
लोकसभा की 543 में से 282 सीटें जीतकर भारतीय जनता पार्टी पहली बार इतिहास में अपने बूते सरकार बनाने जा रही है. इसमें उसके प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार रहे नरेंद्र मोदी का सबसे बड़ा हाथ है. मोदी के काम करने का अपना ही तरीका है. उनके द्वारा अब तक चलाई गई गुजरात सरकार के काम करने का तरीका भी अलग ही था. खुद की उदार छवि और मजबूती से स्थापित करने की उनकी कुछ मजबूरी भी है. और मुख्यमंत्री बनने के बाद से उनके संघ से कभी उतने सहज संबंध नहीं रहे जितने शिवराज सिंह सरीखे उनकी जैसी ही पृष्ठभूमि वाले अन्य भाजपाई शासकों के रहे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि मोदी के नेतृत्व में सरकार चलाने वाली भाजपा का स्वरूप भविष्य में कैसा हो सकता है. क्या उनका अब तक का राजनीतिक आचरण आने वाले समय में पार्टी के किसी और दिशा में जाने के संकेत भी देता है? क्या मोदी वह व्यक्ति होंगे जिनकी वजह से आने वाले समय में समाज के सभी वर्ग भाजपा को किसी भी अन्य पार्टी की तरह स्वीकार्य मानने लगेंगे? क्या पार्टी मोदी के नेतृत्व में ही पूर्व की कांग्रेस की तरह पूरे देश में विस्तार वाली पार्टी बन जाएगी? और क्या संघ के शिंकजे से बाहर निकलकर भाजपा सही मायनों में एक स्वतंत्र राष्ट्रीय पार्टी के रूप में स्थापित हो जाएगी. धुर दक्षिणपंथी नहीं बल्कि सिर्फ दक्षिणपंथी रुझान वाली.
एक वर्ग ऐसा है जो मानता है कि भाजपा को बंदर की तरह नचाने के संघ के दिन अब खत्म हो चुके हैं. ऐसा सोचने के पीछे आधार है. और वह है नरेंद्र मोदी और संघ के बीच का पिछले एक दशक का संबंध. पिछले 10 सालों में मोदी और संघ के संबंध अर्श से फर्श पर पहुंच गए. मोदी ने पिछले 10 सालों में गुजरात में संघ और उससे जुड़े संगठन अर्थात पूरे संघ परिवार को नाथने में कोई कसर बाकी नहीं रखी.
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