तारीख तीन अगस्त, दिन रविवार, जगह दिल्ली से करीब 70 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश का मेरठ शहर. करीब 20 वर्ष की एक युवती मीडिया के सामने आती है और अपने गांव के मदरसे के हाफिज और कुछ अन्य लोगों पर उसका अपहरण करने, बलात्कार करने और जबरन धर्मपरिवर्तन कराने के आरोप लगाकर सनसनी फैला देती है. कविता (बदला हुआ नाम) काफी समय से सरावां गांव के मदरसे में हिंदी और अंग्रेजी पढ़ाती थी. वह, यह आरोप भी लगाती है कि जबरदस्ती उसका एक ऑपरेशन भी कराया गया और कई दिनों तक उसे एक मदरसे में बंधक बनाकर रखा गया. वहां उसके जैसी 40 से अधिक युवतियां और थीं जिन्हें जल्द ही मुंबई और फिर खाड़ी देशों में भेज दिया जाएगा.
मीडिया ने इस मामले को जमकर उछाला. पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति में, जो पहले से ही सांप्रदायिक दंगों और महिलाओं के प्रति लगातार बढ़ रहे अपराधों के चलते गर्माई हुई थी, इस घटना से उबाल आ गया. जगह-जगह हिंदूवादी संगठनों के धरने-प्रदर्शन शुरू हो गए. दंगों के हालात बन गए. मेरठ के सांसद ने इस मामले को संसद में उठाया और केंद्र सरकार ने कानून-व्यवस्था को लेकर पहले से ही बैकफुट पर चल रही राज्य सरकार से मामले की प्रगति रिपोर्ट मांगी.
अब पुलिस द्वारा किये जा रहे खुलासे और तहलका की तहकीकात, पीडि़ता और उसके परिवार को ही इस मामले में किसी और अपराध के लिए न भी हों तो सामाजिक दबाव के चलते और शायद कुछ अन्य वजहों से भी, झूठ बोलने का अपराधी तो ठहरा ही रहे हैं. ऐसे झूठ जो प्रशासन की लापरवाही की हालत में कई जानों पर भारी पड़ सकते थे. कविता और उसके परिवार वालों ने अलग-अलग जगह पर इस मामले में जिस तरह के बयान दिए उन्होंने इसको इतना पेचीदा बना दिया है कि इस पर किसी भी तरह के अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचना अभी भी बेहद मुश्किल है.
पीडि़ता द्वारा खरखौदा थाने में दर्ज करवाई गई एफआईआर में मेडिकल रिपोर्ट में दर्ज 29 जून की बलात्कार वाली और उसके बाद की किसी घटना का कोई जिक्र नहीं है.
मेरठ के सरावा गांव की रहने वाली कविता तीन अगस्त को अपने पिता के साथ खरखौदा थाने पहुंची. तहलका के पास मौजूद, कविता के पिता द्वारा लिखाई गई रिपोर्ट के मुताबिक दिनांक 23 जुलाई 2014 को गांव के ही प्रधान नवाब, मदरसे के हाफिज सनाउल्लाह, सनाउल्लाह की पत्नी और उसकी बेटी निशात ने उनकी बेटी का अपहरण कर लिया और हापुड़ के एक मदरसे में ले गए. वहां कई लोगों ने उसके साथ बलात्कार किया. पीडि़ता के पिता ने अपनी रिपोर्ट में यह भी दर्ज करवाया कि आरोपियों ने उनकी बेटी का जबरन धर्म परिवर्तन करवाया. इस एफआईआर में पीड़िता के पिता का यह भी कहना था कि ‘उपरोक्त घटना को गवाह नरेंद्र पुत्र जयप्रकाश, संदीप पुत्र राजेंद्र आदि ने देखा है.’ पीडि़ता ने मीडिया को दिये गए अपने बयान में यह भी कहा कि उसे गौ-मांस और मछली भी खिलाई गई. उसने आरोपियों पर उसका ऑपरेशन करने का भी आरोप लगाया.
पीडि़ता का यह बयान आने के साथ ही पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश का राजनीतिक माहौल गर्मा गया और हिंदूवादी संगठन सड़कों पर उतर आए. पुलिस ने तुरत-फुरत में कार्रवाई करते हुए मामले में नामजद पांच आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया और पीडि़ता के बयान के आधार पर तफ्तीश शुरू कर दी।
लेकिन तीन अगस्त को रिपोर्ट लिखाने से तीन दिन पहले – 31 जुलाई 2014 को – भी पीडि़ता के पिता ने खरखौदा थाने में अपनी पुत्री के गायब होने की एक सूचना दी थी (इसकी भी एक प्रति तहलका के पास है). इस गुमशुदा सूचना में उन्होंने बताया था कि ‘मेरी पुत्री दिनांक 29 जुलाई 2014 की शाम को करीब 8:30 बजे घर से सिर दर्द की दवाई लेने गई थी. उसके बाद से अब तक घर नहीं लौटी है.’ उन्होंने यह भी लिखा कि पीडि़ता अपना मोबाइल घर पर ही छोड़ गई है जिसपर कई नंबरों से फोन आ रहे हैं और उठाने पर कोई बात नहीं कर रहा है.
अगर मीडिया में दिए गए पीड़िता और उसके परिवार के बयानों की बात न भी करें तो भी पुलिस को दो अलग समय में पीड़िता के परिवार द्वारा दी गई जानकारियां बिलकुल अलग थीं. लेकिन विरोधाभासों की श्रृंखला यहीं खत्म नहीं हो जाती. पुलिस द्वारा मामला दर्ज करने के बाद पीडि़ता को मेरठ के राजकीय जिला महिला चिकित्सालय में जांच के लिये ले जाया गया. यहां जांच रिपोर्ट के मुताबिक पीड़िता एक अलग ही कहानी सुनाती है. मेडिकल के समय तैयार किये जाने वाले कागजातों में पीडि़त के साथ हुई घटना का संक्षिप्त विवरण उसे देखने वाले डॉक्टर को पीड़िता के ही शब्दों में लिखना होता है. इस विवरण में पीडि़ता बताती है कि दिनांक 29 जून 2014 को हापुड़ से गांव लौटते समय उसे गांव के ही रहने वाले हाफिज सनाउल्लाह, जिसे वह पहले से जानती थी, ने धोखे से गाड़ी में बैठा लिया और हाफिज और एक अन्य युवक द्वारा उसे कुछ नशीला पदार्थ सुंघाकर खेत में ले जाकर उसके साथ बलात्कार किया गया. बलात्कार के बाद उसे शाम पांच बजे हापुड़ तहसील के पास छोड़ दिया गया. वह वापस अपने घर आ गई.
पीडि़ता के अनुसार बलात्कार के बाद उसे कई शारीरिक समस्याएं होने लगीं जिसके बाद वह फिर उसी व्यक्ति के पास गई जिसने उसके साथ बलात्कार किया था. ‘मैं फिर हाफिज जी के पास इस समस्या के लिए चली गई. उन्होंने मुजफ्फरनगर ले जाकर मेरा ऑपरेशन कराया. ऑपरेशन के टांके कटने के बाद अपने आप दोबारा घर वापस आ गई.’ मेडिकल रिपोर्ट में एक जगह यह भी लिखा गया है कि ऑपरेशन के बाद एक अगस्त को पीड़िता के टांके निकाल दिए गए.
आश्चर्य की बात है कि पीडि़ता द्वारा खरखौदा थाने में दर्ज करवाई गई एफआईआर में मेडिकल रिपोर्ट में दर्ज 29 जून की बलात्कार वाली और उसके बाद की किसी घटना का कोई जिक्र नहीं है. दूसरी तरफ जहां एफआईआर के मुताबिक कविता 23 जुलाई को गायब हुई थी वहीं 31 जुलाई को पीड़िता के पिता द्वारा पुलिस को दी गई गुमशुदा सूचना के मुताबिक कविता 29 जुलाई को गायब हुई थी.
लेकिन इस मामले की विचित्रता अभी भी खत्म नहीं होती. पुलिस द्वारा पीडि़ता को मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया जहां उसने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत अपने बयान दिए. इस बयान में पीडि़ता 29 जून को अपने साथ बलात्कार होने और उसके बाद 23 जुलाई को आरोपियों के साथ जाकर ऑपरेशन की बात तो बताती है पर यह भी बताती है कि ऑपरेशन के बाद वह 27 जुलाई को घर वापस आ गई थी और आरोपियों ने उसे 29 जुलाई को दुबारा अगवा कर लिया था. इसके बाद वह तीन अगस्त को उनके चंगुल से बचकर भाग निकली थी.
मेरठ के एसएसपी ओंकार सिंह तहलका को बताते हैं कि तहकीकात में सामने आया है कि पीडि़ता की बीते एक माह में मेरठ के उलधन गांव के निवासी कलीम से 150 से अधिक बार बात हुई. पुलिस ने जब कलीम को पूछताछ के लिये हिरासत में लिया तो उसने बताया कि वह 23 जुलाई को पीड़िता को मेरठ मेडिकल कॉलेज में लेकर गया था जहां उसका ऑपरेशन किया गया. एसएसपी का कहना है कि मेडिकल कॉलेज में लगे सीसीटीवी कैमरे ने 23 जुलाई को पीडि़ता और कलीम की फुटेज दर्ज कर ली थी. सिंह के मुताबिक कविता 23 जुलाई को दोपहर 12:30 बजे ऑपरेशन के लिए मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराई गई थी. वहां से वह 27 जुलाई की सुबह 10 बजे डिस्चार्ज हुई. साथ ही एसएसपी यह भी बताते हैं कि 23 जुलाई से पूर्व पीडि़ता कलीम के साथ मेरठ में ही एक महिला डॉक्टर के यहां इलाज के लिये आई थी जिसका सारा रिकॉर्ड भी पुलिस के पास है. पुलिस के मुताबिक कलीम और कविता सात जून और 29 जून को मेरठ के सोतीगंज स्थित होटल रंजीत में रुके थे.
मामले की जांच में लगे एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर संवाददाता को बताते हैं कि पीडि़ता द्वारा दिए गए बयान उसकी कहानी को झूठा साबित कर रहे हैं. इस अधिकारी का कहना है कि अगर पीडि़ता के साथ 29 जून को बलात्कार हुआ था तो यह कैसे मुमकिन है कि 24 दिन के अंदर पीडि़ता को गर्भवती होने का पता चल गया और उसने गर्भपात भी करवा लिया. इस अधिकारी का यह भी कहना है कि मेडिकल में पीडि़ता ने लिखवाया है कि ऑपरेशन के बाद उसके टांके एक अगस्त को कटे हैं तो इस बात की संभावना है कि पीडि़ता मजिस्ट्रेट को दिए बयान के मुताबिक 27 को घर वापिस आकर 29 जुलाई को टांके कटवाने के लिये फिर चली गई हो.
इलाज के लिए गाजियाबाद के एक अस्पताल में भर्ती हुई पीडि़ता से जब इस संवाददाता ने बात की तो उसका कहना था ‘मुझे वह जगह याद नहीं है जहां मेरा ऑपरेशन हुआ था लेकिन एक बार मैं उस बिल्डिंग को देखूंगी तो पहचान लूंगी. मैं अस्पताल जाते समय बुरके में नहीं थी. मैंने अपने मुंह को दुपट्टे से छुपा रखा था.’ इसके अलावा पीडि़ता ने माना कि वह कलीम को पहले से जानती थी और उसके साथ ही ऑपरेशन करवाने अस्पताल गई थी. इसके बारे में पूछने पर उसका कहना था ‘मेरे ऊपर आरोपियों द्वारा ऑपरेशन करवाने का बहुत दबाव बनाया गया था और मैं उस समय बहुत डरी हुई थी.’
अस्पताल में मौजूद पीडि़ता के एक रिश्तेदार का कहना था कि उसके साथ 29 जून को बलात्कार तो हुआ था. 23 जुलाई को उसने घर पर अपनी छोटी बहन को फोन किया कि वह अपने कॉलेज की कुछ सहेलियों के साथ मथुरा टूर पर जा रही है और दो-तीन दिन में आ जाएगी. 27 जुलाई को वह अपने घर वापस आ गई और उसने आने के बाद अपनी छोटी बहन को बताया कि उसका अपेंडिक्स का ऑपरेशन हुआ है. इसके बाद 29 जुलाई को आरोपी उसका अपहरण करके ले गए और तीन अगस्त को वह आरोपियों के चंगुल से छूटकर घर वापस आई. हालांकि मेरठ पुलिस द्वारा यह दावा किए जाने के बाद कि पीडि़ता कलीम के साथ ऑपरेशन करवाने गई थी, उसके परिजन उसे जबरदस्ती गाजियाबाद के अस्पताल से डिस्चार्ज करवाकर घर ले गए.
इस मामले के सभी पहलुओं को जानने वालों में से कुछ लोगों को यह, ऐसे प्रेम संबंध का मामला लगता है, जो सामाजिक दबाव में आए परिवार के दबाव में पुलिस का मामला बन गया. दूसरी तरफ परिवार से सहानुभूति रखने वाले लेकिन मामले को केवल बाहर-बाहर से जानने वालों में से कुछ का मानना है कि अपने साथ बुरा होने के बावजूद भी परिवार के डर की वजह से एक 20 साल की नादान लड़की ने इसे इतना जटिल बना दिया. वजह चाहे जो भी हो लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि कविता इस मामले में पीड़िता ही है. फिर चाहे उसके साथ बलात्कार हुआ हो या नहीं.