फाइनल के बाद

महाराष्ट्र: साथ पर संशय

साथ-साथ? नरेंद्र मोदी के साथ शिवसेना के मुशिया उ व ठाकरे(बाएं)
साथ-साथ? नरेंद्र मोदी के साथ
शिवसेना के मुशिया उ व ठाकरे(बाएं)

बीते लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र उन राज्यों में शामिल था जहां की राजनीति को भाजपा और उसके सहयोगी दलों ने सिर के बल लाकर खड़ा कर दिया. यानी जिस जगह पर वे राजनीतिक हाशिए पर थे वहां जनता के आशीर्वाद ने उन्हें रातोंरात राजनीति का सबसे बड़ा सितारा बना दिया. महाराष्ट्र में भी भाजपा गठबंधन (जिसमें भाजपा और शिवसेना के साथ चार अन्य दल शामिल हैं) ने कुछ ऐसा ही कमाल दिखाया. चुनाव में प्रदेश की 48 सीटों में से भाजपा गठबंधन को 42 सीटें मिलीं. वहीं कांग्रेस मात्र दो और उसकी सहयोगी एनसीपी चार सीटों पर सिमट गई. भाजपा गठबंधन में किसी को इतनी शानदार सफलता की उम्मीद नहीं थी. गठबंधन ने मिलकर कांग्रेस-एनसीपी को उनके सबसे बुरे राजनीतिक दौर पर लाकर खड़ा कर दिया था. प्रदेश एक बार फिर से विधानसभा चुनाव में जाने की तैयारी में है. ऐसे में यह चर्चा आम है कि क्या भाजपा शिवसेना गठबंधन लोकसभा में मिली अभूतपूर्व सफलता को विधानसभा चुनाव में दोहरा पाएगा. या फिर कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन लोकसभा में अपनी खोई हुई सियासी हैसियत की भरपाई विधानसभा चुनाव में कर लेगा.

जनमत सर्वेक्षणों और आम चर्चाओं को अगर आधार मानें तो प्रदेश की राजनीति फिलहाल भाजपा गठबंधन के पक्ष में झुकी हुई है. सर्वेक्षणों में बताया जा रहा है कि अगली सरकार भाजपा गठबंधन की ही बनने जा रही है. कांग्रेस और एनसीपी की 15 साल से चली आ रही सरकार पर अब ब्रेक लगने वाला है. भाजपा गठबंधन भी इस बात को लेकर पूरी तरह आश्वस्त दिख रहा है कि बस अब उनकी सरकार बनने ही वाली है. Read More>>


जम्मू-कश्मीर: बाढ़ ने बदले समीकरण

जम्मू-कश्मीर की भयानक बाढ़ एक तरफ नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस की दुर्गति तो दूसरी ओर भाजपा के लिए अच्छे दिनों का सबब बन सकती है.

फोटोः एएफपी
फोटोः एएफपी

जम्मू-कश्मीर बाढ़ से उपजी त्रासदी की गिरफ्त में है. बाढ़ के पहले प्रदेश में राजनीतिक गतिविधियों की बाढ़ आई हुई थी. माना जा रहा था कि हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड के साथ ही जम्मू कश्मीर में लगभग एक साथ ही विधानसभा चुनाव होंगे. लेकिन बाढ़ के कारण जम्मू-कश्मीर का चुनाव टल गया है. कब होगा ठीक-ठीक नहीं बताया जा सकता. जब भी चुनाव होगा तो उसके परिणाम क्या होंगे, आज इस प्रश्न से ज्यादा बड़ा प्रश्न यह है कि राज्य में चुनाव कब होंगे. क्योंकि प्रदेश में विधानसभा चुनाव में क्या होगा यह काफी कुछ इस पर भी निर्भर करेगा कि चुनाव होते कब हैं. राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि जम्मू-कश्मीर में चुनाव जब भी होंगे बाढ़ से आई त्रासदी उसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगी. यानी जनता जब वोट देने जाएगी तब ईवीएम का बटन दबाते समय उसके दिमाग में इस समय की त्रासदी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी.

ऐसे में पहले यह जानना जरूरी है कि बाढ़ के कारण राजनीतिक तौर पर प्रदेश में क्या बदला है और इसके कारण आने वाले समय में क्या-क्या और कितना बदल सकता है. Read More>>


हरियाणा: मोदी की भाजपा बनाम अन्य

इसमें शक नहीं कि हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा सबसे आगे है लेकिन उसके सामने अचानक ही ऐसा होने से जुड़ी कुछ बड़ी चुनौतियां भी हैं

modi-huddaपिछले कुछ समय में हरियाणा की राजनीति ने ऐसे बदलाव देखें हैं जिनकी कल्पना चंद महीने पहले तक शायद ही किसी ने की हो. कौन सोच सकता था कि कांग्रेस से अपना 45 साल पुराना रिश्ता तोड़ते हुए चौधरी बीरेंद्र सिंह विधानसभा चुनाव के ठीक पहले भाजपा में शामिल हो जाएंगे? या फिर हुड्डा के लंगोटिया दोस्त और उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचानेवाले विनोद शर्मा उनका और कांग्रेस का साथ छोड़कर अपनी अलग पार्टी बना लेंगे. किसे पता था कि अपनी खोई सियासी जमीन पाने के लिए बड़ी शिद्दत से 2014 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों का इंतजार कर रहे इंडियन नेशनल लोकदल (आईएनएलडी) के कर्ताधर्ता वयोवृद्ध ओमप्रकाश चौटाला और उनके पुत्र अजय चौटाला चुनाव के साल भर पहले ही जेल पहुंच जाएंगे.

लेकिन ये बड़े बदलाव भी उस उलटफेर के आगे कुछ बौने दिखाए देते हैं जो भारतीय जनता पार्टी ने हरियाणा में पिछले लोकसभा चुनाव में किये. राज्य की 10 लोकसभा सीटों में से जिन आठ पर पार्टी ने चुनाव लड़ा उनमें से सात पर उसने जीत दर्ज की. चुनाव में उसे सबसे अधिक 34 फीसदी वोट मिले. दूसरे नंबर पर आईएनएलडी थी जिसे उससे 10 फीसदी कम 24 फीसदी मत मिले. प्रदेश के 90 विधानसभा क्षेत्रों में से 50 पर भाजपा सबसे आगे रही. जबकि 2009 में वह हांफते हुए सिर्फ सात सीटों पर बढ़त बना पाई थी. Read More>>


रांची वाया दिल्ली

दिल्ली का सपना दिखाकर रांची को अपना बनाना भाजपा के लिए कितना आसान है कितना मुश्किल?

rachiamitshahसात-आठ सितंबर को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह झारखंड की राजधानी रांची में थे. मौका था पार्टी के कार्यकर्ता समागम आयोजन का. आधिकारिक तौर पर शाह विधानसभा चुनाव के पहले झारखंड में पार्टी कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए पहुंचे थे. इससे कुछ समय पहले अनाधिकारिक तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी यहां चुनावी रणभेरी बजा चुके थे, जब वे एक सरकारी आयोजन में यहां पहुंचे थे. शाह के आगमन के पहले रांची की सड़कों पर स्थिति देखने लायक थी. कोई सड़क, कोई गली ऐसी नहीं बची थी जहां भाजपा के झंडे-बैनर-होर्डिंग न लगे हों. जिन-जिन रास्तों से अमित शाह को गुजरना था उन्हें देखकर लग रहा था कि भाजपा के नेताओं के बीच बैनर-पोस्टर-होर्डिंग-झंडे की होड़ लगी है. प्रदेश भाजपा के सभी बड़े नेताओं के अपने-अपने कार्यकर्ताओं ने पूरी कोशिश की थी कि अपने नेताजी का होर्डिंग विरोधी नेताजी से बड़ा और आकर्षक तरीके से लगे. पता नहीं अमित शाह उन होर्डिंगों में से किसी को देख भी सके या नहीं, लेकिन आठ सितंबर को रांची के प्रभात तारा मैदान में आयोजित कार्यकर्ता समागम में अपने भाषण में उन्होंने यह जरूर साफ कर दिया कि लाखों रुपये फूंककर अंजाम दी गई बैनर-पोस्टर-होर्डिंग की लड़ाई का असर नहीं होनेवाला. शाह ने साफ कहा कि अगले कुछ ही माह में झारखंड में जो विधानसभा चुनाव होनेवाला है, वह नरेंद्र मोदी के नाम और नेतृत्व के आधार पर लड़ा जाएगा और किसी को भी मुख्यमंत्री के तौर पर चुनाव के पहले पेश नहीं किया जाएगा.

अमित शाह ने कार्यकर्ता समागम में और कई बातें कहीं. मसलन, लोकसभा में कांग्रेसमुक्त नारे के साथ झारखंड के 14 संसदीय सीटों में से 12 पर कब्जा हुआ, विधानसभा में भाजपायुक्त नारे के साथ 81 में से 70 सीटों पर कब्जा कीजिए और इसके लिए विधानसभा सीट की बजाय एक-एक बूथ को जीतने की योजना पर काम कीजिए. उन्होंने यह भी गुरुमंत्र दिया कि झारखंड में भाजपा कार्यकर्ता विधायक को विजयी बनाने के लिए ऊर्जा नहीं लगाएं बल्कि सीधे मुख्यमंत्री बनवाने के लिए चुनाव में भाग लें. Read More>>