आपने अपने क्षेत्र कैराना के बारे में यह मसला उठाया था कि वहां से पलायन हो रहा है. असलियत क्या है?
आपको मौका लगे तो कैराना विजिट कर लीजिए. कैराना अब किसी भले आदमी के रहने लायक रहा नहीं. परिस्थिति जैसी उभर कर आ रही है, मौके पर उससे ज्यादा गंभीर है. मैंने 346 लोगों की लिस्ट दी थी, जो मुझको मिल सकी. हर चीज की कुछ बातें होती हैं. मैंने लिस्ट दी थी 346 की. अब इतना तो संभव है नहीं कि उनका आईडी कार्ड भी लेता. मेरे सामने एक रिपोर्ट आई कि यहां से पलायन हो रहा है. पलायन तो मेरे सामने बहुत समय से हो रहा था. यहां गुंडागर्दी का, अपराधीकरण का मामला इतना बढ़ गया था कि किसी भी व्यापारी के लिए वहां रहना मुश्किल था. उनका मुख्य टारगेट वहां का व्यापारी था क्योंकि व्यापारी कभी भी लड़ना नहीं चाहता, न लड़ना उसके वश का है. और लोग समझते हैं कि व्यापारी है, जल्दी पैसा दे ही देगा. तो उन्हीं को टॉरगेट किया गया. किसी से दो लाख, किसी से पांच लाख, किसी से दस लाख मांगे गए. जिसने दे दिया तो उसकी रकम और बढ़ा दी गई. फिर ये हुआ कि किसी ने कहा कि साब मैं तो दो ही दे पाऊंगा तो उन्हें सबक सिखाने और संदेश देने के लिए कि जो मेरी बात नहीं मानेगा, हम उसका इलाज ये करते हैं. फिल्मी स्टाइल में आकर कहते थे कि क्या हमारी औकात एक लाख की है. हमने तो इतने पैसे मांगे थे. हम उसी का सबक सिखाने आए हैं और उसे वहीं पर मार दिया, फिर हथियार लहराते हुए पूरे बाजार में घूमते हुए चले गए. इससे पूरे बाजार में क्या मैसेज जाएगा? इसके चलते लोग वहां से पलायन कर गए. अब लोग कह रहे हैं कि मुस्लिमों का भी पलायन हुआ. मैं जिम्मेदारी के साथ कहता हूं कि मुसलमानों का पलायन नहीं हुआ, क्योंकि वहां मुस्लिम व्यापारी नहीं थे. अगर रहे होते तो वे भी इसी तरह टारगेट बनते. सारा व्यवसाय वहां पर दो समाजों के लोग करते हैं, वैश्य समाज और जैन समाज. उन्हीं को निशाना बनाया गया. लोग वहां से गए और अभी और जाएंगे.
जब इस तरह सरेआम हत्या और फिरौती की घटनाएं हुईं तो ऐसे तत्वों को रोका क्यों नहीं गया? कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
हत्या हुई तो एफआईआर भी हुई. जहां तक पकड़े जाने की बात है तो मैं बता देता हूं कि कैराना में दो गैंग हैं. मुकीम और फुरकान. ये दो कुख्यात नाम हैं, जिन्होंने अपना माहौल बनाया. दोनों संयोग से मुस्लिम हैं इसलिए ये मामला सांप्रदायिक बनाया जा रहा है. मैं पहले दिन से कह रहा हूं कि यह सांप्रदायिक मामला नहीं है. हमें कम्युनल और क्रिमिनल में अंतर करना चाहिए. और ये भी मैं बता रहा हूं कि ये जो कम्युनल बनाने की साजिश है. इसमें एक तो मीडिया का हाथ है उसे छोड़ दीजिए, इसके पीछे का एक कारण ये भी है कि अगर कम्युनल बन गया तो इन दोनों गैंग्स को प्रोटेक्शन मिल जाएगा कि मुसलमान होने के नाते हमें फंसाया गया.
आपके प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद ही मीडिया में खबरें छपीं और यह संदेश प्रसारित हुआ कि मुसलमानों के खौफ से हिंदुओं का पलायन हो रहा है.
नहीं-नहीं, ये कहीं नहीं लिखा गया. मैं असहमत होने की इजाजत चाहता हूं. मेरा स्टैंड शुरू से ही यही रहा है कि अपराधियों के खौफ से लोग गए हैं और अपराधी संयोग से मुस्लिम हैं. मैंने अपना स्टैंड कभी नहीं बदला.
लेकिन स्पष्ट सूचना के साथ खबरें छपीं कि हिंदुओं का पलायन हो रहा है. कश्मीर से तुलना की गई.
मैंने नाम सब दिए हैं और वे सब नाम हिंदू हैं. अब उसको हिंदू पलायन लिखूं या न लिखूं, क्या फर्क पड़ता है. वे सभी हिंदू हैं, उनके नाम दिए हैं, उनका पेशा दिया गया है, मैंने पते दिए हैं उनके. सब हिंदू हैं तो हिंदू हैं.
जब लोगों ने, पत्रकारों ने वहां जाकर चेक किया तो सूची में गड़बड़ियां पाई गईं. आप पर आरोप लगा कि आप झूठ बोल रहे हैं और माहौल खराब करने की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि विधानसभा चुनाव आ रहा है.
अगर अपराधियों के खिलाफ या अपराधियों के बारे में बात करूंगा तो कम्युनल माहौल बनेगा, मुझे तो यह विश्वास नहीं है, न कभी बना है आज तक. और रही चुनाव की बात, तो कम से कम मैंने उन अपराधियों को चैलेंज तो किया. वो अपराधी कुछ लोगों के काम आते होंगे चुनाव में, मैं तो उनसे काम लेना चाहता नहीं. मैं उनका विरोध आज भी कर रहा हूं, कल भी करूंगा. परिणाम जो भी हो. मैं चुनाव में बाहुबल की चिंता नहीं करता.
आप सांसद हैं. आप ही खौफ में रहेंगे तो जनता का क्या होगा?
यही तो मैं कह रहा हूं. खैर, ऐसी कोई बात नहीं है. आप भी जानते होंगे कि सांसद और विधायक भी कुछ ऐसे होते होंगे, हमारी असेंबली में ऐसे विधायक आज भी हैं जो मूंछें तानकर चलते हैं, जिनसे लोग घबराते हैं. वे जेल में आते हैं हाजिरी लगाने के लिए.
हमारा जो मुख्य सवाल है वो ये है कि चाहे कैराना हो या मुजफ्फरनगर हो, या कहीं भी हो, कोई व्यक्ति उगाही करता है, लोगों को धमकाता है तो पहला काम ये होना चाहिए कि उस पर कार्रवाई हो. उस पर मुकदमा होना चाहिए. ये तो हुआ नहीं. बदमाश तो बेखौफ रहे.
नहीं, ये हुआ है. मैं स्पष्ट कर देता हूं. मुकीम का नाम आया. पहली बार मैंने जब इसका नाम सुना तो सहारनपुर में पेट्रोल पंप पर लूट की थी. पुलिस को जानकारी मिल गई. गाड़ी में बैठकर भागा और पुलिस ने उसका पीछा किया. थोड़ी देर के बाद जब इसकी गाड़ी मुड़ रही थी, एक बहादुर सिपाही ने उतरकर उसको पकड़ना चाहा. इस आदमी ने फुर्ती दिखाई और उसको गोली मार दी. उसकी गन वगैरह भी छीन ली जो आज तक मिली नहीं. आपने कहा उसको पकड़ा जाना चाहिए. उसने कैराना में तो कुछ लोग मारे ही, धीरे-धीरे अपना कार्यक्षेत्र बढ़ाया. हरियाणा की पुलिस इसके पीछे पड़ गई. वह इसका एनकाउंटर करना चाहती थी. मेरा आरोप ये है कि पुलिस ने किसी नेता के कहने से, मैं नाम नहीं लूंगा, आप दबाव भी मत बनाइए, दबाव बनाकर इसके सरेंडर की नौटंकी की और इसे जेल भिजवा दिया ताकि ये सुरक्षित रहे. जेल में जाकर वह सुरक्षित हो गया और वसूली का काम और तेज कर दिया. मोबाइल पर वो फोन करता था और किसी की औकात नहीं थी कि उसका मोबाइल सुनने के बाद उसे रकम न पहुंचाए. उसने वसूली के लिए अपने एजेंट छोड़ रखे थे. बहुत दिन तक ये क्रम चला. मैंने खुद इस बात की कई बार शिकायत की कि वह तो जेल जाकर और खतरनाक हो गया. मेरे कहने पर उसे जेल से ट्रांसफर किया गया. लेकिन जहां ट्रांसफर किया गया, वहां से भी वही क्रम चलता रहा.
लेकिन आप सांसदों और विधायकों के कहने से भी अगर किसी अपराधी पर नियंत्रण नहीं हो पा रहा है तो यह तो बड़ी गंभीर स्थिति है.
केंद्र सरकार को इसका संज्ञान लेना चाहिए. हमारी लीडरशिप को इसकी जानकारी है. निर्णय उनको लेना है. हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष खुद इसका जिक्र कर चुके हैं राष्ट्रीय कार्यकारिणी में. अब राष्ट्रीय नेतृत्व की जानकारी में तो सारी बात है ही.
प्रशासन की जांच में तो आपकी बात खारिज कर दी गई है?
देखिए, प्रशासन की जांच में वहीं सामने आएगा जो उनके लखनऊ वाले आका चाहेंगे. अगर आपको असली हालात देखना है तो मैं आपको एक नाम बताता हूं. उनका नाम है सूर्य प्रताप सिंह. वो मुजफ्फरनगर में जिलाधिकारी थे. कैराना तब मुजफ्फरनगर का हिस्सा होता था. उन्होंने स्टेटमेंट जारी किया है कि मैं जिलाधिकारी था मुजफ्फरनगर का और कैराना की हालत ऐसी है जहां पर रात में तो छोड़िए, दिन में भी पुलिस की घुसने की हिम्मत नहीं है. कैराना के हालात इतने खराब हैं जिसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. वे प्रिंसिपल सेक्रेटरी के पद से अभी रिटायर हुए हैं. अब ये जो दो-दो महीने पहले आए हुए मजिस्ट्रेट हैं, इनकी जांच वह होगी जो इनको कहा जाएगा. हमने असेंबली में भी ये मुद्दा उठाया था, उसके बाद कुछ अधिकारी हटाए गए और जो अधिकारी आए उन्होंने कुछ करके भी दिखाया. जब तक वो रहे तो किसी की हिम्मत नहीं हुई वसूली करने की. लेकिन उनको एक-डेढ़ महीने में हटा दिया गया. अब इससे अधिकारी का मनोबल टूटेगा कि नहीं? स्थिति बड़ी गंभीर है. ऐसा नहीं है कि मेरे मन में कुछ है क्योंकि चुनाव आ रहा है. मैं 2013 से बराबर कह रहा हूं कि कैराना की हालत बहुत खराब है. कभी-कभी कार्रवाई भी हुई लेकिन ऐसा नहीं हो पाया कि हालत ठीक हो जाए.
लेकिन मीडिया और सोशल मीडिया में इस तरह प्रसारित हो गया है कि यह सांप्रदायिक मसला है. इसका असर देश के दूसरे हिस्सों पर भी पड़ेगा.
मैं बता रहा हूं आपको. मैं अपनी बात ही बता सकता हूं. यह पहले दिन से ही शुरू हो गया था और यह तो होना ही था. बहरहाल, रिपोर्ट रोचक तो तभी बनेगी जब उसमें पैबंद लगाए जाएंगे. हेरफेर किया जाएगा. अगर मेरा सीधा बयान ये हो कि अपराधियों ने अपराध कर दिए और लोग चले गए तो मेरे ख्याल से आधे कॉलम की, चौथाई कॉलम की न्यूज बनकर खत्म हो जाएगी. इसलिए उसे रंग दिया गया सांप्रदायिकता का. मैं पहले दिन से ही कह रहा हूं कि यह सांप्रदायिक मामला नहीं है. ये खाली अपराधियों का मामला है. यह संयोग की बात है कि जितने इसमें पीड़ित हैं वे सारे हिंदू हैं और जो क्राइम करने वाले हैं वे मुस्लिम हैं, लेकिन वे मुस्लिम नाम से हैं. वे मुस्लिम समाज के प्रतिनिधि नहीं हैं. ये गुंडे-बदमाश, जिन्होंने जीना हराम कर दिया, वे समाज के प्रतिनिधि कैसे हो सकते हैं? मैं पहले दिन से कह रहा हूं लेकिन इस बात में आनंद तो नहीं आने का. जब तक ये न कहूं कि हिंदू मामला है. मैंने जो बयान पहले दिन दिया था, अपने स्टैंड पर कायम हूं. एक इंच इधर से उधर नहीं होऊंगा.
तो इसे सांप्रदायिक रंग किसने दिया?
अपने आप हो गया सांप्रदायिक रंग. (लोग) जो पढ़ेंगे, देखेंगे कहीं. लोग क्या देखते हैं, टेलीविजन. लोग पढ़ते क्या हैं, अखबार. वे मेरी रिपोर्ट थोड़े पढ़ते हैं.
लेकिन रिपोर्ट तो उसी आधार पर बनती है जो आप बोलते हैं.
आधार… आधार जितना है वह तथ्यात्मक है. ये आदमी है पीड़ित और ये है अपराधी. मैंने इतना बता दिया. ये तथ्य हैं. लेकिन वह आकर्षक न्यूज नहीं है. फिर वो मुझसे सवाल करेंगे कि आप तो सारी घटना का सांप्रदायिकीकरण कर रहे हैं क्योंकि चुनाव आने वाले हैं. आपके राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा है कि हम मुद्दा बनाएंगे. उन्होंने जो कहा है वो ये कहा है कि कैराना और मथुरा में जो कानून व्यवस्था चौपट हुई है, उसको मुद्दा बनाएंगे. मथुरा में तो कोई सांप्रदायिकता नहीं थी न. लेकिन बात आगे तभी बढ़ेगी जब कहा जाएगा कि भाजपा ये कर रही है, वो कर रही है. भाजपा इसको भुनाना चाहती है.
मैं पूछता हूं कि जितने आप लोगों ने वेरीफाई कर लिए होंगे, दस परिवार भी किए होंगे, मेरा सवाल बस इतना है कि क्या उन दस परिवारों को वापस लाने का प्रयास किया और ये आश्वासन दिया कि हम आपको सुरक्षा देंगे? उस तरफ तो एक कदम नहीं बढ़ा. मेरी लिस्ट को कैसे छोटा करें, सारा प्रयास इस पर है.
क्या जिस इलाके में दंगा हो चुका है, हजारों लोग विस्थापित हो चुके हैं, ऐसे संवेदनशील इलाके में ऐसा मसला उठाते हुए सावधानी नहीं रखनी चाहिए?
अब इससे ज्यादा सावधानी क्या हो सकती है कि मैं पहले दिन से कह रहा हूं कि यह सांप्रदायिक मसला नहीं है? जो बात आपने कही, ये मेरे दिमाग में भी थी. मैंने बोलना यहीं से शुरू किया कि यह सांप्रदायिक मसला नहीं है. अभी तक सिर्फ एक मसला पता चला है जहां मुस्लिम परिवार से रंगदारी मांगी गई थी और उनको जाना पड़ा. बाकी कोई मुस्लिम परिवार नहीं गया. वहां पर ऐसा भी हो रहा है कि सारा जिला प्रशासन लगाकर फर्जी आदमी खड़े करके उनसे कहलवाया जा रहा है कि मैं तो यहीं हूं जी. मैं तो कहीं गया नहीं. मैं वहां पर सांसद हूं, लेकिन मैं वहां पर सरकार नहीं हूं. मैं किस-किसको झूठा साबित करूंगा. मैं तो बस ये उम्मीद कर रहा हूं कि सुरक्षा की व्यवस्था कर दीजिए. लेकिन यहां तो चुनाव का मामला है, कोई कुछ कह रहा है कोई कुछ. चल रहा है, ऐसे ही चलता रहेगा.
मैं ये जानना चाहता हूं कि आपके संसदीय क्षेत्र में अगर इस तरह अपराध बढ़ता है, प्रशासनिक समस्या आती है तो किस हद तक आप जा सकते हैं, कितना हस्तक्षेप कर सकते हैं?
पूरा हस्तक्षेप, जिस हद तक जाना उचित हो, उस हद तक जाऊंगा.
तो ये अभी तक कैसे चलता रहा कि लंबे समय से वहां गुंडे उगाही करते रहे?
हम उठाते रहे बात को. कुछ गंभीर घटनाएं भी हुईं जब महिलाओं को घर से खींचकर बलात्कार किया गया. गैंगरेप के बाद मर्डर किया गया. तब कोई विकल्प नहीं रह गया था सिवाय इस बात के कि खड़े हो जाओ, एक्सपोज करो. जो होगा देखा जाएगा.
ये तो प्रशासनिक स्तर पर कोशिश करके आपको रुकवाना चाहिए था. आपने प्रयास किया, प्रशासन ने प्रयास किया लेकिन वह सब तो रुका नहीं और लोग वहां से जा रहे हैं.
प्रशासनिक स्तर पर सहयोग भी हमेशा देता हूं, खड़ा करने की कोशिश भी करता हूं लेकिन जब इतने कमजोर अधिकारी आ जाएंगे कि बदमाशों को सरेंडर कराएंगे तो क्या होगा.