‘मैं वो नहीं जो दिखता हूं, मैं वो हूं जो लिखता हूं’

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कश्मीर के बारामुला में एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे मानव कौल का बचपन मध्य प्रदेश के होशंगाबाद शहर में बीता. 90 के दशक में घाटी में तेजी से पांव पसारते आतंकवाद की वजह से उनके परिवार को पलायन करके होशंगाबाद आना पड़ा. उनके पिता कश्मीर में इंजीनियर थे, जिन्हें समय से पहले रिटायरमेंट लेना पड़ा. हताशा के उन दिनों को याद करते हुए कौल स्वीकारते भी हैं कि मध्य प्रदेश आने के बाद एक समय उनके परिवारवाले उनसे यह भी अपेक्षा करने लगे थे कि वे चाय या पान की दुकान खोल लें, हालांकि उनका सपना कुछ और ही था.
मानव के जेहन में आज भी बचपन के दिन ताजा हैं. उन दिनों नर्मदा में तैराकी करना उनका शौक हुआ करता था. दसवीं की पढ़ाई करते हुए उन्हें महसूस हुआ कि उन्हें अब गांव से निकलना चाहिए. तैैैराकी के उनके शौक ने गांव से बाहर निकलने की राह बनाई. दो सालों तक उन्होंने अपनी तैराकी को और कुशल बनाया और राष्ट्रीय स्तर पर तैराकी के 100 मीटर बटरफ्लाई रेस में तीसरे स्थान पर आए. इसी दौरान थियेटर से उनका पहली बार वास्ता भोपाल के सांस्कृतिक केंद्र भारत भवन में पड़ा. उसके बाद से तैराकी का उनका शौक कहीं पीछे छूट गया. थियेटर से उनका जुड़ाव पहले शौक और फिर जुनून में तब्दील होता चला गया.
भोपाल में रंगमंच और अभिनय का गुर सीखने के बाद उनकी चाहत दिल्ली के राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) में एडमिशन लेने की थी, लेकिन परिस्थितियां कुछ ऐसी बनीं कि उन्होंने मायानगरी मुंबई का रुख किया. सपनों की इस नगरी में खुद की पहचान बनाना इतना आसान नहीं था, लेकिन अपनी मेहनत और वर्षों के अथक संघर्ष के दम पर आज वे न सिर्फ रंगमंच की दुनिया के जाने-पहचाने नाम हैं, बल्कि बॉलीवुड में भी अपने अलहदा अभिनय की छाप छोड़ने में कामयाब हुए हैं. वे बताते हैं, ‘मैं जेब में महज 2500 रुपये लेकर मुंबई आया था, लेकिन पैसे की समस्या कभी भी मेरे जुनून पर भारी नहीं पड़ी और न ही पैसा मेरे लिए कभी महत्वपूर्ण रहा.’
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इन्हीं दिनों उन्होंने ‘पृथ्वी थियेटर’ भी आना-जाना शुरू कर दिया था. यहां उन्होंने प्रसिद्ध रंगकर्मी और फिल्मकार सत्यदेव दुबे की कार्यशालाओं में भाग लेना शुरू कर दिया. इस बीच दुबे ने उन्हें अपने एक नाटक में अभिनय करने के लिए चुन लिया. उनके बाद मानव उनके छह से सात नाटकों में लगातार नजर आए.  कौल खुद को थियेटर तक पहुंचाने का पूरा श्रेय सत्यदेव दुबे को ही देते हैं. 2004 में उन्होंने कुमुद मिश्रा और तुषार राव के साथ मिलकर अपने थियेटर ग्रुप ‘अरण्य’ की शुरुआत की. इस तरह से एक नाटककार और निर्देशक के रूप में उनकी नई पारी की शुरुआत हुई. वे निर्मल वर्मा और विनोद शुक्ल से प्रभावित हैं. अपने थियेटर ग्रुप का नाम भी उन्होंने ‘अरण्य’ इसलिए रखा कि उन दिनों वे निर्मल वर्मा का उपन्यास ‘अंतिम अरण्य’ पढ़ रहे थे. इस तरह से अभिनय को कुछ समय के लिए विराम देकर वे नाटक लेखन की ओर मुड़े. इस क्रम में उनका पहला नाटक ‘शक्कर के पांच दाने’ आया. इस नाटक में पांच किरदारों को उन्होंने बड़े ही दिलचस्प और काव्यात्मक अंदाज में मंच पर जीवंत किया है. इसकी पहली प्रस्तुति मुंबई के पृथ्वी थियेटर में हुई. लेखन का यह सिलसिला अब भी जारी है. इसके बाद ‘पीले स्कूटर वाला आदमी’ लिखा. यह एक उपन्यासकार की कहानी है, जो अपने अतीत से जूझते हुए उपन्यास लिखता है. 2006 में इस नाटक ने श्रेष्ठतम मौलिक स्क्रिप्ट का पुरस्कार जीता. इसके बाद उन्होंने ‘बलि और शंभू’ लिखा. उनके अन्य प्रयोगधर्मी नाटकों में ‘मुमताज भाई पतंगवाले’, ‘इलहाम’, ‘लाल पेंसिल’, ‘पाक’, ‘ऐसा कहते हैं’, ‘रेड स्पैरो’, ‘हाथ का आया… शून्य’ और ‘कलरब्लाइंड’ शुमार हैं. ‘कलरब्लाइंड’ रबींद्रनाथ टैगोर की जिंदगी का नाट्य रूपांतरण है, जिसमें अभिनेत्री कल्कि कोचलिन ना अभिनय किया है. आठ साल में मानव ने 11 नाटक लिखे और 16 नाटकों को निर्देशित किया.
इन सबके बीच उन्होंने छोटे पर्दे पर भी हाथ आजमाया. वे धारावाहिक ‘बनेगी अपनी बात’ में नजर आ चुके हैं, लेकिन धारावाहिकों में काम करना उन्हें ज्यादा समय तक आकर्षित नहीं कर सका. इसके अलावा साल 2003 में फिल्म ‘जजंतरम-ममंतरम’ से उन्होंने बॉलीवुड में कदम रखा. 2007 में फिल्म ‘1971’ में नजर आए. इस बीच उन्होंने कई छोटी-छोटी फिल्में कीं लेकिन बॉलीवुड में उनके अभिनय को पहचान तकरीबन दस साल बाद तब मिली जब 2013 में फिल्म ‘काई पो चे’ रिलीज हुई. चेतन भगत के नाटक ‘थ्री मिस्टेक्स ऑफ माय लाइफ’ पर आधारित इस फिल्म में ‘बिट्टू अंकल’ के कुटिल हिंदूवादी नेता के किरदार को जिस तरीके से उन्होंने पर्दे पर जीवंत किया उसे आलोचकों के साथ दर्शकों ने भी खूब सराहा.
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इससे पहले साल 2012 में मानव ने छोटे बजट की एक फिल्म बनाई जिसका नाम है ‘हंसा’. इस फिल्म को आलोचकों ने खूब सराहा है. फिल्म के बारे में भी वे बताते हैं, ‘हंसा बनाने का जब ख्याल आया तो अकाउंट में सिर्फ 12 हजार रुपये थे. तब कुछ साथियों की मदद से पांच लाख रुपये के बजट से एक महीने के भीतर यह फिल्म बनाई. इस फिल्म ने ओशियन सिनेफैन फेस्टिवल में दो श्रेणियों- बेस्ट क्रिटिक अवॉर्ड और बेस्ट ऑडियंस चॉइस में अवॉर्ड जीते.
2014 में हंसल मेहता की फिल्म ‘सिटी लाइट्स’ में विष्णु के जटिल किरदार को उन्होंने बखूबी निभाया. यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाई लेकिन फिल्म के मुख्य कलाकार राजकुमार राव के मजबूत अभिनय के सामने मानव कौल कहीं से भी कमजोर नहीं पड़ते. पिछले दिनों फिल्म ‘वजीर’ में कौल खलनायक की भूमिका में नजर आए. मार्च में वे प्रकाश झा की फिल्म में प्रियंका चोपड़ा के साथ नजर आएंगे. इसमें उन्होंने नकारात्मक छवि वाले विधायक की भूमिका निभाई है. फिल्मों में निभाए गए कौल के अधिकांश चरित्र नकारात्मक छवि वाले हैं, जिन्हें दर्शकों ने काफी पसंद किया है.
रंगमंच, अभिनय और नाट्य लेखन के इतर मानव सोशल मीडिया पर भी काफी सक्रिय रहते हैं. ब्लॉग लेखन के अलावा वे फेसबुक पर भी लिखते रहते हैं. खुद को अभिव्यक्त करने के लिए उनके पसंदीदा माध्यमों में से लेखन एक है. फेसबुक पर वे लिखते भी हैं, ‘मैं वो नहीं, जो दिखता हूं. मैं वो हूं जो लिखता हूं.’ ये लाइनें व्यापक तौर पर मानव कौल को परिभाषित करती हैं.
इंस्टाग्राम पर बातें तमाम
मानव कौल की तस्वीरों में भी खास दिलचस्पी है. फोटो और वीडियो शेयरिंग साइट इंस्टाग्राम पर भी वे खूब सक्रिय रहते हैं (देखें फोटो फ्रेम). इंस्टाग्राम पर मानव खुद के द्वारा खींची तस्वीरों में अपनी यात्रा, जिंदगी और बचपन के अनुभवों को छोटी कहानियाें के रूप में साझा करते हैं.
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अपनी एक इंस्टाग्राम पोस्ट में वे कंचे में पूरा ब्रह्मांड देखते हैं. लिखते हैं, ‘मैं अभी भी विश्वास करता हूं कि अगर सूरज की रोशनी में कंचे को ध्यान से देखो तो उसके अंदर एक पूरा ब्रह्मांड है और दूसरी तरफ मुझे लगता है कि जुगनू की कहानी उसके चमकने में नहीं है. उसकी कहानी उस अंधेरे में है जिसे वह दो बार चमकने के बीच में जीता है. जब कभी दिन भारी लगने लगता है. हल्की घबराहट और टीस का पसीना रीढ़ की हड्डी में महसूस होता है. तब उस तेज धूप में कंचे और जुगनू से बादल सरककर सूरज को हल्का ढांक लेते है. बचकानी कल्पनाएं और विश्वास बड़े विचित्र तरीके से काम आते हैं.’ बहरहाल उनके इंस्टाग्राम अकाउंट से पता चलता है कि वे इन दिनों ‘जय गंगाजल’ के प्रमोशन के लिए अलग-अलग शहरों की यात्रा पर हैं. इसके अलावा यह भी नजर आता है कि वे अपने पहले कहानी संग्रह ‘ठीक तुम्हारे पीछे’ को लेकर भी काफी उत्साहित हैं. ‘ठीक तुम्हारे पीछे’ 14 छोटी कहानियों का संग्रह है. मानव कौल को उम्मीद है कि उनके पहले कहानी संग्रह को उसी तरह का प्यार मिलेगा जैसा उनके नाटकों और अभिनय को मिला है.