हिंदुत्व के नए ठेकेदार

गाजियाबाद के डासना में एक प्रसिद्ध देवी मंदिर है. मंदिर के प्रवेशद्वार पर टंगे बोर्ड को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. बोर्ड पर साफ लिखा है, ‘मंदिर में मुसलमानों का प्रवेश वर्जित है.’ मंदिर के अंदर एक किशोर लगभग दस साल के बच्चे को बुरी तरह पीट रहा है. बच्चा बुरी तरह रो रहा है, खुद को छोड़ने की भीख मांग रहा है. ये देख मंदिर का पुजारी हंस रहा है. जैसे ही वह किशोर छड़ी उठाने के लिए जाता है, बच्चा भागता है. किशोर उसे पकड़ने के लिए दौड़ता है पर बच्चा मंदिर परिसर से भाग निकलता है.

पुजारी से इस मारपीट के बारे में पूछने पर पता चलता है कि वह बच्चा मुस्लिम था और मंदिर के तालाब से पानी लेने आया था. इस तालाब के पानी को पवित्र समझा जाता है और उसका इस्तेमाल औषधि के तौर पर भी किया जाता है. किशोर के साथ मंदिर के महंत स्वामी नरसिंहानंद महाराज के पास जाते वक्त पुजारी कहता है, ‘मुझे समझ में नहीं आता कि जब यहां उनका (मुस्लिमों) प्रवेश वर्जित है तो वे आते ही क्यों हैं? ये बात उनकी समझ में क्यों नहीं आती.’

नरसिंहानंद, जो स्वामीजी के नाम से प्रसिद्ध हैं, किशोर उनके पैर छूने झुकता है और स्वामीजी गर्व से उसकी पीठ को थपथपाते हुए ‘आ मेरे शेर’ कहकर शाबासी देते हैं. इस किशोर का नाम प्रमोद है और वह मूक-बधिर है. वह बचपन से इस मंदिर में आ रहा है और अब मंदिर परिसर की निगरानी का काम करता है. राष्ट्रीय स्तर के जूडो खिलाड़ी प्रमोद ने हाल ही में गोवा में आयोजित एक प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता है. उसके लिए स्वामीजी किसी भगवान से कम नहीं हैं. वही प्रमोद का सारा खर्च उठाते हैं और उन्होंने उसका दाखिला मूक-बधिर बच्चों के स्कूल में भी कराया हुआ है.

उस युवक के अंदर कट्टरपंथ की भावना इस कदर भर दी गई है कि वह किसी मुस्लिम को देखकर ही अपना आपा खो बैठता है. वास्तव में, उसका जूडो सीखना इस्लामिक जिहादियों से लड़ने का ही प्रशिक्षण था

इन सब बातों से प्रमोद का भविष्य और करिअर उम्मीदों भरा लगता है पर कट्टरपंथ की जो शिक्षा उसे व उसके जैसे हजारों और बच्चों को स्वामीजी द्वारा दी जा रही है, उसके बाद ऐसा सोचना ही बेमानी हो जाता है. प्रमोद के अंदर कट्टरपंथ की भावना इस कदर भर दी गई है कि वह किसी मुस्लिम को देखकर ही अपना आपा खो बैठता है. वास्तव में, उसका जूडो सीखना इस्लामिक जिहादियों से लड़ने का ही प्रशिक्षण था. वह सांकेतिक भाषा में कहता है, ‘अगर मैंने दोबारा उन्हें (मुस्लिमों को) यहां देखा तो बंदूक से उड़ा दूंगा.’

सेना के प्रशिक्षण सरीखी यह ट्रेनिंग सात से आठ साल के मासूमों तक को भी दी जा रही है. स्वामीजी, उनके अनुयायियों और सहयोगियों ने इस तरह की ट्रेनिंग देने के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ऐसे कई प्रशिक्षण केंद्र खोले हुए हैं, जिसे सांप्रदायिक तनाव के लिहाज से देश के सबसे संवेदनशील इलाकों में गिना जाता है. फोन पर स्वामीजी किसी से तेज आवाज में बात करते हुए कहते हैं, ‘मुसलमानों और हिंदुओं के बीच युद्ध में पश्चिमी उत्तर प्रदेश ही युद्धस्थली होगा.’

रोचक यह भी है कि स्वामीजी उर्फ दीपक त्यागी कभी समाजवादी पार्टी (सपा) के यूथ विंग के प्रमुख सदस्य रह चुके हैं, उनके कई मुस्लिम दोस्त भी हुआ करते थे. हालांकि कुछ निजी वजहों के कारण उन्होंने ‘इस्लामिक जिहाद’ से लड़ने के लिए सपा छोड़कर कट्टरपंथी हिंदू संगठनों का हाथ थाम लिया.

1995 में मॉस्को से एमटेक करके आए स्वामीजी का मानना है कि इस्लामिक स्टेट (आईएसआईएस) 2020 तक भारत पर आक्रमण करेगा और इसलिए इस्लामिक जिहाद से लड़ने के लिए हिंदुओं को प्रशिक्षित करना जरूरी है. मुसलमानों को गालियां देते हुए स्वामीजी ‘तहलका’ को बताते हैं, ‘देश में मौजूद हर एक मुसलमान उस वक्त आईएस का समर्थन करेगा इसलिए हिंदुओं का एक होना जरूरी है. हमें इन राक्षसों से अपने देश, अपनी बहन-बेटियों को बचाना है. अगर हम अब भी एक नहीं हुए तो बहुत देर हो जाएगी.’

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स्वामीजी और उन्हीं के जैसी सोच रखने वाले दूसरे लोगों ने पश्चिमी यूपी में हिंदुओं की भलाई के नाम पर ‘हिंदू स्वाभिमान संगठन’ बनाया है जिसका मकसद मुस्लिमों से लड़ना है. यह संगठन ‘सैफरन कॉरिडोर’ कहे जाने वाले पूरे पश्चिमी यूपी में गाजियाबाद से लेकर सहारनपुर तक सक्रिय है. हिंदू स्वाभिमान संगठन के सदस्य इस्लामिक जिहाद के फैलने से पहले इस संगठन की शाखाएं पूरे देश में स्थापित करने की चाहत रखते हैं.

अनिल यादव, इसके महासचिव हैं और पड़ोस के बम्हेटा गांव के रहने वाले हैं. यादव इस प्रशिक्षण के लिए संगठन में लड़कों की भर्ती करने में स्वामीजी की मदद करते हैं. यादव राज्य-स्तरीय पहलवान रहे हैं और अब अपने अखाड़े में सैकड़ों युवाओं को कुश्ती के गुर सिखाते हैं. बम्हेटा गांव कुश्ती की परंपरा के लिए जाना जाता है जिसने देश को कई अंतर्राष्ट्रीय स्तर के पहलवान दिए हैं, जैसे- जगदीश पहलवान, विजयपाल पहलवान, सत्तन पहलवान लेकिन अब यह हिंदू कट्टरपंथी पैदा करने की जगह बन गया है.

हिंदुओं की भलाई के नाम पर ‘हिंदू स्वाभिमान संगठन’ बनाया गया है जिसका मकसद मुस्लिमों से लड़ना है. यह ‘सैफरन कॉरिडोर’ कहे जाने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गाजियाबाद से लेकर सहारनपुर तक सक्रिय है

इन पहलवानों को एक योजनाबद्ध तरीके से कट्टरपंथ की शिक्षा के जरिये ‘तैयार’ करने के खतरे का एहसास तब होता है जब यादव कहते हैं कि इन पहलवानों को तैयार करने का काम ‘बेकाबू सांड’ को संभालने जैसा है. वे कहते हैं, ‘हम इन्हें कड़े अनुशासन में रखते हैं, दिन भर मेहनत करवाते हैं. अगर इन्हें सड़कों पर खुला छोड़ दिया जाए तो बड़ा हंगामा कर सकते हैं क्योंकि इनमें से हर कोई एक समय पर दस लोगों को आसानी से संभालने की कूवत रखता है.’ ऐसे हाल में सांप्रदायिक तनाव के समय ये लोग क्या कर सकते हैं, इसकी सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है.

हिंदूवादी सेना

ये हिंदू कट्टरपंथी खूंखार रणबीर सेना और सलवा जुडूम की तरह ही हजारों युवकों की एक निजी सेना बना रहे हैं. प्रशिक्षण के दौरान इन युवकों को तलवारबाजी, धनुष चलाना, मार्शल आर्ट्स और यहां तक कि पिस्तौल, राइफल व बंदूक चलाना भी सिखाया जा रहा है. जब बच्चों को हथियार चलाने के प्रशिक्षण के बारे में स्वामीजी से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि ये सब ओलंपिक की तैयारी हो रही है. वो इसे सही ठहराते हुए कहते हैं, ‘क्या हम अपने मंदिर के अंदर खेलों का प्रशिक्षण नहीं दे सकते! इस सबमें गलत क्या है?’ शारीरिक प्रशिक्षण के अलावा युवाओं को ये भी बताया जा रहा है कि संसार की सभी समस्याओं की जड़ इस्लाम है और जो भी इसके अनुयायी हैं वे सब के सब राक्षस हैं.

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सभी फोटो- विजय पांडेय

मुस्लिमों के खिलाफ भड़काई जा रही इस नफरत का अंदाजा इस बात से लगता है कि एक आठ साल के बच्चे में भी मुस्लिमों के प्रति घृणा है. गाजियाबाद के रोड़ी गांव में प्रशिक्षण ले रहा एक बच्चा कहता है कि वह मुसलमानों से लड़ेगा क्योंकि वे हमारे देश के लिए एक खतरा हैं. जब उस बच्चे से पूछा गया कि मुस्लिम कौन हैं,  तब उसने कुछ देर रुककर बड़ी मासूमियत से जवाब दिया, ‘जो मीट खाते हैं, वो मुसलमान हैं.’

हिंदू स्वाभिमान से जुड़े परमिंदर आर्य पूर्व सैन्यकर्मी हैं. वे अपने घर के अहाते में ऐसे ही एक प्रशिक्षण केंद्र का संचालन करते हैं. इस केंद्र में मेरठ और कभी-कभी देश के दूसरे हिस्सों से भी प्रशिक्षक आते हैं. यहां गांव के आठ से लेकर तीस साल तक की उम्र के लगभग 70 लोगों को प्रशिक्षित किया जा रहा है. कारगिल युद्ध का हिस्सा रहे सेवानिवृत्त परमिंदर कहते हैं, ‘मैं घर-घर जाकर बच्चों के माता-पिता से नहीं कहता कि बच्चों को प्रशिक्षण के लिए भेजो. वे खुद यहां आते हैं. मुस्लिमों को छोड़कर मेरे प्रशिक्षण केंद्र में सभी का स्वागत है.’

सितंबर 2011 में सेना से रिटायर परमिंदर ने लंबे समय तक उथल-पुथल के दौर में कश्मीर में अपनी सेवाएं दी हैं. परमिंदर कहते हैं कि वे हिंदुओं के लिए हमेशा से ही काम करते रहे हैं लेकिन कश्मीर से पंडितों को खदेड़े जाने के बाद उन्होंने कट्टरपंथ का रास्ता अपना लिया. वे मानते हैं कि कश्मीरी पंडितों के साथ जो दुर्व्यवहार हुआ, उसके बाद वे विश्वास करने लगे कि मुस्लिमों से लड़ाई के लिए हिंदुओं को एकजुट होना पड़ेगा. उन्माद से भरे हुए परमिंदर कहते हैं, ‘लाखों कश्मीरी पंडित या तो मार दिए गए या फिर अपना गांव-घर छोड़ने को मजबूर कर दिए गए. उनके पास यही विकल्प थे कि या तो वे अपने घर की औरतों का बलात्कार होते हुए देखें, कश्मीर छोड़ दें, या फिर इस्लाम स्वीकार करें.’

हिंदूवादी संगठनों की ओर से चलाए जा रहे केंद्रों में शारीरिक प्रशिक्षण के अलावा युवाओं को ये भी बताया जा रहा है कि संसार की सभी समस्याओं की जड़ इस्लाम है और जो इसको मानते हैं वे सभी राक्षस हैं

परमिंदर बताते हैं कि उन्होंने प्रशिक्षण केंद्र की शुरुआत चार साल पहले आईएस से लड़ने के लिए की थी. जब उनसे कहा गया कि चार साल पहले तक तो आईएस को कहीं कोई जानता ही नहीं था, तब उनका जवाब था, ‘मुझे पता था कि आने वाले सालों में इस्लामिक जिहाद बढ़ेगा इसलिए बच्चों को प्रशिक्षण देना शुरू किया ताकि वे देश की रक्षा कर सकें.’ हिंदुत्व के प्रति अपनी निष्ठा का प्रमाण देते हुए परमिंदर कहते हैं कि 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों के दौरान उन्होंने अपने लड़कों को हिंदुओं की रक्षा करने के लिए वहां भेजा था.

रोड़ी गांव हिंदू बहुल है, यहां की बहुसंख्यक आबादी जाटों की है. गांव के एक कोने में मुसलमानों के परिवार हैं. गांव में सांप्रदायिक तनाव का अभी तक कोई बड़ा मामला सामने नहीं आया है लेकिन दोनों समुदायों में झड़पें होती रही हैं. अब हिंदू बच्चों को ऐसा प्रशिक्षण दिए जाने से मुस्लिम जरूर चिंतित हैं. रोड़ी गांव में अपने घर के बाहर बैठे एक वृद्ध मुस्लिम चिंता जाहिर करते हुए कहते हैं, ‘हमें ऐसा लगता है कि गांव में हम मुस्लिम अलग-थलग कर दिए गए हैं. जब मैं छोटा था तो दोनों समुदाय के बच्चे एक-साथ खेला करते थे लेकिन अब एक खालीपन-सा है.’

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गांव में हिंदुओं को दिए जा रहे इस तरह के प्रशिक्षण ने एक अनकही दीवार खड़ी कर दी है. गांव के कुछ लोग बताते हैं कि यहां के सामाजिक ताने-बाने को तब भी धक्का लगा जब 22 अक्टूबर को दशहरे के अवसर पर गांव में अग्नि शस्त्र पूजन का आयोजन किया गया था. फिर रोड़ी गांव में कुुछ समय पहले हुई एक महापंचायत में फैसला लिया गया कि हिंदुओं को अब एकजुट होना पड़ेगा. आरोप है कि इस महापंचायत में वक्ताओं ने मुस्लिमों को गालियां दीं.

परमिंदर कहते हैं, ‘इस देश में हिंदुओं को सिर्फ मुसलमानों से ही लड़ना है. दुनिया में सभी आतंकवादी मुसलमान ही हैं. क्या आपने कभी देश में किसी हिंदू को आतंकवाद फैलाते देखा है?’, परमिंदर इस समय भाजपा का समर्थन कर रहे हैं. वे किसी भी उस पार्टी के साथ रहेंगे जो हिंदुओं के लिए काम करे, उनके अनुसार ऐसा इस वक्त मोदी कर रहे हैं.

जब उनसे प्रशिक्षण केंद्र चलाने के लिए फंडिंग और संसाधनों के प्रबंधन से जुड़े सवाल किए गए तो परमिंदर और उनके एक वकील सहयोगी कोई विश्वसनीय जवाब नहीं दे पाए. उन्होंने सिर्फ इतना कहा, ‘हम दान नहीं मांगते क्योंकि हिंदू सिर्फ ढोंगी बाबाओं को ही दान देते हैं.’ उन्होंने आगे बताया कि पश्चिमी यूपी से उनके जैसे स्वामीजी के भक्त इस काम के लिए संसाधन उपलब्ध कराते हैं.

शाम के प्रशिक्षण सत्र के लिए आने वाले बच्चे अखाड़े में प्रवेश से पहले ‘जय श्रीराम’ कहकर गुरुजी (परमिंदर आर्य) का अभिनंदन करते हैं. निखिल आर्य (17) और कुलदीप शर्मा (19) पिछले दो सालों से यहां प्रशिक्षण के लिए आ रहे हैं. जब उनसे पूछा गया कि हथियारों की ट्रेनिंग क्यों ले रहे हो तो उनका जवाब था, ‘आत्मरक्षा के लिए.’ एसएससी की तैयारी कर रहे निखिल ने कहा, ‘सभी आतंकवादी मुस्लिम हैं इसलिए उनसे खतरा है.’ कुलदीप ने बताया कि उसके और दूसरे बच्चों के पास मोबाइल में 10-12 ह्वाट्सएप ग्रुप हैं और हर ग्रुप में 150 से 200 लोग हैं. सोशल मीडिया का इस्तेमाल वे इसलिए कर रहे हैं ताकि अगर कोई प्रशिक्षण के लिए न आ पाए तो उसे कम से कम घटनाक्रम से तो अवगत रखा जा सके. हिंदू स्वाभिमान संगठन द्वारा ग्रुप में भेजी गई एक तस्वीर में लिखा है, ‘हिंदू क्यों भूल गया है शस्त्रों को?’

ये संगठन सात साल के बच्चों का भी ब्रेनवॉश करने में सफल हुए हैं. अब ये लोग अपने संगठन का विभिन्न रूपों में राजस्थान, हरियाणा, बिहार और झारखंड में विस्तार करने की महत्वाकांक्षा रखते हैं

परमिंदर और गांववाले कहते हैं कि वे बच्चों को सिर्फ इसलिए प्रशिक्षित कर रहे हैं ताकि इस्लामिक जिहादियों के आक्रमण के समय वे अपने परिवार और देश की रक्षा कर सकें. इससे प्रशासन को क्या परेशानी होनी चाहिए? उनके अनुसार समस्या तो मदरसों में है. परमिंदर ने यह भी बताया कि प्रशिक्षण के लिए तकरीबन 100 लोगों ने रिवॉल्वर, पिस्तौल और लाइसेंसी हथियार उपलब्ध कराए हैं. इस बीच उनका मोबाइल फोन बजता है. चेहरे पर बड़ी मुस्कान के साथ परमिंदर बताते हैं कि इंटेलिजेंस ब्यूरो से किसी का फोन था.

इन प्रशिक्षण केंद्रों की श्रृंखला सिर्फ रोड़ी गांव तक ही सीमित नहीं बल्कि मेरठ में भी ऐसे आठ केंद्र चल रहे हैं. हिंदू स्वाभिमान संगठन के मुताबिक उनका दायरा सहारनपुर और हरिद्वार तक फैला हुआ है. हालांकि सभी केंद्र खुलेआम नहीं चलाए जा रहे हैं. दिलचस्प बात ये है कि इस आंदोलन की प्रेरणा और आदर्श 107 साल के एक स्वामीजी हैं जो देवबंद में रहते हैं.

मेरठ के केंद्रों का संचालन चेतना शर्मा देखती हैं, जो पेशे से वकील हैं. जहां तक उनकी संगठन से जुड़ी पहचान का सवाल है तो चेतना के पास कई हैं, जिनका जरूरत के मुताबिक प्रयोग होता है. कभी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ‘दुर्गा वाहिनी’ की विभाग संयोजक रहीं चेतना को ‘अखंड हिंदुस्तान मोर्चा’ की जोनल इंचार्ज के तौर पर भी जाना जाता है.

पूर्व भाजपा सांसद बीएल शर्मा, जिन्होंने विहिप और बजरंग दल की सेवा करने के लिए राजनीति छोड़ी और फिर 2009 में वापस भाजपा में शामिल हो गए, इस अखंड हिंदुस्तान मोर्चा के संस्थापक हैं. चेतना बीएल शर्मा की बेटी जैसी हैं और उनकी संभावित वारिस भी. चेतना ‘लव जिहाद’ के मामले पर अभियान चलाने को लेकर विवादों में रह चुकी हैं.

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यहां रोचक पहलू ये है कि ये लोग किसी भी राजनीतिक विचारधारा के प्रति निष्ठा रखने की बात दरकिनार करते हैं लेकिन किसी न किसी रूप में एक राजनीतिक विचारधारा की छत्र-छाया में ही फल-फूल रहे हैं. सबसे बड़ी बात है कि जिन क्षेत्रों में ये संगठन सक्रिय हैं, वहां ये सात साल के बच्चों का भी ब्रेनवॉश करने में सफल हुए हैं. अब ये संगठन का विभिन्न रूपों में राजस्थान, हरियाणा, बिहार और झारखंड में विस्तार करने की महत्वाकांक्षा रखते हैं.

सहारनपुर में कपड़े की दुकान चलाने वाले दिनेश वर्मा, अब दिनेश ‘हिंदू’ के नाम से जाने जाते हैं. वे इस क्षेत्र में हिंदू स्वाभिमान संगठन का काम देखते हैं. उनके अनुसार वे ‘हिंदुओं से जुड़े सभी मसलों पर काम करते हैं, चाहे वो लव जिहाद का मामला हो या गोहत्या का.’ डासना के स्वामीजी से उनका संपर्क ह्वाट्सएप के जरिये हुआ था, जिसके बाद उनकी सोच बदल गई. उनका दृढ़ विश्वास है कि यदि अब भी जिम्मेदारी नहीं ली गई तो हिंदुओं को न सिर्फ पश्चिमी यूपी बल्कि पूरे देश से निकाल दिया जाएगा. वे कहते हैं, ‘उन्होंने पहले पाकिस्तान में ऐसा किया, फिर बांग्लादेश में. अगर भारत भी हाथ से निकल गया तो हिंदुओं के लिए दुनिया में कोई देश नहीं रहेगा. हम कहां जाएंगे?’ हालांकि इस संगठन के प्रभाव से क्षेत्र में बढ़ी कट्टरता साफ महसूस की जा सकती है. यहां एक और बात है, जिस पर डासना के स्वामीजी, अनिल यादव और परमिंदर आर्य समान रूप से सहमत हैं. उनके अनुसार अगर कोई संकट आता है तो ये प्रशिक्षित बच्चे न केवल हिंदुओं की रक्षा करेंगे बल्कि ऐसा खूनखराबा करेंगे कि पश्चिमी यूपी का वह क्षेत्र ‘पवित्र’ हो जाएगा. पर ये सभी सामान्य रूप में उनके द्वारा प्रशिक्षित बच्चों द्वारा कानून हाथ में लेने की स्थिति में उस कानून के उल्लंघन की जिम्मेदारी लेने से साफ इंकार करते हैं. फिर वे ये कह कर चौंका देते हैं कि यदि उनके द्वारा प्रशिक्षित बच्चे कोई गलत काम ही क्यों न करें, वे उसका साथ देंगे.

इन सबके बीच उत्तर प्रदेश पुलिस को इस मामले की कोई जानकारी ही नहीं है. मोदीनगर के डीएसपी राजेश कुमार सिंह बताते हैं, ‘हमें हिंदू कट्टरपंथ के इस तरह हो रहे विस्तार के बारे में कोई जानकारी नहीं है.’ फिर वे आश्वस्त भी करते हैं कि वे इस मामले में संज्ञान लेंगे और उचित कार्रवाई करेंगे. हालांकि दिलचस्प बात ये है कि डासना के स्वामीजी द्वारा दिए गए एक भड़काऊ भाषण पर मोदीनगर में ही एफआईआर हुई, जिसके प्रतिरोध में मोदीनगर में ही एक प्रेस कांफ्रेंस आयोजित की गई थी.

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इसी बीच हिंदू महासभा के कार्यकारी अध्यक्ष कमलेश तिवारी द्वारा पैगंबर मोहम्मद पर दिए गए विवादित बयान ने इस धार्मिक राजनीति की बहस को गरमा दिया है. बिजनौर के मौलाना अनवर-उल-सादिक ने ये घोषणा की थी, ‘जो कमलेश तिवारी का सिर कलम करेगा, उसको 51 लाख रुपये इनाम दिया जाएगा.’ पश्चिमी यूपी के स्योहारा में सैकड़ों प्रदर्शनकारियों ने तिवारी को सजा-ए-मौत देने की मांग की है. इस तरह के विरोध देशभर में कई जगह हुए, हाल ही में पश्चिम बंगाल के मालदा और बिहार के पूर्णिया में भी इसी को लेकर हिंसक झड़प हुई थी.

कम ही लोग जानते हैं कि कमलेश डासना के स्वामीजी के शिष्य हैं. गुस्से से भरे स्वामीजी कहते हैं, ‘अगर कमलेश मारे गए तो परिणाम बहुत बुरा होगा, ऐसा होता है तो फिर पूरा पश्चिमी उत्तर प्रदेश देखेगा कि हम उनके (मुस्लिमों) साथ क्या करेंगे!’

‘बसपा इस क्षेत्र में अपनी जमीन तैयार कर रही है और 2017 का विधानसभा चुनाव जीत सकती है. पर  सांप्रदायिक तनाव बना रहा तो मुकाबला सीधे-सीधे हिंदू-मुस्लिम यानी भाजपा और सपा के बीच होगा’

रोड़ी गांव के रहवासी प्रीतम, जो ब्लॉक ऑफिस में काम करते हैं, बताते हैं कि मायावती की बहुजन समाज पार्टी इस क्षेत्र में अपनी जमीन तैयार कर रही है और 2017 के विधानसभा चुनावों में बहुमत से जीत सकती है. पर अगर इस तरह का सांप्रदायिक तनाव बना रहा तो मुकाबला सीधे-सीधे हिंदू-मुस्लिम यानी भाजपा और सपा के बीच होगा.

ये बात सोचने को मजबूर करती है कि अगर ये सब 2017 की सियासी लड़ाई की तैयारी है तो क्या जब इसके राजनीतिक उद्देश्य पूरे हो जाएंगे, तब समाज में बनाई जा रही इस खाई, खूनखराबे और कट्टरपंथ का भी अंत हो जाएगा? ऐसी संभावना नहीं दिखती.