यदि किसी की उम्र महज आठ साल हो और उसके इतने सालों को ही एक फिल्म बनाने लायक समझा जाए तो कहा जा सकता है कि उस बच्चे ने दूध के दांत टूटने के पहले ही बड़े-बड़े उतार-चढ़ाव देख लिए हैं. फिल्म भी कोई ऐसी-वैसी नहीं बल्कि जिसे अपनी श्रेणी में दुनिया की दस सर्वश्रेष्ठ डॉक्यूमेंटरी फिल्मों में शुमार किया गया हो. ब्रिटेन की निर्देशक गेम्मा अटवाल की ‘मैराथन बॉय’ को 2011 में धावकों पर बनी दुनिया की दस सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में शामिल किया गया था. इस फिल्म के साथ एक रिकॉर्ड यह भी था कि इसे दुनिया के सबसे नन्हे धावक बुधिया सिंह की जिंदगी पर बनाया गया.
‘मैराथन बॉय’ जब 2010 में रिलीज होकर सुर्खियां बटोर रही थी तो उस समय तक भुवनेश्वर की सलिया साही झुग्गी झोपड़ी से निकलकर पूरे भारत में नाम कमानेवाला बुधिया गुमनामी में खो चुका था. अटवाल अपनी फिल्म के बारे में कहती हैं, ‘ बुधिया के जीवन की उतार चढ़ाव भरी कहानी उम्मीदों व अवसरों की टेक पर आगे बढ़ती है और लालच, भ्रष्टाचार और बिखरते सपनों पर खत्म होती है.’
अटवाल की बात कुछ हद तक बिल्कुल सही है. चार साल के बुधिया के बारे में 2005 में जब पहली बार यह पता चला कि वह लगातार कई किलोमीटर तक दौड़ सकता है तो मीडिया के लिए यह खबर आठवें आश्चर्य के स्तर की थी. उसे वैसे चलाया भी गया. खबर यह भी आई कि वह एक बार लगातार सात घंटे तक दौड़ता रहा और उसने एक दिन तकरीबन 48 किलोमीटर की दूरी तय कर ली. मतलब चार साल का एक लड़का मैराथन (42 किमी) से ज्यादा दूरी दौड़ रहा था! सिलसिला यहां आकर रुका नहीं. यह भी कहा जा रहा था कि वह इतनी कम उम्र में 40 से ज्यादा बार मैराथन दौड़ के बराबर दूरी तय कर चुका है. ऐसा राज्य जो राष्ट्रीय स्तर पर कम ही चर्चा में रहता हो, के लिए यह बच्चा उड़िया अस्मिता का प्रतीक बन गया. बुधिया सिंह सार्वजनिक कार्यक्रमों में मुख्य अतिथि बनकर जाने लगा. वह कुछ गाने के वीडियों में भी आया और ये उडि़याभाषी वीडियो रिकॉर्ड तोड़ बिके. इस पूरे घटनाचक्र की एक और खासबात थी. यहां बुधिया अकेले नहीं था. उसके साथ नायक का दर्जा बिरंची दास को भी मिला जो इस नन्हे धावक के स्वघोषित कोच थे.
स्थानीय जूडो कोच बिरंची को बुधिया मिलने की कहानी भी कम रोचक नहीं है. कहा जाता है कि बुधिया के पिता का देहांत होने के बाद उसकी मां सुकांति सिंह के लिए अपने इस सबसे छोटे बेटे और तीन बेटियों का पालन पोषण बहुत मुश्किल हो गया. ऐसे में उन्होंने कुछ रुपयों के बदले एक व्यक्ति को बुधिया सौंप दिया. बाद में बिरंची ने इस व्यक्ति से बुधिया को अपने संरक्षण में ले लिया. हालांकि बहुत सारे स्थानीय पत्रकार इस कहानी को झूठा बताते हैं. उनके मुताबिक सुकांति सिंह ने ही बिरंची को बुधिया दिया था. 2005 के बाद से इस गुरु-शिष्य की जोड़ी लगातार चर्चा में आती रही.
इन्हीं दिनों भारत की उड़नपरी पीटी ऊषा भी भुवनेश्वर पहुंची. उनसे जब यहां किसी ने बुधिया के बारे में सवाल पूछा तो उनका कहना था कि वे इस बच्चे की सेहत को लेकर चिंतित हैं क्योंकि उसे बार-बार लंबी दूरी तक दौड़ाया जा रहा है और इससे उसकी सेहत पर गंभीर स्थायी प्रभाव पड़ेगा. इस बयान ने उन बाल अधिकार संगठनों को प्राणवायु दे दी जो शुरू से बुधिया की मैराथन दौड़ का विरोध कर रहे थे. इन संगठनों का मानना था कि पैसे और ख्याति के लिए इस बच्चे का शोषण किया जा रहा है. लेकिन उस समय बुधिया के पक्ष में जिस तरह का माहौल था, उड़ीसा सरकार भी इस मसले पर कुछ कहने से कतरा रही थी. इसी समय बिरंची दास ने घोषणा कर दी कि बुधिया पुरी से लेकर भुवनेश्वर तक 65 किमी की दूरी तय करेगा. मई में आयोजन की तारीख भी तय हो गई. लेकिन इस बार यह इतना आसान नहीं था. बाल अधिकार संगठनों की मांग का समर्थन करते हुए उड़ीसा सरकार की खेल मंत्री प्रमिला मलिक ने कहा कि सरकार इस आयोजन के पक्ष में नहीं है. मलिक का कहना था, ‘ यदि बुधिया को कुछ हो जाता है तो उसकी जवाबदेही आखिरकार सरकार की होगी.’
राज्य सरकार के महिला और बाल विकास विभाग ने आयोजन के पहले पांच डॉक्टरों की टीम गठित कर दी थी. इसकी जिम्मेदारी थी कि वह जांच कर बताए कि बुधिया के शरीर पर इतनी लंबी दौड़ का क्या असर पड़ा. मई, 2006 में दौड़ के आयोजन वाले दिन भुवनेश्वर से लेकर पुरी तक मीडियाकर्मियों का बड़ा हुजूम था. उस दिन नियत समय पर चिलचिलाती धूप में बुधिया ने पुरी से दौड़ना शुरू किया और मीडिया के ही मुताबिक वह बिना रुके लगातार सात घंटे तक दौड़ता रहा. हालांकि इस कारनामे पर भी कई लोग सवाल उठाते हैं. जगतसिंहपुर जिले के निवासी और वर्तमान में इग्नू के दिल्ली केंद्र में पढ़ाई कर रहे ज्ञानी डोम बताते हैं, ‘ मैं और मेरे कई परिचित उस समय वहीं थे. मीडिया ने इस बात को कभी नहीं दिखाया कि बुधिया उस पूरी दौड़ में कई बार बीच में रुका और एकाध बार तो बेहोशी की हालत में आ गया था. हालांकि उस कड़ी धूप में साढ़े चार साल की उम्र का बच्चा इतना भी कर ले तो उसकी चर्चा होनी चाहिए. पर वह रिकॉर्ड वाली बात सही नहीं है.’
बुधिया बीती फरवरी में 12 साल का हो गया है और नियमों के मुताबिक वह इस साल से आधिकारिक प्रतियोगिताओं हिस्सा ले पाएगा
बुधिया के भुवनेश्वर पहुंचने पर डॉक्टरों की टीम ने उसका चिकित्सकीय परीक्षण किया था. इस समिति के नतीजे ही वे आधार बने जिनके बाद राज्य सरकार ने बुधिया के लंबी दूरी वाली दौड़ पर प्रतिबंध लगा दिया. डॉक्टरों का कहना था कि इस दौड़ से बुधिया का शरीर अति थकावट वाली स्थिति में आ गया है और उसके हृदय पर अत्यधिक दबाव पड़ा है. उन्होंने चेतावनी भी दी कि यदि वह इतनी लंबी दूरी की दौड़ जारी रखता है तो उसकी जिंदगी खतरे में पड़ सकती है. बिरंची दास के लिए सरकार के इस फैसले का कोई मायने नहीं था. अभी-भी वे बुधिया को प्रशिक्षण दे रहे थे और उन्हें उम्मीद थी कि उनके शिष्य का जादू अभी और चलेगा. साल 2007 बिरंची और बुधिया दोनों के लिए अति नाटकीय ढंग से निर्णायक साबित हुआ. बिरंची दास ने इस साल फिर एक घोषणा की. उन्होंने कहा कि अब बुधिया लगातार पैदल चलकर 300 किमी की दूरी तय करेगा. भुवनेश्वर की जिस सड़क पर यह आयोजन होना था उस दिन वहां पुलिस के दर्जनों जवान बैरीकेड लगाकर तैनात थे. बुधिया जैसे ही कुछ कदम चला उन्होंने इस नन्हे खिलाड़ी, उसके कोच और कुछ लोगों की भीड़ को रोक लिया. समाचार चैनलों के लिए यह दृश्य उस दिन का सबसे बड़ा दृश्य बन गया जिसमें पुलिस बुधिया को उस भीड़ से लगभग छीनते हुए अपने साथ ले जा रही थी. बुधिया के जीवन का यह आखिरी सार्वजनिक आयोजन था और संयोग से उसके कोच बिरंची दास का भी.
2007 में ही एकबार फिर मीडिया में ये गुरु शिष्य दिखाई दिए लेकिन एक साथ नहीं. बुधिया की मां ने बिरंची पर आरोप लगाए कि वे उनके बेटे को प्रताड़ना देते थे. अपनी मां की बात सही साबित करते हुए बुधिया ने भी अपने शरीर पर मारपीट और जलाने के कई निशान दिखाए. बिरंची दास उस एक ही दिन में सबसे बड़े खलनायक बन गए और आखिरकार पुलिस ने उनपर केस दर्जकर उन्हें हिरासत में ले लिया. बिरंची दास की इस घटना के ठीक एक साल बाद ही हत्या हो गई हो गई थी. हालांकि इसका बुधिया सिंह से कोई लेना देना नहीं था. इधर बुधिया को राज्य सरकार ने भुवनेश्वर स्थित कलिंग स्टेडियम स्पोर्टस हॉस्टल में भर्ती कर दिया. वह आज भी यहीं है और डीएवी स्कूल में सातवीं का छात्र है. आज आठ साल पहले के एक नन्हे धावक और सरकारी हॉस्टल के किशोरवय में पहुंच रहे लड़के के जीवन में कई बदलाव आ चुके हैं. सबसे बड़ा तो यही कि अब वह लंबी दूरी की दौड़ में हिस्सा नहीं लेता. बुधिया की कोच रूपन्विता पांडा बताती हैं, ‘ भारतीय एथलेटिक्स संघ के नियमों के मुताबिक कम से कम 14 साल का बच्चा ही लंबी दौड़, जो 600 मीटर की होती है, में भाग ले सकता है. जबकि बुधिया तो 12 साल का ही है.’ बुधिया की मां सुकांति सिंह जो कुछ साल पहले तक दो वक्त के खाने के लिए मोहताज थीं आज कलिंग इंस्टीट्यूट ऑफ इंडस्ट्रियल टेक्नालॉजी में सफाई कर्मचारी हैं. सुकांति को अपने बेटे के हॉस्टल से बस एक दिक्कत है कि वहां उनके बेटे को ठीक खाना नहीं मिलता. रूपन्विता इसपर कहती हैं, ‘ हम यहां वैज्ञानिक तरीके से बच्चों को प्रशिक्षण देते हैं. बच्चों की डाइट भी उसी का हिस्सा है लेकिन आम लोग इसको नहीं समझते.’
आज बुधिया हॉस्टल में कबड्डी से लेकर बास्केटबॉल तक सभी खेल खेलता है. हालांकि जिस खेल उसे भविष्य का सबसे बड़ा सितारा समझा जा रहा था उसमें वह पीछे है
आज बुधिया हॉस्टल में कबड्डी से लेकर बास्केटबॉल तक सभी खेल खेलता है. हालांकि जिस खेल में उसे भविष्य का सबसे बड़ा सितारा समझा जा रहा था उसमें वह पीछे है. हॉस्टल के एक कर्मचारी नाम न बताने की शर्त पर जानकारी देते हैं, ‘ बुधिया अपने ही साथ के लड़कों से दौड़ में हार जाता है. स्पीड नहीं है उसमें.’ हालांकि रूपन्विता इससे चिंतित नहीं हैं. वे कहती हैं, ‘ बुधिया की सबसे खास बात है कि वह बिना थके बहुत देर तक दौड़ सकता है. हम उस पर बहुत अधिक दबाव डाले बिना उसकी शारीरिक क्षमता बढ़ा रहे हैं. लंबी दूरी की दौड़ में वह अच्छा प्रदर्शन कर सकता है.’
बुधिया इस साल फरवरी में 12 साल का हो गया है. अब वह आधिकारिक रूप से अंतरस्कूल स्पर्धाओं में भाग ले सकता है. इस साल के अंत तक उसका नाम ऐसी प्रतियोगिताओं के लिए भेजा जाएगा. गेम्मा अटवाल की ‘बिखरते सपनों’ वाली बात के विपरीत रूपन्विता को अपने इस छात्र से बहुत उम्मीदें हैं और हमें भी.