डॉक्टरी विज्ञान है तो विज्ञान ही परंतु इस मामले में वह रहस्यमय तथा जादुनुमा हो जाता है कि यहां दो और दो को जोड़ने पर प्राय: चार नहीं बनते. डॉक्टरी में प्राय: गणित गलत ही साबित होता है पर यह बात सामान्यजन के गले नहीं उतरती. वह मान तथा जान ही नहीं पाता है कि यदि डॉक्टर ने ईसीजी ठीक बताया था तो फिर मरीज एक घंटे बाद ही हार्ट अटैक से कैसे मर गया या कि यदि खून की रिपोर्ट में मलेरिया नेगेटिव बताया गया है तो फिर भी डॉक्टर ने मलेरिया का इलाज क्यों दिया. ऐसा तमाशा किडनी की बीमारियों के केस में सबसे ज्यादा है. विशेष तौर पर किडनी फेल्योर के मामले में. किडनी या गुर्दे के विषय में बताने को इतनी सारी बातें हैं कि एक कॉलम में तो नहीं समाई जा सकती. अगले एक-दो अंकों में हम इस विषय पर पूरी बातें करने का प्रयास करेंगे.
किडनी एक बेहद स्पेशियलाइज्ड अंग है. इसकी रचना में लगभग तीस तरह की विभिन्न कोशिकाएं लगती हैं. यह बेहद ही पतली नलियों का अत्यंत जटिल फिल्टर है जो हमारे रक्त से निरंतर ही पानी, सोडियम, पोटैशियम तथा ऐसे अनगिनत पदार्थों को साफ करके पेशाब के जरिए बाहर करता रहता है.
यह फिल्टर इस मामले में अद्भुत है कि यहां से जो भी छनकर नली में नीचे आता है उसे किडनी आवश्यकतानुसार वापस रक्त में खींचता भी रहता है, और ऐसी पतली फिल्ट्रेशन नलियों की तादाद होती है? एक गुर्दे में ढाई लाख से लगाकर नौ लाख तक नेफ्रान या नलियां रहती हैं. हर मिनट लगभग एक लीटर खून इनसे प्रभावित होता है ताकि किडनी इस खून को साफ कर सके. दिन में लगभग डेढ़ हजार लीटर खून की सफाई चल रही है. और गुर्दे केवल यही काम नहीं करते बल्कि यह तो उसके काम का केवल एक पक्ष है, जिसके बारे में थोड़ा-थोड़ा पता सामान्यजनों को भी है परंतु क्या आपको ज्ञात है कि किडनी का बहुत बड़ा रोल प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेड (शक्कर आदि) तथा फैट (चर्बी) की मेटाबोलिज्म (पाचन/ चय-अपचय) में भी है. इसलिए किडनी खराब होने पर कुपोषण के लक्षण हो सकते हैं बल्कि वे ही प्रमुख लक्षण बनकर सामने आ सकते हैं. हार्मोंस के प्रभाव में भी गुर्दों का अहम रोल है. इंसुलिन, विटामिन डी, पेराथायरायड आदि के प्रभाव को गुर्दे की बीमारी बिगाड़ सकती है.
शरीर में रक्त बनाने की सारी प्रक्रिया में गुर्दों का बेहद अहम किरदार है. गुर्दे में बनने वाला इरिथ्रोपोइरिन नामक पदार्थ खून बनाने वाली बोनमैरो को (बोनमैरो को आप हड्डियों में खून पैदा करने वाली फैक्टरी कह सकते हैं) खून बनाने के लिए स्टीम्यूलेट करता है. यह न हो तो शरीर में खून बनना बंद या कम हो जाता है. इनमें बहुत-सी बातों से स्वयं डॉक्टर भी परिचित नहीं होंगे या उन्होंने कभी पढ़ा तो था पर अब याद नहीं. नतीजा कई डाक्टरों का भी इस महत्वपूर्ण तथ्य की ओर ध्यान नहीं जाता है कि किडनी फेल होने वाला मरीज पेशाब की शिकायत या सूजन आदि के अलावा और भी कई तरह से सामने आ सकता है.
सवाल यह है कि हमें कब सतर्क होकर किडनी का टेस्ट कराना चाहिए. कौन-से लक्षण हैं जो किडनी फेल्योर की ओर इंगित कर सकते हैं?
निम्नलिखित स्थितियों में किडनी की बीमारी (क्रॉनिक किडनी डिजीज) या किडनी के ठीक से काम न करने (किडनी फेल्योर) की आशंका रहती है:
1. यदि शरीर में सूजन रहने लगे. विशेष तौर पर यह सूजन चेहरे से शुरू हो रही हो. आंखों के नीचे हल्की सूजन को भी नजरअंदाज न करें. यदि चेहरे पर न होकर मात्र पांवों पर हो या चेहरे और पांव दोनों पर हो तब भी तुरंत ही डॉक्टर से मिलकर अपना संदेह बताएं. खास तौर पर यदि आप पहले ही मधुमेह, उच्च रक्तचाप, प्रोस्टेट आदि के रोगी हों या आपकी उम्र साठ-सत्तर वर्ष हो रही है तो सूजन होते ही जांच करा लें.
2. तो क्या सूजन न हो तो किडनी डिजीज की आशंका समाप्त हो जाती है? सूजन का न होना कोई गारंटी नहीं है. किडनी की बहुत-सी अन्य भूमिकाएं भी हैं. सो इनकी तकलीफें भी हो सकती हैं. इनमें सबसे महत्वपूर्ण है खून का बनना. यदि आपको खून की कमी (अनीमिया) के लक्षण हैं, जांच में हीमोग्लोबिन भी कम है तो सतर्क हो जाएं. विशेष तौर पर तब तो जरूर जब पूरे इलाज के बाद भी लौट-लौट कर पुन: अनीमिया हो जाता हो. ऐसे में किडनी की जांच की आवश्यकता है. कितने ही ऐसे मरीज आते हैं जो ‘बड़ी कमजोरी लगती है डाक्टर साहब, मेहनत करने पर हांफ जाता हूं’ कहते हुए आते हैं और जब डॉक्टर जांच करके उनको बताता है कि यह सब आपकी किडनी खराब हो जाने के कारण हो रहा है तो मरीज को विश्वास ही नहीं होता.
3. यदि भूख खत्म हो गई हो, वजन गिर रहा हो, बेहद थकान लगी रहती हो तो यह किडनी फेल्योर से भी हो सकता है.
4. भूख एकदम गायब, बार-बार उल्टियां हो जाती हैं तो यह गैस्ट्रिक या पीलिया के कारण ही नहीं, गुर्दों की बीमारी से भी हो सकता है.
5. यदि आपको उच्च रक्तचाप की बीमारी हो, आजकल ब्लड प्रेशर भी बहुत बढ़ा रहता हो और डॉक्टर द्वारा दवाइयां बढ़ा-बढ़ा कर देने के बाद भी कंट्रोल न हो रहा हो तो ऐसा किडनी के काम न करने के कारण भी हो सकता है.
6. यदि बहुत छोटी-सी चोट या मामूली स्ट्रेस से ही आपकी हड्डी चटक या टूट जाए, यदि हड्डियों में बहुत दर्द रहता हो तो भी यह किडनी की बीमारी का लक्षण हो सकता है. किडनी विटामिन डी तथा कैल्शियम की मेटाबोलिज्म में महत्वपूर्ण रोल अदा करती है.
7. यदि पेशाब की मात्रा पानी पीने के बावजूद बहुत कम होने लगे तो भी जांच करा लें. पेशाब की मात्रा नापने का सीधा तरीका है पूरे चौबीस घंटे में पेशाब को किसी बर्तन में इकट्ठा करते जाना. यदि इसकी मात्रा आधा लीटर से कम हो तो जांच की जरूरत है. जब भी पेशाब का ऐसा हिसाब रखें तो उस दौरान पिए गए पानी, दूध, चाय आदि द्रव्य की मात्रा का भी हिसाब लिखकर डॉक्टर के पास ले जाएं, इससे बीमारी को समझने में मदद मिलेगी.
तो किडनी के फेल्योर की आशंका के प्रति हमेशा सतर्क रहें. जितनी जल्दी पता लगे उतना ही इसे बढ़ने से रोका जा सकता है.