वर्तमान में किन्नर समाज की क्या स्थिति है?
किन्नर समाज की स्थिति में पहले की अपेक्षा थोड़ा सुधार हुआ है. किन्नर समाज की अब तक की यात्रा काफी संघर्षपूर्ण रही है. पहले तो सरकारों ने उनके अस्तित्व को ही नकार दिया था. अब जाकर उन्हें देश का नागरिक मानते हुए वोट डालने का अधिकार दिया गया है. पिछले कुछ सालों में इस समाज की स्थिति में काफी सकारात्मक परिवर्तन हुआ है, लेकिन अब भी दिल्ली बहुत दूर है.
आज किन्नर समाज किन चुनौतियों से जूझ रहा है?
देखिए, सबसे बड़ी समस्या ये है कि लोग किन्नरों को इंसान के तौर पर स्वीकार नहीं करते हैं. शासन से लेकर प्रशासन तक इस बात को आज तक स्वीकार नहीं कर पा रहा है कि किन्नर इसी समाज के अंग हैं. समाज को सबसे पहले किन्नरों के अस्तित्व को स्वीकार करना पड़ेगा. उन्हें ये समझना पड़ेगा कि किन्नरों की उत्पत्ति भी पुरुष-स्त्री के योग से हुई है, वो कहीं आकाश से नहीं टपके हैं. उसके बाद फिर उनकी स्थिति को लेकर बात होगी. सोचिए, यह अमानवीयता की पराकाष्ठा नहीं तो क्या है कि सरकार के पास पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक, विकलांग आदि हर वर्ग, जाति और धर्म के लोगों के विकास हेतु कार्यक्रम हैं, लेकिन भारतीय समाज में हाशिये पर रहने वाले वर्ग के लिए न तो कोई योजना है और न ही ऐसा कुछ करने की उनके मन में कोई इच्छा. किसी को किन्नरों से मतलब नहीं है. वो कैसे जीते हैं और कैसे अपना गुजारा करते हैं. इस देश में चोर-लुटेरों को लोन मिल जाएगा लेकिन किन्नर को नहीं मिलता. भले ही वह किन्नर लोन तय समय पर जमा करने की क्षमता रखता हो, लेकिन बैंक अधिकारी उन्हें भगा देते हैं. इसे क्या कहेंगे आप. सर्वप्रथम मानसिकता में बदलाव होना जरूरी है.
आप राजनीति में कैसे और क्यों आईं?
देखिए, बिना राजनीतिक हस्तक्षेप के स्थिति में बदलाव होना संभव नहीं है. मैंने अपने समाज को करीब से देखा है. अपने वर्ग की पीड़ा ने मुझे राजनीति में कूदने पर मजबूर किया. इसके अलावा लोगों का धीरे-धीरे राजनेताओं पर से विश्वास उठता जा रहा है. मैंने यह महसूस किया कि अगर मैं चुनाव में खड़ी हुई तो लोगों का समर्थन मुझे मिलेगा. मेरा अनुमान सच हुआ और लोगों ने मुझे विधायक बना दिया. लोग आज के नेताओं से त्रस्त हो चुके हैं. पूरी राजनीति परिवारवाद और स्वार्थ केंद्रित हो गई है. ऐसे में जब कोई किन्नर सामने आता है, जिसके बारे में लोगों को अच्छी तरह पता है कि न तो उसका कोई परिवार है और न ही कोई और स्वार्थ इसीलिए उसके भ्रष्ट होने की संभावना न्यूनतम है.
विधायकी का अनुभव कैसा रहा?
ठीक.
मतलब क्या कुछ खास अच्छा नहीं रहा?
कई चीजें हैं. सबसे पहली बात तो ये कि मुझे जनता का अपार स्नेह मिला. लेकिन पार्टियों से मेरी नाराजगी है. उन्होंने कभी सहयोग नहीं किया. करेंगे भी कैसे कांग्रेस का काम किन्नरों का इस्तेमाल करना है और भाजपा का उनका अपमान करना.
साथी विधायकों का व्यवहार कैसा रहा?
एक किन्नर की जीत को पचा पाने की मर्दानगी बहुत कम लोगों में होती है. बड़ी संख्या में सदन और उसके बाहर ऐसे लोग थे जो एक अलग भावना से मुझे देखते थे. साथी विधायकों का जो सर्मथन मुझे मिलना चहिए था वो मुझे नहीं मिला. वो इस बात को समझ नहीं पाए कि जनता ने जिस तरह उन्हें सदन में भेजा है वैसे ही मुझे भी चुनकर वहां पहुंचाया है और शासन करने की क्षमता का लिंग से क्या संबंध है. अगर हमारा दिमाग तुमसे बेहतर सोच सकता है तो फिर हम क्यों राजनीति न करें? कुछ लोग मेरे विधायक बनने से कितना नाराज थे, इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि उन्होंने मुझ पर दो बार जानलेवा हमला तक कराया.
मेरी बात अभी आपको भले ही अतिश्योक्ति लगे लेकिन देखिएगा अगर नेताओं ने अपना चाल चलन ऐसा ही रखा तो एक दिन इस देश में किन्नर राज करेगा
आज किन्नरों के बीच से एक ऐसा समुदाय उभर रहा है जो पारंपरिक काम छोड़कर मुख्यधारा के काम कर रहा है. इस बदलाव को किस रूप में देखती हैं?
आज किन्नर समाज अपनी पहचान को दोबारा परिभाषित करने की कोशिश कर रहा है. वो अपनी पुरानी छवि से बाहर आना चाहता है. कुछ करना चाहता है. मुख्यधारा में शामिल होना चाहता है. यह एक सकारात्मक परिवर्तन है. हालांकि यह धीरे-धीरे ही होगा लेकिन एक सुखद और ऐतिहासिक शुरुआत हो चुकी है. सबसे बड़ी बात इसमें ये है कि समाज भी धीमी गति से ही सही लेकिन इस बदलाव में किन्नरों का सहयोग कर रहा है.
आप देश की पहली किन्नर विधायक रही हैं. कैसा लगता है?
अच्छा लगता है कि मैंने बदलाव की दिशा में जो कदम रखा उस तरफ बड़ी संख्या में किन्नर जा रहे हैं. मध्य प्रदेश तो किन्नर सशक्तिकरण के गढ़ के रूप में उभर रहा है.
किन्नरों को समाज की मुख्यधारा में शामिल करने और उनकी जिंदगी बेहतर बनाने के लिए सरकार को क्या करना चाहिए?
देखिए, सरकार से मुझे कोई बड़ी उम्मीद नहीं है. सरकार ने आज तक किया क्या है. जब मैं विधायक थी उस दौरान केंद्र सरकार को हमने एक ज्ञापन दिया था, जिसमें हमने समाज से जुड़ी हुई विभिन्न मांगों को तत्कालीन सरकार के सामने रखा था लेकिन आज तक उन लोगों का जवाब नहीं आया. सरकार किन्नर समाज को लेकर जरा भी संवेदनशील नहीं है. सरकार के पास क्या पैसे की कमी है. किन्नर समाज को छोड़िए आम जनता इन सरकारों से नाराज बैठी है. चुनाव में जनता के सामने गिड़गिड़ा कर वोट मांगते हैं और जब जनता वोट देकर जिता देती है तो शेर बन जाते हैं. हम लोगों पर ताना कसते हुए कहते हैं कि अब किन्नर शासन चलाएंगे. हम उन से पूछते हैं कि तुम कौन-सा शासन चला रहे हो. लोगों को मूर्ख बनाने के सिवा और क्या कर रहे हैं ये आजकल के नेता. मेरी बात अभी आपको भले ही अतिश्योक्ति लगे लेकिन देखिएगा अगर नेताओं ने अपना चाल चलन ऐसा ही रखा तो एक दिन इस देश में किन्नर राज करेगा.