जब मैं सुप्रीम कोर्ट में जज था तब एक दिन लंच के समय जस्टिस कपाड़िया के चैंबर में गया. उस समय कपाड़िया (जिनका में उनकी ईमानदारी के लिए बेहद सम्मान करता था) सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के सदस्य थे और जस्टिस बालाकृष्णन सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस थे.
मैंने जस्टिस कपाड़िया से कहा कि हाई कोर्ट के एक चीफ जस्टिस जो इससे पहले मद्रास हाई कोर्ट में जज थे, अपनी ईमानदारी को लेकर काफी बदनाम थे. मुझे उनके बारे में इसलिए पता था क्योंकि मैं मद्रास हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस रह चुका था और चीफ जस्टिस को कई स्रोतों से सूचनाएं मिलती रहती हैं. इसके बाद मैंने उस जज के बारे में जस्टिस कपाड़िया को और भी जानकारियां दीं.
मैंने जस्टिस कपाड़िया से कहा कि मैंने सुना है कि इस जज को सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त करने के बारे में विचार किया जा रहा है इसलिए मैंने सोचा कि यह मेरा फर्ज है कि उन्हें इस जज के बारे में बताऊं. अब यह उनके ऊपर है कि वे क्या करना चाहते हैं.
तब के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बालाकृष्णन को यह सूचना देने का कोई मतलब नहीं था क्योंकि जहां तक मेरी जानकारी थी वे खुद इस जज को सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त करवाने के प्रयास कर रहे थे.
जस्टिस कपाड़िया ने इस सूचना के लिए मेरा आभार जताया और मुझसे अनुरोध किया कि मैं उन्हें इस तरह की जानकारियां देता रहा करूं.
जस्टिस कपाड़िया को मेरे द्वारा दी गई जानकारी के बाद भी कॉलेजियम ने इस जज की सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति की सिफारिश कर दी. वे सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त हो भी जाते यदि तमिलनाडु के वकील उनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन न करते. इन वकीलों ने उस जज के भ्रष्टाचार के सबूत भी उजागर किए थे जैसे कि बड़ी संख्या में जमीनों पर कब्जा करना. इसके बाद उन्हें सिक्किम स्थानांतरित कर दिया गया. बाद में संसद में उनके खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव भी लाया गया लेकिन इससे पहले कि वह संसद में पारित हो पाता उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया.
इस घटना के लगभग एक साल बाद एक पार्टी में मेरी जस्टिस कपाड़िया से भेंट हुई. मैंने उनसे कहा कि एक साल पहले मैंने एक जज के बारे में उन्हें चेतावनी दी थी लेकिन उसपर कोई ध्यान ही नहीं दिया गया. मैंने उनसे कहा कि इसके चलते सुप्रीम कोर्ट को जबर्दस्त शर्मिंदगी झेलनी पड़ी.
जस्टिस कपाड़िया ने बताया कि उन्हें मेरी एक साल पहले कही गई बात याद है लेकिन सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस बालाकृष्णन उस भ्रष्ट जज को पदोन्नति देने पर अड़े हुए थे. उनका तर्क था कि वे पहले मद्रास हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं और जानते हैं कि संबंधित जज पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप सही नहीं हैं.
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