आज दुनिया की कौमों ने तरक्की की कई मंजिलें तय कर ली हैं. हर दिन होनेवाली तकनीकी तब्दीलियां हमें अब हैरान नहीं करती. अगर कोई चीज हैरान करती है तो वो दुनिया में इंसानी जान की नाकद्री और उसको बेमतलब की छोटी-छोटी बातों के लिए खत्म कर देना. आज हम अपनी दुनिया से निकलकर दूसरे ग्रहों पर कदम डाल रहे हैं, लेकिन इंसानों से प्यार करना और उनकी जानों की कीमत भूलते जा रहे हैं. आतंकवाद के दैत्य के आगे दुनिया में नेकी और मुहब्बत बहुत छोटी हो गयी हैं. अच्छाई और नेकी की जिन कद्रों को हमारे उस्ताद और मां-बाप ने हमारे अंदर पैदा किया था आज उनकी झलक भी लोगों में देखने को नहीं मिलती.
एक बार जब मैं छोटी थी तो अपनी दादी के साथ वाज यानी सत्संग की महफिल में गई. वहां बयान में सुना कि एक यहूदी औरत पैगंबर को बहुत तंग करती थी और हर रोज वह उनके रास्ते में गंदगी डालकर उनको परेशान करती थी. फिर ऐसा हुआ कि कई दिनों तक उस ने कूड़ा नहीं डाला. तो मोहम्मद साहब को तश्वीश हुई. उन्होंने जाकर उसकी खैरियत मालूम की तो पता चला की वह बीमार है. पैगंबर साहब ने उसकी खिदमत की तो वह औरत बहुत शर्मिंदा हुई. यह वाकया मैंने इसलिए बयान किया की वह पैगंबर जो अपने दुश्मनों पर भी इतना मेहरबान था, उसके माननेवाले ऐसी हरकतें करके उनको बदनाम करने का काम कर रहे हैं. इस्लाम के नाम पर जिस आतंकवाद को फैलाया जा रहा है उसका असली इस्लाम से कोई लेना-देना नहीं है. पैगंबर ने एक पड़ोसी के भी इतने हक बताये कि उनके साथी-सहाबा सोचने लगे की कहीं पड़ोसी को भी विरासत में हिस्सा न दे दिया जाए. पैगंबर ने कहा कि जब कोई तुम्हारे ऊपर जुल्म करे, तो तुम उसका इतना ही बदला लो जितना जुल्म हुआ है, लेकिन अगर तुम उसे माफ कर दो तो ये और भी बेहतर है.
इस्लाम मजहब का अर्थ ही सलामती है तो फिर यह मजहब लोगों को मारने, बच्चों को कत्ल करने और इंसानों में खौफ व हिरास फैलाने की इजाजत कैसे दे सकता है
इस्लाम की असल हकीकत को समझने के लिए पैगंबर साहब की जिंदगी को ईमानदारी के आईने में देखकर और खुद समझकर फैसला करने की जरूरत है. सुनी-सुनाई बातों और इस्लाम के दुश्मन दहशतगर्दों की करतूतों को इस्लाम न समझा जाय. इस्लाम मजहब का अर्थ ही सलामती है तो फिर यह मजहब लोगों को मारने, बच्चों को कत्ल करने और इंसानों में खौफ व हिरास फैलाने की इजाजत कैसे दे सकता है?