यूं तो गलतफहमियों के अंतहीन सिलसिले का नाम ही जिंदगी है, लेकिन कुछ गलतफहमियां आपकी जिंदगी पर भारी पड़ सकती हैं. ये गलतफहमियां स्वास्थ्य तथा बीमारियों को लेकर हैं. ऐसा भी नहीं है कि ये गंवार, जाहिल और अनपढ़ व्यक्तियों की गलतफहमियां हैं. नहीं, हम यहां जिन भ्रमों की बात करेंगे वे ढेरों पढ़े-लिखे लोगों में भी उतनी ही शिद्दत से व्याप्त हैं. एक बार को अनपढ़ तो शायद हमारे समझाने से समझ जाएं परंतु पढ़े-लिखे तथाकथित समझदारों को सही रास्ता दिखाना नामुमकिन है. ज्ञान की भी अंधविश्वासनुमा सीमाएं होती हैं. आज हम कुछ बेहद प्रचलित गलतफहमियों को दूर करने की नादान कोशिश करके देखते हैं. गलतफहमियां ये हैं :
1. कि बाइपास सर्जरी का मतलब अमृत छकने जैसा है : आजकल कई दिल के रोगियों की बाइपास सर्जरी हो जाती है. यह काफी सामान्य-सी घटना हो गई है आजकल. छाती खोलकर दिखा देते हैं कि हमारी भी हुई है. उसी छाती को ठोककर यह भी कह डालते हैं कि अब हमें हार्ट अटैक का कोई डर नहीं बचा क्योंकि हमने तो यह (बाइपास सर्जरी) कराके दिल में एकदम नई नलियां डलवा ली हैं. भैय्या, ऐसी गलतफहमी न पालें. डॉक्टर बताए या शायद न बताए, यह बात मेडिकल विज्ञान में भी सर्वसहमति से स्वीकृत है कि कुछ बेहद जटिल किस्म की स्थितियों के सिवाय (जैसे बांयी मुख्य नली का बंद होना) बाइपास सर्जरी से आपकी उम्र नहीं बढ़ती. यह केवल एक राहत देनेवाली विधि
मात्र है. बस. जो ‘बाइपास ग्राफ्ट’ लगाए जाते हैं, वे तुरंत से लगाकर, कुछ माह या कुछ साल बाद ही बेकार हो सकते हैं.
इन बाइपास ग्राफ्टों की एक छोटी-सी उम्र होती है जिसे बढ़ाने की जिम्मेदारी मूलत: मरीज की है. यदि वह बाइपास के बाद भी डॉक्टर की बताई दवाएं लेगा, परहेज करेगा, बताए गए व्यायाम आदि करेगा तो ग्राफ्ट लंबे चलेंगे. नहीं करेगा तो ये नलियां कभी भी बंद हो सकती हैं. दोबारा, तिबारा हार्ट अटैक भी हो सकते हैं. तब यह न मान लें कि हमारा तो ऑपरेशन ही डॉक्टर ने गड़बड़ कर दिया था वरना हमारे चाचा जी का तो ऐसा बढ़िया हुआ था कि पंद्रह साल से आज तक बढ़िया चल रहे हैं. कभी चाचा जी से पूछिए तो सही बात पता चलेगी. आप सर्जरी के बाद से दवाएं लेते नहीं, तंबाकू लेना आपने बंद नहीं किया, बिस्तर पर लौंदे की तरह पड़े रहते हैं- और सोचते हैं कि सारी जिम्मेदारी बाइपास सर्जरी ही उठा लेगी- तो यह गलत सोचते हैं. यह कोई ‘फिक्सडिपोजिट स्कीम’ नहीं है कि एक बार बड़ी रकम जमा करके जीवन-भर उसका ब्याज खाएंगे. स्वास्थ्य तो रोज कमाना पड़ता है.
बाइपास ग्राफ्ट बंद न होने पाएं इसके लिए दवाएं लें, परहेज करें, व्यायाम करें. याद रखें कि बाइपास सर्जरी एक अस्थायी हल मात्र है.
2. कि ब्लड प्रेशर की दवाएं चालू या बंद की जा सकती हैं : उच्च रक्तचाप, जिसे हाई बीपी भी कहते हंै, उससे ज्यादा भ्रम शायद ही किसी अन्य बीमारी के बारे में पाए जाते हों! हर आदमी को गलतफहमी है कि उसे इस बीमारी का सब पता है. कुछ गलतफहमियां जो आम हैं, वे इस प्रकार हैं:
ब्लड प्रेशर बढ़ा था, फिर दवाइयां भी लीं तो बीपी ठीक आ गया, फिर हमने दवाइयां बंद कर दीं. क्यों? क्योंकि जितनी बार भी चेक कराया, बीपी ठीक ही आता रहा. अब बीपी ठीक है, तो दवाएं क्यों लेना?
‘यदि मरीज बाइपास के बाद डॉक्टर की बताई दवाएं, परहेज और बताए गए व्यायाम आदि नहीं करेगा तो नलियां कभी भी बंद हो सकती हैं’
यह सोच ही गलत है. बीपी तो एक बार ज्यादा हुआ, तो दवाएं तो जीवन-भर नियमित खानी ही पड़ेंगी. जब तक गोलियां खाएंगे तभी तक बीपी कंट्रोल में रहेगा. दस साल दवाएं खाने के बाद यदि दवाएं दो दिन के लिए भी बंद करेंगे, तो बीपी वापस बढ़ जाएगा. बीपी इस बात का लिहाज नहीं करता कि आप पहले दस साल दवाएं खा चुके हैं तो आपको कोई कंसेशन दे दे!
ऐसे मरीज भी हैं जो दावा करते हैं कि उनको तो पता चल जाता है कि आज उनका बीपी बढ़ा है और अभी बीपी ठीक है. कैसे? ‘बस, फील हो जाता है साहब.’ ये लोग फीलिंग के हिसाब से दवाएं लेते हैं. जब लगता है कि आज ज्यादा बीपी होना चाहिए, तो दवाएं ले लेते हैं. बस. न तो रिकॉर्ड कराने की झंझट, न रोज दवाएं लेने की. इनको मेरी सलाह है कि खुद को झांसा न दें. जान लें कि फील करने का ऐसा कोई भी तरीका नहीं है जिससे आपको पता लग सके कि आपका बीपी कैसा है? इसे रिकॉर्ड ही करवाना पड़ता है. यदि इस तरह से बीपी की दवाएं लेंगे तो किसी दिन लकवा हो जाएगा या धीरे-धीरे गुर्दे खराब हो जाएंगे.
3. कि हम तो योगा करते हैं सो व्यायाम करना आवश्यक नहीं : व्यायाम को लेकर बड़े भ्रम हैं. कुछ लोग तो कोई व्यायाम मात्र इसीलिए नहीं करते क्योंकि तय ही नहीं कर पाते कि सर, हम कौन-सा व्यायाम करें? कुछ लोग इसलिए घूमने, जॉगिंग करते या अन्य व्यायाम नहीं करते क्योंकि वे अनुलोम-विलोम आदि योगा करते हैं. कुछ लोग सुबह टाइम न मिलने के कारण, और फिर किसी भी टाइम व्यायाम नहीं करते क्योंकि घूमना सुबह का ही कहाता है, तो कुछ लोग इसीलिए व्यायाम नहीं करते क्योंकि ‘दिन भर नौकरी में ही इतनी दौड़-भाग हो जाती है सर कि हमारा तो वहीं व्यायाम हो जाता है.’
योगा बेहद लाभप्रद है पर वॉकिंग, जॉगिंग, तैरने, साइकिलिंग का पर्याय नहीं बन सकता. ऐसे ही टुकड़ों-टुकड़ों में दिन-भर भागते दौड़ते रहें तो यह व्यायाम नहीं होता. दिन-भर सक्रिय रहें, यह अच्छा है. काम की जगह पर चलना पड़ता है, चलें. लिफ्ट की जगह सीढ़ियां चढ़े. यहां से वहां पैदल जाएं. पास की मार्केट या दोस्त के पास पैदल ही जाएं. पर इन सारी गतिविधियों को व्यायाम न मान लें. व्यायाम इन सबसे अलग करना होगा. व्यायाम के लिए आधा घंटा निकालें. दिन-भर शारीरिक रूप से सक्रिय रहें. योगा भी करें. बस, इतना याद रखें कि तीनों बातें अलग हैं. इनमें से कोई एक कर रहे हैं, तो और चीजें छोड़ी जा सकती हैं, ऐसा कतई नहीं है.
मेरी गलतफहमी यह थी कि गलतफहमियों की बात एक कॉलम में निबट जाएगी. अब लगता है कि यह फसाना लंबा चलेगा. तो अगली बार पीलिया, टाइफाइड, मधुमेह आदि के बारे में व्याप्त गलतफहमियों की बात की जाएगी.