ड्रग्स की चपेट में मणिपुर

मणिपुर में अनेक आम लोग और कुछ सरकारी कर्मचारी तक ले रहे ड्रग्स

जातीय हिंसा से तबाह हो रहे मणिपुर के शहर इंफाल के आसपास मादक पदार्थों की महामारी चुपचाप अपना शिकंजा कसती जा रही है। ड्रग्स की चपेट में बड़ी संख्या में मणिपुर के युवा तो हैं ही, बहुत-से अन्य उम्र के लोग, महिलाएँ और कई सरकारी कर्मचारी तक ड्रग्स की लत में जकड़े हुए हैं। तहलका एसआईटी की रिपोर्ट :-

इंफाल हवाई अड्डे पर पहुँचने पर स्थानीय टैक्सी ड्राइवरों के साथ पूछताछ पर उन क्षेत्रों का पता चलता है, जहाँ नशीले पदार्थों से सम्बन्धित मुद्दे प्रचलित हैं। जब उनसे (ड्रग्स तस्करों से) सम्पर्क किया जाता है, तो वे उत्तरी एओसी, क्षेत्रीगाओ, लिलोंग और टॉप हेखरू मखोंग जैसे इंफाल के इलाक़ों के बारे में बताते हैं। उनके अनुसार, ये इंफाल शहर के कुछ हॉट स्पॉट हैं; जहाँ ड्रग्स आसानी से उपलब्ध हैं।

एक टैक्सी ड्राइवर ने भी हमारे साथ एक और ख़ुलासा करते हुए कहा कि जब आप उपरोक्त स्थानों में से एक जगह भी पहुँचें और हेरोइन नंबर-4 का अनुरोध करें, जो अफ़ीम से निकाले गये चौथे चरण की दवा के लिए लोकप्रिय शब्द है; तो तस्कर आपकी माँग को अनदेखा करने की कोशिश करेंगे। हालाँकि जिस क्षण आप चार उँगलियों से इशारा करते हैं, वे तुरन्त समझ जाते हैं कि आप एक नियमित ग्राहक हैं और आपको तुरन्त ड्रग्स की आपूर्ति करते हैं। मणिपुर में नशीले पदार्थों की तस्करी से परिचित सूत्रों ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया कि इन दिनों हेरोइन नंबर-4 इंफाल में सबसे अधिक माँग वाली ड्रग है।

हमारे जाँच निष्कर्षों के आधार पर यह स्पष्ट हो जाता है कि इस ड्रग्स का आकर्षण मणिपुर की राजधानी इंफाल के युवाओं पर तो है ही, जो पिछले कुछ महीनों के दौरान जातीय हिंसा से प्रभावित हैं। ‘तहलका’ ने एक परेशान करने वाली वास्तविकता का भी ख़ुलासा किया। दरअसल जिनकी ज़िम्मेदारी नशीले पदार्थों के दुरुपयोग के ख़िलाफ़ जागरूकता फैलाने की है, राज्य सरकार के वही कर्मचारी, जिनमें इंजीनियर, ठेकेदार, क्लर्क और शिक्षक भी हैं; ड्रग्स की लत के शिकार हो रहे हैं। सूत्रों ने बताया कि लगभग 10-15 सरकारी कर्मचारियों ने इंफाल में एक ड्रग पुनर्वास केंद्र में अपना इलाज कराया। सूत्रों ने कहा कि हमारे पास मणिपुर के अन्य पुनर्वास केंद्रों के सटीक आँकड़े नहीं हैं। मणिपुर में चल रहे संकट ने भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण ग़ैर-पारंपरिक ख़तरों में से एक का ख़ुलासा किया है, जो नार्को-आतंकवाद का रूप ले रहा है। मणिपुर सरकार के ड्रग्स के ख़िलाफ़ युद्ध ने एक भयंकर ड्रग कार्टेल की उपस्थिति और मणिपुर के सामाजिक व राजनीतिक ताने-बाने पर उसके व्यापक प्रभाव को उजागर किया है। न केवल युवा, बल्कि निजी फर्मों में काम करने वाले लोग ड्रग्स ख़रीद रहे हैं। उपयोग कर रहे हैं और बेच रहे हैं, बल्कि शिक्षकों सहित राज्य सरकार के अनेक कर्मचारी भी, जो हमारे देश के भविष्य को आकार देने की ज़िम्मेदारी उठाते हैं; नशीले पदार्थों के उपयोग से अछूते नहीं हैं। मणिपुर में क्या ग़लत हुआ? इसकी तह तक जाने के लिए ‘तहलका’ ने इंफाल के एक ड्रग पुनर्वास केंद्र के चिकित्सा अधिकारी डॉ. स्टालिन ओराम (बदला हुआ नाम) से ख़ास बातचीत की।

डॉ. स्टालिन ओराम (बदला हुआ नाम) ने मणिपुर राज्य सरकार के 10-15 कर्मचारियों के इलाज के अपने अनुभवों को साझा किया, जो लम्बे समय से नशे की लत से जूझ रहे थे। यह एक ही पुनर्वास केंद्र का आँकड़ा है। इसके अलावा एक विशेष साक्षात्कार में विज्ञान में स्नातक राजेश राज (बदला हुआ नाम), जो 2016 से पाँच साल तक नशीले पदार्थों की लत से जूझते रहे; ने ठीक होने की अपनी यात्रा का ख़ुलासा किया। उन्होंने बताया कि कैसे एक एनजीओ और एक पुनर्वास केंद्र की सहायता से उन्होंने सफलतापूर्वक अपनी नशीले पदार्थों की निर्भरता पर क़ाबू पा लिया। आज राजेश राज न केवल एक नशा मुक्त जीवन जी रहे हैं, बल्कि एक एनजीओ के सदस्य के रूप में नशीले पदार्थों की रोकथाम के प्रयासों में सक्रिय रूप से लगे हुए हैं। यह बताते हुए कि उन्होंने अपने केंद्र में कई लोगों का इलाज किया है, डॉ. स्टालिन ने इस तथ्य पर चिन्ता व्यक्त की कि मणिपुर राज्य सरकार के कई कर्मचारी भी ड्रग्स के आदी हैं। मणिपुर के बारे में रिपोर्ट पुनर्वास केंद्र के प्रभारी डॉ. स्टालिन ओराम ने राज्य सरकार के कर्मचारियों के ड्रग्स लेने की पुष्टि की है।

रिपोर्टर : ये ड्रग तस्कर किस पृष्ठभूमि से आते हैं?

डॉ. स्टालिन : यह भिन्न होता है। हमने देखा है कि बेहद ग़रीब मज़दूरों से लेकर बहुत शिक्षित व्यक्तियों तक, जिनमें सरकारी कर्मचारी भी शामिल हैं; सभी क्षेत्रों के लोग ड्रग्स की ओर रुख़ कर रहे हैं।

रिपोर्टर : सरकारी कर्मचारी भी ड्रग्स ले रहे हैं?

डॉ. स्टालिन : हाँ, दुर्भाग्य से। ड्रग्स किसी को भी प्रभावित कर सकते हैं, चाहे वह किसी भी उम्र, लिंग या पृष्ठभूमि के हों। वे भेदभाव नहीं करते।

अब डॉ. स्टालिन ने ख़ुलासा किया कि सरकारी ठेकेदार, इंजीनियर, क्लर्क और यहाँ तक कि शिक्षक ख़तरनाक रूप से बड़ी संख्या में नशीले पदार्थों के सेवन में शामिल हैं।

रिपोर्टर : जिन सरकारी कर्मचारियों का आपने ज़िक्र किया, वे केंद्र सरकार के कर्मचारी थे या राज्य सरकार के?

डॉ. स्टालिन : मुख्य रूप से राज्य सरकार के कार्यालयों के।

रिपोर्टर : आपने अब तक अपने पुनर्वास केंद्र में कितने सरकारी कर्मचारियों का इलाज किया है?

डॉ. स्टालिन : पुनर्वास केंद्र में मेरे कार्यकाल के एक साल में मैंने लगभग 10-15 सरकारी कर्मचारियों का इलाज किया है, जिनमें शिक्षक, इंजीनियर, ठेकेदार और क्लर्क शामिल हैं।

रिपोर्टर : ये कर्मचारी किन पदों पर थे?

डॉ. स्टालिन : जैसा कि मैंने पहले उल्लेख किया है, उनमें इंजीनियर, ठेकेदार और शिक्षक शामिल हैं; जिनमें से अधिकांश शिक्षण पेशे से हैं।

डॉ. स्टालिन ने मणिपुर के युवाओं के नशे की चपेट में आने पर चिन्ता व्यक्त की। उनका कहना है कि युवा राज्य और देश दोनों का भविष्य हैं।

रिपोर्टर : क्या मणिपुर में सरकारी कर्मचारियों में नशे की लत एक बड़ा मुद्दा है?

डॉ. स्टालिन : बिलकुल। यह न केवल सरकारी कर्मचारियों के लिए, बल्कि किसी भी व्यक्ति के लिए एक बड़ी समस्या है। नशे में आप अपने काम पर ध्यान केंद्रित नहीं कर सकते हैं। यह (नशा) ख़ुद (नशा करने वाले) को और पूरे समाज को नुक़सान पहुँचाता है। जहाँ एक तरफ़ सरकारी कर्मचारी नशे के लालच में घुटने टेक रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ़ युवा भी मादक पदार्थों के सेवन का शिकार हो रहे हैं। यह एक बड़ी समस्या है। सर! मेरी चिन्ता का विषय युवा हैं; क्योंकि राज्य और देश का भविष्य उन पर निर्भर करता है।

रिपोर्टर : हमने सुना है कि महिलाएँ भी ड्रग्स ले रही हैं?

डॉ. स्टालिन : वास्तव में। मणिपुर में कुछ केंद्र हैं, जहाँ विशेष रूप से महिलाओं को ड्रग्स की पूर्ति की जाती है। मेरे यहाँ नहीं; लेकिन कुछ अन्य केंद्र हैं।

 जैसे-जैसे बात आगे बढ़ी, डॉ. स्टालिन ने हमें बताया कि मणिपुर में जातीय हिंसा भडक़ने के बाद से ड्रग्स की क़ीमतें बढ़ गयी हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि हिंसा के कारण म्यांमार से मणिपुर में ड्रग्स आसानी से नहीं पहुँच रही है। इससे पहले इंफाल की सडक़ों पर ड्रग्स आसानी से उपलब्ध थी। हालाँकि हिंसा के बाद ड्रग्स मुश्किल से उपलब्ध है और जो उपलब्ध है, उसकी क़ीमत बहुत है।

रिपोर्टर : मणिपुर में ड्रग्स की वर्तमान स्थिति क्या है?

डॉ. स्टालिन : पिछले चार महीनों में जातीय भेदभाव के कारण राज्य में स्थिति अराजक रही है। नतीजतन नशीले पदार्थों की सीमित उपलब्धता के कारण उनकी लागत बढ़ गयी है। नतीजतन ड्रग्स को मुख्य सीमावर्ती क्षेत्रों, जैसे म्यांमार, मोरेह और चुराचांदपुर से आना पड़ता है, जहाँ पहुँचना मुश्किल हो गया है। हालाँकि ड्रग्स उपलब्ध है। लेकिन वह बहुत महँगी है।

रिपोर्टर : ड्रग्स की वर्तमान और पिछली क़ीमतें क्या हैं?

डॉ. स्टालिन : एक ग्राम ड्रग्स की क़ीमत इस समय लगभग 400 से 600 रुपये है, जो पिछली क़ीमत 150 से 200 रुपये से बहुत अधिक है। इंफाल शहर के कुछ हॉटस्पॉट पर पहले ड्रग्स आसानी से उपलब्ध थे; लेकिन अब ऐसा नहीं है।

डॉ. स्टालिन का मानना है कि मणिपुर सरकार का ड्रग्स के ख़िलाफ़ लड़ाई पर्याप्त नहीं है। सरकार नशे के कारोबार पर लगाम लगाने की कोशिश कर रही है; लेकिन मादक पदार्थ अभी भी म्यांमार से असुरक्षित सीमा के माध्यम से राज्य में आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि अब कोकीन से ज़्यादा हेरोइन की माँग है।

रिपोर्टर : मणिपुर में नशीले पदार्थों के ख़तरे को नियंत्रित करने के लिए पुलिस क्या कर रही है?

डॉ. स्टालिन : वर्तमान सरकार ने इस ख़तरे को रोकने के लिए ड्रग्स के ख़िलाफ़ लड़ाई छेड़ दी है। लेकिन यह एक कठिन काम है। एक तरफ़ पुलिस ड्रग्स की सप्लाई को कंट्रोल करने की कोशिश कर रही है; लेकिन दूसरी तरफ़ बॉर्डर से ड्रग्स अभी भी आ रही है। सीमा को सील नहीं किया गया है और जो ड्रग्स आ रही है, वह सबसे अच्छी गुणवत्ता की है। हेरोइन अब सबसे लोकप्रिय ड्रग्स है; कोकीन से भी अधिक लोकप्रिय है। हेरोइन भी कोकीन की तुलना में अधिक महँगी है।

डॉ. स्टालिन के अनुसार, लम्बे समय से मणिपुर की पहाडिय़ों में अफ़ीम की खेती का मुद्दा राज्य के युवाओं के भविष्य को ख़तरे में डाल रहा है। उन्होंने नागरिकों की बेबसी पर प्रकाश डाला, जो इन अवैध (अफ़ीम की) फ़सलों को ख़त्म करने के लिए पहाडिय़ों में नहीं जा सकते हैं। उनके अनुसार, यह सरकार पर निर्भर करता है कि वह कड़े निवारक क़ानूनों को लागू करके इस समस्या का समाधान करे।

रिपोर्टर : मणिपुर में अवैध अफ़ीम की खेती के मुद्दे पर आपकी क्या राय है?

डॉ. स्टालिन : सर! जैसा कि हम सभी जानते हैं कि मणिपुर में कई वर्षों से अफ़ीम की खेती जारी है। यह एक ऐसी स्थिति है, जहाँ न तो आप और न ही मैं व्यक्तिगत रूप से इस खेती को रोकने के लिए पहाडिय़ों में जा सकते हैं। इसलिए यह मौज़ूदा सरकार का कर्तव्य है कि वह किसी भी क़ीमत पर इस खेती को ख़त्म करने के लिए प्रभावी क़ानून बनाए; क्योंकि यह हमारे युवाओं के भविष्य के लिए विकट जोखिम पैदा करता है।

अपने नशा पुनर्वास केंद्र के बारे में बात करते हुए डॉ. स्टालिन ने कहा कि पिछले 20 वर्षों में हमारे केंद्र में 11,000 रोगियों (नशा करने वालों) का इलाज किया गया है। इसमें सफलता की दर 41 प्रतिशत है। हालाँकि कुछ मामलों में रोगी ठीक होने के बाद फिर से ड्रग्स लेने लगते हैं।

रिपोर्टर : डॉ. स्टालिन! क्या आप अपने पुनर्वास केंद्र से निकलने के बाद अपने मरीज़ों पर नज़र रखते हैं कि वे सामान्य जीवन जी रहे हैं या फिर से ड्रग लेने लगे हैं?

डॉ. स्टालिन : हाँ, हम करते हैं। हमारे पास एक नियमित अनुवर्ती प्रणाली है। हम या तो उनके घर जाते हैं या वे हमारे पास आते हैं। हम उनके साथ टेलीफोन पर भी बातचीत करते हैं। पिछले 20 वर्षों में हमने जिन 11,000 रोगियों का इलाज किया है, उनमें से हम पिछले दो वर्षों से मूल्यांकन कर रहे हैं। इन 11,000 लोगों के लिए रिकवरी दर 41 प्रतिशत है। इसका मतलब है कि उनमें से 41 प्रतिशत नशे से मुक्त हो चुके हैं; लेकिन दूसरों के पुन: नशे में जाने की सम्भावना है। हम उन्हें उनके परिवारों के साथ परामर्श सत्र के लिए बुलाते हैं और उन्हें आगे के समर्थन के लिए पुनर्वास केंद्र लौटने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।

अब डॉ. स्टालिन अपने पुनर्वसन केंद्र में अलग-अलग समय की अवधि बताते हैं। जैसे- नशे की लत में पड़े नये लोगों के लिए दो महीने। दूसरी बार आने वालों के लिए एक महीना और उनके परिवारों द्वारा छोड़े गये लोगों के लिए तीन-चार महीने।

रिपोर्टर : आपके पुनर्वास केंद्र में प्रवेश की न्यूनतम अवधि क्या है?

डॉ. स्टालिन : यह निर्भर करता है। पहली बार में मरीज़ों के लिए दो महीने हैं। जो मरीज़ पहले केंद्र पर आ चुके हैं, उनके लिए यह एक महीने का समय है। हालाँकि जिन मरीज़ों को उनके परिवारों द्वारा उपेक्षित किया जाता है, वे तीन-चार महीने तक रह सकते हैं।

अब डॉ. स्टालिन ने ख़ुलासा किया कि वह ड्रग एडिक्ट्स का इलाज कैसे करते हैं और उनके बीच वापसी के लक्षणों को कम करने के लिए प्रयास करते हैं।

रिपोर्टर : नशे के आदी लोगों के इलाज का तरीक़ा क्या है?

डॉ. स्टालिन : हम एक विषहरण तरीक़ों का उपयोग करते हैं। हम उन्हें निर्धारित दवाएँ देते हैं, ताकि उन्हें उन ड्रग्स को छोडऩे में मदद मिल सके, जिनके वे आदी हैं।

अब डॉ. स्टालिन ने हमें बताया कि (नशे में) वापसी के दौरान मरीज़ हिंसक और आक्रामक कैसे हो सकते हैं और उन्हें नियंत्रित करना कैसे मुश्किल हो सकता है?

रिपोर्टर : उनका इलाज करना कितना मुश्किल है? मुझे कोई ऐसी घटना बताइए, जब उनका इलाज करते समय आपके साथ दुव्र्यवहार किया गया हो?

डॉ. स्टालिन : मैंने कभी भी इस तरह के दुव्र्यवहार का सामना नहीं किया है। हाँ; लेकिन जब कोई मरीज़ (नशे में) वापसी से पीडि़त होता है, तो यह मुश्किल समय होता है; क्योंकि मरीज़ थोड़ा जंगली और आक्रामक हो जाता है। इसलिए इसे नियंत्रित करना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। हमें उसके पैर या हाथ पकडऩे होंगे। लेकिन मेरे साथ दुव्र्यवहार नहीं किया गया है।

इंफाल में अपने पुनर्वास केंद्र के चिकित्सक डॉ. स्टालिन द्वारा अपने अनुभव साझा करने के बाद हमने विज्ञान में स्नातक राजेश राज (बदला हुआ नाम) से मुलाक़ात की, जो सन् 2016 से पाँच साल तक नशीले पदार्थों की लत से जूझते रहे। ठीक होने की अपने अनुभव का ख़ुलासा करते हुए उन्होंने बताया कि कैसे एक एनजीओ और एक पुनर्वास केंद्र की सहायता से उन्होंने ड्रग्स पर अपनी निर्भरता को सफलतापूर्वक ख़त्म किया। आज राजेश राज एक ग़ैर-सरकारी संगठन के सदस्य के रूप में नशीले पदार्थों की रोकथाम के प्रयासों में सक्रिय रूप से लगे हुए हैं, जबकि ख़ुद एक नशा-मुक्त जीवन जी रहे हैं। नशे की लत के अपने जीवन के अनुभवों को साझा करते हुए राजेश ने दावा किया कि ड्रग्स लेने के दौरान उन्हें पुलिस ने कई बार पकड़ा था। हालाँकि वह हर बार पुलिस के जाल में फँसने के बाद रिश्वत देकर छूटने में कामयाब रहे।

रिपोर्टर : क्या आपको कभी पुलिस ने पकड़ा है?

राजेश : हाँ; मुझे पुलिस ने दो-तीन बार गिर$फ्तार किया था। लेकिन मैं हर बार रिश्वत देकर छूटने में कामयाब रहा।

रिपोर्टर : आपने कितने पैसे दिये?

राजेश : नारकोटिक्स पुलिस ने मुझे एक बार गिर$फ्तार किया था। मैंने उन्हें 3,000 रुपये दिये और उन्होंने मुझे जाने दिया। मैंने हमेशा पुलिस को रिश्वत दी, इसलिए मेरे ख़िलाफ़ कोई मामला नहीं है।

राजेश ने अब ख़ुलासा किया कि वह कितनी मात्रा में नशीले पदार्थों का सेवन करते थे। उन्होंने कहा कि वह हर दिन दो ग्राम नशीले पदार्थों का सेवन करते थे, जिसकी क़ीमत 1,000 रुपये है। उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने ड्रग्स के ख़र्चे और स्वास्थ्य पर हो रहे ख़र्च को महसूस करने के बाद इस लत को छोड़ दिया।

रिपोर्टर : आप हर दिन कितनी ड्रग्स का सेवन करते थे?

राजेश : दो ग्राम। इस पर मुझे लगभग 1,000 रुपये ख़र्च करने पड़ते थे।

रिपोर्टर : आपने ड्रग्स क्यों छोड़ी?

राजेश : मुझे एहसास हुआ कि इसमें मेरा बहुत अधिक पैसा ख़र्च हो रहा था। मैं भी बीमार भी होने लगा था। मैंने $फैसला किया कि अब अपने जीवन को वापस पटरी पर लाने का समय है।

रिपोर्टर : आपने ड्रग्स कैसे ख़रीदी?

राजेश : सन् 2016 में मेरी प्राइवेट नौकरी थी, इसलिए मेरे पास ड्रग्स ख़रीदने के लिए पैसे थे।

अब राजेश ने उस ड्रग्स के नाम का ख़ुलासा किया, जिसका वह उपयोग कर रहे थे। साथ ही वो स्रोत भी बताया, जिससे वह इसे प्राप्त कर रहे थे और उस दोस्त का नाम भी, जो उन्हें इसकी आपूर्ति कर रहा था।

रिपोर्टर : आप कौन-सी ड्रग्स ले रहे थे?

राजेश : मैं अफ़ीम ले रहा था। लेकिन अब मैं ड्रग्स से दूर हूँ। …मैंने लगभग चार-पाँच वर्षों तक अफ़ीम का सेवन किया।

रिपोर्टर : तुमने हेरोइन ली?

राजेश : मणिपुर में अफ़ीम ही हेरोइन है। मैं इंफाल के रेड लाइट एरिया, बीओसी एरिया से इसे ख़रीदता था। यह एक बाज़ार है। मेरा दोस्त भी कभी-कभी मुझे ड्रग्स सप्लाई करता था।

राजेश ने कहा कि उसने सन् 2016 में ड्रग्स लेना शुरू कर दिया था, जब उनके पिता ने दूसरी महिला से शादी कर ली और उनके और उनकी माँ के साथ रहना बन्द कर दिया।

रिपोर्टर : आपके ड्रग्स लेने का क्या कारण था?

राजेश : जब मेरे पिता ने दूसरी महिला से शादी कर ली और मेरी माँ और मेरे साथ रहना बन्द कर दिया, तो इसका मुझ पर बुरा असर पड़ा। मेरी माँ मेरे साथ रहती थी, और मेरे पिता कभी-कभी ही घर आते थे।

इस सवाल पर कि राजेश ने अपनी ड्रग्स की लत को कैसे दूर किया? राजेश ने कहा कि उन्होंने एक एनजीओ के सहयोग से नशे की लत का सफलतापूर्वक छुटकारा पाया। एक ड्रग पुनर्वास केंद्र में थेरेपी ली और अब वह पूरी तरह से ड्रग मुक्त हैं। उन्होंने कहा कि वास्तव में वह एक एनजीओ के साथ मिलकर अन्य लोगों की मदद करने के लिए भी काम कर रहे थे, जो नशे की लत से जूझ रहे थे।

रिपोर्टर : आपने ड्रग्स कैसे छोड़ी?

राजेश : मैंने एक एनजीओ से सम्पर्क किया, जो ड्रग्स छोडऩे की इच्छा रखने वाले लोगों की मदद करता है। मुझे ङ्गङ्गङ्गङ्ग सोसायटी में थेरेपी मिली। अब मैं उसी एनजीओ में अपनी सेवाएँ दे रहा हूँ। मैं वहाँ पेयर एजुकेटर (शिक्षक जोड़ी) के रूप में काम कर रहा हूँ।

राजेश से बात करने के बाद ‘तहलका’ रिपोर्टर ने मणिपुर के एक अन्य एमबीबीएस डॉक्टर अज़हरुद्दीन शेख़ से मुलाक़ात की। अज़हरुद्दीन ने राजेश की चिन्ताओं का समर्थन करते हुए कहा कि मणिपुर में सरकारी कर्मचारियों की बढ़ती संख्या नशे की लत से जूझ रही है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि यह (नशा) केवल सरकारी कर्मचारियों तक ही सीमित नहीं था, मणिपुर में मुसलमान युवा भी ड्रग्स के शिकार हो रहे हैं।

इस मुद्दे को हल करने के लिए अज़हरुद्दीन ने अंजुमन नामक एक संगठन के प्रयासों पर प्रकाश डाला, जो इंफाल में एक पुनर्वास केंद्र चलाता है और मुस्लिम युवाओं की नशीले पदार्थों की लत छुड़ाने में मदद करता है। अज़हरुद्दीन ने यह भी कहा कि कुछ मौलाना युवाओं को नशे की लत में पडऩे से रोकने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं। वह इन युवाओं को जमात (धार्मिक उपदेश) गतिविधियों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं, ताकि उनका ध्यान ड्रग्स से हट जाए।

रिपोर्टर : अच्छा, किस लेवल के लोग वहाँ ड्रग अडिक्ट (ड्रग के शिकार) हैं, मणिपुर में?

अज़हर : अडिक्ट वाला तो यूथ ही है। हाँ; बहुत …मुस्लिम में थोड़ा कम हुआ है। मतलब, मौलाना लोग पकड़-पकडक़र एक ऑर्गेनाइजेशन है अंजुमन, मौलाना लोग पकडक़र उनको सही कर रहे हैं।

रिपोर्टर : अच्छा, मुस्लिमों की ऑर्गेनाइजेशन है? ..क्या नाम है?

अज़हर : अंजुमन, वही लोग काम कर रहा है, उसके ऊपर।

रिपोर्टर : मैंने सुना है इंप्लाई भी ड्रग अडिक्ट हैं?

अज़हर : हाँ; बहुत कम परसेंटेज है।

रिपोर्टर : वहाँ ड्रग रिहैब सेंटर (पुनर्वास केंद्र) भी होंगे?

अज़हर : हाँ, वो तो हैं।

रिपोर्टर : कितने होंगे?

अज़हर : मुस्लिम के तो दो-तीन हैं और मैतेइओं के तो अनकाउंटेड (अनगिनत) होगा।

रिपोर्टर : मुस्लिम्स के अपने ड्रग रिहैब

सेंटर्स हैं?

अज़हर : हाँ, लीलौंग के अन्दर हमारा एक है।

रिपोर्टर : वो सेंटर (केंद्र सरकार) का है या स्टेट (राज्य सरकार) का?

अज़हर : वो अंजुमन, मुस्लिम वाला (है); वहाँ सारे मुस्लिम लडक़े आते हैं। वहाँ उनका इलाज होता है। फिर जमात में भेजते हैं।

रिपोर्टर : जमात में क्या सीखते हैं?

अज़हर : मतलब, वो दीन का- नमाज़ पढऩा, ड्रग लेना गुनाह होता है, ये सब बताते हैं।

डॉ. अजहर ने मणिपुर में नशीले पदार्थों की तस्करी की जटिलताओं के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि पहाडिय़ों में अफ़ीम की खेती मुख्य रूप से कुकी समुदाय द्वारा की जाती है। एक बार जब अफ़ीम मैदानी इलाक़ों में पहुँच जाती है, तो अवैध इससे बने नशीले पदार्थों के व्यापार का संयुक्त रूप से मैतेई और मुस्लिम दोनों प्रबंध करते हैं।

रिपोर्टर : अच्छा, अफ़ीम की खेती करते हैं कुकी?

अज़हर : हाँ; ख़तरनाक करते हैं। मतलब डिफोरेस्टेशन (वनों की कटाई) करके। पहाड़ों पे 80 प्रतिशत तो कर दिया वो, …मतलब कुकियों के निवास क्षेत्र में अफ़ीम की खेती कर दिया। प्लेन (मैदान) में मुस्लिम और मैतेई करता है। खेती होती है पहाड़ में, ….हार्वेस्ट (फ़सल) होने के बाद प्लेन (मैदान) में आता है।

रिपोर्टर : प्लेन्स (मैदान) में कौन सँभालता है?

अज़हर : मैतेई और मुसलमान।

इसके बाद ‘तहलका’ रिपोर्टर ने मणिपुर के एक अन्य एमबीबीएस डॉक्टर मोहम्मद वसीम से मुलक़ात की, जिन्होंने राज्य में सरकारी कर्मचारियों के बीच ड्रग्स के उपयोग के बारे में पुष्टि की। उन्होंने ख़ुलासा किया कि यह मुद्दा सरकारी कर्मचारियों से आगे बढ़ गया है, यहाँ तक कि कुछ डॉक्टर ख़ुद भी नशीले पदार्थों के सेवन में शामिल मिले हैं। वसीम ने ज़ोर देकर कहा कि कोई भी अपने पेशे की परवाह किये बिना ड्रग्स के जाल में फँस सकता है।

रिपोर्टर : अच्छा, मुझे कोई बता रहा था मणिपुर में जो गवर्नमेंट सर्वेंट (सरकारी नौकर) हैं, वे भी ड्रग एडिक्ट (नशे के आदी) हैं।

वसीम : हाँ; वो तो है, …हमारा डॉक्टर भी ड्रग एडिक्ट है।

रिपोर्टर : डॉक्टर भी?

वसीम : हाँ, …हर आदमी की आदत होती है। किसी के बारे में कुछ नहीं कह सकते; डॉक्टर भी आदमी होता है।

रिपोर्टर : मणिपुर में डॉक्टर भी हैं ड्रग एडिक्ट?

वसीम : हाँ हैं।

रिपोर्टर : और गवर्नमेंट सर्वेंट (सरकारी कर्मचारी)?

वसीम : हाँ, हाँ; हैं, …बहुत सारा।

वसीम ने तब रिपोर्टर के साथ साझा किया कि वह एमबीबीएस पूरा करने से पहले भी सन् 2013 से मणिपुर में नशीले पदार्थों के दुरुपयोग की स्थिति को देख रहा था।

रिपोर्टर : आप कबसे देख रहे हो ड्रग्स को मणिपुर में, किस एज (उम्र) से?

वसीम : जब हम …2013 से देख रहे हैं। एमबीबीएस कंप्लीट करने से पहले।

इस बीच मणिपुर के एक सामाजिक कार्यकर्ता बिक्रमजीत राजकुमार ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया कि राज्य सरकार के कर्मचारियों और मणिपुर पुलिसकर्मियों के बीच नशीले पदार्थों का उपयोग व्यापक स्तर पर बढ़ रहा है। उन्होंने दावा किया कि यहाँ तक कि राज्य पुलिस के कुछ कर्मियों ने भी नशे की लत में डूबे हुए हैं।

बिक्रमजीत के अनुसार, उनके बचपन के कई दोस्त नशीले पदार्थों के उपयोग में शामिल हैं, उनके एक दोस्त ने एक एनजीओ की सहायता से नशे की लत पर सफलतापूर्वक क़ाबू पा लिया है। उन्होंने आगे ख़ुलासा किया कि ड्रग पाउच, जो पहले इंफाल की सडक़ों पर आसानी से उपलब्ध था; अब प्राप्त करना मुश्किल है। उन्होंने कहा कि मणिपुर में जातीय हिंसा भडक़ने के बाद ड्रग्स की आपूर्ति बुरी तरह प्रभावित हुई है, जिसका नतीजा यह हुआ है कि मादक पदार्थ की थैली ख़रीदने से अब आपकी जेब पर असर पड़ेगा।

डॉ. स्टालिन ओराम के अनुसार, अकेले इंफाल में 20 पुनर्वास केंद्र हैं, जबकि मणिपुर में 100 से अधिक हैं। इससे पता चलता है कि राज्य में नशीले पदार्थों का मुद्दा कितना गम्भीर हो गया है, जो सामान्य लोगों के अलावा सरकारी कर्मचारियों, शिक्षकों और अन्य पेशेवरों को प्रभावित कर रहा है। यदि समस्या का समाधान नहीं किया जाता है, तो इसका राज्य के भविष्य पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा।