ख़ालिद सलीम :-
हमास के 7 अक्टूबर की सुबह इजरायल पर हमले की गूंज पूरी दुनिया में सुनाई दे रही है। हमास ने तब एक के बाद एक 5-7 हजार मिसाइल दागकर हमला किया था जिससे इजरायल का सुरक्षा कवच भी ध्वस्त हो कर रह गया। क्षेत्र से वाकिफ दुनिया के जाने माने पत्रकार और टॉप खुफिया एजेंसियां इस बात से हैरान है कि हमास ने कैसे इतनी बड़ी तैयारी के साथ यह हमला किया क्योंकि हमास का जो ठिकाना है वह गजा की 45 किलोमीटर लंबी और 14 किलोमीटर चौड़ी पट्टी है जिसको तीन तरफ से इजराइल ने घेर रखा है, जबकि चौथी दिशा में समंदर है जहां से फिलिस्तीन के लोगों का आना जाना बिल्कुल बंद है। वहां भी इजरायल की कड़ी सुरक्षा रहती है। इन सबके बावजूद हमास ने इतना जबरदस्त हमला कैसे कर दिया और उसके पास हमले के लिए ऐसी आधुनिक तकनालोजी कहां से आई, इससे सबको हैरानी है।
क्या हमास ने इस हमले की तैयारी इसी गाजा पट्टी में की जो काफी घनी आबादी वाली जगह है ? बताया जाता है कि हमास ने गाजा की ज़मीन में सुरंगों का जाल बिछा रखा है जिसमें कई बारूदी सुरंगे भी हैं। हमास यहीं हमले की तैयारी करता है। कुछ लोगों का मानना है कि ऐसा हमला बिना ईरान की हुकूमत की मदद के नहीं हो सकता था। हालांकि, ईरान ने लगातार इस बात को इंकार किया है कि हमले में उसका कोई हाथ है। अलबत्ता ईरान ने हमास के हमले का समर्थन किया है। सारी दुनिया जानती है कि ईरान कुल रूप से इजराइल और फिलीस्तीन के झगड़े में फिलिस्तीन के साथ खड़ा है। वह हमास और फिलिस्तीन के दूसरे गुटों की मदद करता है जबकि अब खाड़ी के काफी देश खुलकर फिलिस्तीन के साथ खड़े नजर आते हैं, हालांकि यूएई और बहरीन ने हमास के हमले की निंदा की है। यह कहा जा सकता है कि हमास के हमले ने खाड़ी देशों को भी बांट दिया है।
काफी अरब देश एक आजाद फिलिस्तीन राज्य की हिमायत जरूर करते हैं, लेकिन हाल के वर्षों में उन्हें इजरायल के साथ संबंध सुधारते हुए देखा गया है। दुनिया के जाने माने पत्रकारों का मानना है कि हमास के हमले के पीछे दरअसल सऊदी अरब और इजरायल की बढ़ती नजदीकियां है। इन दोनों मुल्कों के बीच एक खुफिया समझौता होने वाला था। काफी चर्चा थी कि सऊदी अरब और इजरायल फिलिस्तीन मसले के बहुत करीब पहुंच चुके हैं। अब माना जा रहा है कि हमास को जब इसकी भनक लगी तो उसने इन्हीं नजदीकियों को खत्म करने के लिए यह हमला किया।
सब जानते हैं कि पिछले कुछ सालों से इजरायल और सऊदी अरब के शहजादा मोहम्मद बिन सलमान के मध्य एक ऐसे फॉर्मूले पर बातचीत जारी थी जिससे फिलिस्तीन के मसले में उम्मीद की किरण देखी जा रही थी। हालांकि सऊदी अरब के बादशाहों ने मरहूम शाह फैसल के बाद फिलिस्तीन की अपनी नीति में नीतिगत बदलाव कर दिया था और माना जाता है कि सऊदी अरब किंग इस मसले पर अमेरिकी फार्मूले के तहत काम कर रहे थे। मोहम्मद बिन सलमान ऐसे ही किसी फार्मूले पर काम कर रहे थे जिससे इजरायल को फिलिस्तीन के मुकाबले ज्यादा फायदा होने की संभावना थी, लेकिन इसकी भनक ईरान और हमास को लग गई थी। इसीलिए सऊदी अरब और इजरायल के दरमियान इस खुफिया फार्मूले (समझौते) को बर्बाद करने के लिए यह हमला किया गया।
बात कुछ भी हो, लेकिन हमास के हमले ने दुनिया को एक बार फिर दो गुटों में बांट दिया है और यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि जैसे अमेरिका पर 9/11 के हमले के बाद दुनिया दो गुटों में बंट गई थी और उसके सियासी हालात बदल गए थे उसी तरह 7 अक्टूबर के हमास के इजरायल पर हमले के बाद भी दुनिया के सियासी हालात बहुत ज्यादा बदल जाएंगे। दुनिया फिर दो गुटों में बंट गई है। अमेरिका यूरोपीय यूनियन और एशिया के कई मुल्क इजरायल के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हमास के हमले की न सिर्फ कड़ी निंदा की बल्कि देश की पुरानी नीति के विपरीत जाकर खुले रूप से खुद को इजरायल के साथ खड़ा बताया। यदि वे गाज़ा पर इजरायली बमबारी, जिसमें सैकड़ो मासूम बच्चे और बेगुनाह औरतें- मर्द जान गँवा चुके हैं, की भी निंदा करते तो यह बेहतर तरीका होता।
भारत के पीएम मोदी ने एक बार भी फिलिस्तीन की स्वतंत्रता के पक्ष में बयान नहीं दिया है। जबकि, वैश्विक स्तर पर वे ऐसी स्थिति में थे कि इजरायल-फिलीस्तीन मसले के हल में बड़ा रोल अदा कर सकते थे। मोदी हाल के वर्षों में एक वैश्विक नेता के रूप में स्थापित हुए हैं और इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से उनकी गहरी दोस्ती भी है। इस प्रभाव का इस्तेमाल वह मसले को हल करने में कर सकते थे। लेकिन उन्होंने फिलिस्तीन को लेकर एक भी शब्द नहीं बोला, जबकि वह जानते हैं कि 70 साल में हिंदुस्तान फिलिस्तीन के साथ खड़ा रहा है।
मोदी की पार्टी भाजपा से ताल्लुक रखने वाले दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी फिलीस्तीन की हिमायत में जबरदस्त तकरीर करते हुए इजरायल के फिलीस्तीनी ज़मीन पर कब्जे को छोड़ने की हिमयता की थी। उनका कहना था कि इजरायल उस ज़मीन को छोड़ दे और फिलीस्तीन को एक स्वतंत्र राष्ट्र बनाने का रास्ता साफ़ करे। लेकिन पीएम मोदी ने इसके विपरीत खुलकर इजरायल की हिमायत का ऐलान कर दिया जो देश की पिछली तमाम हुकूमतों की नीति के विपरीत है। उन्होंने हमास के हमलों की निंदा तो की लेकिन गजा के उन मजलूम फिलिस्तीनियों पर बरस रहे बमों पर एक भी शब्द नहीं कहा। करीब 70 साल से इजरायल ने फिलिस्तीनियों पर जुल्म किया है। यहां तक कि उनके मासूम बच्चों और औरतों को भी नहीं बख्शा गया है।
ज़मीन की जंग : यह अफसोस की बात है यहूदियों और मुसलमान के दरमियान झगड़े की असल वजह पवित्र स्थान है जिनको मुसलमान अपनी आस्था के हिसाब से पवित्र मानते हैं और वह मस्जिद अल-अक्सा है। मुसलामानों के पैगंबर मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आसमान में जब अल्लाह से मुलाकात करने के लिए गए थे तो इसी मस्जिद अक्सा से गए थे। इसी कारण यह मस्जिद और इसके आसपास के इलाके मुसलमानों के लिए बहुत पवित्र हैं। इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 1948 में इजरायल बनने के बाद लाखों फिलिस्तीनियों ने अपनी जान कुर्बान कर दी है।
दुनिया भर के मुसलमानों का जज्बाती ताल्लुक भी इस सरजमीं से इसी वजह से है कि उनके आखिरी पैगंबर मस्जिद-ए-अक्सा से आसमान पर तशरीफ ले गए थे। इसी बुनियाद पर यहूदियों और मुसलमान के दरमियान यह जगह झगड़े की वजह बनी रही है। यहूदियों, ईसाइयों और मुसलमानों के लिए भी यह जगह पवित्र मानी जाती है। यहूदी इसलिए इस जगह को अपने पैगंबर सुलेमान और मूसा अली सलाम की वजह से पवित्र मानते हैं। उनका ख्याल है कि यह जमीन हमारी है और इस पर सिर्फ हमारा हक है। अपने दावे को सच साबित करने के लिए इजरायल ने तल अबीब की जगह यरूशलेम को राजधानी बना लिया है। हमेशा की तरह अमेरिका और पश्चिमी देशों ने इजरायल की राजधानी यरूशलेम को मान्यता दे दी।
अमेरिका की नीति : अमेरिका और पश्चिमी देशों की इन्हीं नीतियों की वजह से फिलिस्तीन और दुनिया भर के मुसलमान यह समझते हैं कि उनको मारा भी जा रहा है उनकी जमीनों पर कब्जा भी किया जा रहा है उनको दबाया भी जा रहा है। साथ ही नाजायज तौर पर इजरायल की हिमायत की जा रही है। पूरी दुनिया में आज इजरायल के खिलाफ मुसलमान का आक्रोश इसी वजह से नजर आता है कि अमेरिका और पश्चिमी देश पूरी तरह से इजरायल के पीछे खड़े हुए हैं। दरअसल दुनिया की सियासत पर नजर रखने वाले यह समझते हैं कि हर मुल्क अपने फायदे, अपने व्यापार और अपने लोगों के हिट देखकर विरोध या समर्थन करता है, न कि न्याय की दृष्टि से। इससे हक और इंसाफ की पहचान खत्म हो रही है। अब दुनिया में मजलूमों के हिमायती नजर नहीं आते। जब नेल्सन मंडेला की हिमायत भारत में होती थी तो पूरी दुनिया के सच्चे और अच्छे शासक मजलूमों की मदद किया करते थे। उनकी आवाज से आवाज मिलाते थे। पूरी दुनिया पर उनकी आवाज का असर होता था।
अब हिंदुस्तान में महात्मा गांधी की आवाज नहीं रही, जो मजलूमों की आवाज बनकर और डटकर खड़े हो जाया करते थे। अफसोस की बात यह है कि दुनिया ताकत, पैसे और टेक्नोलॉजी के सहारे कमजोरों को दबा रही है। चाहे वह मुसलमान हो या किसी भी धर्म से हो। यदि कोई देश आर्थिक रूप से कमजोर है और उसके पास टेक्नोलॉजी नहीं है, तो उसको हर जगह दबाया जा रहा है। फिलिस्तीन के मसले को हल करना इस वक्त सबसे बड़ी ज़रुरत है। यदि यह नहीं किया गया तो इसके परिणाम बहुत खराब होंगे। यह जंग ऐसे ही चलती रही और इजरायल के हमले गाजा पर इसी तरह जारी रहे और वहां के बेक़सूर बच्चों और महिलाओं को ऐसे ही मारा जाता रहा तो यह जंग बड़े दायरे में फ़ैल सकती है।
हालात को समझने बड़े पत्रकार भी आशंका जाहिर कर चुके हैं कि इजरायल-फिलिस्तीन की जंग की आग पूरी दुनिया में फैल सकती है। ऐसा हुआ तो दुनिया पर टेस्टर विश्व युद्ध के काले बादल मंडराने लगेंगे। वर्तमान जंग का किन मुल्कों को फायदा है, यह जगजाहिर है। हथियार बनाने वाले देश ऐसे ही मौकों की तलाश में रहते हैं। वक्त का तकाज़ा है कि इस जंग को खत्म करने के लिए इजरायल, अमेरिका और पश्चिमी देशों के अलावा मुस्लिम देश, खास तौर पर सऊदी अरब और ईरान सामने आएं। साथ ही मजलूम फिलिस्तीनियों को उनका हक दिलकाया जाए। उन्हें एक स्वतंत्र राष्ट्र में रहने का हक दिया जाए। अरब मुल्कों को चाहिए कि वह स्वतंत्र फिलिस्तीन बनने के बाद इजरायल को तस्लीम कर लें ताकि यह झगड़ा हमेशा के लिए खत्म हो सके। ‘जियो और जीने दो’ की नीति पर चलकर ही दुनिया में शांति स्थापित की जा सकती है।
बॉक्स –भारत के मुसलमान : वर्तमान हालात से संकेत मिलता है कि इजरायल-हमास जंग के मसले पर हिंदुस्तान की अंदरूनी सियासत भी हिंदू और मुसलमान के बीच बांट दी गयी है। भारत में कुछ लोग हैं जो मुसलमान विरोध में इतना आगे बढ़ जाते हैं कि उन्हें सच्चाई और अच्छाई बिल्कुल नजर नहीं आती। इसीलिए जब हमास ने इजरायल पर हमला किया तो इन तत्वों ने हिंदुस्तान में खुलकर मुसलामानों की मुखालफत शुरू कर दी। इस बात को जाने बगैर की इजरायल 1948 से अब तक फिलिस्तीन की जमीन पर कब्जा करता आ रहा है और जब भी फिलिस्तीन और इजरायल के बीच जंग होती है तो इजरायल फिलिस्तीनियों की जमीन पर कब्जा कर लेता है। इजरायल को 1948 में फिलिस्तीन की जो जमीन दी गई थी, आज उसने उससे कहीं आगे जाकर बड़ी ज़मीन पर कब्ज़ा कर लिया है। फिलिस्तीन सिकुड़ते-सिकुड़ते एक छोटी सी पट्टी में सिमट रहा है। उसे चारों तरफ से इसराइल ने घेर रखा है।
दुनिया के इंसाफ पसंद लोग फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र राष्ट्र देखने के इच्छुक हैं लेकिन इजरायल ऐसा नहीं होने देना चाहता। हालांकि खुद इजरायल के भीतर बहुत से लोग चाहते हैं कि दोनों के बीच 70 साल से चली आ रही दुश्मनी खत्म हो जाए और एक आजाद फिलिस्तीन स्थापित हो जाए। लेकिन इजरायल के कट्टरपंथी जिओनवादी (जियोनिस्ट) यहूदी फिलिस्तीनियों को कोई अधिकार देने के हक में नहीं। इजरायल पर शासन करने वाले भी फिलिस्तीनियों को उनका हक देने के लिए तैयार नहीं हैं। अफसोस की बात है कि हिंदुस्तान जैसा धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र, जो पूरी दुनिया में मजलूमों की आवाज रहा है और जिसने दक्षिण अफ्रीका से लेकर ऐसे ही दूसरे मुल्कों में तानाशाही और नस्लपरस्ती का विरोध किया, वह हिंदुस्तान अब दबे कुचले लोगों के साथ खड़ा नहीं दिखता।
भारत की 70 साल से नीति भी यही रही कि देश फलस्तीनियों के साथ खड़ा नजर आता था। लेकिन आज पीएम मोदी, उनकी पार्टी भाजपा और हिन्दूवादी संगठन आरएसएस खुलकर इजरायल का साथ दे रहे हैं जबकि फिलिस्तीनियों के अधिकार और उन पर जुल्म को नजरअंदाज कर दिया गया है। हिंदुस्तान के मुसलमान हमेशा से फिलिस्तीन के मजलूम लोगों की हिमायत में खड़े रहे हैं क्योंकि 1948 में जब इजरायल बनाया गया था तो वह फिलिस्तीन की धरती पर बनाया गया था। सच यह है कि उसके बाद भी इजरायल ने फिलिस्तीन की ज़मीन पर कब्जा जारी रखा और उसे धकेलते हुए छोटे से इलाके में समेट दिया। पूरी दुनिया जानती है कि इजरायल फिलिस्तीन की ज़मीन पर काबिज है और उसपर जुल्म भी करता है।
लिहाज़ा, न सिर्फ मुसलमान, बल्कि दुनिया भर के इंसाफ पसंद लोग फिलिस्तीन की हिमायत करते हैं। लेकिन हिंदुस्तान के कट्टरपंथी और यहाँ तक कि देश का राष्ट्रीय मीडिया भी पूरी तरह इजरायल और हमास युद्ध में ऐसी भूमिका निभा रहे हैं, जिससे यह संकेत मिलता है मानों वे हिंदुस्तान के मुसलमान को चिढ़ा रहे हैं। देश का मुसलमान यही महसूस करता है। हक और इंसाफ के साथ खड़े होने की भारत की नीति और छवि रही है। हालांकि, बदकिस्मती से इस मसले पर भी हिंदू और मुसलमान को भिड़ाने की कुटिल चाल चली गयी है।