वैसे तो कलावती बांदुरकर और उसके परिवार की कहानी वर्ष 2005 से शुरू होनी चाहिए. तब जब उनके पति ने आत्महत्या कर ली थी. उस समय वे विदर्भ के किसानों और उनके परिवारों की व्यथा-कथाओं का हिस्सा बनती जिन्होंने बैंक का लोन न चुका पाने की वजह से आत्महत्या की थी. उस दौर में आए दिन इस इलाके से किसानों के आत्म हत्या की खबरें आती रहती थीं. अखबारों के पन्ने पर दर्ज होती थीं और गायब हो जाती थीं. कलावती के पति की मौत वाली खबर के साथ भी बिल्कुल ऐसा ही हुआ था.
अपने जैसी बाकी महिलाओं से अलग कलावती दोबारा अखबारों और जल्दी ही इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर तब आती हैं जब वर्ष 2008 में राहुल गांधी उनके घर पहुंचते हैं. वहां खाना खाते हैं और वर्ष 2009 में संसद में बोलते हुए कलावती का जिक्र करते हैं. इन दो घटनाओं के बाद विदर्भ इलाके के छोटे से गांव जलका की सड़कों और गलियों में तथा गांव के छोटे से हिस्से में रहने वाली कलावती की जिंदगी में हलचल शुरू होती है. राहुल आकर चले जाते हैं लेकिन गांववाले और कलावती उनकी तस्वीर संभाले रखते हैं. काफी दिनों बाद तक गांव के हर मोड़ पर उनके बड़े-बड़े होर्डिंग्स लगे रहे. जाहिर है कि इन्हें स्थानीय कांग्रेसी नेताओं ने लगवाया था लेकिन इनकी रखवाली गांववाले किया करते थे. इस उम्मीद में कि कि देश के नेता आए हैं तो गांव के किसानों के दिन बहुरेंगे. लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. जो थोड़ी बहुत सरकारी सुविधाएं गांव तक आईं वे सीधे कलावती के घर पहुंच गईं. स्थानीय कार्यकर्ता नितिन खडगे इस बारे में कहते हैं, ‘गांव या इलाके के किसानों को उम्मीद थी कि राहुल गांधी के आने से कोई फर्क पड़ेगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं. किसानों के कर्ज जस के तस बने रहे. किसी को कोई राहत नहीं मिली. सब जस का तस ही है. गांव के स्तर पर कोई ऐसा बदलाव नहीं हुआ जिसे बताया जा सके.’
नितिन, कलावती के गांव जलका के ही रहने वाले हैं और दिल्ली स्थित गैरसरकारी संस्था सुलभ इंटरनेशल से जुड़े हुए हैं. हम नितिन से यह जानने की कोशिश करते हैं कि राहुल गांधी के आने के बाद कलावती की जिंदगी में कितना बदलाव हुआ तो वे जानकारी देते हैं, ‘ बोले तो उसकी तो जिंदगी ही बदल गई. उसके पास 2008 से पहले कुछ नहीं था. राहुल आए तो पूरे देश का ध्यान उसकी तरफ गया. आज की तारीख में कलावती को हर उस सरकारी योजना का लाभ मिल रहा है जो उसे मिलना चाहिए. जिले के अधिकारी उसे देखते ही पहचान जाते हैं. राहुल गांधी के आने से उसे तो सबकुछ मिल गया, उसे तो.’
इसी बातचीत में वे यह भी जानकारी देते हैं कि वर्ष 2009 में सुलभ इंटरनेशनल की तरफ से कलावती के नाम पर 36 लाख रुपये बैंक में जमा करवाए गए थे. हर महीने जो ब्याज मिलता है उसी से कलावती का परिवार चलता है. कलावती की सात बेटियां और दो बेटे हैं. बेटे सबसे छोटे हैं और अभी पढ़ाई कर रहे हैं. सभी बेटियों की शादी हो चुकी है. लेकिन ऐसा नहीं है कि पैसे मिल जाने और कच्चा घर के पक्का बन जाने के बाद कलावती के परिवार में सब ठीक है. जिस पैसे ने उन्हें सहूलियत दी वही उनके लिए एक आपदा लेकर भी आया. अक्टूबर 2011 में कलावती की बेटी, सविता दिवाकर खामणर ने आत्महत्या कर ली. कहा जाता है कि सविता के पति ने बैंक से कर्ज लेकर ऑटो खरीदा था. ऑटो से इतनी कमाई नहीं हो रही थी कि वह कर्ज चुका पाता. ऐसे में उसने अपनी पत्नी सविता पर दबाव बनाना शुरू किया कि वह अपनी मां से पैसा मांगे. इसी पारिवारिक कलह की वजह से सविता ने आत्महत्या कर ली. सविता के आत्म हत्या करने के साल भर पहले ही कलावती की एक और बेटी पपिता के पति संजय खलासकर ने भी आत्महत्या कर ली थी.
अब कलावती की उम्र साठ के करीब हो चुकी है. चश्मे के बिना कुछ देख नहीं सकतीं. सुनाई भी बहुत कम देता है. अब बातें करने में उनकी पहले जैसी दिलचस्पी नहीं है. हालांकि उनकी सबसे स्वर्णिम स्मृति आज भी उनके साथ है. कलावती के घर में आज भी राहुल गांधी की एक बड़ी तस्वीर लगी है. अब भी जब कोई कलावती से राहुल गांधी के बारे में जिक्र करता है, वे अपने दोनों हाथ उठाकर उसे आशीर्वाद देने से खुद का रोक नहीं पातीं.