ह्त्याग्रही गांधी!


अब्दुल यह भी बताते हैं कि वरुण गांधी का भाषण सुना तो सबने ही था लेकिन डर के कारण कोई भी गवाही को तैयार नहीं था. वे तहलका से कहते हैं, ‘सब भ्रष्टाचार है. तुम्हारे सामने सीडी बना ली. सीडी सामने चल रही है फिर भी तुम झुठला रहे हो कि नहीं नहीं कही यार तो कोई क्या गवाही देगा.’

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गवाह नंबर 17: मोहम्मद यामीन ; गवाह नंबर 18 : मोहम्मद रजा
लखनऊ की एक स्वयंसेवी संस्था के प्रतिनिधि बनकर हम मोहम्मद रजा से मिले. रजा राजनीतिक रूप से भी काफी सक्रिय हैं और समाजवादी पार्टी के नगर अध्यक्ष हैं. कोर्ट को दिए अपने बयान में रजा कहते हैं कि उन्होंने कोई भी भाषण नहीं सुना था और न ही वे वरुण गांधी की रैली में गए थे. लेकिन तहलका के कैमरे पर वे साफ बताते हैं कि उन्हें वरुण गांधी के यहां से फोन आया था और उनसे वरुण के पक्ष में गवाही देने को कहा गया था. वे कहते हैं, ‘वहां (वरुण गांधी) से कॉल आई थी. सारे लोग भी पीछे पड़े थे. बोले यार दे दो (गवाही) उनका भला हो जाएगा.

हमने कहा ठीक है चलो दे देते हैं कोई दिक्कत नहीं.’ रजा से हुई इस मुलाकात में हमारा कैमरा बीच में ही बंद हो गया जिसके बाद हमने उनसे दोबारा मिलना तय किया. इस दूसरी मुलाकात में उनके साथ मोहम्मद यामीन भी थे. इन दोनों ही लोगों को घटना के चश्मदीद के तौर पर गवाह बनाया गया था. लेकिन मोहम्मद यामीन ने भी कोर्ट में गवाही देते हुए कहा था कि वे वरुण गांधी की रैली में नहीं थे और उन्होंने कोई भी भाषण नहीं सुना था. तहलका ने जब इन बयानों की हकीकत उनसे जाननी चाही तो उन्होंने विस्तार से यह बताया कि क्यों सभा में मौजूद होने के बावजूद वे कोर्ट में सच नहीं बोल पाए.

इस मुलाकात की शुरुआत में हमने रजा और यामीन को उस संस्था के बारे में बताया जिसके प्रतिनिधि बनकर हम इन लोगों से मिले थे. कुछ देर बातें करने के बाद यामीन हमें बताते हैं, ‘देखिए मैं बताऊं .. उस दिन हमारे यहां बाजार लगती है, जहां उसने स्पीच दी थी … उस दिन उसने स्पीच दी थी वरुण गांधी ने … बहुत महात्मा लोग भी साथ में थे .. मैं वहीं पे खड़ा था’. यामीन आगे बताते हैं, ‘तो उनने सबसे पहले उस मंच पे चढ़के वरुण गांधी ने ‘जय श्री राम’ के नारे लगाए . जय श्री राम के नारे लगाने के बाद .. ये बोले कि मैं अपने हिंदू भाइयों से कहना चाहता हूं कि जिस तरीके से दो विधायक, दो-दो विधायक यहां पर बने हुए हैं और अगर उन्होंने होश नहीं लिया तो हो सकता है कि ये पीलीभीत पाकिस्तान बन जाए. तो वो जो वो …. ओसामा बिन लादेन …रियाज विधायक थे .. उनके लिए बोला .. फिर वो, फिर कहा कि किसी हिंदू पे अगर हाथ उठातो मैं हाथ काट लूंगा … इस तरीके की गलत-शलत (बातें)…’

यही सारी बातें उन्होंने कोर्ट में क्यों नहीं कहीं, इसके जवाब में यामीन और रजा दोनों ही कहते हैं कि यहां कोई भी इस मामले की पैरवी सही तरीके से नहीं कर रहा था, ऐसे में कौन वरुण से दुश्मनी मोल लेता. यामीन यह भी बताते हैं कि जिले के कई पुलिस अधिकारी और खुद एसपी ने गवाहों से बयान बदलवाने में अहम भूमिका निभाई. यामीन कहते हैं, ‘कप्तान साहब इन्वॉल्व थे…कप्तान साहब ने बयान बदलवाए हैं ये समझ लीजिए सारे लोगों से…वास्तव में ये चीज है कि अब सरकार से कैसे टक्कर लें… इतने बड़े नेता से कैसे टक्कर लें… लोकल में कोई बड़ा हमारे साथ सहारा नहीं था… कप्तान साहब जैसा जिम्मेदार वो कह रहा है कि कप्तान साहब की मंशा है कि इसको खत्म करिए.’ अपनी मजबूरी स्पष्ट करते हुए यामीन कहते हैं, ‘दरोगा हमें बता रिया था कि जज भी हमने सेट कर लिया है, सरकारी वकील भी सेट कर लिया है, सरकार भी हमारे साथ है, कप्तान भी हमारे साथ है. हमने कहा जब आप आए हो…केस फंसाने के लिए पुलिस आती है ये केस छुड़ाने के लिए आए हैं तो हम कहां से क्या करते?’

गवाह नंबर 31: मोहम्मद तारिक

मोहम्मद तारिक इस मामले के सबसे अहम गवाहों में से एक थे. यही वह पत्रकार है जिसने बरखेड़ा में हुए वरुण के भाषण को एक अन्य साथी रामवीर सिंह के साथ मिलकर रिकॉर्ड किया था. तारिक की गवाही पर लगभग पूरा केस ही आधारित था. पुलिस ने इस मामले में आरोपपत्र दाखिल करते वक्त लिखा था कि तारिक यह सिद्ध करेंगे कि उन्होंने बरखेड़ा में अपने कैमरे से वरुण का भाषण रिकॉर्ड किया है. कोर्ट में अपने बयान में तारिक ने यह तो स्वीकार किया कि वे अपने साथी के साथ बरखेड़ा गए थे और उन्होंने वरुण गांधी का भाषण रिकॉर्ड भी किया था लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने उस भाषण को सुना नहीं था. इस बात पर विश्वास करना लगभग असंभव ही है कि कोई पत्रकार एक खबर बनाए और उसे खुद ही न पता हो कि खबर क्या है.

तारिक ने वरुण गांधी के भाषण को रिकॉर्ड किया और उसे खबर के तौर पर अपने चैनल को भेजा, सारे देश ने उसी खबर के बाद वरुण का यह रूप देखा और अब वही पत्रकार कहता है कि मैंने भाषण नहीं सुना. लेकिन इससे भी ज्यादा आश्चर्य की बात यह है कि कोर्ट में ऐसे बयान को बिना कोई सवाल किए स्वीकार कर लिया गया. इसी मामले के गवाह नंबर 30 शारिक परवेज़ तहलका के स्टिंग में कहते हैं कि तारिक को इस बयान के लिए पांच लाख रुपये दिए गए थे.

हम पीलीभीत में तारिक से रिसर्च छात्र के रूप में मिले जो सांप्रदायिक तनाव आदि पर शोध कर रहे थे. पहले तो तारिक इस रूप में भी हमसे मिलने से कतराते रहे, लेकिन बाद में एक स्थानीय वकील की सिफारिश पर वे हमसे मिलने को तैयार हो गए. वे हमसे अपने दोस्त के घर मिले जहां उनके इस दोस्त अंकित मिश्रा ने तारिक के सामने ही हमें बताया कि वर्तमान पुलिस अधीक्षक और जिले के अन्य अधिकारियों ने सारे गवाहों से बयान बदलवाए हैं. उन्होंने यह भी कहा कि वरुण ने भड़काऊ भाषण भी दिया था. तारिक इस बातचीत के दौरान बिलकुल खामोश रहे. उन्होंने बस इतना कहा, ‘वरुण को हीरो हमने बनाया है.’

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गवाह नंबर 34: रामवीर सिंह (आरवी सिंह)
रामवीर सिंह अभी सहारा समय में पत्रकार हैं और भाषण वाले दिन इन्होंने ही तारिक के साथ मिलकर वरुण का भाषण रिकॉर्ड किया था. इनका दायित्व भी बतौर गवाह, तारिक की ही तरह यह सिद्ध करना था कि इन्होंने बरखेड़ा में वरुण का भाषण रिकॉर्ड किया था. कोर्ट में इनसे पूछा गया कि क्या पुलिस अधिकारियों ने तुमसे भाषण की सीडी ली थी तो इन्होंने कहा कि मुझसे पुलिस ने कोई भी सीडी नहीं ली थी. इसके अलावा रामवीर से कुछ पूछा ही नहीं गया. जिस व्यक्ति ने मौके पर मौजूद होकर वह भाषण रिकॉर्ड किया उससे घटना का चश्मदीद मानकर कोई भी सवाल नहीं पूछा गया.

तहलका से बातचीत में रामवीर स्वीकार करते हैं कि उन्होंने वरुण को भड़काऊ भाषण देते सुना था और तारिक के साथ मिलकर उसे रिकॉर्ड भी किया था. कोर्ट में दिए अपने बयान के बारे में वे बताते हैं, ‘अरे सब साले बिके हुए थे ये …वकील से लेकर सारा सब कुछ सब बिके हुए थे…उन्होंने सिर्फ एक क्वेश्चन मुझसे पूछा कि आपने सीडी दी. वाकई मैंने नहीं दी थी, मैंने चैनल को दी, चैनल ने इनको दी … सीडी, टेप, कैमरा जो कुछ था मैंने चैनल को दिया…चैनल से फिर इनके पास आया.’ रामवीर के इस बयान पर यदि एक भी सवाल और कोर्ट में पूछा जाता तो यह साफ़ हो जाता कि उन्होंने सीडी अपने चैनल को दी और चैनल ने पुलिस को. लेकिन कोर्ट में शायद सच जानने की मंशा किसी की थी ही नहीं.

सरकारी वकील द्वारा कोर्ट में दाखिल किए गए एक प्रार्थना पत्र से यह पता चलता है कि रामवीर सिंह कोर्ट में सबसे आखिर में पेश हुए थे. उनके परीक्षित होने के बाद सरकारी वकील ने अभियोजन साक्ष्य को समाप्त करने की मांग की. उनके आखिर में पेश होने के बारे में गवाह नंबर 30 शारिक परवेज जो स्वयं भी पत्रकार हैं, बताते हैं कि रामवीर गवाही के लिए डील कर रहे थे. शारिक कहते हैं कि रामवीर गवाही देने नहीं आ रहे थे और लाखों रुपये की मांग कर रहे थे. फिर पुलिस ने उन्हें उठाया और एसपी के साथ उनकी डील हुई. शारिक के अनुसार रामवीर को एक वैगन-आर गाड़ी देकर खरीदा गया और तब उन्होंने वरुण के बचाव में गवाही दी. रामवीर से हमारी मुलाकात काफी अंधेरे में हुई थी जिस कारण उनके स्टिंग में उनका चेहरा साफ नजर नहीं आ रहा था. लेकिन तभी उनकी वैगन-आर कार को लेकर एक मेकैनिक आ गया और उसकी हेडलाइट की रोशनी में रामवीर का चेहरा हमारे कैमरे में कैद हो गया.

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गवाह नंबर 30 : शारिक परवेज़

शारिक परवेज इस मामले में बतौर गवाह पेश होने वाले तीसरे स्थानीय पत्रकार थे. उन्हें पुलिस ने बरखेड़ा के अलावा मोहल्ला डालचंद वाले मामले में भी गवाह बनाया था. अगर शारिक के मामले में पुलिस ने क्या किया यह ध्यान से देखें तो ऐसी अजीबोगरीब गड़बड़ियां सामने आती हैं जिन पर विश्वास करना कठिन है. बरखेड़ा वाले केस की बात करें तो इसका आरोपपत्र दाखिल करते हुए पुलिस ने लिखा है, ‘शारिक देशनगर में मोबाइल से वरुण गांधी का भाषण रिकॉर्ड करना साबित करेंगे.’ बड़ी अजीबोगरीब बात है. मामला दर्ज किया गया है बरखेड़ा में वरुण गांधी के भाषण का और पुलिस साबित देशनगर के मामले का कुछ करना चाह रही है. यहां यह बात ध्यान देने वाली है कि चुनाव आयोग को देशनगर में दिए वरुण के भाषण की ऑडियो क्लिप और तमाम शपथ पत्र भेजे जाने के बाद भी पुलिस ने इस मामले को दर्ज तक नहीं किया था.

बहरहाल गवाही के दौरान शारिक कोर्ट में इस बात से भी मुकर गए कि उन्होंने देशनगर में वरुण के भाषण को रिकॉर्ड किया था. कोर्ट ने वरुण गांधी को दोषमुक्त करने वाले आदेश में शारिक की गवाही इन शब्दों में लिखी है, ‘ये मीटिंग में नहीं गए थे. दिनांक 07.03.2009 को इन्होंने देशनगर में वरुण की मीटिंग में मोबाइल से क्लिपिंग नहीं ली थी. जिरह में इन्होंने कहा है कि ऑडियो नहीं बनाई थी.इनका यह कथन है कि इन्होंने ऑडियो नहीं बनाई थी और यह मीटिंग में भी नहीं गए थे, इसलिए इनका कथन विश्वसनीय नहीं है.’ यह पहले से भी अजीबोगरीब बात है. कोर्ट भी बरखेड़ा के मामले में आदेश देते समय शारिक के देशनगर के बारे में दिए बयान को अविश्वसनीय बता रहा है और देशनगर वाले मामले की तारीख छह मार्च के बजाय सात मार्च लिख रहा है. खैर, शारिक इस मामले में कोर्ट के लिए तो महत्वपूर्ण साबित नहीं हो सके लेकिन उन्होंने तहलका को जरूर कुछ महत्वपूर्ण बातें बताईं. शारिक ने हमारे खुफिया कैमरे पर यह स्वीकार किया कि वे ‘होस्टाइल’ हुए हैं.