गये या आन्दोलन कमज़ोर पड़ गया है।
इधर राजनीतिक दल भी नहीं चाहते कि आन्दोलन ख़त्म हो जाए, फिर तो उनके पास कोई बड़ा मुद्दा ही नहीं रह जाएगा। लेकिन इसमें सरकार की भी कमी है। क्योंकि वह अगर चाहे, तो किसानों के हित में काम करके उन्हें विश्वास में लेकर उन्हें इस महामारी में आराम से अपने घर रहने का रास्ता निकाल सकती है। संयुक्त मोर्चा की बातचीत की पेशकश बताती है कि किसान समस्या का समाधान चाहते हैं। केंद्र सरकार को इसे गम्भीरता से लेना चाहिए। जैसी बेरुख़ी सरकार दिखा रही है, उससे तो कोई हल निकलना सम्भव नहीं है।

धारा-144
26 मई को बड़ी संख्या में ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर काला दिवस मनाने पहुँचे किसानों को रोकने के लिए पुलिस बल पहुँच गया। जैसे ही किसानों ने सरकार का पुतला फूँकना चाहा, पुलिसकर्मियों ने उन्हें रोकने की कोशिश की, जिससे वहाँ धक्का-मुक्की का माहौल बन गया। लेकिन बाद में राकेश टिकैत की दख़लंदाज़ी से मामला शान्त हो गया। लेकिन यहाँ धारा 144 लगा दी गयी है। पुलिस ने दिल्ली की सभी सीमाओं पर बैरिकेड लगा दिये हैं। इधर भारतीय किसान यूनियन (चढ़ूनी) के प्रदेश अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने संयुक्त किसान मोर्चा से अलग भारतीय किसान मज़दूर फेडरेशन का गठन करने के संकेत दिये हैं।

ख़रीद का खेल
सरकारी आँकड़े बताते हैं कि इस बार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गेहूँ की ख़रीद पिछले साल के मुक़ाबले 58 लाख मीट्रिक टन ज़्यादा हुई है। पिछले सल यह ख़रीद 324 लाख मीट्रिक टन थी, जबकि इस बार यह 382 लाख मीट्रिक टन अब तक हो चुकी है। सरकार बताना चाहती है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकारी ख़रीद पहले ही तरह होती रहेगी। गेहूँ पर तो न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकारी आँकड़ें ठीक बात है, लेकिन अन्य फ़सलें अब भी पहले की तरह न्यूनतम समर्थन मूल्य पर नहीं बिकतीं। ऐसे में सभी फ़सलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी पर किसानों की माँग काफ़ी हद तक सही है। सभी फ़सलों के लिए केंद्र सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य तय कर रखे हैं, लेकिन उनकी सरकारी ख़रीद नहीं हो पाती। ऐेसे में निजी कारोबारी उन्हें अपने भाव में ख़रीदते हैं, जो काफ़ी कम होता है। लेकिन कम भाव में खाद्यान्न बेचना किसानों की मजबूरी होती है।

विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया

विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर आज देश की कई संस्थाओं ने वृक्षारोपण कर लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक किया। तहलका संवाददाता को वृक्षारोपण के प्रति जागरूक करने वाले मुरारी लाल ने बताया कि आज देश में बढ़ते प्रदूषण के कारण लोगों को तामाम बीमारियों का शिकार होना पड़ रहा है। ऐसे में अगर हमें सही मायने में स्वास्थ्य के प्रति सजग रहना है तो निश्चित तौर पर हमें वृक्षारोपण करना होगा।

डाँ अनिल बंसल का कहना है कि कोरोना काल में आज जो आँक्सीजन की कमी के कारण लोगों की जानें गयी है। इसकी वजह ये है ।वायु प्रदूषण के बढ़ते कहर के कारण और साफ हवा ,ना मिलने से लोगों के फेफड़े कमजोर हो रहे है। इसलिये आँक्सीजन की कमी हो रही है। उन्होंने कहा कि वृक्षारोपण करें। ताकि वायुप्रदूषण के साथ साथ साफ आँक्सीजन मिल सकें।

इंडियन हार्ट फाउंडेशन के अध्यक्ष डाँ आर . एन. कालरा ने दिल्ली के लोगों से अपील की है कि अगर हम सब मिलकर प्रेरणा लें, कि हर हाल में एक वृक्षारोपण करना है। तो हमें साफ सांस संबंधी बीमारी नहीं होगी। फेफड़ों में कोई दिक्कत नहीं होगी।

दिल्ली में आज स्वास्थ्य संस्थाओं सहित तामाम संगठनों ने जगह-जगह वृक्षारोपण किया और कहा कि कोरोना काल जैसी बीमारी में हमें साफ हवा के माध्यम से लड़ने में बल मिलेगा। ताकि आँक्सीजन जैसी परेशानी से सामना ना करना पड़े।

दिल्ली में 7 जून से ऑड इवन के आधार पर खुलेंगे बाजार-दुकानें

राजधानी दिल्ली में कोविड-19 संक्रमण के मामलों में गिरावट को देखते हुए केजरीवाल सरकार ने शनिवार को अनलॉक-2 का ऐलान किया कि 7 जून से सशर्त (ऑड इवन आधार पर) मेट्रो ट्रेन सेवा बहाल करने और बाजार-दुकानें खोलने की मंजूरी दी जा रही है। निजी दफ्तर भी 7 से इसी ऑड इवन आधार पर खुल जायेंगे।

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शनिवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह जानकारी दी। मेट्रो ट्रेन (50 फीसदी क्षमता के साथ) सेवा बहाल करने का भी ऐलान किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि दिल्ली में अब कोरोना नियंत्रण में है और लोगों को कुछ छूट देने का फैसला किया गया है जो सशर्त होगा। केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली में सात जून से निजी दफ्तर 50 प्रतिशत कर्मचारी क्षमता के साथ खुलेंगे। कहा कि भले ही दिल्ली में संक्रमण की दर कम हुई है लेकिन हम (सरकार) किसी भी तरह का जोखिम उठाना नहीं चाहते।

दिल्ली को अनलॉक करने का ऐलान करते हुए सीएम केजरीवाल ने कहा कि सोमवार 7 जून से शर्त के आधार पर मेट्रो ट्रेन सेवा बहाल करने और बाजार-दुकानें खोलने की अनुमति दी जा रही है। बाज़ार-मॉल भी 50 फीसदी क्षमता की शर्त के साथ खोले जाएंगे।

केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली में लोगों को राहत की ज़रुरत देखते हुए यह फैसला किया गया है। ऑड इवन के फॉर्मूले से बाजार, दिल्ली मेट्रो, बाजार आदि खोलने का फैसला किया गया  है। याद रहे पिछले सप्ताह सीएम ने फैक्ट्रियां खोलने और निर्माण कार्य के लिए मंजूरी दी थी।

केजरीवाल ने कोरोना की तीसरी लहर के लिए की गई तैयारियों को लेकर भी जानकारी दी। उन्होंने कहा कि दिल्ली में अस्पतालों में ऑक्सीजन की पूरी व्यवस्था है। खासकर बच्चों में संक्रमण की आशंका को लेकर खास तैयारी की गई है।

5जी टेक्नोलॉजी पर जूही चावला की याचिका खारिज, 20 लाख जुर्माना

फिल्म अभिनेत्री जूही चावला ने पिछले दिनों 5G नेट तकनीक के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को अपना फैसला सुनाते हुए अभिनेत्री को तगड़ा झटका दिया है। 5G टेक्नोलॉजी के खिलाफ न सिर्फ खारिज की, बल्कि याचिकाकर्ता पर 20 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया।

याचिका में दावा किया गया था कि 5G वायरलेस तकनीक योजनाओं से इंसानों, पशु पक्षियों और वातावरण को नुकसान पहुंचने की आशंका है। हालांकि कोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता ने कानूनी प्रक्रिया का गलत इस्तेमाल किया है और उन पर जुर्माना लगाया जाता है। यह एक तरह से पब्लिसिटी के लिए दायर की गई याचिका लगती है।

उच्च न्यायालय ने कहा कि ऐसे मुकदमे को सिर्फ पब्लिसिटी के लिए दायर किए जाते हैं। दरअसल जूही चावला ने सुनवाई का लिंक भी सोशल मीडिया पर साझा किया था। जूही की याचिका पर फैसला देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि इनकी याचिका में सिर्फ कुछ ही ऐसी जानकारी है जो सही है, बाकी सिर्फ कयास लगाए गए हैं और संशय बेस्ड हैं। अदालत साथ ही जूही चावला से कहा कि वो इस मामले में नियमों के साथ जो कोर्ट की फीस बनती है वो भी जमा करें।

इससे पहले सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति जे आर मिधा की पीठ ने 2 जून को मामले की सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। पीठ ने कहा था कि जूही चावला दोषपूर्ण हैं और ये याचिका सिर्फ मीडिया पब्लिसिटी के लिए दायर की गई। पीठ ने जूही ये भी पूछा था कि उन्होंने इस मामले में पहले सरकार के पास जाने के बजाय याचिका कोर्ट में क्यों दायर की गई। उन्होंने सीधे अदालत का रुख करने पर भी सवाल उठाए थे।