हिंदी साहित्य में रुचि रखने वाला शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ से न परिचित हो. उनकी आत्मकथा ‘अपनी खबर’ को भला कौन भूल सकता है! वह एक अनूठी आत्मकथा है जहां ‘उग्र’ पूरी अलमस्त फकीरी के साथ समाज की तहों को खोलते हैं. इस तरह वे उनमें छुपी दुर्बलताओं, दोषों को निहायत अक्खड़पन से उजागर करते हैं. ‘अपनी खबर’ अपनी तरह की पहली रचना है जहां लेखक खुद की भी हजार बुराइयों को साहस के साथ स्वीकारता और प्रायश्चित करता नजर आता है. ऐसा नहीं है कि ‘उग्र’ ने ‘अपनी खबर’ के अलावा कुछ नहीं लिखा. उन्होंने तो अनेक महत्वपूर्ण रचनाएं कीं लेकिन विडंबना ही है कि उनकी पहचान उनकी आत्मकथा तक सिमट कर रह गई है.
इस बीच साहित्यकार राजशेखर व्यास के संपादन में ‘उग्र संचयन’ शीर्षक से ज्ञानपीठ प्रकाशन ने उनकी तमाम रचनाओं को एकसाथ पेश किया है. इस संग्रह में पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ का संतुलित व्यक्तित्व देखने को मिलता है. दस खंडों में विभक्त इस पुस्तक में ‘उग्र’ की सम्पूर्ण रचनाधर्मिता का अनूठा संगम नजर आता है. उग्र कथा, उग्र निबंध, उग्र रिपोर्ताज, उग्र लघुकथा, उग्र भूमिका, पत्र, अपनी नजर में उग्र, उग्र विश्लेषण, उग्र साहित्य के सम्पूर्ण पक्षों को अपने गंभीर संपादन में राजशेखर व्यास ने एक जगह लाने का अद्भुत कार्य किया है जो ‘उग्र’ को समग्रता में जान पाने के लिए सहायक है. चार सौ पृष्ठों की यह वृहद् पुस्तक एक साथ हमें ‘उग्र’ के विशाल रचना-संसार को समझ पाने में सहायता करती है. इस पुस्तक में ‘उग्र’ को लिखे तमाम प्रसिद्ध व्यक्तियों के पत्र हैं जिनमें समूचा जीवन दर्शन और अपने वक्त की झांकी नजर आती है.
‘उग्र’ की रचनाधर्मिता, उनके सरोकार उन्हें हिंदी-संसार में विशिष्ट बनाते हैं. तथाकथित सभ्य समाज के भीतर व्याप्त स्याह अंधेरों का ‘उग्र’ ने पर्दाफाश किया, उन्हें बेनकाब किया और समाज को सचेत किया! इसके लिए उन्हें बहुत बड़ी कीमत भी चुकानी पड़ी अपने जीवनकाल में ही, पर वे निरंतर अडिग साधनारत रहे, उन्होंने किसी की परवाह नहीं की! ‘उग्र संचयन’ को पढ़ते हुए चकित होना पड़ता है ऐसे विरल फक्कड़ कबीरी की धुन में मगन शब्दशिल्पी के जीवन के अनगिन अनछुए प्रसंगों पर. ‘उग्र’ जैसे अत्यंत महत्वपूर्ण रचनाकार के सम्पूर्ण लेखन का विस्तृत कैनवास है यह किताब. प्रत्येक साहित्य-प्रेमी पाठक के लिए संग्रहणीय!