लैब ने वीडियो में कट की जो बात बताई है उसकी दो वजहें हैं. पहली, दूर-दराज के इलाकों में काम करने वाले स्ट्रिंगर (स्वतंत्र पत्रकार) अक्सर अपने वीडियो टुकड़ों में रिकॉर्ड करते हैं. उनके सामने टेप को बचाने की मजबूरी रहती है, इसलिए वे काम की चीजें ही रिकॉर्ड करते हैं. वीडियो में कट की दूसरी और महत्वपूर्ण वजह यह रही कि वे पत्रकार वरुण के भाषण चोरी से रिकॉर्ड कर रहे थे क्योंकि वरुण की सभाओं की वीडियो रिकॉर्डिंग करने की मनाही थी. उनके समर्थक बीच-बीच में रिकॉर्डिंग बंद करवा रहे थे. कुछ दिन पहले ही वरुण के समर्थक एक कैमरामैन का कैमरा भी तोड़ चुके थे. एफएसएल लैब ने वरुण की आवाज की सत्यता पर कोई सवाल नहीं खड़ा किया है. डॉक्टर एसके जैन की रिपोर्ट में साफ लिखा है, ‘भाषण के इन हिस्सों की पहचान और पुष्टि के लिए आरोपित व्यक्ति की आवाज़ का संतुलित नमूना लिया जाना आवश्यक है.’ नमूने के आधार पर ही कोई अंतिम निर्णय किया जा सकता था. जब इस मामले की जांच के लिए पुलिस ने वरुण गांधी की आवाज़ का नमूना मांगा तो उन्होंने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि वे अपने वकील की अनुमति के बिना कोई कदम नहीं उठाएंगे. इसके बाद न तो अभियोजन पक्ष ने और न ही कोर्ट ने वरुण की आवाज के नमूने के लिए जोर दिया. आवाज का नमूना इस मामले की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी था जिस पर पूरा मामला टिका था, इसके बावजूद वरुण की आवाज का नमूना नहीं लिया गया और कोर्ट ने मामले का निर्णय दे दिया.
एफएसएल के अतिरिक्त एनडीटीवी ने भी वरुण के भड़काऊ भाषणों वाली सीडी की जांच अमेरिका की एक स्वतंत्र फोरेंसिक लैब ‘डिजिटल एविडेंस लीगल वीडियो सर्विसेज’ से करवाई थी. उस रिपोर्ट में यह कहा गया कि सीडी के साथ कोई भी छेड़छाड़ नहीं की गई है और सीडी पूरी तरह से असली है (एनडीटीवी द्वारा करवाई गई वह जांच रिपोर्ट तहलका के पास मौजूद है). पीलीभीत न्यायालय में यह रिपोर्ट भी एनडीटीवी द्वारा इसके प्रसारण की अनुमति के लिए प्रस्तुत की गई थी.
इस मामले की सुनवाई के दौरान ही उत्तर प्रदेश की एक सामाजिक संस्था ‘आवामी काउंसिल’ के महासचिव असद हयात द्वारा कोर्ट में एक प्रार्थना पत्र दाखिल किया गया. इसमें कहा गया था कि वरुण गांधी की आवाज़ का नमूना आवश्यक रूप से लिया जाए और यदि वे सैंपल देने से मना करते हैं तो इसे उनके खिलाफ माना जाए. साथ ही असद हयात ने कोर्ट से यह भी मांग की कि जिन समाचार चैनलों ने यह वीडियो प्रसारित किया था उन्हें भी मामले में बतौर गवाह पेश किया जाए. उनके इस प्रार्थना पत्र को न्यायालय द्वारा ख़ारिज कर दिया गया क्योंकि जिस अभियोजन पक्ष को इसका समर्थन करना चाहिए था उसी ने इसका विरोध किया. अभियोजन पक्ष का कहना था, ‘प्रार्थी आवेदक सूची में नहीं है और न ही कोई अभियोजन साक्ष्य में लिंक साक्षी है लिहाजा प्रार्थी असद हयात द्वारा प्रस्तुत प्रार्थना पत्र निरस्त किए जाने योग्य है.’ अभियोजन पक्ष ने एक और प्रार्थना पत्र कोर्ट में दाखिल किया जिसे पढ़कर यह यकीन हो जाता है कि वह असल में वरुण को सजा दिलाने के लिए नहीं बल्कि उन्हें बरी करवाने का काम कर रहा था.
18 फरवरी, 2013 को दाखिल किए गए इस प्रार्थना पत्र में कहा गया कि डॉक्टर एसके जैन अपनी रिपोर्ट जमा कर चुके हैं इसलिए उन्हें कोर्ट में बतौर गवाह पेश किया जाना न्यायहित में नहीं है. जबकि डॉक्टर जैन को बुलाना बेहद आवश्यक था क्योंकि सीडी की विश्वसनीयता को लेकर उन्होंने जो राय दी थी उसे अदालत को सिर्फ वे ही समझा सकते थे. इसी शपथपत्र में आगे अभियोजन पक्ष ने तत्कालीन जिलाधिकारी महेंद्र प्रसाद अग्रवाल और एलआईयू रिपोर्ट देने वाले पुलिसकर्मी राजेंद्र प्रसाद जैसे दो अहम गवाहों को भी गवाही से उन्मोचित (मुक्त करने) करने का निवेदन किया. अभियोजन पक्ष किसी गवाह को गवाही से मुक्त करने की मांग कैसे कर सकता है यह सवाल बहुत महत्वपूर्ण है.
अभियोजन पक्ष और स्वयं न्यायालय द्वारा इतनी लापरवाहियां करना किसी भी मामले को निश्चित ही संदेह के घेरे में ला देता है. और मामला जब वरुण गांधी जैसे प्रभावशाली व्यक्ति से जुड़ा हो तो यह संदेह और भी ज्यादा गहरा जाता है. तहलका ने जब इन खामियों को देखने-समझने के बाद एक-एक कर इस मामले से जुड़े कई गवाहों और अन्य लोगों से मुलाक़ात की और उनसे जुड़े दस्तावेजों आदि को खंगाला तो कई शर्मनाक तथ्य सामने आए. इन मुलाकातों से न सिर्फ यह स्पष्ट हुआ कि वरुण गांधी ने ये सभी अपराध किए थे बल्कि यह हकीकत भी सामने आई कि क्यों ये अपराध कोर्ट में साबित नहीं हो पाए.
गवाह नंबर 4 : रामऔतार
रामऔतार को पुलिस ने घटना का चश्मदीद गवाह बनाया था. इनका दायित्व था कि ये अभियोजन के कथन का समर्थन करें और कोर्ट को बताएं कि वरुण गांधी ने भाषण में मुस्लिम विरोधी बातें कही थीं. लेकिन कोर्ट में दिए गए अपने बयान में रामऔतार ने कहा कि क़स्बा बरखेड़ा में वरुण गांधी की कोई सभा ही नहीं हुई थी और न ही उन्होंने कोई भड़काऊ भाषण दिया.
तहलका ने जब रामऔतार से बात की तो उन्होंने यह स्वीकार किया कि वे घटना के दिन वरुण की सभा में मौजूद थे और उन्होंने वरुण का भाषण भी सुना था. हमारे खुफिया कैमरे पर रामऔतार यह भी बताते हैं कि न सिर्फ बरखेड़ा में बल्कि उनके गांव दड़िया भगत में भी वरुण ने मुस्लिम विरोधी बातें कही थीं. वे कहते हैं, ‘मेरे गांव में भी गांधी जी ने कहा था कि जिले में तीन-तीन विधायक मुसलमान बना दिए, अब क्या पाकिस्तान बनाओगे. अगर मैं सांसद बन गया तो अगर किसी मुसलमान ने कोई अत्याचार किया जैसे फूल बाबू अपनी मनमानी कर रहे हैं ऐसे अगर मुसलमानों ने मनमानी की तो मुसलमानों के हाथ काट लेंगे.’
अपनी कोर्ट में हुई गवाही और उससे मुकर जाने के संबंध में रामऔतार बताते हैं, ‘गवाही के लिए हमें पुलिसवाले लेने आए थे. पहले तो कहने लगे कि इन्हें सीधे एसपी साहब के बंगले पे ले चलो. फिर पुलिसवालों ने मुझसे कहा कि अरे यार शासन भी चाह रहा है और प्रशासन भी चाह रहा है कि मामला निपट जाए. तो अपने लोगों को क्या बनती है यार, अपने लोगों को क्यों लफड़े में पड़ना. नेताओं वाली बात है.’
यानी जिन पुलिसवालों की यह जिम्मेदारी थी कि वे अपराधी को सजा दिलवाने के लिए गवाहों को प्रोत्साहित करें और उन्हें संरक्षण दें, वही घटना के चश्मदीद गवाह को यह समझाते हैं कि शासन-प्रशासन मामले को निपटाना चाह रहा है तो क्यों तुम मुसीबत मोल लेते हो. यही निर्देश देते हुए पुलिस रामऔतार और अन्य गवाहों को कोर्ट ले गई और उनके बयान दर्ज किए गए.
गवाह नंबर 6: अब्दुल रहमान
अब्दुल रहमान बरखेड़ा के पास ही रहते हैं और एक टेंट हाउस के मालिक हैं. वरुण गांधी की इस सभा में इन्हीं की दुकान से टेंट बुक किया गया था. इन्हें भी घटना के चश्मदीद के तौर पर गवाह बनाया गया था.
कोर्ट को दिए अपने बयान में अब्दुल ने कहा है, ‘मैं सभा में नहीं गया था और अपनी दुकान पर ही था. टेंट वरुण गांधी की सभा के लिए बुक हुए थे लेकिन टेंट गए नहीं थे.’ पुलिस द्वारा अब्दुल को गवाह बनाए जाने का एक मुख्य कारण ही यह था कि वरुण की सभा में उन्होंने टेंट लगाए थे. इसके बावजूद उनकी गवाही में लिखा गया है कि उनकी दुकान से टेंट गए ही नहीं.
तहलका के स्टिंग में वे स्वीकार करते हैं कि उन्होंने ही वरुण की सभा में टेंट लगाए थे. अब्दुल यह भी कहते हैं, ‘कोर्ट में कुछ पूछ ही नहीं रहे थे वकील कि तुमने क्या देखा, क्या नहीं देखा. वहां बस खड़ा कर दिया और वो वकील लिख रहा था.’ वे आगे बताते हैं, ‘मजिस्ट्रेट सामने ही बैठा था और वकील अपने से ही लिखवा रहे थे कि मैं वहां था ही नहीं, न मैंने कुछ देखा, न उनने कुछ कहा न मैंने कुछ सुना…मतलब कि मुकर जाने वाली गवाही.’